Moral Stories In Hindi
कला बहुत प्रकार की होती है. वैसेही संचय करना भी एक कला है, फिर चाहे वो पैसा का हो या किसी भी चीज का मनुष्य हररोज इच्छायें और आवश्यकता ये बढ़ती जाती है और उसके वजह से पैसे का महत्त्व भी बढ़ रहा है. पैसा को लक्ष्मी यानी भगवान का दर्जा दिया जाता है. जिसके पास पैसा नहीं है. उसका साथ सभी छोड़ देते है, लेकिन पैसेवाले के बहोत से दोस्त बन जाते है.
दोस्तों, लेकिन पैसा होना ये एक बात है और पैसे का व्यय करना ये अलग बात है. हमारे पास पैसा होने के बावजूद हम उसका व्यय कैसे करते है इस पर उस पैसे का स्थिर होना टिका है. कहते है, “पैसा कमाना उतना कठिन नहीं है, जितना पैसे को स्थिर रखना या उसका खर्च करना”.
“माया महाठगनी हमजानी | तिरगुन फ़ांस लिए कर डोरे, बोले मधुरी वाणी ||”
इसका अर्थ ऐसा है की, पैसे को महाठगनी कहा गया है जिसमें माया क्रोध और मोह ये तीनो विकार युक्त गुण समाए होते है. पैसा याने लक्ष्मी जिसके पास आती है उसे मनुष्य को अपने चमक से यानी मोह से अंधा बना देती है. पैसे को पाकर मनुष्य की बुध्दी बौरा जाती है. उसकी सोचने – समझने की शक्ती खतम हो जाती है. अंहकार से भरा वह मनुष्य किसी को कुछ नहीं समझता और यही अहंकार उसके विनाश का कारण बनता है.
इसलिये पैसे को स्थिर रखने की कला का ज्ञान होना मनुष्य के लिये बहुत जरुरी है. मेरी बात आपको पूरी तरह समझ में आये इसलिये मै आपको एक कहानी बताता हु.
एक गरिब इन्सान था. वो इतना गरिब था की वो अपने परिवार का पालन-पोषण भी बड़ी मुश्किल से कर पाता था. फिर भी वह अपनी बेटी शादी बड़े अच्छे से करने का सपना देखता था.और अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर बड़ा आदमी बनाना चाहता था. अक्सर उसे अपनी गरीबी से गुस्सा आता था. लेकिन उसका भाग्य अचानक बदल गया उसे लॉटरी लग गई.
एक साथ बहुत सारा रूपया हाथ में आते ही उसने 10-15 सिलाई की मशीन खरीदकर कारागीर बिठा दिया. देखते ही देखते उसका काम बहुत बढ़ गया. अब वो एक बहुत बड़े कंपनी का मालिक बन गया. तब तक उसके बच्चे बड़े हो गयें लेकिन बाप के अपार पैसे से उनकी आदते बिगाड़ दी थी.
औलाद उस आदमी की कमजोरी थी इसलिये उसने कभी अपने बच्चो को टोकने की कोशिश नहीं की. और न ही ये जानने की कोशिश की उसने अर्जित किया हुवा पैसा उसके बच्चे कहा खर्च कर रहे है. और ऐसा करते करते उसका बैक-बैलेंस नील हो चूका था. उसके पास स्टाफ – कारिगरो को तनखाह देने के लिये भी पैसा नहीं बचा था. इसका नतीजा उसका कारखाना बंद हो गया. और वो पहले की तरह गरिब हो गया.
देखा आपने, जब तब उस इन्सान ने सोच समझकर पैसे का उपयोग करता रहा तब तक उसकी उन्नती होती रही, उसके पास का पैसा बढ़ता गया लेकिन जैसे ही पैसा व्यय/संचय करने में लापरवाही आयी और अपव्यय आरंभ हुवा तब उसे कंगाल होते ज्यादा समय नहीं लगा.
हर एक इन्सान के पास, कभी ना कभी जीवन में पैसे की बाढ़ आती है. बहुत सारा पैसा आता है, तब वे अमीर बन जाते हैं और तब तक बने रहते हैं, जब तक कि वे इसके योग्य रहते हैं.
यदि आप आगे बढ़ाना चाहते हैं, यदि आपकी धनाढ्य बनने की आकांक्षा है, तो आपको पैसे का महत्व जानना होगा, उसका अध्ययन और अनुभव करना होगा. एक चतुर लेखक का कथन है कि इस बात को कभी मत भूलिए कि आप उतने ही परिमाण में पैसा उपार्जित करते हैं जितने परिमाण में आप ईमानदारी से समाज की सेवा करते हैं.
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