मौलाना अबुल कलाम आजाद

मौलाना अबुल कलाम आजाद देश के पहले शिक्षा मंत्री होने के साथ-साथ महान स्वतंत्रता सेनानी, लेखक, शिक्षाविद एवं वैज्ञानिक थे, जो कि गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। उन्होंने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में अपनी महवत्पूर्ण भूमिका निभाई और गांधी जी द्वारा चलाए गए तमाम आंदोलनों में हिस्सा लिया, बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था में भी सुधार किया।

उन्होंने देश यूजीसी, आईआईटी, आईआईएम जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों की नींव रखी एवं धर्म के आधार पर पाकिस्तान के गठन का विरोध किया। उन्हें हिन्दू-मुस्लिम एकता का सूत्रधार भी कहा जाता था। तो आइए जानते हैं देश की इस महान हस्ती मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में-

आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री एवं महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद – Maulana Abul Kalam Azad Biography in Hindi

Maulana Abul Kalam Azad

एक नजर में –

पूरा नाम (Name) अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन
जन्म (Birthday) 11 नवंबर, 1888, मक्का, सऊदी अरब
पिता (Father Name) मौलाना खैरुद्दीन और आलिया
पत्नी (Wife Name) जुलैखा
पुरस्कार (Awards) भारत रत्न
मृत्यु (Death) 22 फरवरी, 1958 में, नई दिल्ली

जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन –

मौलाना अबुल कलाम आजाद जी 11 नवंबर, 1888 को सऊदी अरब के मक्का में एक बंगाली मौलाना के परिवार में जन्में थे। उनका वास्तविक नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था, जो कि उन्होंने बाद में बदलकर मौलाना आजाद रख लिया था। उनके पिता मौलाना मोहम्मद खैरुद्दीन एक विद्वान लेखक थे, जबकि उनकी मां अरब की थी।

शुरुआत में मौलाना आजाद का परिवार बंगाल में रहता था, लेकिन बाद में 1857 में हुए महाविद्रोह के बाद उनके परिवार को भारत छोड़कर अरब जाना पड़ा था और वहीं मौलाना ने जन्म लिया था, हालांकि जब मौलाना 2 साल के थे, तभी उनका परिवार फिर से भारत वापस आ गया और कलकत्ता में रहने लगा।

प्रारंभिक शिक्षा –

मौलाना आजाद को शुरुआत में परंपरागत इस्लामी शिक्षा घर पर ही दी गई । पहले तो इनके पिता ने पढ़ाया और फिर बाद में उनके लिए अध्यापक नियुक्त किए गए। आजाद शुरु से ही काफी प्रतिभावान बालक थे, इसलिए उन्हें बेहद कम उम्र में ही उर्दू, अरबी, बंगाली, हिन्दी, इंग्लिश, फारसी समेत कई भाषाएं सीख ली थी।

इसके साथ ही उन्हें बीजगणित, दर्शनशास्त्र, ज्यामिति गणित का भी काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त हो गया था। शुरु से ही पढ़ाई के शौक की वजह से उनके घऱ में कई किताबें रखीं थी, जिन्हें पढ़कर उन्होंने इतिहास, विश्व, राजनीति के बारे में भी अच्छी जानकारी हासिल कर ली थी।

मौलाना आजाद जब सिर्फ 12 साल के थे, तब उन्हें किताबें लिखनी शुरु कर दी थी। साथ ही युवा अवस्था से ही वे पत्रकार के तौर पर काम करने लगे थे। उन्होंने कई समाचार पत्रों में काम किया था। इस दौरान वे राजनीति से जुड़े हुए अपने कई लेखों को भी प्रकाशित करते थे।

मौलाना आजाद ने ”अल-मिस्वाह” के संपादक के तौर पर भी काम किया था। इसके अलावा मौलाना आजाद में अपने कई लेख ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रकाशित किए थे। मौलाना आजाद छात्र जीवन में ही अपना पुस्तकालय चलाना शुरू कर दिया, साथ ही एकडिबेटिंग सोसायटी की भी शुरुआत की थी। उस दौरान वे अपनी दोगुनी उम्र वाले छात्रों को पढ़ाते थे, दरअसल उन्हें लगभग सभी परंपरागत विषयों का ज्ञान हो गया था।

राष्ट्रवादी क्रांतिकारी बनने के लिए प्रेरित:

सादगी और संजीदगी से अपना जीवनयापन करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद जब पढ़ाई कर रहे थे, उस दौरान अफगानिस्तान, मिस्त्र, तुर्की, सीरिया, इराक की यात्रा में उनकी मुलाकात देश के ऐसे महान क्रांतिकारियों से हुईं जो कि उनसे दौरान देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे एवं संवैधानिक सरकर के गठन के लिए प्रयासरत थे और उन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने उनके देश से तक बाहर निकाल दिया था, जिसके बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद के अंदर राष्ट्रवादी क्रांतिकारी बनने की भावना विकसित हुई।

इसके बाद वे भारत लौटे और श्याम सुंदर, अरबिंदो, चक्रवर्ती जैसे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और फिर उन्होंने खुद को पूरी तरह देश की आजाद की लड़ाई में समर्पित कर दिया।

आजादी का लड़ाई में मौलाना आजाद की भूमिका –

देश के स्वतंत्रता संग्राम में मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अहम भूमिका निभाई। इस दौरान उन्होंनें ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ साल 1912 में अल-हिलाल पत्रिका का प्रकाशन किया था, जिसमें माध्यम से उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द और हिन्दू-मुस्लिम एकता का बढ़ावा दिया एवं अंग्रेजी सरकार की कड़ी आलोचना की थी एवं हिन्दू मुस्लिम एकता को भी बल दिया, हालांकि कुछ दिनों बाद अंग्रेजों ने इसे ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा समझ उनकी इस सप्ताहिक पत्रिका को बैन कर दिया था।

जिसके बाद मौलाना कलाम में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी एक और पत्रिका अल-बलाघ शुरु की और भारतीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया, लेकिन बाद में राष्ट्रीयता की बातें छपने से देश में आक्रोश पैदा होने लगा जिसके लिए अंग्रेजों ने उनकी इस मैग्जीन को भी बैन कर दिया।

और फिर इसके बाद मौलाना आजाद को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद जब साल 1920 में मौलाना कलाम आजाद की जेल से रिहाई हुई उस दौरान देश में स्वतंत्रता पाने की आग युवकों में तेजी से भड़क रही थीं एवं आक्रोश का महौल था, जिसके बाद मौलाना आजाद ने खिलाफत आंदोलन शुरु किया एवं मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया।

इसके बाद मौलाना मौलाना आजाद ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया, और विदेशी वस्तुओं का जमकर बहिष्कार किया। इस दौरान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भाषण देने के चलते उन्हें अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

जेल से रिहाई के बाद मौलाना आजाद को खिलाफत कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया, खिलाफत लीडर्स के साथ मिलकर इन्होंने दिल्ली में ”जामिया मिलिया इस्लामिया संस्था” की स्थापना की। गांधी जी के पदचिन्हों पर चलने वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद को साल 1923 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान उन्होंने जगह-जगह जाकर लोगों के अंदर स्वतंत्रता प्राप्ति की अलख जगाई।

साल 1929 में मौलाना आजाद ने ‘नेशनल मुस्लिम पक्ष की’ स्थापना की और इसके अध्यक्ष के रुप में काम किया। उनकी इस पार्टी ने मुस्लिम लीग जैसे जातीय संघटनो का विरोध किया। साल 1930 में वे गांधी जी के नमक तोड़ो आंदोलन में शामिल हुए और इस दौरान उन्होंने इस आंदोलन में कई मुस्लिमों को भी शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया। हालांकि इस दौरान अंग्रजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके करीब 4 साल बाद उन्हें जेल से छूटे।

साल 1940 में मौलाना अबुल कलाम आजाद को फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, वे करीब 6 तक इस पद पर रहे और इस दौरान उन्होंने भारत की एकता की सुरक्षा का मुद्दा उठाया एवं धार्मिक अलगाववाद की कड़ी निंदा की।

भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों के तमाम संघर्ष और बलिदानों के बाद 15 अगस्त , साल 1947 को जब देश आजाद हुआ, तब मौलाना अबुल कलाम ने देश के नए संविधान के लिए कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ा था। और उन्हें देश के पहले शिक्षा  मंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ।

आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रुप में –

देश की आजादी के बाद देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जब प्रधानमंत्री के तौर पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उस दौरान उनकी कैबिनेट में साल 1947 से 1958 तक करीब 11 साल देश के पहले शिक्षा मंत्री के रुप में अपनी सेवाएं दी और इस दौरान उन्होंने देश के एजुकेशन सिस्टम में काफी सुधार लाने के प्रयास किए एवं शिक्षा का जमकर प्रचार-प्रसार किया।

इसके साथ ही शिक्षा मंत्री के तौर पर निशुल्क शिक्षा एवं उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना में काफी काम किया। यही नहीं मौलान अबुल कलाम आजाद के अथक प्रयासों की वजह से ही आज हमारे देश में आईआईएम, आईआईटी (भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान), यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों की स्थापना हो सकी।

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ही इन शिक्षण संस्थानों की नींव रखी थी। इसके अलावा उन्होंने ललित लाल अकादमी, साहित्य अकादमी, और संगीत नाटक अकादमी की भी स्थापना की थी। मौलाना अबुल कलाम में देश में महिलाओं की शिक्षा पर भी काफी जोर दिया था।

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय बदलाव करने के कारण ही उन्हें देश में शिक्षा का संस्थापक भी कहा जाता है। उनका मानना था कि देश में सामाजिक, एवं आर्थिक बदलाव शिक्षा के द्वारा ही लाया जा सकता है।

पाकिस्तान के गठन के विरोध में थे:

गांधीवादी विचारधारा वाले मौलाना अबुल कलाम आजाद ने हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए काफी काम किए। वे धर्म के आधार पर नए देश पाकिस्तान के गठन के काफी विरोध में थे एवं वे नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान का गठन हो, इसलिए भारत-पाक विभाजन के समय उन्होंने इसका काफी विरोध भी किया था।

वहीं भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान उन्होंने भारत में मुस्लिम समुदिय की रक्षा की जिम्मेदारी ली। इसके साथ ही वे इस दौरान पंजाब, असम, बिहार, और बंगाल समेत कई जगहों पर गए और लोगों के लिए रिफ्यूजी कैंप लगाए और उनके लिए खाने की भी उचित व्यवस्था की और उनकी सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा।

किताबें –

  • इंडिया विन्स फ्रीडम
  • हमारी आजादी
  • खतबाल-ल-आजाद
  • गुब्बा रे खातिर
  • तजकरा
  • हिज्र-ओ-वसल
  • तजकिरह आदी
  • तर्जमन-ए-कुरान

उपलब्धियां एवं पुरस्कार –

मौलाना आजाद जी को साल 1992 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। देश में शिक्षा पद्दति में सुधार करने वाले के महान क्रांतिकारी मौलाना आजाद जी के जन्मदिन पर हर साल 11 नवंबर को ”नेशनल एजुकेशन डे” मनाया जाता है। मौलाना अबुल कलाम आजाद के सम्मान में देश के कई शिक्षण संस्थान, स्कूल एवं कॉलेजों के नाम उनके नाम पर रखे गए हैं।

मौत –

हिन्द्-मुस्लिम एकता को बल देने वाले देश के महान राष्ट्रवादी नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने 22 फरवरी, साल 1958 में स्ट्रोक के चलते, दिल्ली में अपनी अंतिम सांस ली।

आज वे हमारे बीच भले ही नहीं है लेकिन उनके द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए किए  गए काम एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा। उनका जीवन हर देशवासी के लिए प्रेरणादायी है एवं वे देशभक्ति, सेवा, समर्पण का अनुपम उदाहरण थे, जिनसे हर किसी को सीख लेने की जरूरत है।

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस –

भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महान क्रांतिकारी एवं देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद जी के सम्मान में उनके जन्मदिन 11 नवंबर के दिन को ”राष्ट्रीय शिक्षा दिवस” (नेशनल एजुकेशन डे) भी घोषित किया गया है।

एक नजर में –

  • 1906 में मक्का के मुल्ला-मौलवीने उनका सन्मान किया और उन्हें ‘अबुल कलाम’ उपाधि बहाल की। ‘आज़ाद’ उनका उपनाम था।
  • लिखने के लिये इस नाम का इस्तेमाल करते थे। उर्दू कविता के अंत में वह ‘आज़ाद’ लिखा करते थे। और इसी कारन उनको लोग आज़ाद नाम से जानने लगे और उनका सही नाम पीछे छुट गया। ‘आज़ाद’ नाम लिखने के पीछे उनका मकसद पुराने बंधनो से ‘आज़ाद’ होने की प्रेरणा थी।
  • 1905 आज़ादजी के पिताजी ने उन्हें आशिया भेजा। मौलाना आज़ादजी इराक, इजिप्त, सीरिया, तुर्कस्थान आदी देश गये। और ‘कैरो’ देश भी गए वहा पर ‘अल-अझर’ विद्यापीठ गये। योगी अरविन्दजी से मिले और एक क्रांतिकारी समूह में शामील हुये और बादमे इस समूह हुये। क्रांतिकारी समूह मुसलमानो के विरोध में सक्रिय है, ऐसा आज़ादजी को लगने लगा।
  • 1912 में मौलाना आज़ाद जी ने कलकत्ता यहा ‘अल-हिलाल’ ये उर्दू अकबार शुरु किया। और ब्रिटिश विरोध में अपनी जंग छेडी। भारतीय मुसलमानो के ब्रिटिश श्रध्दा पर टिपनी की।
  • इसी कारण सरकार ने इ.स. 1914 में ‘अल-हिलाल’ पर पाबंदी  लगाई आगे उन्होंने इ.स. 1915 में ‘अल-बलाग’ नामसे अकबार शुरू किया।
  • 1920 में दिल्ली आनेपर महात्मा गांधीजी से मिले और कॉंग्रेस का सदस्यपद लिया।
  • मौलाना आज़ादजी को महात्मा गांधीजी के साथ असहयोग आंदोलन में शामील होने के कारण और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भाषण करने कारणवश 10 दिसंबर 1921 वे गिरफ्तार हुये और दो सालकी सजा काटनी पडी।
  • मौलाना आज़ादजी ने हिंदू-मुस्लीम एकता का कार्य किया उससे प्रभावित होकर सन 1923 में उनका भारतीय राष्ट्रिय कॉंग्रेस के अध्यक्षपद के लिए चयन किया गया। भारतीय मुसलमानो मे राष्ट्रीय भाव निर्माण करने उद्देश से राष्ट्रीय कॉंग्रेस में रहकर ही 1929 में ‘नॅशनल मुस्लीम पक्ष’ की स्थापना की और उसका अध्यक्षपद भी मौलाना आज़ाद जी को सौपा गया। इस पार्टीने मुस्लीम लीग जैसे जातीय संघटनो का विरोध किया।
  • 1930 के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में खुद शामील होकर भारतीय मुसलमानो को शामील होने हेतु प्रोस्ताहित किया मौलाना आज़ादजी के इस आंदोलन का नेतृत्व और प्रभुत्व देखकर ब्रिटिश शासनने अनेक प्रांतमें उन्हें प्रवेश बंदी की। 1940 में आज़ाद दूसरी बार राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अध्यक्ष बने। 1946 तक इस पदपर रहे।
  • 1942 में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का मुंबई में हुये ऐतिहासिक अधिवेशन के मौलाना आज़ाद अध्यक्ष थे। उन्हीकी अध्यक्षता में ‘छोडो भारत’ का प्रस्ताव पारित किया।
  • 1947 को पं. नेहरू ने अंतरिम सरकार तयार की थी। उसमे आज़ाद इनका शिक्षणमंत्री इस रूप में समावेश था। उनकी मौत तक वो इस स्थान पर थे। मौलाना आज़ाद पुर्णतः राष्ट्रवादी भारतीय थे, और देश उन्हें आज भी गौरव से याद करता है।

9 thoughts on “मौलाना अबुल कलाम आजाद”

  1. saquib Rashidi

    Ji shukriya aap k zariye hame jankari mili hame khushi h k hamare mulk me aaj v us waqt jaisa Hindu Muslim me pyr h aur hamesha rahega

    1. muzaffar ji,

      Jarur ham likhege par aap thodi or janakari de, baad me thoda jach ke ham Maulana Abul Kalam Azad Ji ka ye lekh UPDATE kar denge…

      Apaka Bahut Dhanyawad.

  2. Sachendar kumar rashmi

    मौलाना आज़ाद की संक्षिप्त जीवनी पढ़ी , जानकारी मिली । मैं उनके द्वा लिखी आत्मकथा भी पढ़ना चाहता हूँ ।

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