लाल बहादुर शास्त्री को न सिर्फ एक सच्चे देशभक्त और महान स्वतंत्रता सेनानी के रुप में जाना जाता है, बल्कि उनकी छवि एक दूरदर्शी, ईमानदार और निष्ठावान राजनेता के रुप में है, जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान देश को कई संकटों से उबारा एवं देश की उन्नति एवं विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
लाल बहादुर शास्त्री देश के उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने देश को आजादी दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था एवं अपने जोशीले भाषणों एवं गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक पर दम कर दिया था। उन्होंने सभी भारतवासियों के मन में अपने जोशोले भाषण और गतिविधियों से आजादी पाने की अलख जगाई थी।
इसके साथ ही उन्होंने देश में स्वतंत्रता की ज्वाला को तेज कर दिया था। यही नहीं शास्त्री जी ने दुग्ध उत्पादन की बढ़ोतरी के लिए ‘श्वेत क्रांति’को भी बढ़ावा दिया था। आइए जानते हैं भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी, निष्ठावान और ईमानदार राजनेता लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में –
लाल बहादुर शास्त्री जीवनी – Lal Bahadur Shastri in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | लालबहादुर शारदाप्रसाद श्रीवास्तव |
जन्म (Birthday) | 2 अक्टूबर, 1904, मुगलसराय, वाराणसी, उत्तरप्रदेश |
पिता (Father Name) | मुंशी शारदा प्रसाद श्री वास्तव |
माता (Mother Name) | राम दुलारी देवी |
शिक्षा (Education) | हरिश्चन्द्र हाई स्कूल, काशी विद्यापीठ (वर्तमान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) |
पत्नी (Wife Name) | ललिता देवी |
बच्चे (Children) | 6 संतान |
मृत्यु (Death) | 11 जनवरी, 1966 |
सम्मान/पुरस्कार (Award) | “भारत रत्न” |
“कानून का सम्मान किया जाना चाहिये ताकि हमारे लोकतंत्र की बुनियादी संरचना बरक़रार रहे और मजबूत बने।”
प्रारंभिक जीवन –
देश की आजादी की लड़ाई में अपना अहम योगदान देने वाले, देश के सच्चे सपूत लाल बहादुर शास्त्री जी 2 अक्टूबर 1904 को उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में एक अध्यापक के घर जन्में थे। उनके पिता मुंशी शारदा प्रसाद श्री वास्तव एक ईमानदार और प्रतिष्ठित अध्यापक थे, जिन्होंने कुछ समय तक आयकर विभाग में भी अपनी सेवाएं दी थीं।
हालांकि, वे ज्यादा दिन तक अपने बेटे के साथ नहीं रह सके, जब लाल बहादुर शास्त्री जी काफी छोटे थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया। जिसके बाद उनकी मां रामदुलारी जी उन्हें अपने पिता हजारी लाल के घर मिर्जापुर में ले लाईं, फिर नाना-नानी के घर ही उनका लालन-पालन हुआ।
शिक्षा –
लालबहादुर शास्त्री जी की प्रारंभिक शिक्षा अपने नाना के घर रहते हुए मिर्जापुर में हुई, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए वे वाराणसी चले गए। जहां पर उन्होंने काशी विद्यापीठ (वर्तमान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में दर्शनशास्त्र से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। साल 1926 में काशी विद्यापीठ में ही लाल बहादुर जी को ”शास्त्री” की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद से ही उनके नाम के आगे शास्त्री जोड़ा जाने लगा।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद शास्त्री जी देश के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जी के द्धारा शुरु की गई “द सर्वेन्ट्स ऑफ़ द पीपल सोसाइटी” से जुड़ गए। आपको बता दें कि इस सोसायटी का मुख्य मकसद ऐसे युवाओं को प्रशिक्षित करना था, जो देश की सेवा करने के लिए हमेशा तत्पर रहें।
इसके बाद करीब 1927 में लाल बहादुर शास्त्री जी ललिता देवी जी के साथ शादी के बंधन में बंध गए, इन दोनों को शादी के बाद 6 बच्चे हुए।
देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका –
लालबहादुर शास्त्री देश की उन महान शख्सियतों में से एक हैं, जिन्होंने ब्रिटिश शासकों से देश को आजाद करवाने की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर कर लोगों के अंदर आजादी पाने की ज्वाला और अधिक भड़का दी थी। वे महज 16-17 साल की उम्र में ही देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। शास्त्री जी, महात्मा गांधी जी की विचारधारा से काफी प्रभावित थे। वे उन्हें अपना आदर्श मानते थे।
लालबहादुर शास्त्री जी ने गांधी जी के द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए आंदोलनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपको बता दें कि लाल बहादुर शास्त्री जी ने साल 1921 में अपनी स्कूल की पढ़ाई के दौरान गांधी जी के ”असहयोग आंदोलन” में अपना पूरा सहयोग दिया।
वहीं इस बीच उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा, हालांकि कम उम्र की वजह से उन्हें बाद में छोड़ दिया गया था। इसके बाद साल 1930 में लाल बहादुर शास्त्री जी ने गांधी जी द्धारा चलाए गए ”सविनय अवज्ञा आंदोलन” में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई और देश के लोगों को ब्रिटिश सरकार को लगान एवं करों का भुगतान नहीं करने के लिए प्रेरित किया।
इस दौरान भी उन्हें करीब ढाई साल के लिए जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ा था। दूसरे विश्व युद्ध शुरु होने के दौरान कांग्रेस ने ब्रिटिश शासन से देश को आजादी दिलवाने की मांग को लेकर स्वतंत्रता की लड़ाई को और अधिक ज्वलंत कर दिया। इसके लिए ”एक जन आंदोलन” की शुरुआत भी की। इस आंदोलन के दौरान लाल बहादुर शास्त्री को ब्रिटिश पुलिस द्धारा गिरफ्तार कर लिया गया था, हालांकि एक साल बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया।
फिर 1942 में जब देश की आजादी के महानायक माने जाने वाले महात्मा गांधी जी ने 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ ”भारत छोड़ो आंदोलन” चलाया। इस आंदोलन में भी शास्त्री जी ने अपना अहम रोल निभाया एवं एक सच्चे देशभक्त की तरह देश को आजाद करवाने की लड़ाई में खुद को पूरी समर्पित कर दिया।
इस आंदोलन के दौरान करीब 11 दिन तक शास्त्री जी को अंडरग्राउंड रहना पड़ा था, हालांकि बाद में उन्हें ब्रिटिश पुलिस द्धारा गिरफ्तार कर लिया गया था। वहीं कुछ समय बाद फिर उन्हें साल 1945 में रिहा कर दिया गया था।
शास्त्री जी का राजनीतिक कौशल:
साल 1946 में प्रांतीय चुनावों के दौरान लालबहादुर शास्त्री जी की प्रशासनिक एवं संगठन क्षमता से पंडित गोविन्द वल्लभ पंत जी इतने प्रभावित हुए कि जब वे स्वतंत्र भारत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने लालबहादुर शास्त्री जी को अपने संसदीय सचिव के तौर पर नियुक्त किया।
अपनी इस जिम्मेदारी को भी शास्त्री जी ने बखूबी निभाया, जिसके चलते उन्हें गोविंद वल्लभ पंत जी के मंत्रीमंडल में जगह मिली और शास्त्री जी को पुलिस और परिवहन मंत्री के तौर पर नियुक्त कर दिया गया। इस दौरान लालबहादुर शास्त्री जी ने देश में महिलाओं की स्थिति को सुधारने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिए पहली महिला को कंडक्टर के रुप में नियुक्त किया और परिवहन में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करवाईं।
इसके साथ ही उन्होंने पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए लाठीचार्ज करने के अलावा पानी की बौछार से भीड़ को नियंत्रित करने का नियम बनाया। देश में संविधान लागू होने एवं भारत के एक लोकतंत्रात्मक एवं धर्मनिरेपक्ष गणराज्य बनने के बाद पहले आम चुनाव आयोजित किए गए।
इस दौरान लाल बहादुर शास्त्री जी कांग्रेस पार्टी के महासचिव के रुप में पार्टी का मोर्चा संभाल रहे थे। इस दौरान उन्हें कांग्रेस पार्टी का जमकर प्रचार-प्रसार किया, जिसके बाद कांग्रेस पार्टी भारी बहुमतों के साथ विजयी हुई। साल 1952 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने लाल बहादुर शास्त्री को अपने मंत्रिमंडल में रेलवे और परिवहन मंत्री के रूप में नियुक्त किया। इस पद की जिम्मेदारी संभालते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने जी ट्रेन में प्रथम श्रेणी और तीसरे श्रेणी के बीच के अंतर को काफी हद तक कम किया।
फिर साल 1956 में लाल बहादुर शास्त्री जी ने एक रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेलवे के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और वे अपने इस्तीफे के फैसले पर अडिग रहे। फिर इसके बाद देश में हुए दूसरे लोकसभा चुनाव के दौरान जब कांग्रेस की सरकार बनी तब लालबहादुर शास्त्री को पहले परिवहन और संचार मंत्री के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई, हालांकि बाद उन्होंने वाणिज्य और उद्द्योग मंत्री का कार्यभार संभाला।
इसके बाद साल 1961 में गोविन्द वल्लभ पंत जी की मौत के बाद उन्हें गृह मंत्रालय की अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। गृह मंत्री रहते हुए भी लालबहादुर शास्त्री जी ने देश की सुरक्षा को लेकर बेहद सूझबूझ के साथ फैसले लिए। इस दौरान साल 1962 में जब भारत और चीन के बीच युद्ध चल रहा था, उस दौरान शास्त्री ने देश की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
देश के प्रधानमंत्री के रुप में –
साल 1964 में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी की आकस्मिक मौत के बाद पार्टी के कई दिग्गज नेताओं के द्धारा सर्वसम्मति से लालबहादुर जी को उनकी अद्भुत राजनैतिक क्षमता को देखते हुए उन्हें देश का प्रधानमंत्री चुना गया।
वहीं जिस दौरान उन्होंने देश के पीएम पद का कार्यकाल संभाला, उस दौरान हमारा देश विकट संकटों से जूझ रहा था। साल 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया था, इस दौरान लाल बहादुर शास्त्री ने देश का सकुशल नेतृत्व किया एवं अपनी सूझबूझ एवं कुशल नीतियों से देश में शांति व्यवस्था को बनाए रखा।
“जय जवान, जय किसान” का नारा –
लालबहादुर शास्त्री जी जब प्रधानमंत्री के रुप में देश की बागडोर संभाल रहे थे, उस दौरान खाने-पीने की चीजें भारत में आयात की जाती थी, तब देश नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए पूर्णत: निर्भर था।
भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ाई के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ गया, तब देश के हालात को देखते हुए उन्होंने सभी देशवासियों से एक दिन का व्रत रखने की अपील की और ऐसी हालत में उन्होंने ”जय जवान, जय किसान” का नारा दिया था, जो कि काफी लोकप्रिय हुआ था।
मृत्यु –
भारत और पाकिस्तान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए 1966 में जब लालबहादुर शास्त्री जी पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रुस की राजधानी ताशकंद में मिले। इस दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के कई अहम मुद्दों को लेकर हस्ताक्षर हुए।
वहीं उसी रात 11 जनवरी, 1966 को अचानक लाल बहादुर शास्त्री जी की रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई। कुछ लोग मानते हैं कि साजिश के तहत उनकी हत्या कर दी गई, तो कई लोग उन्हें जहर देकर मारने की बात करते हैं, जबकी कुछ लोग उनकी मौत की वजह हार्ट अटैक भी मानते हैं, हालांकि अभी तक लाल बहादुर शास्त्री जी की मौत के रहस्य का खुलासा नहीं हो सका है। बता दें कि उनके शव का पोस्टमार्टम भी नहीं किया गया था।
उनकी मौत के बारे में उनकी पत्नी ललिता जी ने अपनी पुस्तक ‘ललिता के आंसू’ में बेहद भावनात्मक व्याख्या की थी, इसके साथ ही उन्होंने अपने पति शास्त्री जी को जहर देकर मारने का दावा किया था। इसके साथ की उनके पुत्र ने भी उनकी मौत का रहस्य जानने की कोशिश की थी।
हालांकि, अभी भी शास्त्री जी की मौत एक रहस्य ही बनी हुई है। लाल बहादुर शास्त्री भारत के पहले प्रधानमंत्री है जिनकी मृत्यु समुद्र पार (विदेशी सरजमी) पर हुई। उनकी याद में विजय घाट का भी निर्माण किया गया।
उनकी मृत्यु के बाद गुलजारीलाल नंदा को तब तक भारत का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला जब तक की इंदिरा गांधी कांग्रेस पार्टी की बागडोर अपने हातो में नहीं ले लेती। लाल बहादुर शास्त्री एक सत्यवादी और अहिंसा के पुजारी थे। उनका ऐसा मानना था की,
“लोगो को सच्चा लोकतंत्र या स्वराज कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता।”
जीवन में कई लोग अपनी कठिन परिस्थितियों से घबराकर झूट बोलने लगते है और गलत रास्तो पर जाने लगते है। और अंत में उन्हें अपने किये पर पछतावा होने लगता है।
इसीलिए हमें जीवन में किसी भी परिस्थिती में हमेशा सच का साथ देना चाहिये। लाल बहादुर शास्त्री के अनुसार, सच वाला रास्ता लम्बा जरुर हो सकता है लेकिन वही रास्ता आपको जीवनभर का आनंद दे सकता है।
सादगी, निस्स्वार्थता, शालीनता, त्याग, उदारता, दृढ़ निश्चय जैसे आदर्शवादी शब्दों की एक ही व्यक्ति में व्यावहारिक परिणति का सर्वोत्तम उदाहरण शास्त्री जी में ही देखने में आया।
सम्मान और पुरस्कार –
भारत माता के सच्चे वीर सपूत एवं ईमानदार राजनेता लालबहादुर शास्त्री जी को उनके मरणोपरांत साल 1966 में देश के लिए उनके द्धारा दिए गए अभूतपूर्व योगदान के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।
इस तरह लाल बहादुर शास्त्री जी ने एक सच्चे देशभक्त, महान स्वतंत्रता सेनानी एवं एक कुशल, ईमानदार राजनेता के रुप में देश की सेवा की। इसके साथ ही उन्होंने देश को हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई।
लाल बहादुर शास्त्री जी जैसे महापुरुषों ने जन्म लेकर हम सभी देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया गया है और आज हम सभी भारतीय इन्हीं के त्याग, बलिदान और समर्पण की वजह से आजाद भारत में चैन की सांस ले रहे हैं। उनके द्धारा देश के लिए किए गए अद्धितीय योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
“हमारा रास्ता सीधा और बेहद स्पष्ट है। अपने भारत देश में सबके लिए स्वतंत्रता और संपन्नता के साथ समाजवादी लोकतंत्र की स्थापना और बाकी सभी देशों के साथ विश्व शांति और मित्रता का संबंध रखना।”
महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी एक नजर में
- 2 अक्टूबर, 1904 को उत्तरप्रदेश के मुगलसराय में जन्में लालबहादुर शास्त्री जी का बचपन बेहद संघर्षपूर्ण रहा, आर्थिक तंगी की वजह से वे नदी में तैरकर स्कूल जाते थे।
- लालबहादुर शास्त्री जी ने अपने नाम के आगे कभी जातिसूचक सरनेम नहीं लगाया, उन्होंने काशी विद्यापीठ से मिली शास्त्री की उपाधि को ही अपना उपनाम बनाया।
- लालबहादुर शास्त्री, गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे, उन्होंने गांधीवादी विचारधारा को अपनाकर, सच्चे देशभक्त एवं एक ईमानदार और निष्ठावान नेता के रुप में देश की सेवा की।
- देश को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्होंने उत्तरप्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में अपनी सेवाएं दी थीं।
- लालबहादुर शास्त्री जी ने ट्रेन की पहली श्रेणी और तृतीय श्रेणी में अंतर को काफी कम कर दिया अर्थात रेलवे में थर्ड क्लास शास्त्री जी की ही देन मानी जाती है।
- लालबहादुर शास्त्री जी ने ही परिवहन में महिलाओं के लिए आरक्षित सीट की शुरुआत की थी।
- देश की सेवा में समर्पित लालबहादुर शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल में हरित व दुग्ध क्रांति को बढ़ावा दिया।
- पुलिस विभाग में भीड़ को काबू करने के लिए लाठी चार्ज की बजाय पानी की बौछार का इस्तेमाल करना लालबहादुर शास्त्री जी ने ही शुरु किया था।
- शांत स्वभाव एवं दृढ़निश्चयी व्यक्तित्व वाले लाल बहादुर शास्त्री जी महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्म ”शहीद” को देखकर रो पड़े थे।
हमारे देश में हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के साथ शास्त्री जयंती भी मनाई जाती है। इस मौके पर लालबहादुर शास्त्री जी को देश के नागरिकों द्धारा सच्ची श्रद्धांजली अर्पित की जाती है एवं उनके द्धारा देश के लिए किए गए योगदान को याद किया जाता है।
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founder member LBS JANMSTHALI SEVA NYAS
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Mahan purusho ki jivni
Dhanyavaad
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