Kamaladevi Chattopadhyay
देश को आजादी दिलाने के लिए केवल पुरुष ही आगे नहीं थे बल्की साथ देने के लिए महिलाये भी आगे आयी थी। उन्होंने भी देश को आजाद करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। एक ऐसी ही महिला उस समय देश को आजाद करने के लिए अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश कर रही थी। वे एक ऐसी महिला थी जिन्होंने उस समय जो काम किया उसे करना किसी भी महिला के लिए नामुमकिन जैसा ही था। उस क्रांतिकारी महिला का नाम कमलादेवी चट्टोपाध्याय – Kamaladevi Chattopadhyay था।
कमलादेवी एक ऐसी क्रांतिकारी थी जो देश की ऐसी पहली महिला थी जिन्हें किसी विधानसभा कार्यालय में काम करने का सम्मान मिला था। कमलादेवी से जुडी और भी कुछ खास बाते है जो निचे पुरे विस्तार में बताई गयी है उन्हें जानने के लिए जानकारी को आखिर तक पढ़े।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय का जीवन परिचय – Kamaladevi Chattopadhyay
कमलादेवी चट्टोपाध्याय बहुत ही अद्भुत महिला थी क्यों की वे एक साथ कई तरह की भूमिका निभाती थी। वे एक क्रांतिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, अभिनेत्री और राजनीतिज्ञ थी।
कमलादेवीजी का जन्म 3 अप्रैल 1903 को हुआ था। उन्होंने देश में हस्तशिल्प के विकास के लिए जो योगदान दिया था वह काफी महत्वपूर्ण था। उनके पिताजी मंगलोर के जिलाधिकारी थे और उनकी माताजी कर्नाटक के एक आमिर परिवार से थी।
वे एक अच्छे और आमिर परिवार से होने की वजह से उन्हें कई सारे क्रांतिकारियों से मिलने का मौका मिलता था। महादेव गोविन्द रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, एनी बेजंट जैसे क्रांतिकारी उनके पिताजी के अच्छे मित्र थे और वे अक्सर उनसे मिलने घर पर आते थे।
इसीलिए कमलादेवी चट्टोपाध्याय इन क्रांतिकारियों से बार बार मिलती थी। इन सभी क्रांतिकारियों के कारण कमलादेवी काफी प्रभावित हुई थी और इसीके चलते उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन में हिस्सा भी लिया था।
जब वे 14 साल की थी तब उनकी शादी हो गयी थी लेकिन उसके दो साल बाद ही वे विधवा हो गयी थी और उस समय वे स्कूल में ही पढ़ रही थी। लेकिन इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी उन्होंने अभिनय करने का फैसला किया था जो की उस समय महिलाओं के लिए नामुनासिब समझा जाता था।
कुछ समय गुजरने के बाद उनकी सन 1920 में महान कवयित्री सरोजिनी नायडू के भाई के साथ शादी हो गयी थी। हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय भी कवी और नाटककार थे। उसके बाद उन्होंने दो मूक फिल्मो में काम किया।
उसके बाद वे पति के साथ लन्दन चली गयी और वहापर उन्होंने बेडफ़ोर्ड कॉलेज में समाजशास्त्र की पढाई की। लेकिन जब भारत में असहकार आन्दोलन शुरू हो गया तो वे इस आन्दोलन में हिस्सा लेने के लिए सन 1923 में भारत में वापस आ गए थे। देश के गरीब और असहाय लोगो का कल्याण करने के लिए वे सेवा दल के साथ काम करने लगी थी।
1926 के मद्रास विधानसभा चुनाव में वे खड़ी थी लेकिन वे इस चुनाव में केवल 200 वोट से हार गयी थी। सन 1936 में कमलादेवी चट्टोपाध्याय कांग्रेस समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष बन गयी थी उस समय उन्हें जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और मीनू मसानी के साथ काम करने का मौका मिला था। जिस समय दूसरा विश्व युद्धशुरू हुआ था उस वक्त कमलादेवी इंग्लैंड में थी और उस समय उन्होंने कई देशो में जाकर भारत की आजादी के लिए उनका समर्थन पाने की कोशिश की।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय पुरस्कार और सम्मान – Kamaladevi Chattopadhyay Awards
भारत सरकार की तरफ़ से कमलादेवी को 1955 में पद्म भूषण, 1987 में पद्म विभूषण जैसे भारत के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा गया। सामुदायिक नेतृत्व करने के लिए उन्हें सन 1966 में रेमैन मेगसेसे पुरस्कार से भी नवाजा गया था। सन 1974 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें रत्न सदस्य पुरस्कार भी मिला था।
सन 1977 में यूनेस्को द्वारा भी उन्हें हस्तशिल्प के विकास में योगदान देने के लिए सम्मानित किया गया था। शान्तिनिकेतन के सर्वोच्च सम्मान ‘देसिकोत्तामा’ से भी उन्हें सम्मानित किया गया था।
3 अप्रैल 2018 को उनके 115 वी जन्मदिवस के अवसर पर गूगल ने भी उन्हें डूडल बनाकर सम्मानित किया था।
कमलादेवी चट्टोपाध्याय द्वारा लिखी गयी क़िताबे – Kamaladevi Chattopadhyay Books
- आतंरिक अवकाश, बाहरी खुली जगह: संस्मरण (1986)
- भारतीय हस्तशिल्प का गौरवशाली इतिहास (1976)
- आजादी के लिए भारतीय महिलाओ का संघर्ष (1982)
- भारत की क्राफ्ट परंपरा (1980)
- भारत की जनजातियता (1978)
- भारतीय कढाई (1977)
कमलादेवी ने देश की आजादी में जो योगदान दिया था वह काफी महत्वपूर्ण था। वे बचपन से एक क्रांतिकारी बनने के रास्ते पर अग्रसर थी। उनका स्वभाव बचपन से ही किसी विद्रोही जैसा था। वे बचपन से ही सभी को सवाल पूछा करती थी। जो उन्हें गलत लगा उसके खिलाफ आवाज उठाती थी। उनके इसी बात के कारण वह आगे चलकर एक क्रांतिकारी बन सकी। साथ ही उनके घर में उस समय के कई सारे क्रांतिकारी आते थे।
इसीलिए कमलादेवी की उन क्रांतिकारियों के साथ हमेशा मुलाकात होती रहती थी। जब वे बड़ी हुई थी, तो उस वक्त उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में ध्यान केन्द्रित करना शुरू कर दिया था। उन्होंने हस्तशिल्प के विकास में जो काम किया था वह भी काफी महत्वपूर्ण था।
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