महान गायक मोहम्मद रफ़ी | Mohammad Rafi biography in Hindi

Mohammad Rafi – मोहम्मद रफ़ी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सबसे प्रसिद्ध गायकों में से एक थे। भारतीय उपमहाद्वीप में उन्हें सदी के श्रेष्ट गायकों में शामिल किया गया है, और मोहम्मद रफ़ी अपनी पवित्रता, गानों और देशभक्ति गीतों के लिये जाने जाते थे।

इसके साथ-साथ मोहम्मद रफ़ी ने कयी बहु-प्रसिद्ध रोमांटिक गीत, क़व्वाली, ग़जले और भजन भी गाए है। अपने गानों को फिल्म में काम करने वाले कलाकार के होंठो तक लाने की मोहम्मद रफ़ी जी मे क्षमता थी।

1950 से 1970 के बीच, रफ़ी ने कई सुपरहिट गीत गाए और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी विशेष पहचान बनाई। Mohammad Rafi जी को छः फिल्मफेयर अवार्ड और एक नेशनल अवार्ड मिल चूका है। 1967 में उन्हें भारत सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया था।

महान गायक मोहम्मद रफ़ी – Mohammad Rafi biography in Hindi

Mohammed Rafi

मोहम्मद रफ़ी विशेषतः हिंदी गीतों के लिये जाने जाते है, जिनपर उनकी अच्छी खासी पकड़ थी। सूत्रों के आधार पर कहा जा सकता है की उन्होंने सभी भाषाओ में तक़रीबन 7400 गाने गाए है।

उन्होंने हिंदी के अलावा दूसरी भाषाओ में भी गाने गाए है जिनमे मुख्य रूप से असामी, कोनकी, भोजपुरी, ओडिया, पंजाबी, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्नड़, गुजराती, तेलगु, मगही, मैथिलि और उर्दू भाषा शामिल है। भारतीय भाषाओ के अलावा उन्होंने इंग्लिश, फारसी, अरबी, सिंहलेसे, क्रियोल और डच भाषा में भी गीत गाए है।

महान गायक मोहम्मद रफ़ी की जीवनी

मोहम्मद रफ़ी हाजी अली मोहम्मद के छः बेटो में सबसे छोटे थे। असल में उनका परिवार कोटला से था जो वर्तमान में भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर के पास एक छोटे गाँव में आता है। उनका उपनाम फीको था, अपने स्थानिक गाँव कोटला में ही गल्ली में गाने वाले फ़क़ीर की आवाज़ सुनकर ही उन्हें गाने की प्रेरणा मिली थी।

1935 में रफ़ी लाहौर चले गए थे, जहाँ भट्टी गेट के पास नूर मोहल्ला में वे मेंस सैलून (Man’s Salon) चलाते थे। उनका बड़ा भाई मोहम्मद दीन का एक दोस्त अब्दुल हमीद था, जिसने लाहौर में रफ़ी की प्रतिभा को पहचाना और रफ़ी को गाना गाने के लिये प्रेरित भी किया। इसके बाद 1944 में उन्होंने रफ़ी को मुंबई जाने में सहायता भी की थी।

उनका बड़ा भाई मोहम्मद दीन का एक दोस्त अब्दुल हमीद था, जिसने लाहौर में रफ़ी की प्रतिभा को पहचाना और रफ़ी को गाना गाने के लिये प्रेरित भी किया। इसके बाद 1944 में उन्होंने रफ़ी को मुंबई जाने में सहायता भी की थी।

इसके बाद रफ़ी ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फ़िरोज़ निजामी से क्लासिकल संगीत सिखा। 13 साल की उम्र में लाहौर में उन्होंने अपना पहला स्टेज शो परफॉरमेंस किया था।

1941 में रफ़ी ने श्याम सुंदर के निचे लाहौर में ही प्लेबैक सिंगर के रूप में “सोनिये नी, हीरिये नी” से पर्दापण किया। इसी साल ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन ने उन्हें गाना गाने के लिये आमंत्रित भी किया था।

हिंदी फिल्मो में उन्होंने 1945 में आयी फिल्म गाँव की गोरी से डेब्यू किया था। मुंबई में रहने वाले श्याम सुंदर ने रफ़ी को जी.एम. दुर्रानी के साथ गाने के कयी मौके भी दिलवाए थे। उन्होंने अपनी पहले फिल्म गाँव की गोरी में “आज दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी….’ गाना गाया था जो बादमे हिंदी फिल्म के लिये रफ़ी का रिकॉर्ड किया हुआ पहला गाना बना।उनके दुसरे गाने निचे दिये गए है।

नौशाद का साथ रफ़ी का पहला गाना ‘हिंदुस्तान के हम है’, और इसके बाद उन्होंने शायद श्याम कुमार, अलाउद्दीन के साथ ए.आर. कारदार की पहले आप (1944) की। इसी समय रफ़ी ने 1945 में आयी फिल्म गाँव की गोरी के लिये एक और गाना रिकॉर्ड किया, जिसके बोल “अजी दिल हो काबू में” थे। उनके अनुसार यह उनका पहला हिंदी भाषा का गीत था।

इसके बाद मोहम्मद रफ़ी दो फिल्मो में दिखे। 1945 में फिल्म लैला मजनू में “तेरा जलवा जिसने देखा” गीत में वे स्क्रीन पर आये। उन्होंने नौशाद के कयी गाने गाए, जिनमे “मेरे सपनो की रानी”, रूही रूही गीत गाए।

इसके बाद रफ़ी ने महबूब खान की अनमोल घडी (1946) फिल्म का “तेरा खिलौना टूटा बालक” गाना गाया और 1947 में उन्होंने फिल्म जुगनू का “यहाँ बदला वफ़ा का” गीत संयुक्त रूप से नीर जहाँ के साथ गाया। विभाजन के बाद, रफ़ी ने भारत में रहने का निर्णय लिया और अपने परिवार को मुंबई लेकर चले आये। नूर जहाँ ने भी पाकिस्तान से पलायन कर लिया था और प्लेबैक सिंगर अहमद रुश्दी के साथ जोड़ी बनाई।

1949 में मोहम्मद रफ़ी ने कई एकल गीत गाए जिनमे मुख्य रूप से नौशाद के चांदनी रात, दिल्लगी और दुलारी, श्याम सुंदर और हुस्नलाल भगतराम के कयी गीत गाए।

के.एल. सैगल के अलावा, रफ़ी जिन्हें अपना आदर्श मानते थे उनमे जी.एम. दुर्रानी भी शामिल है। अपने करियर के पहले पड़ाव में, वे अक्सर दुर्रानी की संगीत शैली को मानते थे लेकिन बाद में वे अपनी खुद की शैली से ही प्रसिद्ध हुए। उन्होंने दुर्रानी के साथ कयी गाने गाए जैसे, “हमको हँसते देख जमाना जलता है” और “खबर किसी को नहीं”, “वोह किधर देखते” जैसे गीत गाए।

1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद, हुस्नलाल भगतराम-राजेंद्र क्रिष्ण रफ़ी की टीम ने एक गाना “सुनो सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी” बनाया। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने उन्हें अपने घर में इस गीत को गाने के लिये आमंत्रित किया था। 1948 में रफ़ी को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में जवाहरलाल नेहरु के हाँथो सिल्वर मेडल भी मिला था।

मोहम्मद रफ़ी व्यक्तिगत जीवन – Mohammad Rafi personal life

मोहम्मद रफ़ी ने दो विवाह किये, उन्होंने पहली शादी बशीरा से की थी और फिर अपने प्राचीन गाँव में रहने लगे। उनका विवाह तब मुड़ा जब उनकी पहली पत्नी ने भारत में रहने से इंकार कर दिया था।

रफ़ी के चार बेटे और तीन बेटियाँ है, जिनमे उनका बेटा सईद उनके पहले विवाह से हुआ था।

मोहम्मद रफ़ी की मृत्यु – Mohammad Rafi death

अचानक आये ह्रदय विकार की वजह से 31 जुलाई 1980 को रात को 10:25 बजे उनकी मृत्यु हो गयी थी। उन्होंने अपना अंतिम गाना आस पास फिल्म के लिये हगाया था, जिसे उन्होंने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ रिकॉर्ड किया था।

सूत्रों के अनुसार, उनका आखिरी गाना, “शाम फिर क्यूँ उदास है दोस्त / तु कहीं आस पास है दोस्त” था। दुसरे सूत्रों के अनुसार उनका अंतिम गाना लता मंगेशकर के साथ वाला “शहर में चर्चा है, यह दुनिया कहती है।”

रफ़ी का अंतिम संस्कार जुहू मुस्लिम कब्रिस्तान में किया गया था। कहा जाता है की यह मुंबई का एक विशाल अंतिम संस्कार बना, जिसमे तक़रीबन 10000 लोग उपस्थित थे, उस दिन बारिश होने के बावजूद। उनको सम्मान देते हुए भारत सरकार ने दो दिन की राष्ट्रिय छुट्टी भी घोषित की थी।

2010 में रफ़ी के मकबरे को दुसरे फिल्म इंडस्ट्री के आर्टिस्ट जैसे मधुबाला के साथ बनाया गया। मोहम्मद रफ़ी के फैन हर साल उनकी उनकी जन्म और मृत्यु एनिवर्सरी मनाने के लिये मकबरे में आते है, उनकी याद में मकबरे के पास ही एक नारियल का पेड़ भी लगाया गया है।

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8 COMMENTS

  1. MD. Rafi Sahab Kya Awaz hai apki. Kabhi kabhi main sochta hun ki main Apke zamane me hi hota to apse mulaqat zaroor krta.

  2. mohammad rafi ke gane aaj bhi har kisi ke juban par hain, usme khas kar Jeene Ki Raah ka “aane se uske aaye bahar”, Suraj (1966) movie ka “Bahaaro Phool Barsaao” en jaise gano ne unhe yadgar bana diya. en gano ke sath vo aaj bhi hamare dilo par raj kar rahe hain.

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