राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी

आप उन्हें बापू कहो या महात्मा दुनिया उन्हें इसी नाम से जानती हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया। वो हमेशा कहते थे

“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो!”

और उनका ये भी मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। इस महान इन्सान को भारत ने राष्ट्रपिता घोषित कर दिया। उनका पूरा नाम था ‘मोहनदास करमचंद गांधी’।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनी – Mahatma Gandhi Biography in Hindi

Mahatma Gandhi Biography

पूरा नाम (Name) मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म दिनांक (Birthday) 2 अक्तुंबर 1869 (Gandhi Jayanti)
जन्मस्थान (Birthplace) पोरबंदर (गुजरात)
पिता का नाम (Father Name) करमचंद
माता का नाम (Mother Name) पुतली बाई
शिक्षा (Education)
  • 1887 में मॅट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण।
  • 1891 में इग्लंड में बॅरिस्टर बनकर वो भारत लोटें।
विवाह (Wife Name) कस्तूरबा – Kasturba Gandhi
बच्चों के नाम (Childrens Name)
उपलब्धियां (Award)
  • भारत के राष्ट्रपिता,
  • भारत को आजाद दिलवाने में अहम योगदान,
  • सत्य और अहिंसा के प्रेरणा स्त्रोत,
  • भारत के स्वतंत्रा संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान भारत छोड़ो आंदोलन,
    स्वदेशी आंदोलन,
  • असहयोग आंदोलन स्वदेशी आंदोलन आदि।
महत्वपूर्ण कार्य (Work) सत्या और अहिंसा का महत्व बताकर इसको लोगों तक पहुंचाया,
छुआ-छूत जैसी बुराइयों को दूर किया

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने अथक प्रयासों के बल पर अंग्रेजो से भारत को आजाद कराया यही नहीं इस महापुरुष ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में लगा दिया। महात्मा गांधी की कुर्बानी की मिसाल आज भी दी जाती है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पास सत्य और अहिंसा दो हथियार थे जिन्होनें इसे भयावह और बेहद कठिन परिस्थितयों में अपनाया शांति के मार्ग पर चलकर इन्होनें न सिर्फ बड़े से बड़े आंदोलनों में आसानी से जीत हासिल की बल्कि बाकी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता और बापू जी के नामों से भी पुकारा जाता है। वे सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाली शख्सियत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार में गुजारा और अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्रहित में कुर्बान कर दी। उन्होनें अपने व्यक्तित्व का प्रभाव न सिर्फ भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में डाला।

महात्मा गांधी महानायक थे जिनके कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। महात्मा गांधी कोई भी फॉर्मुला पहले खुद पर अपनाते थे और फिर अपनी गलतियों से सीख लेने की कोशिश करते थे।

जन्म, बचपन, परिवार एवं प्रारंभिक जीवन –

देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश हुकूमत के समय राजकोट के ‘दीवान’ थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली एक कर्तव्यपरायण महिला थी, उनके महान विचारों का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

विवाह एवं बच्चे – 

महात्मा गांधी जी जब 13 साल के थे, तब बाल विवाह की कुप्रथा के तहत उनका विवाह एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा मनकजी के साथ कर दिया गया था। कस्तूरबा जी भी एक बेहद शांत और सौम्य स्वभाव की महिला थी। शादी के बाद उन दोनो को चार पुत्र हुए थे, जिनका नाम हरिलाल गांधी, रामदास गांधी, देवदास गांधी एवं मणिलाल गांधी था।

शिक्षा –

महात्मा गांधी जी शुरु से ही एक अनुशासित छात्र थे, जिनकी शुरुआती शिक्षा गुजरात के राजकोट में ही हुई थी। इसके बाद उन्होंने 1887 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। फिर अपने परिवार वालों के कहने पर वे अपने बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए।

इसके करीब चार साल बाद 1891 में वे अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने स्वदेश भारत वापस लौट आए। इसी दौरान उनकी माता का देहांत हो गया था, हालांकि उन्होंने इस दुख की घड़ी में भी हिम्मत नहीं हारी और वकालत का काम शुरु किया। वकालत के क्षेत्र में उन्हें कुछ ज्यादा कामयाबी तो नहीं मिली लेकिन जब वे एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए तो उन्हें रंगभेद का सामना करना पड़ा।

इस दौरान उनके साथ कई ऐसी घटनाएं घटीं जिसके बाद गांधी जी ने रंगभेदभाव के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और इससे लड़ने के लिए 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। इस तरह गांधी जी ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर रंगभेदभाव के मुद्दे को उठाया।

जब इंग्लेंड से वापस लौटे – 

साल 1891 में गांधी जी बरिस्ट्रर होकर भारत वापस लौटे इसी समय उन्होनें अपनी मां को भी खो दिया था लेकिन इस कठिन समय का भी गांधी जी ने हिम्मत से सामना किया और गांधी जी ने इसके बाद वकालत का काम शुरु किया लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा – 

महात्मा गांधी जी को वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला एण्ड अब्दुल्ला नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस यात्रा में गांधी जी का भेदभाव और रंगभेद की भावना से सामना हुआ। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचने वाले पहले भारतीय महामानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर उतार दिया गया। इसके साथ ही वहां की ब्रिटिश उनके साथ बहुत भेदभाव करती थी यहां उनके साथ अश्वेत नीति के तहत बेहद बुरा बर्ताव भी किया गया था।

जिसके बाद गांधी जी के सब्र की सीमा टूट गई और उन्होनें इस रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का फैसला लिया।

जब गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ लिया संघर्ष का संकल्प –

रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ गांधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर 1894 में नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरु किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

दक्षिणा अफ्रीका से वापस भारत लौटने पर स्वागत –

1915 में दक्षिण अफ्रीका में तमाम संघर्षों के बाद वे वापस भारत लौटे इस दौरान भारत अंग्रेजो की गुलामी का दंश सह रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार से यहां की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी। यहां हो रहे अत्याचारों को देख गांधी जी ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

स्वतंत्रता सेनानी के रुप में – 

महात्मा गांधी जी ने जब अपनी दक्षिण अफ्रीका की यात्रा से लौटने के बाद क्रूर ब्रिटिश शासकों द्धारा भारतवासियों के साथ हो रहे अमानवीय अत्याचारों को देखा, तब उन्होंने देश से अंग्रेजों को बाहर खदेड़ने का संकल्प लिया और गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र करवाने के उद्देश्य से खुद को पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम में झोंक दिया।

उन्होंने देश की आजादी के लिए तमाम संघर्ष और लड़ाईयां लड़ी एवं सत्य और अहिंसा को अपना सशक्त हथियार बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ कई बड़े आंदोलन लड़े और अंतत: अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। वे न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य सूत्रधार थे, बल्कि उन्हें आजादी के महानायक के तौर पर भी जाना जाता है।

हमारा पूरा भारत देश आज भी उनके द्धारा आजादी की लड़ाई में दिए गए  त्याग, बलिदान की गाथा गाता है एवं उनके प्रति सम्मान प्रकट करता है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन –

  • चंपारण और खेड़ा आंदोलन –

चम्पारण और खेडा में जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। तब जमीदार किसानों से ज्यादा कर लेकर उनका शोषण कर रहे थे। ऐसे में यहां भूखमरी और गरीबी के हालात पैदा हो गए थे। जिसके बाद गांधी जी ने चंपारण के रहने वाले किसानों के हक के लिए आंदोलन किया। जो चंपारण सत्याग्रह के नाम से जाना गया और इस आंदोलन में किसानों को 25 फीसदी से धनराशि वापस दिलाने में कामयाब रही।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और वे जीत गए। इससे लोगों के बीच उनकी एक अलग छवि बन गई।

इसके बाद खेड़ा के किसानों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा जिसके चलते किसान अपनों करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। इस मामले को गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के सामने रखा और गरीब किसानों का लगान माफ करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रखर और तेजस्वी गांधी जी का ये प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों की लगान को माफ कर दिया।

  • खिलाफत आंदोलन (1919-1924) –

गरीब, मजदूरों के बाद गांधी जी ने मुसलमानों द्दारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया था। ये आंदोलन तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन के बाद गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का भरोसा भी जीत लिया था। वहीं ये आगे चलकर गांधी जी के असहयोग आंदोलन की नींव बना।

  • असहयोग आंदोलन (1919-1920) – 

रोलेक्ट एक्ट के विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियां वाला बाग में सभा के दौरान ब्रिटिश ऑफिस ने बिना वजह निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें वहां मौजूद 1000 लोग मारे गए थे जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना से महात्मा गांधी को काफी आघात पहुंचा था जिसके बाद महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलकर आंदोलन करने का फैसला लिया था। इसके तहत गांधी जी ने ब्रिटिश भारत में राजनैतिक, समाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करने की मांग की।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने प्रस्ताव की रुप रेखा तैयार की वो इस प्रकार है –

  1. सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार
  2. सरकारी अदालतों का बहिष्कार
  3. विदेशी मॉल का बहिष्कार
  4. 1919 अधिनियम के तहत होने वाले चुनाव का बहिष्कार
  • चौरी-चौरा काण्ड (1922) – 

5 फरवरी को चौरा-चौरी गांव में कांग्रेस ने जुलूस निकाला था जिसमें हिंसा भड़क गई थी दरअसल इस जुलूस को पुलिस ने रोकने की कोशिश की थी लेकिन भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बंद कर आग लगा ली। इस आग में झुलसकर सभी लोगों की मौत हो गई थी इस घटना से महात्मा गांधी का ह्रद्य कांप उठा था। इसके बाद यंग इंडिया अखबार में उन्होनें लिखा था कि,

“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मै हर एक अपमान, यातनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं”

  • सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक आंदोलन (1930) – 

Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी ने ये आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया था इसके तहत ब्रिटिश सरकार ने जो भी नियम लागू किए थे उन्हें नहीं मानना का फैसला लिया गया था अथवा इन नियमों की खिलाफत करने का भी निर्णय लिया था। आपको बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई अन्य व्यक्ति या फिर कंपनी नमक नहीं बनाएगी।

12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्धारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था उन्होनें दांडी नामक स्थान पर पहुंचकर नमक बनाया था और कानून की अवहेलना की थी।

गांधी जी की दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चली। दांडी यात्रा साबरमति आश्रम से निकाली गई। वहीं इस आंदोलन को बढ़ते देख सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिए भेजा था जिसके बाद गांधी जी ने समझौता स्वीकार कर लिया था।

  • भारत छोड़ो आंदोलन- (1942) –

ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने तीसरा सबसे बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नाम दिया गया था।

हालांकि इस आंदोलन में गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के माध्यम से इस आंदोलन को चलाते रहे उस समय देश का बच्चा-बच्चा गुलाम भारत से परेशान हो चुका था और आजाद भारत में जीना चाहता था। हालांकि ये आंदोलन असफल रहा था।

आंदोलन के असफल होने की कुथ मुख्य वजह नीचे दी गई हैं –

ये आंदोलन एक साथ पूरे देश में शुरु नहीं किया गया। अलग-अलग तारीख में ये आंदोलन शुरु किया गया था जिससे इसका प्रभाव कम हो गया हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर किसानों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारत छोड़ों आंदोलन में बहुत से भारतीय यह सोच रहे थे कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्हें आजादी मिल ही जाएगी इसलिए भी ये आंदोलन कमजोर पड़ गया।

गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन सफल जरूर नहीं हुआ था लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासकों को इस बात का एहसास जरूर दिला दिया था कि अब और भारत उनका शासन अब और नहीं चल पाएगा और उन्हें भारत छोड़ कर जाना ही होगा।

गांधी जी के शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।

आंदोलनों की खास बातें –

महात्मा गांधी की तरफ से चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ चीजें एक सामान थी जो कि निम्न प्रकार हैं –

  • गांधी जी के सभी आंदोलन शांति से चलाए गए।
  • आंदोलन के दौरान किसी की तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने की वजह से ये आंदोलन रद्द कर दिए जाते थे।
  • आंदोलन सत्य और अहिंसा के बल पर चलाए जाते थे।

समाजसेवक के रुप में –

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता होने के साथ-साथ एक महान समाज सेवक भी थे। जिन्होंने देश में जातिवाद, छूआछूत जैसी तमाम कुरोतियों को दूर करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका सभी जाति, धर्म, वर्ग एवं लिंग के लोगों के प्रति एक नजरिया था।

उन्होंने जातिगत भेदभाव से आजाद भारत का सपना देखा था। गांधी जी ने निम्न, पिछड़ी एवं दलित वर्ग को ईश्वर के नाम पर ”हरि”जन कहा था और समाज में उन्हें बराबरी का हक दिलवाने के लिए अथक प्रयास किए थे।  

”राष्ट्रपिता” (फादर ऑफ नेशन) के रुप में – 

सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता की उपाधि भी दी गई थी। उनके आदर्शों और महान व्यक्तित्व के चलते नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने सर्वप्रथम 4 जून, 1944 को सिंगापुर रेडियो से एक प्रसारण के दौरान गांधी जी को ”देश का पिता” कहकर संबोधित किया था।

इसके बाद नेता जी ने 6 जुलाई 1944 को रेडियो रंगून से एक संदेश प्रसारित करते हुए गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था।  वहीं 30 जनवरी, 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी ने भारतवासियों को रेडियो पर उनकी मौत का दुखद समाचार देते हुए कहा था कि ”भारत के राष्ट्रपिता अब नहीं रहे”।

शिक्षा मे योगदान –

महात्मा गांधी के शिक्षा मे योगदान को समझने से पहले उनके शिक्षा के प्रती विचार को समझना अत्यंत आवश्यक है, जैसा के;

१. ६ साल से १४ साल तक के बच्चो को अनिवार्य तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान की जायेगी।
२. शिल्प केंद्रित शिक्षा दी जायेगी।
३. शिक्षा का माध्यम केवल मातृभाषा होगी, अंग्रेजी नही।
४. करघा उद्योग, हस्तकला इत्यादी की शिक्षा दी जायेगी, जिसमे कृषी, लकडी का काम, कताई, बुनाई, ,मछली पालन, उद्यान कार्य, मिट्टी का कार्य, चरखा इत्यादी शामिल होगा।

गांधीजी ने आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया, जिससे व्यक्ती का सर्वांगीण विकास हो और खुद्के बलबुते इंसान जीवन मे आगे बढ पाये। इसिलिये उन्हे मुलभूत शिक्षा प्रणाली के जनक के तौर पर देखा जाता है।

शिक्षा संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य गांधीजी ने सबके सामने रखे,जैसा के ;

१. स्वयं के अनुभव से सिखना और करके देखना:– किसी भी चीज को सिखने के साथ खुद्से करके देखने पर गांधीजी का ज्यादा झुकाव था, उनका मानना था स्वयं से करके देखकर सिखना ही उत्तम शिक्षा होती है।आपस मे चर्चा एवं प्रश्न उत्तर के माध्यम को उनके नजर मे काफी सराहनिय माना गया है, वे किताबी शिक्षा से ज्यादा क्राफ्ट/शिल्प इत्यादी को अधिक महत्व देते थे

२. शारीरिक क्रियाकलाप द्वारा शिक्षा पर गांधीजी ने अधिक बल दिया जिसमे सभी आयु वर्ग के बच्चो को उनके क्षमता अनुसार कार्य दिया जाये।जिससे वो जीवन मे आगे बढते समय अधिक मजबूत विचार और शारीरिक बल अर्जित कर सके।

३. सिखने की अनेक क्रिया और प्रकार का समन्वय कर शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक झुकाव था, जैसे के चित्रकला, हस्तकला और शिल्पकला इनका एक दुसरे से नजदिकी संबंध आता है।तो इस तरह से विभिन्न कलाओ का आपस मे तालमेल साध कर शिक्षा दी जाये।

१४ साल से उपर के आयु के बच्चो को पूर्णतः रोजगार पूरक शिक्षा देने पर गांधीजी का अधिक बल था, जिससे वो बच्चे आगे चलकर रोजगार हेतू सक्षम बन पाये।

गांधीजी ने शिक्षा पद्धती मे सहयोगी क्रिया पर पहल तथा व्यक्तिगत उत्तरदायित्व पर अधिक कार्य किया, ये निष्कर्ष शिक्षा के लिये स्थापित “झाकीर हुसैन समिति” द्वारा दिया गया है।

गांधीजी शिक्षा मे अनुशासन को बहूत अधिक महत्व देते थे, इसके अलावा छात्रो को आत्मबल अधिक बढाने के साथ, वो अध्यापक वर्ग को ब्रह्मचर्य एवं संयमित जीवन जिने की सलाह देते थे।जिससे के छात्रो के सामने आदर्श एवं उच्च आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत किया जा सके।

गांधीजी छात्रो मे एवं अध्यापको मे सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता, प्रेम, न्याय और परिश्रम इत्यादी गुणो को विकसित करने पर अधिक बल देते थे।

किताबें –

महात्मा गांधी जी एक महान स्वतंत्रता सेनानी, अच्छे राजनेता ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखन कौशल से देश के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी के संघर्ष का बेहद शानदार वर्णन किया है। उन्होंने अपनी किताबों में स्वास्थ्य, धर्म, समाजिक सुधार, ग्रामीण सुधार जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर लिखा है।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी ने  इंडियन ओपनियन, हरिजन, यंग इंडिया, नवजीवन आदि पत्रिकाओं में एडिटर के रुप में भी कार्य किया है। उनके द्धारा लिखी गईं कुछ प्रमुख किताबों के नाम निम्नलिखित हैं-

  • हिन्दी स्वराज (1909)
  • मेरे सपनों का भारत (India of my Dreams)
  • ग्राम स्वराज (Village Swaraj by Mahatma Gandhi)
  • दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (Satyagraha in South Africa)
  • एक आत्मकथा या सत्य के साथ मेरे प्रयोग की कहानी (An Autobiography or The Story of My Experiments with Truth (1927) 
  • स्वास्थ्य की कुंजी (Key To Health)
  • हे भगवान (My God)
  • मेरा धर्म(My Religion)
  • सच्चाई भगवान है( Truth is God)

इसके अलावा गांधी जी ने कई और किताबें लिखी हैं, जो न सिर्फ समाज की सच्चाई को बयां करती हैं, बल्कि उनकी दूरदर्शिता को भी प्रदर्शित करती हैं।

स्लोगन –

सादा जीवन, उच्च विचार वाले महान व्यक्तित्व महात्मा गांधी जी के ने अपने कुछ महान विचारों से प्रभावशाली स्लोगन दिए हैं। जिनसे देशवासियों के अंदर न सिर्फ देश-प्रेम की भावना विकिसत होती है, बल्कि उन्हें सच्चाई के मार्ग पर चलने की भी प्रेरणा मिलती है, महात्मा गांधी जी के कुछ लोकप्रिय स्लोगन इस प्रकार हैं-

  • आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आज आप क्या कर रहे हैं- महात्मा गांधी
  • करो या मरो- महात्मा गांधी
  • शक्ति शारीरिक क्षमता से नहीं आती है, यह एक अदम्य इच्छा शक्ति से आती है- महात्मा गांधी
  • पहले वो आप पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हंसेगें, और फिर वो आपसे लड़ेंगे तब आप निश्चय ही जीत जाएंगे – महात्मा गांधी
  • अपना जीवन कुछ इस तरह जियो जैसे की तुम कल मरने वाले हो, कुछ ऐसे सीखो जैसे कि तुम हमेशा के लिए जीने वाले हो- महात्मा गांधी
  • कानों का दुरुपयोग मन को दूषित एवं अशांत करता है- महात्मा गांधी
  • सत्य कभी भी ऐसे कारण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता जो कि उचित हो-महात्मा गांधी
  • भगवान का कोई धर्म नहीं है- महात्मा गांधी
  • ख़ुशी तब ही मिलेगी जब आप, जो भी सोचते हैं, जो भी कहते हैं और जो भी करते हैं, वो सब एक सामंजस्य में हों- महात्मा गांधी

जयंती –

Mahatma Gandhi

2 अक्टूबर को पूरे देश में गांधी जयंती (Gandhi Jayanti) के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी 1869 में गुजरात के पोरबंदर शहर में जन्में थे। गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे, इसलिए 2 अक्टूबर के दिन को पूरे विश्व में विश्व अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

गांधी जयंती के मौके पर स्कूल, कॉलेजों में अन्य शैक्षणिक संस्थानों में तमाम तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति समेत कई बड़े राजनेता दिल्ली के राजघाट पर बनी गांधी प्रतिमा पर सच्चे मन से श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। वहीं गांधी जयंती को राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित किया गया है।

कुछ खास बातें – 

  • सादा जीवन, उच्च विचार –

राष्ट्रपति महात्मा गांधी सादा जीवन उच्च विचार में भरोसा रखते थे उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें ‘महात्मा’ कहकर बुलाते थे।

  • सत्य और अहिंसा –

महात्मा गांधी के जीवन के 2 हथियार थे सत्य और अहिंसा। इन्हीं के बल पर उन्होनें भारत को गुलामी से आजाद कराया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।

  • छूआछूत को दूर करना था गांधी जी का मकसद

महात्मा गांधी का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली छुआछूत जैसी कुरोतियों को दूर करना था इसके लिए उन्होनें काफी कोशिश की और पिछड़ी जातियों को उन्होनें ईश्वर के नाम पर हरि ‘जन’ नाम दिया।

मृत्यु – 

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

एक नजर में –

  • 1893 में दादा अब्दुला के कंपनी का मुकदमा चलाने के लिये दक्षिण आफ्रिका को जाना पड़ा। महात्मा गांधी जब दक्षिण आफ्रिका में थे तब उन्हें भी अन्याय-अत्याचारों का सामना करना पड़ा। उनका प्रतिकार करने के लिये भारतीय लोगों को संघटित करके उन्होंने 1894 में “नेशनल इंडियन कॉग्रेस” की स्थापना की।
  • 1906 में वहा के शासन के आदेश के अनुसार पहचान पत्र साथ में रखना जरुरी था। इसके अलावा रंग भेद नीती के खिलाफ उन्होंने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
  • 1915 में महात्मा गांधीजी भारत लौट आये और उन्होंने सबसे पहले साबरमती में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की।
  • 1919 में उन्होंने ‘सविनय अवज्ञा’ आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया।
  • 1920 में लोकमान्य तिलक के मौत के बाद राष्ट्रिय सभा का नेवृत्त्व महात्मा गांधी के पास आया।
  • 1920 में नागपूर के अधिवेशन में राष्ट्रिय सभा ने असहकार के देशव्यापी आंदोलन अनुमोदन देनेवाला संकल्प पारित किया। असहकार आंदोलन की सभी सूत्रे महात्मा गांधी पास दिये गये।
  • 1924 में बेळगाव यहा राष्ट्रिय सभा के अधिवेशन का अध्यक्षपद।
  • 1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुआ। नमक के उपर कर और नमक बनाने की सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली।
  • 1931 में राष्ट्रिय सभा के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे।
  • 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की।
  • 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया।
  • 1934 में गांधीजीने वर्धा के पास ‘सेवाग्राम’ इस आश्रम की स्थापना की। हरिजन सेवा, ग्रामोद्योग, ग्रामसुधार, आदी।
  • 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया।
  • व्दितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युध्द के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः 15 अगस्त 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। गांधीजीने सदैव विभिन्न धर्मो के प्रति सहिष्णुता का संदेश दिया।
  • 1948 में नाथूराम गोडसे ने अपनी गोली से उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। इस दुर्घटना से सारा विश्व शोकमग्न हो गया था।

महात्मा गांधी महान पुरुष थे उन्होनें अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण काम किए वहीं गांधी जी के आंदोलनों की सबसे खास बात यह रही कि उन्हें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर सभी संघर्षों का डटकर सामना किया।

उन्होनें अपने जीवन में हिंदू-मुस्लिम को एक करने के भी कई कोशिश की। इसके साथ ही गांधी जी का व्यक्तित्व ऐसा था कि हर कोई उनसे मिलने के लिए आतुर रहता था और उनसे मिलकर प्रभावित हो जाता था।

मोहनदास करमचंद गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले। विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे।

फिल्में –

महात्मा गांधी जी आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलने वाले महानायक थे, उनके प्रेरणादायक जीवन पर कई फिल्में भी बन चुकी हैं। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अन्य देशप्रेमियों और स्वतंत्रता सेनानियों पर भी बनी फिल्मों में गांधी जी का अहम किरदार दिखाया गया है। यहां हम आपको गांधी जी बनी कुछ प्रमुख फिल्मों की सूची उपलब्ध करवा रहे हैं, जो कि इस प्रकार है-

  1. फिल्म- ‘गांधी’ (1982)

डायरेक्शन-   रिचर्ड एटनबरो

गांधी जी का किरदार निभाया- हॉलीवुड कलाकार बने किंस्ले

2- फिल्म- ”गांधी माइ फादर”(2007)

डायरेक्टर- फिरोज अब्बास मस्तान

गांधी जी का किरदार निभाया- दर्शन जरीवाला

3- फिल्म- ”हे राम” (2000)

डायरेक्टर-कमल हसन

गांधी जी का किरदार निभाया- नसीरुद्दीन शाह

4- फिल्म- ”लगे रहो मुन्नाभाई”

डायरेक्टर- राजकुमार हिरानी (2006)

गांधी जी का किरदार निभाया- दिलीप प्रभावलकर

5- फिल्म- ”द मेकिंग ऑफ गांधी”(1996)

डायरेक्टर- श्याम बेनेगल

गांधी जी का किरदार निभाया-रजित कपूर

6- फिल्म- ”मैंने गांधी को नहीं मारा”(2005)

डायरेक्शन- जहनु बरुआ

इसके अलावा भी कई अन्य फिल्में भी गांधी जी के जीवन पर प्रदर्शित की गई हैं।

भजन –

महात्मा गांधी जी के प्रिय भजन जिसे वह अक्सर गुनगुनाते थे-

भजन नंबर 1-

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।।

पर दुःखे उपकार करे तोये, मन अभिमान न आणे रे ।।
सकल लोक माँ सहुने वन्दे, निन्दा न करे केनी रे ।।
वाच काछ मन निश्चल राखे, धन-धन जननी तेरी रे ।।

वैष्णव जन तो तेने कहिये, जे पीर पराई जाणे रे ।।

समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर स्त्री जेने मात रे ।।
जिहृवा थकी असत्य न बोले, पर धन नव झाले हाथ रे ।।
मोह माया व्यापे नहि जेने, दृढ वैराग्य जेना तन मा रे ।।
राम नामशुं ताली लागी, सकल तीरथ तेना तन मा रे ।।
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवार्या रे ।।
भणे नर सैयों तेनु दरसन करता, कुळ एको तेर तार्या रे ।।

आपको बता दें कि महात्मा गांधी जी का यह भजन साल 2018 में वैश्विव हो गया था, इस भजन को 124 देशों के कलाकरों ने एक साथ गाकर बापू जी को श्रद्धांजली अर्पित की थी।

भजन नंबर 2-

रघुपति राघव राजाराम,

पतित पावन सीताराम

सीताराम सीताराम,

भज प्यारे तू सीताराम

रघुपति राघव राजाराम ।।

ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,

सब को सन्मति दे भगवान

रघुपति राघव राजाराम ।।

रात का निंदिया दिन तो काम

कभी भजोगे प्रभु का नाम

करते रहिए अपने काम

लेते रहिए हरि का नाम

रघुपति राघव राजा राम ।।

इस भजन के अलावा भी गांधी जी ”साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।।।।……..” आदि भजन भी गुनगुनाते थे ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जो हम आपको यहाँ बतायेंगे …

रोचक और अनसुने कुछ तथ्य –

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जिनके बारे में शायद ही आप जानते हों। जिनके बारे में आज हम आपको अपने इस लेख के द्धारा बताएंगे, जो कि निम्नलिखित हैं –

1) गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था, इनके पिता करम चंद गांधी कट्टर हिंदू थे और जाति से मोध बनिया थे। गांधी जी गुजारात की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे, इसके अलावा वे राजकोट और बांकानेर के दीवान भी रह चुके थे। उनकी मातृभाषा गुजराती थी।

2) आजादी के महानायक महात्मा गांधी को एक बहादुर, साहसी और बोल्ड नेता के रुप में तो सभी जानते हैं, लेकिन आपको बता दें कि उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि वह बचपन में काफी शर्मीलें स्वभाव के व्यक्ति थे, यहां तक कि वे अपने सहपाठियों से बात करने में भी हिचकिचाते थे।

3) 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विश्व अंहिसा दिवस के रुप में घोषित किया है, इसलिए उनकी जन्मदिन को अंतराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में भी मनाया जाता है।

4) महात्मा गांधी, पुतलीबाई और करमचंद गाधी जी की सबसे छोटी संतान थे, उनके दो भाई और एक बहन भी थी।

Mahatma Gandhi old photo

5) ऐसा माना जाता है कि 12 अप्रैल साल 1919 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने गांधीजी को ‘महात्मा’ कहकर संबोधित किया था। हालांकि इसको लेकर भी विद्धानों के अलग-अलग मत हैं।

6) महात्मा गांधी के बारे मे यह भी काफी रोचक है कि, उन्हें 5 बार नोबल पीस प्राइज के लिए नोमिनेट किया गया, लेकिन यह पुरस्कार कभी वह हासिल नहीं कर सके। क्योंकि साल 1948 में यह पुरस्कार मिलने से पहले ही उनकी गोडसे द्दारा हत्या कर दी गई थी। हालांकि नोबल कमेटी ने यह पुरस्कार उस साल किसी को नहीं दिया था।

7) भारत के राष्ट्रपिता को अमेरिका की टाइम मैग्जीन द्धारा साल 1930 में “Man of the year” पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।

8) महात्मा गांधी के बारे में यह अति रोचक तथ्य है कि वे अपने पूरे जीवनकाल में कभी अमेरिका नहीं गए और यह भी कहा जाता है कि 24 साल विदेश में रहने के बाद भी वह कभी एयर प्लेन में भी नहीं बैठे।

9) सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाले गांधी जी हर रोज 18 किलोमीटर पैदल चलते थे, उनके जीवनकाल ने इस यात्रा के मुताबिक यह आकलन लगाया जाता है, उनकी पैदलयात्रा पूरी दुनिया के दो चक्कर लगाने के बराबर थी। वहीं साल 1939 में 70 साल की आयु में भी गांधी जी का वजन 46 किलोग्राम था।

10) देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 6 साल 5 महीने जेल में बिताए थे। आपको बता दें कि कि गांधी जी को 13 बार गिरफ्तार किया गया था।

11) महात्मा गांधी के प्रभावशाली व्यक्तित्व का प्रभाव पूरी दुनिया में है, इसलिए उनके सम्मान में उनके नाम के 53 मुख्य मार्ग भारत में और 48 सड़कें विदेशों में है।

12) जब 15 अगस्त, 1947 को हमारा भारत देश आजाद हुआ तो उस रात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी का भाषण सुनने के लिए महात्मा गांधी मौजूद नहीं थे, वे उस दिन उपवास पर थे। आपको बता दें कि 1921 में महात्मा गांधी से देश के आजादी तक हर सोमवार को व्रत रखने का संकल्प लिया था और उन्होंने अपने जीवन में करीब 1 हजार 41 दिन उपवास रखा।

13) आजादी के आदर्श महानायक गांधी जी ने देश के लिए कई आंदोलन किए, कई बार उन्हें राजनीतिक पद अपनाने के लिए भी प्रस्ताव रखा गया, लेकिन गांधी जी ने अपने पूरे जीवन काल में कभी भी राजनीति पद को नहीं अपनाया।

14) देश को आजादी करवाने के लिए गांधी जी ने तमाम आंदोलन किए और अंग्रेजी के खिलाफ कई सालों तक लड़ाई भी लड़ी, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने ही महात्मा की मौत के 21 साल बाद उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया था, जो कि सराहनीय है।

15) महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवनकाल में तमाम संघर्ष और आंदोलन किए और सफलता भी हासिल की। इसके अलावा वे 4 महाद्दीप और 12 देशों में नागरिक अधिकार आंदोलन के लिए भी जिम्मेदार थे।

16) गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने वकालत करना शुरु किया था तो, वे कोर्ट में ठीक तरीके से अपना पक्ष भी नहीं रख पाते थे, यहां तक कि पहला केस लड़ते वक्त वह कांपने लगे और बहस बीच में ही छोड़कर बैठ गए, जिससे वह शुरुआती दौर में वकालत करने में फेल हो गए थे।

हालांकि बाद में वह एक कुख्यात और सफल वकील भी बने। वहीं दक्षिण अफ्रीका में उन्हें वकालत के लिए 15 हजार डॉलर सालाना मिलते थे, जो आज के करीब 10 लाख रुपए के बराबर हैं, वहीं कई भारतीयों की सालाना आय आज भी इससे कम है।

17) गांधी जी के जीवन के आदर्शों और उनके महान विचारों की वजह से उनके तमाम प्रशंसक थे, लेकिन एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स भी महात्मा गांधी जी के सम्मान में गोल चश्मा पहनते थे।

18) महात्मा गांधी जी के बारे में एक अति रोचक तथ्य है कि वे नकली दांत लगाते थे, जिसे वह अपने कपड़े के बीच में रखते थे और इसका इस्तेमाल सिर्फ खाना खाते वक्त ही करते थे।

19) महात्मा गांधी जी के बारे में यह भी कहा जाता है कि उन्हें फोटो खिंचवाना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था, लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान वह एक ऐसे महानायक थे, जिनकी सबसे ज्यादा फोटो खींची गई थी।

20) महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को गोडसे द्धारा बिरला भवन के बगीचे में कर दी गई थी। उनकी अंतिम यात्रा में काफी लोगों का हुजुम उमड़ा था, उनकी शवयात्रा करीब 8 किलोमीटर लंबी थी, जिसमें पैदल चलने वालों की संख्या करीब 10 लाख थी, जबकि 15 लाख से भी ज्यादा लोग रास्ते में खड़े होकर उनके अंतिम दर्शन कर रहे थे।

आपको बता दें कि महापुरुष महात्मा गांधी जी की शवयात्रा को आजाद भारत की सबसे बड़ी शवयात्रा भी कहा गया है।

इनके अलावा भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के बारे में कई ऐसे तथ्य हैं जो कि बेहद रोचक और महत्वपूर्ण है। हालांकि, महात्मा गांधी द्धारा राष्ट्र के लिए दिए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। महात्मा गांधी जैसे शख्सियत का भारतभूमि पर जन्म लेना गौरव की बात है।

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165 thoughts on “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जीवनी”

  1. Deepchand bansal

    He is very good freedom fighter who fight for India without violence I salute to him and I also thankful to you because your information helps me a lot in school work

  2. महेश गोहिल

    आभार भारत के सपूतो की जीवनी के लिए!

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