Mohammad Hidayatullah / मोहम्मद हिदायातुल्ला भारत के ग्यारहवे चीफ जस्टिस थे, जो 25 फरवरी 1968 से 16 दिसम्बर 1970 तक कार्यरत थे और भारत के छठे उप=राष्ट्रपति थे। उनका कार्यकाल 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक था। इसके साथ-साथ 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969 और 6 अक्टूबर 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक वे भारत के एक्टिंग प्रेसिडेंट भी बने थे। वे एक उत्कृष्ट न्यायशास्त्री, विद्वान, शिक्षाविशारद, लेखक और भाषा वैज्ञानिक थे।
मोहम्मद हिदायतुल्लाह की जीवनी / Mohammad Hidayatullah biography in Hindi
हिदायतुल्लाह का जन्म 1905 में खान बहादुर हाफिज मोहम्मद विलायातुल्लाह के हाई-क्लास परिवार में हुआ था। उनके बड़े पिता मुनीश कुदारतुल्लाह वाराणसी के वकील थे। उनके पिता भारत के ख्यातिप्राप्त कवी थे, जो विशेषतः उर्दू में अपनी कविताए लिखते थे, और हिदायतुल्लाह को उनकी कविताओ से बड़ा लगाव था। विलायातुल्लाह अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के गोल्ड मेडलिस्ट थे।
1928 तक वे ICS में कार्यरत थे और फिर 1929 से 1933 तक वे सेंट्रल विधि असेंबली के सदस्य थे। हिदायतुल्लाह के बड़े भाई मोहम्मद इकरामुल्लाह एक विद्वान और स्पोर्ट मैन थे।स इसके साथ-साथ वे उर्दू कविताओ में भी विद्वान थे।
1922 में रायपुर की गवर्नमेंट हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद हिदायतुल्लाह नागपुर के मोरिस कॉलेज में दाखिल हुए, जहाँ उनका नामनिर्देशन 1926 में फिलिप्स स्कॉलर के लिए हुआ।
1926 में जब वे ग्रेजुएट हुए तब उन्हें मालक गोल्ड मैडल से सम्मानित किया गया। इसके बाद भारतीयों की विदेशो में जाकर लॉ पढने की परंपरा को शुरू रखते हुए, हिदायतुल्लाह 1927 से 1930 तक कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढने लगे और वहाँ से उन्होंने बी.ए. और एम.ए. की डिग्री हासिल की। वहाँ पढ़ते हुए वे मेरिट विद्यार्थियों की सूचि में दुसरे स्थान पर आए और इसके लिए 1930 में उन्हें गोल्ड मैडल भी दिया गया था।
इसके बाद उन्हें फिलीपींस यूनिवर्सिटी से एलएल.डी (Honoris Causa) और भोपाल यूनिवर्सिटी और काकतीय यूनिवर्सिटी से डी.लिट् (Honoris Causa) अवार्ड से सम्मानित किया गया था। जबकि कैम्ब्रिज में हिदायतुल्लाह की नियुक्ती 1929 में इंडियन मजलिस के अध्यक्ष के रूप में की गयी। वही उन्होंने इंग्लिश और कानून की शिक्षा प्राप्त की और 1930 में उन्होंने बैरिस्टर-इन-लॉ का स्थान काबिज किया।
निजी जिंदगी:
1948 में हिदायतुल्लाह ने पुष्पा शाह से शादी की थी, जो हिन्दू धर्म की थी। उनका बेटा अरशद हिदायतुल्लाह भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक वरिष्ट काउंसल के पद पर कार्यरत है।
लॉयर के रूप में करियर:
ग्रेजुएशन के बाद, हिदायतुल्लाह भारत वापिस आए और उन्होंने खुद को 19 जुलाई 1930 को नागपुर के बरार और मध्य भारत के हाई कोर्ट में अधिवक्ता के रूप में दाखिल करवाया। इसके बाद नागपुर यूनिवर्सिटी में उन्होंने लॉ भी पढाया और इंग्लिश साहित्य का ज्ञान भी उन्हें था।
12 दिसम्बर 1942 को नागपुर के हाई कोर्ट में उनकी नियुक्ती सरकारी वकील के रूप में की गयी थी।
2 अगस्त 1943 को वे वर्तमान मध्यप्रदेश के अधिवक्ता बने और फिर कुछ समय बाद 1946 में उनकी नियुक्ती हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में की गयी थी। उस समय मध्य प्रदेश के सबसे युवा अधिवक्ता के रूप में वे प्रसिद्ध थे।
न्यायिक करियर:
24 जून 1946 को हिदायतुल्लाह की नियुक्ती मध्यप्रदेश के हाई कोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में की गयिओ थी और 13 सितम्बर 1946 को उनकी नियुक्ती फिर हाई कोर्ट के परमानेंट जज के रूप में की गयी थी। 3 दिसम्बर 1954 को नागपुर में चीफ जस्टिस के रूप में उनकी नियुक्ती की गयी थी और उस समय वे मध्य भारत के सबसे युवा अधिवक्ता थे।
1 दिसम्बर 1958 को उन्हें ऊँचा पद देते हुए उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। उस समय में वे भारत में सुप्रीम कोर्ट के सबसे युवा चीफ जस्टिस थे।
तक़रीबन 10 साल तक जज के पद पर रहते हुए सेवा करने के बाद 28 फरवरी 1968 को उनकी नियुक्ती फिर चीफ जस्टिस के रूप में की गयी थी और तब वे भारत के पहले मुस्लिम चीफ जस्टिस बने थे। 16 दिसम्बर 1970 को वे अपने पद से सेवानिर्वृत्त हुए थे।
अध्यक्षता:
जब वे भारत के चीफ जस्टिस के पद पर कार्यरत थे तभी 3 मई 1969 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन की अचानक मृत्यु हो गयी थी। इसके बाद भारत के उपराष्ट्रपति मी. व्ही.व्ही गिरी एक्टिंग प्रेसिडेंट बने।
लेकिन फिर बाद में व्ही.व्ही गिरी ने दोनों पद, एक्टिंग प्रेसिडेंट और एक्टिंग वाईस-प्रेसिडेंट से इस्तीफा दे दिया और वे 1969 के प्रांतीय चुनाव के उम्मेदवार बने।
जस्टिस एम. हिदायतुल्लाह इसके बाद 20 जुलाई से 24 अगस्त तक भारत के राष्ट्रपति के पद पर कार्यरत थे और उपराष्ट्रपति के आभाव में CJI उनकी भूमिका निभा रही थी। राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए यूनाइटेड स्टेट में मी. रिचर्ड निक्सन के साथ उनकी मुलाकात भारत में एक इतिहासिक मुलाकात के रूप में याद की जाती है।
उनके सेवानिर्वृत्त होने के बाद, जस्टिस हिदायतुल्लाह की नियुक्ती भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर की गयी थी।
1979 से अगस्त 1984 तक वे भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर विराजमान थे। उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए उन्हें देश की जनता ने काफी सहयोग किया और उन्होंने भी सच्चे दिल से देश की सेवा की।
इसके बाद 1982 में जब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह मेडिकल उपचार के लिए यूनाइटेड स्टेट गये थे तब उपराष्ट्रपति एम. हिदायतुल्लाह की नियुक्ती अधिकारिक रूप से 6 अक्टूबर 1982 से 31 अक्टूबर 1982 तक राष्ट्रपति के पद पर की गयी थी। अपने जीवनकाल में दो बार उनकी नियुक्ती राष्ट्रपति के पद पर की गयी थी।
इस सभी पदों पर देश की सेवा करने के बाद हिदायतुल्लाह ने भारतीय इतिहास में अपनी अलग ही पहचान बना ली थी। जस्टिस हिदायतुल्लाह एकमात्र ऐसे इंसान है जिन्होंने भारत के तीनो मुख्य कार्यालयों में काम किया है, चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया और वाईस प्रेसिडेंट ऑफ़ इंडिया।
सुप्रीम कोर्ट में अपने लम्बे समय के कार्यकाल के बाद उन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना निर्णय सुनाया था। जो प्रभावशाली भी साबित हुए। कहा जाता है की एम. हिदायतुल्लाह ने चीफ जस्टिस रहते हुए भारत में अपनी विशेष पहचान बनायी थी।
मोहम्मद हिदायतुल्लाह की किताबे – Mohammad Hidayatullah Books
- एशिया पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित – भारतीय लोकतंत्र और न्यायिक प्रणाली, 1966
- दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका केस, 1967 में एशिया पब्लिशिंग हाउस द्वारा प्रकाशित (1966)
- संविधानिक और संसदीय अभ्यास के लिए नेशनल पब्लिशिंग हाउस (1970) द्वारा न्यायिक विधि किताब का प्रकाशन।
- जज का विविध संग्रह, एन.एम. त्रिपाठी (1972)
- यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका और भारत : ऑल इंडिया रिपोर्टर (1977)
- एक जज का विविध संग्रह (दूसरा संस्करण), एन.एम. त्रिपाठी (1972)
- भारतीय संविधान का पाँचवी और छठी अनुसूची, अशोक पब्लिशिंग हाउस
- माय ओन बोसवेल (My Own Boswell) (जीवनी), अर्नाल्ड-हेंएमन्न (1980)
- एडिटर, मुल्ला मोहम्मेदन लॉ
- भारत के संविधानिक अधिकार : बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया ट्रस्ट (1984)
- संपत्ति का अधिकार और भारतीय संविधान : कलकत्ता यूनिवर्सिटी (1984)
- कमर्शियल लॉ पर जस्टिस हिदायतुल्लाह : दीप & दीप (1982)
अवार्ड और सम्मान:
- ऑफिसर ऑफ़ दी आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर (OBE), 1946 में किंग के बर्थडे पर दिया गया सम्मान
- आर्डर ऑफ़ दी युगोस्लाव फ्लैग विथ सश, 1970
- फिल्कांसा का बड़ा मैडल और फलक, 1970
- मार्क ट्वेन का शूरवीर, 1971
- अलाहाबाद यूनिवर्सिटी अलुमिनी एसोसिएशन द्वारा 42 सदस्यों की ‘प्राउड पास्ट अलुमिनी’ की सूचि में उन्हें शामिल किया गया।
- 1968 में लिंकन इन के बेंचर का सम्मान
- प्रेसिडेंट ऑफ़ ऑनर, इन् ऑफ़ कोर्ट सोसाइटी, भारत
- वॉर सर्विस बैज (बिल्ला), 1948
- मनिला शहर के मुख्य और प्रतिष्ठित व्यक्ति, 1971
- शिरोमणि अवार्ड, 1986
- आर्किटेक्ट ऑफ़ इंडिया अवार्ड, 1987
- बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का दशरथमल सिंघवी मेमोरियल अवार्ड
- 1970 और 1987 के बीच, 12 भारतीय यूनिवर्सिटी और फिलीपींस यूनिवर्सिटी ने उन्हें वकिली और साहित्य में डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान की थी।
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