“The Lion of Punjab” Maharaja Ranjit Singh in Hindi
महाराजा रणजीत सिंह जी सिक्खों के सबसे बड़े एवं सबसे प्रसिद्ध शासक थे, जिनके अद्भुत शौर्य, पराक्रम और वीरता के किस्से पूरी दुनिया भर में मशहूर है। वे बेहद सरल एवं उदार स्वभाव के शासक थे।
उन्होंने करीब 40 साल तक शासन किया एवं अपने राज्य को समृद्ध एवं शक्तिशाली बनाया था। वे बाद में शेर–ए–पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हुए थे। महाराजा रणजीत सिंह जी ने अपनी दूरदर्शिता और राजनैतिक कौशल से पूरे पंजाब को एक एकुजट में बांधने का काम किया।
इसके साथ ही अपने राज्य में शिक्षा एवं कला को बढ़ावा दिया एवं उचित कानून व्यवस्था बनाई। तो आइए जानते हैं इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शासक महाराजा रणजीत सिंह जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में–
अपने अद्भुत साहस और वीरता के लिए प्रसिद्ध शासक महाराजा रणजीत सिंह जी का जीवन परिचय – Maharaja Ranjit Singh History In Hindi
महाराजा रणजीत सिंह जी के बारे में जानकारी एक नजर में – Maharaja Ranjit Singh Biography
पूरा नाम (Name) | महाराणा रणजीत सिंह (‘शेर-ए-पंजाब’) |
जन्म (Birthday) | 13 नवम्बर, 1780, गुजरांवाला |
पिता(Father Name) | महासिंह |
माता (Mother Name) | माई राज कौर |
पत्नी (Wife Name) | महतबा कौर |
संतान (Children) | दिलीप सिंह |
उपाधि | महाराणा |
शासन काल | 1801-1839 |
उपलब्धि | सिख सम्राज्य के संस्थापक एवं शेर–ए–पंजाब की उपाधि से सम्मानित। |
मृत्यु (Death) | 27 जून, 1839, लाहौर |
महाराजा रणजीत सिंह जी का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन – Maharaja Ranjit Singh History
महाराजा रणजीत सिंह जी 13 नवंबर, 1780 को बदरुखां आधुनिक गुजराती पाकिस्तान में गुजरांवाला में भारत में जन्में थे। वे मिस्ल के सरदार महासिंह और माई राज कौर की संतान थे। 10 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता के साथ पहली लड़ाई लड़ी थी, दरअसल, वे शुरु से ही युद्ध–सैन्य कौशल से निपुण थे एवं उनके अंदर एक शासक वाले सभी गुण विद्यमान थे।
बचपन में ही वे चेचक बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिसकी वजह से उनकी बायीं आंख की रोश्नी भी कम हो गई थी। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने जीवन के शुरुआती दिनों में काफी संघर्षों को झेला था। जब वे 12 साल के थे, उस दौरान उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके कुछ दिनों बाद वे सुकरचकिया मिशेल के मिसलदार बने।
इसके अलावा उन पर हशमत खां नामक शख्स ने जानलेवा हमला भी किया था, हालांकि उसकी रणजीत सिंह जी को मारने की यह कोशिश नाकाम साबित हुई थी।
वहीं जब रणजीत सिंह जी 16 साल के थे, तब उनकी शादी मेहतबा कौर नाम की कन्या से कर दी गई।
अपनी सांस सदाकौर के कहने पर सिखों के सबसे महान शासक महाराजा रणजीत सिंह जी ने रामगदिया पर जोरदार हमला बोल दिया, हालांकि इस लड़ाई में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
फिर इसके बाद करीब 1797 में जब वे 17 साल के थे, तब उन्होंने स्वतंत्रतापूर्वक शासन करना शुरु किया था।
महाराजा रणजीत सिंह जी को पंजाब के महाराजा का ताज:
पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह 12 अप्रैल, साल 1801 ईसवी में बैसाखी के दिन रणजीत सिंह को पंजाब के महाराजा का ताज पहनाया गया। बाद में यही रणजीत सिंह पंजाब के शेर कहलाए थे।
अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने छोटी–छोटी रियासतों अपने साथ मिला लिया एवं अपने राज्य को इतना अधिक समृद्ध एवं शक्तिशाली बना लिया कि उस दौरान शक्तशाली होने के बाबजूद भी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया पंजाब पर अधिकार नहीं कर सकी।
महाराजा रणजीत सिंह जी अपनी दयालुता के लिए प्रसिद्ध थे, उनके शासनकाल में कभी किसी को मृत्यु दंड की सजा नहीं सुनाई गई। उन्हें अपनी दयालुता के कारण लाखबख्श भी कहा जाता था।
महाराज रणजीत सिंह जी का शौर्य एवं विजय अभियान:
रणजीत सिंह जब अपनी किशोर अवस्था में थे, तब उन्होंने अन्य मिस्लों के सरदारों को हराकर अपने सैन्य अभियान की शुरुआत की थी।
7 जुलाई, 1799 को भांगी मिस्ल को हराकर लाहौर पर कब्जा कर अपनी पहली जीत हासिल की थी और फिर उन्होंने अपने सूर्य, प्रताप, साहब एवं पराक्रम के बल पर जल्द ही रणजीत सिंह जी ने पंजाब के कई मिसलों पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया एवं विशाल सिख सम्राज्य की स्थापना की थी।
साल 1803 में खालसा नामक संगठन के नेतृत्वकर्ता एवं महान शासक रणजीत सिंह जी ने अकालगढ़ एवं साल 1804 में पंजाब राज्य के डांग और कसूर पर जीत हासिल की थी।
1805 में रणजीत सिंह जी ने अमृतसर पर अधिकार कर लिया था। रणजीत सिंह द्धारा अमृतसर पर अपना कब्जा स्थापित कर लेने के बाद पंजाब राज्य की धार्मिक एवं राजनैतिक राजधानी अमृतसर एवं लाहौर पर उनका नियंत्रण हो गया था।
इसके बाद 1809 ईसवी में मिसल के रुप में अपना लोहा मनवाने वाले महाराजा रणजीत सिंह जी ने अपनी कूटनीति और अद्भुत राजनैतिक कौशल के बल परे गुजरात पर विजय हासिल कर ली थी।
दो गुटों में बंटे सिखों को एकत्र करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महान शासक रणजीत सिंह जी ने साल 1806 में सतलज पार के प्रदेशों को भी अपनी राजनैतिक क्षमता एवं कूटनीति से दोलाधी गांव एवं लुधियाना पर जीत हासिल की थी।
अपने विजय अभियान के दौरान साल 1807 में इतिहास के सबसे शक्तिशाली एवं पराक्रमी शासक माने जाने वाले रणजीत सिंह जी ने जीरा बदनी और नारायणगढ़ पर जीत हासिल की। इसके बाद 1807 में फिरोजपुर पर विजय प्राप्त की।
रणजीत सिंह और अमृतसर की संधि – Maharaja Ranjit Singh Amritsar Sandhi
सिखों के महान शासक रणजीत सिंह जी के सैन्य अभियानों से खौफ खाकर सतलुज नदी के पार स्थित सिक्ख रियासतों ने अंग्रेंजों से संरक्षण देने की गुजारिश की थी, ताकि वे सभी सुरक्षित रह सकें।
वहीं पहले तो गर्वनर जनरल लॉर्ड मिंटो ने सर चार्ल्स मेटकॉफ को रणजीत सिंह जी से संधि करने के लिए भेजा था।
शुरुआत में तो रणजीत सिंह जी संधि के लिए तैयार नहीं हुए थे, लेकिन जब लॉर्ड मिण्टों ने चार्ल्स मेटकॉफ के साथ अपनी विशाल सेना भेजी और अंग्रेजों की सैन्य शक्ति की धमकी दी थी, जिसके बाद रणजीत सिंह जी ने समय की नजाकत को समझते हुए 25 अप्रैल, 1809 ईसवी में अंग्रेजों से संधि कर ली थी, जो कि बाद में अमृतसर की संधि के नाम से प्रसिद्ध हुई।
रणजीत सिंह जी की कांगड़ा पर विजय – Kangra Fort
कांगड़ा के शासक संसारचन्द्र जब कांगड़ा के शासक थे, उस दौरान अमरसिंह थापा ने करीब 1809 ईसवी में कांगड़ा पर हमला बोल दिया था।
जिसके बाद कांगड़ा की मद्द के लिए रणजीत सिंह ने अपनी सेना भेज दी थी, इसके बाद अमरसिंह थापा वहां से रफूचक्कर हो गया और इस तरह कांगड़ा के दुर्ग पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्जा हो गया।
महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान पर भी हासिल की जीत:
साल 1818 ईसवी में रणजीत सिंह जी ने अपनी सेना के प्रमुख वीर जवान खड़गसिंह और दीवानचंद को मुल्तान की विजय के लिए भेजा था, जिसके बाद 1818 में मुल्तान पर महाराजा रणजीत सिंह जी का अधिकार हो गया था।
कटक पर रणजीत सिंह जी ने हासिल की विजय:
1813 ईसवी में महाराजा रणजीत सिंह जी ने अपना अधिकार जमा लिया था, उन्होंने कटक के गवर्नर जहादांद को 1 लाख रुपए की राशि देकर 1813 में कटक पर अपना अधिकार कर लिया था।
रणजीत सिंह जी ने कश्मीर पर भी किया अपना अधिकार:
सिक्खों के सबसे बड़े महाराजा रणजीत सिंह जी की सेना का 1819 ईसवी में कश्मीर के अफगान शासक जब्बार खां से मुकाबला हुआ, जिसमें रणजीत सिंह जी को जीत मिली और वे कश्मीर पर अपना अधिकार जमाने में सफल रहे।
इसके बाद अपने विजय अभियान को आगे बढ़ाते हुए 1820-1821 ईसवी में महाराजा रणजीत सिंह जी ने डेराजाता पर जीत हासिल की, फिर 1823 ईसवी में पेशावर को पराजित कर अपना अधिकार जमा लिया।
फिर 1834 ईसवी में पेशावर को पूर्व सिक्ख सम्राज्य में शामिल कर लिया गया, इसके बाद 1836 ईसवी में रणजीत सिंह जी ने अपनी सेना को भेजकर लद्धाख पर भी विजय हासिल कर ली।
महाराजा रणजीत सिंह की मौत – Maharaja Ranjit Singh Death
सिख सम्राज्य के संस्थापक एवं महान प्रतापी शासक महाराजा रणजीत सिंह जी ने 27 जून, 1899 को अपनी अंतिम सांस ली। उनकी मौत के बाद उनके पुत्र दलित सिंह राज्य के उत्तराधिकारी बने। हालांकि बाद में उनके राज्य का विनाश हो गया।
महाराजा रणजीत सिंह और कोहिनूर हीरा- Maharaja Ranjit Singh And Kohinoor
सिख सम्राज्य की स्थापना करने वाले महाराजा रणजीत सिंह जी की मौत के बाद 1839 ईसवी में अंग्रेजों ने सिखों पर हमला बोल दिया था।
दऱअसल फिरोजपुर की लड़ाई में सिख सेना के सेनापति लालसिंह ने अपनी सेना के साथ ही धोखेबाजी कर कोहिनूर हीरा को लूट लिया था एवं कश्मीर और हजारा राज्य छीन लिया था।
इसके बाद कोहिनूर लंदन ले जाया गया और ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के ताज में जड़वा दिया था।
महाराजा रणजीत सिंह जी से जुड़ी रोचक बातें – Information About Maharaja Ranjit Singh
सिखों के सबसे बड़े नेता महाराजा रणजीत सिंह ने कोई भी औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, वो शुरु से ही अनपढ़ थे एवं महज 10 साल की उम्र में ही एक वीर योद्धा की तरह तलवारबाजी, घुड़सवारी समेत अन्य युद्ध कौशल में निपुण हो गए थे।
महाराजा रणजीत सिंह जी ने बचपन से ही अपने जीवन में तमाम संघर्ष झेले थे, शुरुआती जीवन में चेचक की वजह से उनकी एक आंख चली गई थी। इसके साथ ही जब वे बेहद छोटे थे, तब उनके सिर से पिता का साया उठ गया था, जिसकी वजह से कम उम्र में ही उन पर पूरी जिम्मेदारी आ गई थी। जिससे वे बचपन से ही काफी कठोर बन गए थे।
सिक्खों के सबसे बड़े शासक महाराजा रणजीत सिंह जी न तो गौ मांस खाते थे और ना ही अपने दरबारियों को इसे खाने की कभी इजाजत देते थे।
कुछ इतिहासकारों की माने तो महाराजा रणजीत सिंह जी ने करीब 20 शादियां की थी।
सिख धर्म के महान शासक रणजीत सिंह जी एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे, जिनकी सेना में हिन्दू, मुस्लिम समेत यूरोपीय योद्धा समेत जनरल शामिल थे।
महान शासक रणजीत सिंह जी के बारे में सबसे खास बात यह है कि वे सभी को एक समान समझते थे, शायद यही वजह है कि वे जब गद्दी पर बैठे तो कभी भी ताज नहीं पहना।
सिखों के सबसे बड़े शासक रणजीत सिंह जी को ऐतिहासिक गुरुद्धारा तख्त सिंह पटना साहिब और तख्त सिंह हजूर सिहाब बनवाने का भी श्रेय जाता है। आपको बता दें कि जहां पर 10वें सिख गुरु ने जन्म लिया वहां पर प्रसिद्ध पटना साहिब गुरुद्दारे का निर्माण हुआ और तख्त सिंह हजूर साहिब का निर्माण उस स्थान पर हुआा, जहां पर उनकी मृत्यु हुई थी।
महाराज रणजीत सिंह जी ने अमृतसर में स्थित सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल हरमिंदर साहिब यानि गोल्डन टेंपल का जीर्णोद्धार करवाया था।
शेर-ए-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध महान सिख शासक रणजीत सिंह जी जब 13 साल के थे तब उन पर हशमत खां ने जानलेवा हमला किया था, लेकिन उस उम्र में ही वे इतने पराक्रमी थे कि हमलावर को मौत के घाट उतार दिया।
महाराजा रणजीत सिंह जी के शासनकाल के सबसे अच्छी बात यह थी कि उनके राज में कभी किसी को मृत्युदंड नहीं दिया गया था। वे बेहद उदारवादी एवं दयालु शासक थे, किसी राज्य को जीत कर वह अपने दुश्मनों को भी बदले में कुछ ना कुछ जमीन-जागीर दिया करते थे, ताकि उसे अपने जीवन निर्वाह के लिए दर-दर की ठोंकरे न खानी पड़ी।
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