मैडम क्युरी की जीवनी | Marie Curie biography in Hindi

मैरी स्क्लाडोवका क्यूरी / Marie Curie (जन्म नाम- मैरी सलोमी सक्लाडोवका) एक भौतिक विज्ञानी और विख्यात रसायन शास्त्री थी. Madame Curie ने रेडियम की खोज की थी. और नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली वह पहली महिला थी, साथ ही विज्ञान के क्षेत्र में इस पुरस्कार को दो बार जीतने वाली पहली शख्सियत और पहली महिला थी.

Marie Curie के परीवार में कुल 5 नोबेल पुरस्कार विजेता है. और साथ ही यूनिवर्सिटी ऑफ़ पेरिस में प्रोफेसर बनने वाली वह पहली महिला भी थी और पेरिस के शीर्ष लोगो में शामिल होने वाली भी वह पहली महिला थी.

Marie Curie biography

मैडम क्युरी की जीवनी | Marie Curie biography in Hindi

“जीवन में कुछ भी नहीं जिससे डरा जाए, आपको बस यही समझने की ज़रुरत है.”

उनका जन्म रशियन साम्राज्य के किंगडम ऑफ़ पोलैंड के वॉरसॉ में हुआ था. उन्होंने वॉरसॉ क्लान्डेस्टिन फ्लोटिंग यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण की और वॉरसॉ में ही वैज्ञानिक प्रशिक्षण लेना शुरू किया.

1891 में 24 साल की आयु में उन्होंने पेरिस में पढ़ रही अपनी बहन ब्रोइस्तवा के साथ पढने की ठानी, और वही उन्होंने अपनी उच्चतम डिग्री भी प्राप्त की और काफी प्रभावशाली वैज्ञानिक काम भी किये. 1903 में उन्होंने फिजिक्स में मिले नोबेल पुरस्कार को अपने पति पिअर क्यूरी के साथ और फिजिस्ट हेनरी बेस्क़ुएरेल के साथ बाटा. 1911 में केमिस्ट्री में भी उन्होंने नोबेल पुरस्कार (Marie Curie Nobel Prize) प्राप्त किया था.

उनकी उपलब्धियों में रेडियम की खोज और उसका विकास भी शामिल है. विज्ञान की दो शाखाओं में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाली मैरी क्युरी पहली महिला वैज्ञानिक हैं.

बाद में उन्होंने पेरिस और वॉरसॉ में क्यूरी इंस्टिट्यूशन की स्थापना की, जो वर्तमान में मेडिकल रिसर्च का मुख्य केंद्र है. प्रथम विश्व युद्ध के समय उन्होंने पहली रेडियोलॉजीकल मिलिट्री फील्ड का निर्माण किया.

फ्रेंच नागरिको के अनुसार मैरी क्यूरी ने कभी भी अपनी पहचान को नकारात्मक नही बनाया वे हमेशा से ही फ्रेंच नागरिको को प्रेरणा बनी है. क्यूरी ने अपनी बेटी को भी पोलिश भाषा का ज्ञान दिया और कई बार उन्हें पोलैंड भी लेकर गयी थी. उनके द्वारा खोजे गये पहले केमिकल एलिमेंट को भी उन्होंने पॉलोनियम ही नाम दिया, लेकिन फिर स्थानिक देशो ने 1898 में उसे अलग कर दिया था.

66 साल की उम्र में फ्रांस के सांटोरियम में अप्लास्टिक एनीमिया को वजह से 1934 में उनकी मृत्यु हो गयी.

मैरी क्युरी का सफर इतना आसान नही था, शुरुवात से उन्होने संघर्ष किया था. घर की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु अध्ययन काल में ही कुछ बच्चों को ट्युशन पढाती थीं. वैवाहिक जीवन में भी पति की असमय मृत्यु ने उनकी जिम्मेदारियों कोऔर बढा दिया. दो बेटीयों का भविष्य और पति द्वारा देखे सपनो को सफल बनाना, मैरी क्युरी का उद्देश्य था. शोध कार्य के दौरान एकबार उनका हाँथ बहुत ज्यादा जल गया था. फिर भी मैरी क्युरी का हौसला नही टूटा. उनका कहना था कि,

“जीवन में कुछ भी नहीं जिससे डरा जाए, आपको बस यही समझने की ज़रुरत है.”

मैडम क्युरी आज भले ही इस संसार में नही हैं किन्तु उनके द्वारा किये गए कार्य तथा समर्पण को विश्व कभी नही भूल सकता. आज भी समस्त विश्व में मैरी क्युरी श्रद्धा की पात्र हैं तथा उनको सम्मान से याद करना हम सबके लिए गौरव की बात है.

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