मिल्खा सिंह देश के बेस्ट एथलीटों में से एक और सम्मानित धावक हैं, उन्होंने अपनी अद्वितीय स्पीड के कारण कई रिकॉर्ड दर्ज किए हैं। वहीं इन्हें अत्याधिक तेज स्पीड से दौड़ने की वजह से ”फ्लाइंग सिख” के नाम से जाना जाता है। मिल्खा सिंह देश के ऐसे पहले एथलीट हैं जिन्होंने कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलवाया है।
यही नहीं देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने भी मिल्खा सिंह की असाधारण खेल प्रतिभा की प्रशंसा की थी। मिल्खा सिंह का शानदार खेल करयिर आज के युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणादायी हैं, उनके जीवन से युवाओं के अंदर अपने अच्छा प्रदर्शन करने का जज्बा पैदा होता है। तो आइए जानते हैं मिल्खा सिंह जी के गौरवपूर्ण जीवन सफर के बारे में-
”फ्लाइंग सिख” मिल्खा सिंह की कहानी – Milkha Singh Biography in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Full Name) | मिल्खा सिंह (Milkha Singh) |
निकनेम (Nickname) | “फ्लाइंग सिख” (Flying Sikh) |
जन्म स्थान (Birth Place) | लायलपुर(पाकिस्तान) |
जन्म वर्ष (Date of Birth) | २० नवंबर १९२९। (पाकिस्तान के दस्तावेजों के अनुसार जन्म वर्ष) |
ऊँचाई/लंबाई (Height) | 5’10” (178 सेंटीमीटर) |
धर्म (Religion) | सिख। |
मुख्य रूप से पहचान (Profession) | भारतीय धावक (एथलिट) और पूर्व भारतीय सैनिक |
पुत्र/पुत्रियों के नाम (Childrens Name) | जिव मिल्खा सिंह (पुत्र), सोनिया साँवलका (पुत्री) |
पत्नी का नाम (Spouse) | निर्मल सैनी/कौर। |
भारत सरकार द्वारा प्राप्त सम्मान पुरस्कार (Honor Award By Indian Government) | पद्म श्री (Padma Shree)। |
प्रमुख प्राप्त पुरस्कार(Achievements) |
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मृत्यु (Death) | १८ जून २०२१। |
जन्म, बचपन, परिवार, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर, साल 1929 को हुआ था। लेकिन कुछ दस्तावेजों के मुताबिक उनका जन्म 17 अक्टूबर 1935 को माना जाता है। वे अपने माँ-बाप की 15 संतानों में वे एक थे। उनके कई भाई-बहन बचपन में ही गुजर गए थे।
भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिल्खा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन को खो दिया। इसके बाद वे शरणार्थी के तौर पर ट्रेन के द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आ गए और दिल्ली में वे अपनी शादी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद दिल्ली के शहादरा इलाके की एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी उन्होंने कुछ दिन गुजारे। ऐसे भयानक हादसे के बाद उनके ह्रदय पर गहरा आघात लगा था।
अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद साल 1951 में सेना में भर्ती हो गए। बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे। और भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में छठें स्थान पर आए थे। इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। मिल्खा ने कहा था कि आर्मी में उन्हें बहुत से ऐसे लोग भी मिले जिन्हें ओलिंपिक क्या होता है ये तक नहीं मालूम था।
वैवाहिक एवं निजी जीवन
चंडीगढ़ में मिल्खा सिंह की मुलाकात निर्मल कौर से हुई, जो कि साल 1955 में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान थी। साल 1962 में दोनों ने शादी कर ली। शादी के बाद 4 बच्चे हुए, जिनमें 3 बेटिया और एक बेटा है। बेटे का नाम जीव मिल्खा सिंह है।
साल 1999 में उन्होंने सात साल के एक बेटे को गोद ले लिया। जिसका नाम हवलदार बिक्रम सिंह था। जो कि टाइगर हिल के युद्ध (Battle of Tiger Hill) में शहीद हो गया था।
धावक के तौर पर करियर
- सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की। उन्होंने सन 1956 के मेर्लबन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए। लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।
- मिल्खा सिंह ने साल 1957 में 400 मीटर की दौड़ को5 सैकेंड में पूरा करके नया राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया था।
- साल 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी। इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। साल 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाड़ी बन गए।
- साल 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह के बेहतरीन प्रदर्शन के बाद सेना ने मिल्खा सिंह को जूनियर कमीशंड ऑफिरसर के तौर पर प्रमोशन कर सम्मानित किया। बाद में उन्हें पंजाब के शिक्षा विभाग में खेल निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया। और इसी पद पर मिल्खा सिंह साल 1998 में रिटायर्ड हुए।
- मिलखा सिंह ने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें “उड़न सिख” कह कर पुकारा। उनको “उड़न सिख” का उपनाम दिया गया था।
- आपको बता दें कि 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 40 सालों के रिकॉर्ड को जरूर तोड़ा था, लेकिन दुर्भाग्यवश वे पदक पाने से वंचित रह गए और उन्हें चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। अपनी इस असफलता के बाद मिल्खा सिंह इतने नर्वस हो गए थे कि उन्होंने दौड़ से संयास लेने का मन लिया, लेकिन फिर बाद में दिग्गज एथलीटों द्धारा समझाने के बाद उन्होंने मैदान में शानदार वापसी की।
- इसके बाद साल 1962 में देश के महान एथलीट जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल जीतकर देश का अभिमान बढ़ाया।
- साल 1998 में मिल्खा सिंह द्धारा रोम ओलंपिक में बनाए रिकॉर्ड को धावक परमजीत सिंह ने तोड़ा।
शानदार रिकॉर्ड्स और उपलब्धियां
- साल 1957 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में 47.5 सेकंड का एक नया रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया।
- 1958 में मिल्खा सिंह ने टोकियो जापान में आयोजित तीसरे एशियाई खेलो मे 400 और 200 मीटर की दौड़ में दो नए रिकॉर्ड स्थापित किए और गोल्ड मैडल जीतकर देश का मान बढ़ाया। इसके साथ ही साल 1958 में ही ब्रिटेन के कार्डिफ में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गोल्ड मैडल जीता।
- साल 1959 में भारत सरकार ने मिल्खा सिंह की अद्वितीय खेल प्रतिभा और उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें भारत के चौथे सर्वोच्च सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया !
- 1959 में इंडोनेशिया में हुए चौथे एशियाई खेलो में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में गोल्ड मैडल जीतकर नया कीर्तमान स्थापनित किया।
- साल 1960 में रोम ओलिंपिक खेलों में मिल्खा सिंह 400 मीटर की दौड़ का रिकॉर्ड तोड़कर एक राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया। आपको बता दें कि उन्होंने यह रिकॉर्ड 40 साल बाद तोड़ा था।
- 1962 में मिल्खा सिंह ने एशियाई खेलो में गोल्ड मैडल जीतकर एक बार फिर से देश का सिर फक्र से ऊंचा किया।
- साल 2012 में रोम ओलंपिक के 400 मीटर की दौड़ मे पहने जूते मिल्खा सिंह ने एक चैरिटी संस्था को नीलामी में दे दिया था।
- 1 जुलाई 2012 को उन्हें भारत का सबसे सफल धावक माना गया जिन्होंने ओलंपिक्स खेलो में लगभग 20 पदक अपने नाम किये है। यह अपनेआप में ही एक रिकॉर्ड है।
- मिल्खा सिंह ने अपने जीते गए सभी पदकों कों देश के नाम समर्पित कर दिया था, पहले उनके मैडल्स को जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में रखा गया था, लेकिन फिर बाद में पटियाला के एक गेम्स म्यूजियम में मिल्खा सिंह को मिले मैडल्स को ट्रांसफर कर दिया गया।
अनसुनी बाते –
- भारत पाक विभाजन के समय मिल्खा ने अपने माता-पिता को खो दिया था। उस समय उनकी आयु केवल 12 साल थी। तभी से वे अपनी जिंदगी बचाने के लिये भागे और भारत वापस आए।
- हर रोज़ मिल्खा पैदल 10 किलोमीटर अपने गांव से स्कूल का सफ़र तय करते थे।
- वे इंडियन आर्मी में जाना चाहते थे, लेकिन उसमे वे तीन बार असफल हुए। लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी और चौथी बार वे सफल हुए।
- 1951 में, जब सिकंदराबाद के EME सेंटर में शामिल हुए। उस दौरान ही उन्हें अपने टैलेंट के बारे में पता चला। और वहीं से धावक के रूप में उनके करियर की शुरुआत हुई।
- जब सैनिक अपने दूसरे कामों में व्यस्त होते थे, तब मिल्खा ट्रेन के साथ दौड़ लगाते थे।
- अभ्यास करते समय कई बार उनका खून तक बह जाता था, बल्कि कई बार तो उनसे सांसे भी नहीं ली जाती थी। लेकिन फिर भी वे अपने अभ्यास को कभी नही छोड़ते वे दिन-रात लगातार अभ्यास करते रहते थे। उनका ऐसा मानना था की अभ्यास करते रहने से ही इंसान परफेक्ट बनता है।
- उनकी सबसे प्रतिस्पर्धी रेस क्रॉस कंट्री रेस रही। जहां 500 धावको में से मिल्ख 6वें नंबर पर रहे थे।
- 1958 के ही एशियाई खेलो में उन्होंने 200 मीटर और 400 मीटर दोनों में ही क्रमशः6 सेकंड और 47 सेकंड का समय लेते हुए स्वर्ण पदक जीता।
- साल 1958 के कामनवेल्थ खेलो में, उन्होंने 400 मीटर रेस16 सेकंड में पूरी करते हुए गोल्ड मेडल जीता। उस समय आज़ाद भारत में कॉमनवेल्थ खेलों में भारत को स्वर्ण पदक जीताने वाले वे पहले भारतीय थे।
- 1958 के एशियाई खेलों में भारी सफलता हासिल करने के बाद उन्हें आर्मी में जूनियर कमीशन का पद मिला।
- 1962 में, मिल्खा सिंह ने अब्दुल खालिक को पराजित किया। जो पाकिस्तान का सबसे तेज़ धावक था उसी समय पाकिस्तानी जनरल अयूब खान ने उन्हें “उड़न सीख” का शीर्षक दिया।
- 1999 में, मिल्खा ने सात साल के बहादुर लड़के हवलदार सिंह को गोद लिया था। जो कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल में मारा गया था।
- 2001 में, मिल्खा सिंह ने ये कहते हुए “अर्जुन पुरस्कार” को लेने से इंकार कर दिया की वह उन्हें 40 साल देरी से दिया गया।
फिल्म –
भारत के महान एथलीट मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी बायोग्राफी ‘The Race Of My Life’ लिखी थी। उन्होंने अपनी जीवनी बॉलीवुड के प्रसिद्द निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा को बेचीं, और उन्होनें मिल्खा सिंह के प्रेरणादायी जीवन पर एक फिल्म बनाई थी, जिसका नाम ‘भाग मिल्खा भाग’ था।
यह फिल्म 12 जुलाई, 2013 में रिलीज हुई थी। फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार फिल्म जगत के मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया था। यह फिल्म दर्शकों द्धारा काफी पसंद की गई थी, इस फिल्म को 2014 में बेस्ट एंटरटेनमेंट फिल्म का पुरस्कार भी मिला था। मिल्खा सिंह ने “भाग मिल्खा भाग” देखने के बाद उनकी आँखों में आँसू आ गये थे और वे फरहान अख्तर के अभिनय से काफी खुश भी थे।
अंतिम दिन और मृत्यु –
भारत के स्टार खिलाडी और एथलीट मिल्खा सिंह मई माह में कोविड -१९ यानि के कोरोना नामक बीमारी से संक्रमित हुए थे, जिसमे पहले कुछ दिनों में उनकी सेहत में काफी सुधार हुए थे। शुरुवात से उन्हें कोरोना के उपचार हेतु अस्पताल में दाखिल किया गया था जिसमे जून माह के मध्य में अचानक से उनकी तबियत और ज्यादा बिगड़ गयी थी।
फलस्वरूप १८ जून २०२१ को रात को ग्यारह बजकर तीस मिनट पर भारत के इस महान एथलीट ने अंतिम साँस लेते हुए दुनिया को अलविदा कहाँ, इनके मृत्यु के कुछ दिन पूर्व इनके धर्मपत्नी की भी मृत्यु हुई थी। इस तरह से अबतक आपने महान भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी को पढ़ा, आशा करते है दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।
FAQs
जवाब: १८ जून २०२१।
जवाब: सात।
जवाब: ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म भारतीय एथलीट मिल्खा सिंह के जीवन पे आधारित थी जिसमे अभिनेता फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह की प्रमुख भूमिका निभाई थी।
जवाब: निर्मल सैनी।
जवाब: पद्म श्री।
जवाब: साल १९५८ में इंग्लैंड के कार्डिफ शहर में हुए ४४० यार्ड की दौड़ प्रतियोगिता में सर्वप्रथम मिल्खा सिंह ने स्वर्ण पदक प्राप्त किया था।
जवाब: मात्र १ रुपये में।
जवाब: गोल्फ खेल से।
जवाब: “द रेस ऑफ़ माय लाइफ”(The Race of My Life)
Milkha Singh ek misal h…jiski kiran Hindustan me futi sari duniya me chamki
Address kya h milkha Singh ji ka
Hum kabhi bholna nhi chahenge Aese Dhavak ko jisne Desh ka name Duniya tak pahuchaya hai…
Milkha Singh my favourite athletic
milkha Singh Chandigarh Mai kaha rahte
I love Milkha Singh