Kalidas Ke Dohe
कालिदास जी साहित्य के एक महान विद्धान कवि थे, जिन्होंने अपने ज्ञान के सागर से कई अद्भुत और बेमिसाल रचनाएं की। प्रतिभाशाली कवि कालिदास जी ने अपने नाटकों, गीतकाव्यों, महाकाव्यों की उत्कृष्ट रचना कर विश्व साहित्य में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
कालिदास एक महान कवि और नाटककार ही नहीं, बल्कि वे संस्कृत भाषा के प्रकंड विद्दान भी थे। कालिदास जी ने अपनी दूरदर्शी और कल्याणकारी सोच एवं महान विचारों के बदौलत कई ऐसे दोहों की रचनाएं भी की हैं, जिससे उनकी गिनती दुनिया के सर्वोत्तम कवियों में होती है।
उन्होंने अपनी रचनाओं में बेहद सृजनात्मक और भावनात्मक तरीके से श्रंगार रस का इस्तेमाल किया है एवं संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग रहा, संगीत के माध्यम से उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकाश डाला।
विलक्षण प्रतिभा के महाकवि कालिदास जी ने अपनी रचनाओं में बेहद सरल और मधुर भाषा का इस्तेमाल किया है, जिससे उनकी रचनाएं हर किसी को आसानी से समझ आ सकें।
इसके अलावा उन्होंने अपनी रचनाओं में ऋतुओं का भी बेहद खूबसूरत तरीके से वर्णन किया। कालिदास जी की प्रसिद्ध रचनाएं मेघदूत, कुमारसंभव, रघुवंश, श्रतुसंहारा और मशहूर नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय हैं।
इन कृतियों की वजह से ही उन्हें हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त है और उनकी लोकप्रियता पूरी दुनिया में आज भी है।
कालिदास जी के दोहों में उनकी महान सोच, उत्तम विचार और दूरदर्शिता साफ दिखती है। इसके साथ ही वे अपने दोहे और रचनाओं में साहित्यिक सौंदर्य के साथ-साथ आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का भी विशेष ख्याल रखते थे। वहीं अगर कोई भी व्यक्ति उनके दोहों और विचारों को वास्तव में अपनी जिंदगी में अमल कर ले वह निश्चय ही एक सफल व्यक्ति बन सकता है।
उन्होंने अपनी महान रचनाओं और दोहों के माध्यम से मनुष्य को सच्चाई के रास्ते पर चलने की सीख दी है। वहीं आज हम इस पोस्ट में महाकवि कालिदास जी के कुछ प्रसिद्ध दोहों के बारे में बताएंगे।
महाकवि कालिदास जी के दोहे – Kalidas Ke Dohe
जिन्हें आप कालिदास जी के इन दोहों को सोशल मीडिया साइट्स फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सऐप, ट्वीटर आदि पर अपने परिवार वालों, दोस्तों और करीबियों के साथ शेयर कर सकते हैं और इन दोहों के माध्यम से लोगों को सही दिशा में जीवन जीने की प्रेरणा दे सकते हैं।
इसके साथ ही आपको यह बता दें कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में महाकवि कालिदास जी को मां काली का परम और सच्चा उपासक बताया गया है। ऐसा माना जाता है, कालिदास जी का नाम मां काली के नाम पर ही रखा गया है, जिसका अर्थ है – ‘काली की सेवा करने वाला’।
वहीं हिन्दी साहित्य में अभी तक जितने भी कवि हुए हैं, उनमें से कालीदास जी अद्धितीय थे। महाकवि कालिदास जी के अद्भुत साहित्यिक ज्ञान से राजा विक्रमादित्य भी बेहद प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने कवि कालिदास जी को अपने दरबार में विशिष्ट स्थान दिया, कालिदास जी उनके दरबार के नौ रत्नों में से एक थे।
महाकवि कालीदास जी ने अपने दोहों के माध्यम से मनुष्य को न सिर्फ सफलता का उत्तम मंत्र बताया है, बल्कि सही रास्ते पर चलने एवं सच्चे गुणों की पहचान करवाई है।
कालिदास जी के मशहूर दोहे – Kalidas Ke Dohe in Hindi
1. इस दोहे में महाकवि कालिदास जी ने सज्जन पुरुष की विशेषता बताते हुए कहा है कि –
“सज्जन पुरुष ऐसे होते हैं जो दूसरों की उम्मीदों को ठीक उसी तरह से बिना कुछ कहे ही पूरा कर देते हैं, जैसे की सूर्य हर घर में अपना प्रकाश फैला देता है।”
2. महाकवि कालिदास जी अपने इस दोहे में कहते हैं कि –
“सूर्योदय होते समय जैसे सूर्य लालिमायुक्त होता है, ठीक उसी तरह सूर्यास्त के समय भी सूर्य उतना ही लाल होता है, वैसे ही एक महान और धैर्यवान पुरुष अपने सुख-दुख दोनों परिस्थितियों में एक समान रहता है।”
3. जिन लोगों को काफी मेहनत करने के बाद भी सफलता हाथ नहीं लगती ऐसे लोगों ने कवि कालिदास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से कहा है कि –
“अगर किसी काम को करने के बाद आप संतुष्ट होते हैं, और आपको इसका अच्छा परिणाम मिलता है, तो निश्चय ही उस परिश्रम की थकान याद नहीं रहती है।”
4. जो मनुष्य जानते हुए भी अपनी बुरी आदतों को नहीं छोड़ते और दूसरे के साथ गलत करते हैं और दोषयुक्त होते हैं, उन्हें कालिदास जी के इस दोहे से शिक्षा लेनी चाहिए –
“किसी भी व्यक्ति का अवगुण नाव की पेंदी में एक छेद की तरह होता है, जो चाहे छोटा हो अथवा बड़ा हो नाव को डुबो ही देता है, ठीक उसी तरह किसी भी बुरे व्यक्ति की बुराइयां उसे खत्म कर देती हैं।”
5. महाकवि कालिदास जी ने अपने इस दोहे में कहा है कि –
“पृथ्वी पर तीन अनमोल रत्न जल, अन्न और सुभाषित है, लेकिन जो अज्ञानी पत्थरों के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।”
6. जो लोग सिर्फ दान-पुण्य करते हैं और अपने माता-पिता की सेवा नहीं करते एवं उनका अनादर करते हैं, ऐसे लोगों को कवि कालिदास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से शिक्षा देते हुए कहा है कि –
“दान-पुण्य सिर्फ परलोक में ही सुख देता है जबकि एक योग्य संतान की सेवा से लोक और परलोक दोनों में ही परम सुख की प्राप्ति होती है।”
7. महाकवि कालिदास जी ने अपने इस दोहे में उन लोगों को सीख दी हैं जो दूसरों में बुराईयों को ही ढूढंते रहते हैं, उन्होंने कहा है कि –
“कोई भी वस्तु पुरानी हो जाने पर अच्छी नहीं हो जाती और न ही कोई काव्य नया होने से बेकार हो जाता है, वहीं व्यक्ति के अच्छे गुणों और स्वभाव से ही उसके अच्छे या बुरे की पहचान होती है, अर्थात गुणी व्यक्ति ही हर जगह आदर-सम्मान पाता है।”
8. महाकवि कालिदास ने एक सच्चे और धीरपुरुष के गुणों को इस दोहे के माध्यम से बताया है, उन्होंने कहा कि –
“एक सच्चा और धैर्यवान पुरुष वही होता है, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी पूरे साहस के साथ धैर्य से काम लेता है और अपने मार्ग से विचलित नहीं होता है।”
आशा करते है की आपको कालिदास के दोहे / Kalidas Ke Dohe पसंद आये होंगे… और भी दोहे है इसे भी जरुर पढ़े:
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