Konark Sun Temple History In Hindi
हिन्दू धर्म में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। ज्योतिष शास्त्र में सूर्यदेव को ग्रहों का राजा माना गया है। वेदों-पुराणों के मुताबिक सूर्य देव की आराधना से कुंडली के सभी दोष दूर होते हैं।
वहीं सभी देवताओं में सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं, जिनके साक्षात प्रत्यक्ष रुप से दर्शन होते हैं। इसके साथ ही सूर्य देवता की रोश्नी से ही जीवन संभव है। यही नहीं धरती पर सूर्य ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
वहीं वैदिक काल से ही सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जा रही है। वहीं कुछ बड़े राजाओं ने भी सूर्यदेव की आराधना की और कष्ट दूर होने एवं मनोकामनाएं पूर्ण होने पर सूर्यदेव के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रदर्शित करने के लिए कई सूर्य मंदिरों का निर्माण भी करवाया। वहीं उन्हीं में से एक है कोणार्क का सूर्य मंदिर।
जो कि अपनी भव्यता और अद्भुत बनावट के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है और देश के सबसे प्राचीनतम ऐतिहासिक धरोहरों में से एक हैं, तो आइए जानते हैं सूर्य भगवान को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास, वास्तुकला और इससे जुड़े कुछ रोचक और महत्वपूर्ण बातों के बारें में –
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास – Konark Sun Temple History In Hindi
कोणार्क का सूर्य मंदिर कहां स्थित है और किसने करवाया इस मंदिर का निर्माण – Konark Sun Temple Information
भारत का सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध सूर्य मंदिर ओड़िशा राज्य में पूरी जिले के कोणार्क कस्बे में स्थित है। सूर्य भगवान को समर्पित यह कोणार्क मंदिर उड़ीसा के पूर्वी तट पर बना हुआ है, जो कि अपनी भव्यता, और अद्भुत बनावट की वजह से मशहूर है।
यह मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इसे भगवान का रथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
कोणार्क शब्द कोण और अर्क से मिलकर बना है, जहां कोण का अर्थ कोना-किनारा एवं अर्क का अर्थ सूर्य से है। अर्थात सूर्य का कोना जिसे कोणार्क कहा जाता है। इसी तर्ज पर इस मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।
अपनी अद्भभुत खूबसूरती की वजह से कोणार्क सूर्य मंदिर को भारत के 7 आश्चर्यों में शामिल किया गया है। इस प्राचीन सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईसवी में पूर्वी गंगा राजवंश के प्रसिद्धि सम्राट नरसिम्हा देव ने करवाया था।
कोणार्क सूर्य मंदिर को गंगा राजवंश के प्रसिद्ध शासक राजा नरसिम्हादेव ने 1243-1255 ईसवी के बीच करीब 1200 मजदूरों की सहायता से बनवाया था। आपको बता दें कि इस विशाल मंदिर की नक्काशी करने और इसे सुंदर रुप देने में करीब 12 साल का लंबा समय लग गया था। हालांकि इस मंदिर के निर्माण के पीढे कई पौराणिक और धार्मिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर का इतिहास – Konark Sun Temple History
सूर्य भगवान को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर अपनी अनूठी कलाकृति औऱ भव्यता की वजह से यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल किया गया है।
इतिहासकारों के मुताबिक अफगान शासक मोहम्मद गौरी के शासनकाल में 13वीं शताब्दी में जब मुस्लिम शासकों ने भारत के उत्तरी पूर्वी राज्य एवं बंगाल के प्रांतों समेत कई राज्यों में जीत हासिल की थी, तब उस उमय तक कोई भी शासक इन ताकतवर मुस्लिम शासकों से मुकाबला करने के लिए आगे नहीं आया, तब हिन्दू शासन नष्ट होने की कगार पर पहुंच गया और ऐसी उम्मीद की जाने लगी कि उड़ीसा में भी हिन्दू सम्राज्य खत्म हो जाएगा।
वहीं इस स्थिति को भापते हुए गंगा राजवंश के शासक नरसिम्हादेव ने मुस्लिम शासकों से लड़ने का साहस भरा और उन्हें सबक सिखाने के लिए अपनी चतुर नीति से मुस्लिम शासकों के खिलाफ आक्रमण कर दिया।
वहीं उस दौरान दिल्ली के तल्ख पर सुल्तान इल्तुतमिश बैठा हुआ था, जिसकी मौत के बाद नसीरुद्दीन मोहम्मद को उत्तराधिकारी बनाया गया था और तुगान खान को बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद 1243 ईसवी में नरसिम्हा देव प्रथम और तुगान खान के बीच काफी बड़ी लड़ाई हुई।
इस लड़ाई में नरसिम्हा देव ने मुस्लिम सेना को बुरी तरह खदेड़ कर जीत हासिल की। आपको बता दें कि नरसिम्हा देव सूर्य देव के बहुत बड़े उपासक थे, इसलिए उन्होंने अपनी जीत की खुशी में सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर बनाने का फैसला लिया।
इस विश्व प्रसिद्ध कोर्णाक सूर्य मंदिर का आकार भगवान एक भव्य और विशाल रथ की तरह है, जिसमें 24 रथ के चक्के और 6 घोड़े नेतृत्व करते दिख रहे हैं। ओड़िशा में स्थित यह सूर्य मंदिर देखने में बेहद सुंदर और भव्य लगता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक धार्मिक कथाएं – Konark Sun Temple Story
उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का अदभुत नमूना कोणार्क सूर्य मंदिर से कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुईं हैं। एक प्रचलित धार्मिक कथा के मुताबिक – भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्बा ने एक बार नारद मुनि के साथ बेहद अभद्रता के साथ बुरा बर्ताव किया था, जिसकी वजह से उन्हें नारद जी ने कुष्ठ रोग ( कोढ़ रोग) होने का श्राप दे दिया था।
वहीं इस श्राप से बचने के लिए ऋषि कटक ने नारद मुनि के सूर्यदेव की कठोर तपस्या और आराधना करने की सलाह दी थी। जिसके बाद श्री कृष्ण के पुक्ष सांबा ने चंद्रभागा नदी के तट पर मित्रवन के पास करीब 12 सालों तक कष्ट निवारण देव सूर्य का कठोर तप किया था।
वहीं इसके बाद एक दिन जब सांबा चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें पानी में भगवान सूर्य देव की एक मूर्ति मिली, जिसके बाद उन्होंने इस मूर्ति को इसी स्थान पर स्थापित कर दिया, जहां पर आज यह विश्व प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर बना हुआ।
इस तरह सांबा को सूर्य देव की कठोर आराधना करने के बाद श्राप से मुक्ति मिली और उनका रोग बिल्कुल ठीक हो गया, तभी से इस मंदिर का बेहद महत्व है। इस मंदिर से करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है, यही वजह है कि इस मंदिर के दर्शन करने बहुत दूर-दूर से भक्तगढ़ आते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर की अद्धभुत वास्तुकला – Konark Sun Temple Architecture
कोणार्क का सूर्य मंदिर उड़ीसा के मध्ययुगीन वास्तुकला का एक सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इस मंदिर को कलिंग वास्तुकला की उपलब्धि का सर्वोच्च बिंदु माना जाता है क्योंकि इस प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर की वास्तुकला काफी हद तक कलिंगा मंदिर की वास्तुकला से मिलती-जुलती है।
उड़ीसा के पूर्वी समुद्र तट पुरी के पास स्थित इस कोणार्क सूर्य मंदिर की संरचना और इसके पत्थरों से बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में हैं, जो इस मंदिर की अन्य विशेषताओं को बेहद शानदार ढंग से दर्शाती हैं।
एक विशाल रथ के आकार में बने कोणार्क सूर्य मंदिर में करीब 12 जोड़े विशाल पहिए लगे हुए हैं, जिसे करीब 7 ताकतवर घोड़े खीचतें प्रतीत होते हैं। वहीं यह पहिए धूप-घड़ी का काम करते हैं और इनकी छाया से समय का अनुमान लगाया जाता है।
आपको बता दें कि इस मंदिर के 7 घोड़े हफ्ते के सभी सातों दिनों के प्रतीक माने जाते हैं, जबकि 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटों को प्रदर्शित करते हैं। इसके साथ ही इनमें लगीं 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर को दर्शाती हैं।
काले ग्रेनाइट और लाल बलुआ पत्थर से बना यह एकमात्र ऐसा सूर्यमंदिर है, जो कि इसकी खास बनावट और भव्यता के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। इस अद्भुत मंदिर के निर्माण में कई कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।
इस सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में बनी तीन-अलग-अलग मूर्तियां भी बनी हुईं हैं, जिन्हें उदित सूर्य, मध्यांह सूर्य और अस्त सूर्य भी कहा जाता है।
इस मंदिर को इसकी खूबसूरत कलाकृति और अनूठी वास्तुशिल्प के लिए यूनेस्को (UNESCO) की वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में शुमार किया गया है। कोणार्क सूर्य मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार पर शेरों द्वारा हाथियों के विनाश का दृश्य अंकित है, जिसमें शेर घमंड, अहंकार और हाथी धन का प्रतीक माना जाता है।
ओड़िशा में स्थित इस सूर्य मंदिर से लाखों लोगों की धार्मिक आस्था भी जुड़ी है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन महज से शरीर से जुड़े सभी दुख-दर्द दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
वहीं इस भव्य सूर्य मंदिर की अद्भुत कलाकृति और वास्तुशिल्प को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। वहीं इस मंदिर को ब्लैक पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल इस भव्य मंदिर का ऊंचा टॉवर काला दिखाई देता है।
कोणार्क सूर्य मंदिर तक कैसे पहुंचे – How to Reach Konark Sun Temple
ओड़िसा राज्य में बने इस भव्य कोणार्क सूर्य मंदिर में जाने का सबसे बेहतर समय फरवरी से अक्टूबर तक माना जाता है, क्योंकि इस समय मौसम अच्छा रहता है। इस मंदिर के दर्शन के लिए ट्रेन, बस और हवाई जहाज तीनों साधनों द्धारा पहुंचा जा सकता है।
कोणार्क के सबसे पास भुवनेश्वर एयरपोर्ट है, जहां के लिए दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता समेत देश के कई बड़े शहरों से नियमित फ्लाइट उड़ती हैं। एयरपोर्ट से कोणार्क तक टैक्सी या बस के द्धारा पहुंचा जा सकता है।
वहीं अगर पर्यटक रेल माध्यम से जा रहे हैं तो कोणार्क के सबसे पास भुवनेश्वर और पुरी रेलवे स्टेशन हैं। भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से कोणार्क की दूरी 65 किलोमीटर और पुरी की दूरी 35 किलोमीटर है। जहां पर टैक्सी या फिर बस के माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है।
वहीं कोणार्क के लिए पुरी और भुवनेश्वर से नियमित रुप से कई डीलक्स और अच्छी बसें चलती हैं। इसके अलावा कुछ निजी पर्यटक बसें और टैक्सी भी चलती हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर के धार्मिक महत्व और खूबसूरत बनावट की वजह से इसे देखने यहां न सिर्फ देश से बल्कि विदेशों से भी लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं और इस भव्य मंदिर की खूबसूरत कलाकृति का आनंद लेते हैं और तमाम तरह के कष्टों से मुक्ति पाते हैं।
आइये कोणार्क मंदिर की कुछ रोचक बातो के बारे में जानते है – Facts About Konark Temple
1. रथ के आकार का निर्माणकार्य-
कोणार्क मंदिर का निर्माण रथ के आकार में किया गया है जिसके कुल 24 पहिये है। रथ के एक पहिये का डायमीटर 10 फ़ीट का है और रथ पर 7 घोड़े भी है।
2. यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट
आश्चर्यचकित प्राचीन निर्माण कला का अद्भुत कोणार्क मंदिर यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में शामिल है। ये सम्मान पाने वाला ओडिशा राज्य का वह अकेला मंदिर है।
3. नश्वरता की शिक्षा –
कोणार्क मंदिर के प्रवेश भाग पर ही दो बड़े शेर बनाये गए है। जिसमे हर एक शेर को हाथी का विनाश करते हुए बताया गया है। और इंसानी शरीर के अंदर भी एक हाथी ही होता है। उस दृश्य में शेर गर्व का और हाथी पैसो का प्रतिनिधित्व कर रहे है। इंसानो की बहोत सी समस्याओ को उस एक दृअह्य में ही बताया गया है।
4. सूर्य भगवान को समर्पित –
मंदिर में सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। मंदिर का आकार एक विशाल रथ की तरह है और यह मंदिर अपनी विशेष कलाकृति और मंदिर निर्माण में हुए कीमती धातुओ के उपयोग के लिये जाना जाता है।
5. मंदिर के रथ के पहिये धुपघडी का काम करते है और सही समय बताते है
इस मंदिर का मुख्य आकर्षन रथ में बने 12 पहियो की जोड़ी है। ये पहिये को साधारण पहिये नही है क्योकि ये पहिये हमें सही समय बताते है, उन पहियो को धूपघड़ी भी कहा गया है। कोई भी इंसान पहियो की परछाई से ही सही समय का अंदाज़ा लगा सकता है।
6. निर्माण के पीछे का विज्ञान
मंदिर में ऊपरी भाग में एक भारी चुंबक लगाया गया है और मंदिर के हर दो पत्थरो पर लोहे की प्लेट भी लगी है। चुंबक को इस कदर मंदिर में लगाया गया है की वे हवा में ही फिरते रहते है। इस तरह का निर्माणकार्य भी लोगो के आकर्षण का मुख्य कारण है, लोग बड़ी दूर से यह देखने आते है।
7. काला पगोडा –
कोणार्क मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया जाना था लेकिन समंदर धीरे-धीरे कम होता गया और मंदिर भी समंदर के किनारे से थोडा दूर हो गया। और मंदिर के गहरे रंग के लिये इसे काला पगोडा कहा जाता है और नकारात्मक ऊर्जा को कम करने के लिये ओडिशा में इसका प्रयोग किया जाता है।
8. वसृशिल्पीय आश्चर्य-
कोणार्क मंदिर का हर एक टुकड़ा अपनेआप में ही विशेष है और लोगो को आकर्षित करता है। इसीलिये कोणार्क सूर्य मंदिर भारत के सात आश्चर्यो में से एक है।
9. किनारो पर किया गया निर्देशन-
हर दिन सुबह सूरज की पहली किरण नाट्य मंदिर से होकर मंदिर के मध्य भाग पर आती है। उपनिवेश के समय ब्रिटिशो ने चुम्बकीय धातु हासिल करने क्व लिये चुंबक निकाल दिया था।
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Isme Ab puja nhi ki jati kyuki is mandir me Ek 12 saal k bache ki moth Ho gyi rhi jisne akele us magnet ko rakha tha is magnet ko 1200 logo me Se koi nhi rash paya parantu us 12 saal k ladke ne rakh di
no ur thinking is worng
Thanks Sir itni achhi jankari ke liye
etni achchi jankari dene kelie aap ka bhut bhut dhanvad.
बहुत खूबसूरत जानकारी।।।।
। धन्यवाद।।।
धन्यवाद् सर,आपने कोणार्क मंदीर के बारेमें अच्छी जानकारी दी. इसके बारेमें और भी कुछ रोचक बातें होंगी तो आप अपने आर्टिकल में कृपया लिखे
Vaishanvi Ji,
हमारे पास जैसे-जैसे कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में जानकारी आती रहेंगी… हम आर्टिकल में लिखते जायेंगे…
आपका धन्यवाद्….
main 30-3-2017 ko konark mandir gaya tha lekin vaha par guide ne bhi itni achchi jankari nahi di jisse mujhe mandir ko thik se dekhne nahi mila…. mera aapse nivedan hai ki odisa govt. ki taraf se ye vayvastha kare ki jo bho turism vaha jaye to unhe mandir ko practicaly dekhane ko mile sahi jankari ke sath
………………………thank for bettar information
Sir aap odisha me janeke baad aap bus me safar karke konark mandir gaye honge aur aapko guide ne time diya hoga ki aap i1hr me ghumna he isliye aap kuchh chize samajh me nehi aya hoga….aap kuchh pabitra sthal par bhi nehi gye honge…bohatsi jankari hamare guide sahab ko bhi maalom nehi hoga sir….