महापराक्रमी और वीर योद्धा महाराणा प्रताप का इतिहास

Maharana Pratap History in Hindi

महाराणा प्रताप भारत के एक सच्चे वीर सपूत और महापराक्रमी योद्धा थे, जिनकी वीरता की गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में लिखी गई गई है। महाराणा प्रताप की जीवन गाथा शौर्य, साहस, स्वाभिमान, पराक्रम एवं राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है।

वे एक सच्चे और आदर्श शासक की तरह अपनी प्रजा को अपने परिवार से भी ज्यादा मानते थे और आखिरी सांस तक वे अपनी प्रजा की रक्षा के लिए लड़ते रहे। उनके अद्भुत साहस, वीरता और पराक्रम की प्रशंसा तो मुगल बादशाह अकबर द्धारा भी की गई थी। कम सैनिक और युद्ध हथियार होने के बाबजूद भी महाराणा प्रताप ने मुगलों के साथ हुए हल्दी घाटी के युद्ध में मुगलों को छटी का दूख याद दिला दिया था।

महापराक्रमी और वीर योद्धा महाराणा प्रताप न सिर्फ युद्ध कौशल में निपुण थे, बल्कि वे एक भावुक एवं धर्मपरायण योद्धा भी थे। महाराणा प्रताप की शौर्यगाथा, हर भारतीय को गौरान्वित करती है। तो आइए जानते हैं महाराणा प्रताप की वीरगाथा और उनके जीवन से जुड़े कुछ रोचक पहलुओं के बारे में –

महाराणा प्रताप का इतिहास – Maharana Pratap history in Hindi

Maharana Pratap
Maharana Pratap History in Hindi

महाराणा प्रताप के बारेमें – Maharana Pratap Information in Hindi

नाम (Name) प्रताप सिंह (Maharana Pratap)
जन्म (Birthday) 9 मई 1540, कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान, भारत
पिता का नाम (Father Name) राणा उदय सिंह
माता (Mother Name) महारानी जयवंताबाई जी
पत्नी (Wife Name) 11 पत्नियां (महारानी अजबदे पुनवार पहली पत्नी)
बच्चे (Children) 17 बेटे, 5 बेटियां
घोड़ा (Horse Name) चेतक (Chetak)
मृत्यु (Death) 19 जनवरी 1597 (उम्र 57)

महाराणा प्रताप का जन्म एवं जीवन – Maharana Pratap Biography in Hindi

भारत के गौरव माने जाने वाले शूरवीर महाराणा प्रताप राजस्थान के कुंभलगढ़ के किले में उदयपुर के राणा उदय सिंह एवं महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र के रुप में 9 मई, 1540  में जन्में थे।

ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप का पालन-पोषण भीलों की कूका जाति ने किया था, इसलिए बचपन में उन्हें कीका कहकर बुलाया जाता था। महाराणा प्रताप, बचपन से ही आसाधारण प्रतिभा वाले बालक थे, उनके  दृढ़निश्चयी और स्वाभिमानी स्वभाव को देखकर, उनके बचपन से ही उनके पराक्रम और अद्भुत शक्ति के कयास लगाए जाते थे।

शुरु से ही वे हठी स्वभाव के थे, जो किसी के काबू में नहीं आते थे और स्वतंत्र रहना पसंद करते थे। आगे चलकर भी, परमवीर महाराणा प्रताप ने अपनी जिंदगी में मुगल शासकों के सामने घुटने नहीं टेके थे और पराधीनता स्वीकार नहीं की थी, साथ ही मुगलों को अपनी अद्मय शक्ति दिखाकर उनके मन में अपने प्रति खौफ पैदा कर दिया था।

महाराणा प्रताप अकेले ही कई मुगलों पर भारी थे। मुगल सम्राट, अकबर भी महाराणा प्रताप के शौर्य, साहस, पराक्रम एवं अद्भुत शक्ति का कायल था।

शूरवीर महाराणा प्रताप की थी 11 पत्नियां और 22 बच्चे – Maharana Pratap Family

राजपूतों के शौर्य, साहस, दृढ़ता और उनकी वीरता के प्रतीक माने जाने वाले महाराणा प्रताप जी ने राजनैतिक कारणों की वजह से 11 शादियां की थी। इनकी सबसे पहली पत्नी का नाम अजबदे पुनवर था, जो कि चित्तौड़ के अधीन राज्य बिजोली की राजकुमारी थी।

वे सुंदर, सुशील और सभ्य महिला थी, जिन्होंने मुश्किल समय में भी महाराणा प्रताप का हौसला बनाए रखा और उन्हें प्रजा के हित में उचित फैसले लेने में मद्द की। अपनी पहली पत्नी अजबदे  से उन्हें अमर सिंह और भगवान दास के नाम की दो पुत्र पैदा हुए थे। बाद में महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने ही राजगद्दी संभाली थी।

इसके साथ ही आपको बता दें कि महाराणा प्रताप को अपनी सभी 11 पत्नियों से कुल 22 संतानें प्राप्त हुईं थी, जिनमें से 5 बेटियां और 17 बेटे  थे।

महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधीनता को किया अस्वीकार – Maharana Pratap And Akbar

महाराणा प्रताप एक ऐसे वीर और स्वाभिमानी शासक थे, जिन्होंने मुगलों की अधीनता को अस्वीकार कर दिया था। वहीं दूसरी तरफ, महाराणा प्रताप के सौतेले भाईयों को मेवाड़ की राजगद्दी नहीं मिलने पर उनके मन में महाराणा प्रताप के प्रति क्रोध और नफरत की भावना पैदा हो गई।

राजपूत भाईयों के बीच इसी आपसी फूट और परिवारिक मतभेद का मुगल शासकों ने फायदा उठाकर चित्तौड़ के किले पर फतह हासिल की। हालांकि, इस हार के बाद महाराणा प्रताप और उनके पिता राणा उदय सिंह मेवाड़ की प्रजा की रक्षा  के लिए  किले से बाहर निकल गए। और फिर  महाराणा प्रताप ने अपनी कुशल रणनीति और बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल कर उदयपुर को फिर से एक समृद्ध राज्य बनाया और अपनी प्रजा को सुरक्षित रखा।

हालांकि, अकबर ने कई बार अपने दूतों से  मेवाड़ शासक महाराणा प्रताप के पास शांति का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अपनी प्रजा के हित और अपने स्वाभिमान के चलते महाराणा प्रताप ने अकबर के शांतिदूत राजपूत राजा मानसिंह, जलाल खान, भगवान दास और टोडरमल का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।

जिसके बाद मुगल बादशाह अकबर का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया था और उसने साल 1576 में अपने इन्हीं शांतिदूतों के साथ मिलकर मेवाड़ के सशक्त और स्वाभिमानी शासक महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। बाद में यह हल्दी घाटी के युद्ध के नाम से जाना गया।

हल्दीघाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने विशाल मुगल सेना के छुड़ाए छक्के, नहीं किया आत्मसमर्पण – Haldighati Yudh

मुगलों और राजपूतों के बीच 18 जून साल 1576 में हुआ हल्दीघाटी का युद्ध इतिहास का सबसे बड़ा युद्ध है। इस युद्ध में आधे से ज्यादा राजपूताना शक्ति मुगलों में मिल गई थी, लेकिन फिर भी महाराणा प्रताप ने एक महापरक्रमी और वीर योद्धा की तरह मुगलों का डटकर सामना किया और उन्हें अपने अदम्य साहस एवं अद्भुत शक्ति का एहसास करवाया।

हल्दीघाटी का युद्द, इतिहास के परमवीर युद्धा महाराणा प्रताप की वीरता और साहस के लिए भी जाना जाना जाता है। आपको बता दें साल 1576 में हुए इस युद्ध में मुगल सम्राट अकबर के पास राजपूतों से लड़ने के लिए करीब 80, हजार  सैनिकों वाली विशाल सेना और भारी युद्ध शस्त्र थे, जिसका नेतृत्व राजा मान सिंह और आसफ खां ने किया था।

वहीं दूसरी तरफ राजपूत शासक सैन्य रुप से कमजोर थे, इस युद्ध में मुगलों का सामना करने के लिए राजपूतों के पास सिर्फ 20 हजार सैनिक ही थे, जिसका नेतृत्व महाराणा प्रताप और हाकिम खान सूरी ने किया था। अपनी छोटी सी सेना के साथ राजस्थान के हल्दीघाटी गोगुंडा की रणभूमि में महाराणा प्रताप ने मुगलों की भारी सेना का अपनी वीरता के साथ मुकाबला किया।

महाराणा प्रताप के पराक्रम और साहस को देखकर आस-पास के कई भील आदिवासियों ने भी महाराणा प्रताप का इस युद्ध में साथ दिया था। यह युद्ध काफी देर तक चला था। महाराणा प्रताप की सेना कम होने की वजह से महाराणा प्रताप को इस युद्ध में पीछे हटने की सलाह दी गई, हालांकि उनकी इस छोटी सी सेना ही मुगलों की बड़ी सेना पर भारी पड़ गई थी। वहीं महाराणा प्रताप इस युद्द में मुगलों की सेना का अंत तक मुकाबला करते रहे, हालांकि, महाराणा प्रताप इस युद्ध में गंभीर रुप से घायल हो गए थे, जिसके बाद झलासिंह ने महाराणा प्रताप की इस युद्ध से निकलने में काफी मद्द की थी।

इस युद्ध में महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और वफादार घोड़े चेतक के घायल होने के बाबजूद भी उसने करीब 26 फीट नाले को पार कर महाराणा प्रताप की जान बचाई थी, हालांकि बाद में चेतक युद्ध स्थल के पास शहीद हो गया। इस तरह मुगल सम्राट अकबर का राजपूतों की शक्ति की मिसाल माने जाने वाले महाराणा प्रताप को पकड़ने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाया।

काफी संघर्षों और मुसीबतों का सामना करने के बाद भी महाराणा प्रताप ने मुगलों के सामने अपनी हार स्वीकार नहीं की, और अपने अदम्य साहस और पराक्रम के बल पर मुगलों की विशाल सेना के हौसले को ध्वस्त कर दिया। वहीं ऐसा माना जाता है कि, हल्दी घाटी के युद्ध में न तो मुगल सम्राट अकबर की जीत हुई और न ही मेवाड़ के साहसी शासक महाराणा प्रताप की हार हुई, एक तरफ जहां मुगलों के पास अपनी मजबूत सैन्य शक्ति थी, तो दूसरी तरफ महाराणा प्रताप के पास शौर्य, वीरता एवं जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।

हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की वीरता के चर्चे पूरे देश भर में होने लगे थे। मुगलों और राजपूतों के बीच हुए इस युद्ध के बाद मुगल सम्राट अकबर को भी महाराणा प्रताप का इतना खौफ पैदा हो गया था कि वह अपनी राजधानी आगरा छोड़कर लाहौर चला गया था।

हालांकि अकबर, महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए काफी सालों तक प्रयास करता रहा लेकिन वह महाराणा प्रताप को बंदी बनाने में नाकामयाब साबित हुआ। वहीं हल्दी घाटी के युद्ध के बाद मेवाड़ शासक महाराणा प्रताप ने कई दिन जंगल में बिताए थे।

महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय एवं बहादुर घोड़ा – Maharana Pratap Horse

मुगलों और राजपूतों के बीच हुए इस महासंग्राम में महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और बहादुर घोड़े चेतक की वीरता के किस्से भी हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज  हो गए। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक एक आसाधारण अश्व था, जिसने भयावह और युद्ध जैसी परिस्थिति में भी बड़े ही निर्भीकता और बहादुरी के साथ अपने मालिक के प्राणों की रक्षा की थी।

इतिहासकारों के मुताबिक जब मुगलों का मुकाबला करते हैं महापराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप घायल हो गए थे, तब वे अपने वीर और समझदार घोड़े चेतक की सहायता से ही युद्ध भूमि से निकलने में सफल हुए थे। जब महाराणा प्रताप अपने घोड़े चेतक पर सवार होकर युद्धभूमि से निकल रहे थे, तब रास्ते में करीब 26 फीट गहरा नाला पड़ा, जिसे युद्ध में घायल हो चुके घोड़े चेतक ने पार कर अपने स्वामी महाराणा प्रताप की जान बचाई थी।

हालांकि बाद में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की मौत हो गई थी। अपने प्रिय घोड़े की मौत के बाद महाराणा प्रताप काफी आहत हुए थे। हालांकि आज भी चेतक की समाधि राजस्थान की हल्दीघाटी में बनी हुई है, और इसमें चेतक की वीरता का उल्लेख भी किया गया है। यही नहीं हिन्दी साहित्य में भी महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में कई रचनाएं भी की गई हैं।

करीब 208 किलो का वजन लेकर चलते थे शूरवीर महाराणा प्रताप – Maharana Pratap Bhala

इतिहास के सबसे पराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप के भाला, कवच और तलवार का वजन करीब 208 किलो था। जिसे लेकर युद्ध भूमि पर वे अपने वीर घोड़े चेतक पर सवार होकर चलते थे।

आपको बता दें कि महाराणा प्रताप जी के भाला का वजन करीब 81 किलोग्राम था, और वे अपने शरीर पर 72 किलो का कवच धारण करते थे। इसके अलावा वे अपने साथ 2 तलवार और ढाल लेकर चलते थे।

इस तरह महाराणा प्रताप करीब 208 किलो का वजन लेकर चलते थे। महाराणा प्रताप एक तलवार अपने लिए रखते थे, जबकि दूसरी तलवार निहत्थे दुश्मन के लिए रखते थे। महाराणा प्रताप अपने अदम्य साहस, अद्भुत शक्ति और अद्धितीय शौर्य के लिए जाने जाते हैं। महाराणा प्रताप जी की तलवार, कवच समेत उनके कई कीमती सामान को आज भी उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।

वीर योद्धा महाराणा प्रताप ने अपने राज्य को पुन: हासिल कर लहाराया जीत का परचम:

काफी कष्ट और संघर्षों को झेलने के बाद भी महाराणा प्रताप का हौसला बिल्कुल भी नहीं डगमगाया। एक बार फिर से राजपूताना की फतह फहराने के इरादे से उन्होंने 1579 के उस दौर का फायदा उठाया जब बिहार और बंगाल जैसे राज्यों में मुगलों के खिलाफ जंग छिड़ी हुई थी, जिसकी वजह से मुगलों ने चित्तौड़ पर ध्यान देना बंद कर दिया था। वहीं इस दौरान अकबर लाहौर के उत्तर-पश्चिम वाले राज्यों पर नजरें रखे हुआ था।

वहीं इन सब के बीच महाराणा प्रताप ने अपनी कुशल नीति का इस्तेमाल कर पश्चिमी मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर राजपूतों की विजय का परचम लहराया। पश्चिमी मेवाड़ के अधीन गोकुण्डा, उदयपुर और कुंभलगढ़ आदि शामिल थे। इसके बाद चवण को महाराणा प्रताप ने अपनी राजधानी के रुप में विकसित किया।

12 साल के कठोर संघर्ष और भारी सैन्य शक्ति के बाद भी मुगल सम्राट अकबर महाराणा प्रताप के राज्य मेवाड़ का बाल भी बांका नहीं कर सका। और इस तरह महाराणा प्रताप अपने राज्य मेवाड़ को स्वाधीनता हासिल करवाने में कामयाब हुए। फिर इसके बाद उन्होंने अपने राज्य मेवाड़ में खूब विकास करवाया ताकि उनके राज्य की जनता को हर सुख-सुविधा मिल सके।

जब हमेशा के लिए सो गया भारत का महान योद्धा – Maharana Pratap Death

मेवाड़ पर फिर से अपना कब्जा जमाने के करीब 11 साल बाद, राजस्थान के चवण में  19 जनवरी साल 1597 में महापराक्रमी योद्धा महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु पर उनके दुश्मन और मुगल सम्राट अकबर के भी आंसू निकल आए थे।

दरअसल, महाराणा प्रताप की शौर्यता, पराक्रम से अकबर बेहद प्रभावित था, और उनके गुणों की प्रशंसा करता था। अकबर जानता था कि महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर  इस धरती पर दूसरा कोई नहीं है। महाराणा प्रताप एक ऐसे राजा थे, जो अपनी प्रजा के लिए जीते थे, और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपनी प्रजा की भलाई और अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए कुर्बान कर दी थी।

वहीं ऐसा कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप, युद्धभूमि छोड़कर जंगल में रह रहे थे, तो अकबर अपने जासूसों को भेजकर अक्सर उनके हालचाल लेता रहता था और कभी नहीं झुकने वाले शासक की महानता के बारे में सोचा करता था।

महाराणा प्रताप की जयंती कब मनाई जाती है – Maharana Pratap Jayanti

हिन्दू पंचाग के मुताबिक महापराक्रमी और वीर योद्धा महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ महीने की शुक्ल पक्ष की तीज को हुआ था, इसलिए हर साल इस दिन उनकी जयंती बनाई जाती है। उनकी जयंती के मौके पर उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है और भावपूर्ण श्रद्धांजली अर्पित की जाती है।

इस मौके पर उनकी शौर्यगाथा भी सुनाई जाती है। कभी पराधीनता स्वीकार नहीं करने वाले महाराणा प्रताप का शौर्य और पराक्रम आज भी लोगों को प्रेरणा देता है और उनकी जीवन गाथा लोगों को आगे बढ़ने का जोश भरती है एवं युवाओं के अंदर राष्ट्रभक्ति की भावना को विकसित करती है।

भारत के ऐसे महान पराक्रमी योद्धा और सच्चे वीर सपूत को ज्ञानी पंडित की टीम शत-शत नमन करती है।

चेतक की विरता पर

“रण बीच चोकड़ी भर-भर कर चेतक बन गया निराला था राणाप्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था, जो तनिक हवा से बाग़ हिली लेकर सवार उड़ जाता था राणा की पुतली फिरी नहीं,तब तक चेतक मुड जाता था।”

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239 COMMENTS

  1. I m also a fan of maharana pratap..
    Kaha jata h maharana apni maut ke karad khud the..kyuki haldighati yudh m unhone sabse aage haathi, phir ghode ,last m sainik aur khud the ….Akbar k wazir mansingh dwara saina SE nagade bazwaye gye aur maharana k haathi piche ki trf bhaage ..kisse maharana ki sena dhwast ho gyi…issi karad unki haar hui thi…
    If I wrong pls correct me
    Don’t be take a wrong…pls make me understand..

    • Ngade nhi bajwaye teer se हाथी ki aankh p war kiya jata tha jisse हाथी फिर pichhe bhagte the or apni hi sena pr war kr dete the

    • mujhe jhaa tak pta h

      Maharana pratap ki mritu Gau mata ki raksha krte hue thi jisme ek adam khor sher se ladte hue sher ke nakhoono se unke sine me ghav hue jinke infection k karan 57 varsh ki aayu me unki Mrityu hui…..

    • aapko galat ithihas pase kiya gya hai

      maharana partap haldi ghati se bhaga tha fir janglo me jivan vaytit kiya

      or ye itihas unko hero bana raha hau

      maharana partap ne muglo se koi yudh nahi jeeta

      fir mahan kase hua

  2. Rana pratap amar hai Bharat me aur mai kahta hoo yadi koi niras hai apni jindagi se to inke bare me Jane nai jaan a jaygi

  3. i like Maharana Pratapji
    i always look like and find about this one and my favourite person of my life……..
    i always remember Maharana Pratap Singh ji

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