देश पहली महिला ग्रेजुएट और महिला फिजीशियन “कादम्बिनी गांगुली”

Kadambini Ganguly

उस दौर में जब महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की अनुमति नहीं थी और महिलाओं के लिए शिक्षा प्राप्त करना एक सपना हुआ करता था। महिलाएं तो क्या पुरुष भी उस जमाने में ग्रेजुएट की पढ़ाई कर लें तो बहुत बड़ी बात हुआ करती थी, बहुत कम ही पुरुष ऐसे होते थे, जिन्होंने अपनी ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की हो और उस समय समाज भी लड़कियों की शिक्षा के एकदम खिलाफ था।

ऐसे में समाज का काफी विरोध झेलकर, तमाम चुनौतियों का सामना करने के बाद कादिम्बनी गांगुली – Kadambini Ganguly ने अपने लक्ष्य को हासिल कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया और महिलाओं को एक नई दिशा प्रदान की।

Kadambini ganguly

भारत से बनी पहली महिला ग्रेजुएट और महिला फिजीशियन “कादम्बिनी गांगुली” – Kadambini Ganguly

कादम्बिनी गांगुली जी का जन्म 18 जुलाई, 1861 में बिहार के भागलपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम बृजकिशोर बसु था। जो एक ब्रह्मो सुधारक और हेडमास्टर थे। उनके पिता ने 1863 में, भागलपुर महिला समिति बनाई, जो कि भारत का पहला महिला संगठन भी कहलाया।

वह महिलाओं को शिक्षा देने और उनको आगे बढ़ाने में यकीन रखते थे, यही वजह है कि उन्होंने उस दौर अपनी बेटी कादम्बिनी को पढ़ने के लिए प्रेरित किया, वहीं जब पूरा समाज बेटियों के शिक्षा के खिलाफ था। हालांकि, कादम्बिनी भी बचपन से ही पढ़ने में बहुत होशियार थी, और अपने पिता के सहयोग से ही वे अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो सकी।

हालांकि कादम्बिनी गांगुली ने अपने नाम रिकॉर्ड दर्ज करना तो पहले से ही शुरू कर दिया था। लिहाज़ा, उन्होंने साल 1882 में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने मेडिकल साइंस पढ़ने का मन बनाया और फिर कोलकाता मेडिकल कॉलेज में भी एडमिशन के लिए अर्जी दाखिल की, जिसमें इनका सेलेक्शन हो गया, जो कि उस समय देश के लिए बहुत बड़ी खबर थी, क्योंकि पहली बार किसी लड़की ने मेडिकल साइंस की पढ़ाई शुरु की थी।

वहीं जब पहली बार मेडिकल कॉलेज में पहुंची तो पूरे देश में इसकी चर्चा शुरु हो गई। यहां तक की मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर यह कहने लगे कि एक लड़की की मौजदूगी में भला वे कैसे शरीर क्रिया विज्ञान पढ़ाएंगे, लेकिन कादम्बिनी और उनके शिक्षक पिता ने इन सारे विरोधों को दरकि़नार कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए निरंतर आगे बढ़ते रहे। इस तरह साल 1886 में कादम्बिनी देश की महिला डॉक्टर बन गई।

हालांकि, उसी साल महाराष्ट्र की आनंदी बाई जोशी भी महिला डॉक्टर बनने में कामयाब हुईं थी। पुणे में जन्मी आनंदी बाई जोशी ऐसी पहली महिला थी जिन्होंने डॉक्टरी की डिग्री ली थी।

जिस दौर में महिलाओं को चार दीवारों के अंदर कैद रखा जाता था और उनकी शिक्षा दूभर थी। ऐसे में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने आप में एक मिसाल है। लिहाजा, कादिम्बिनी गांगुली ग्रेजुएट होने के बाद भी अपनी पढ़ाई नहीं बंद की।

वे आगे की पढ़ाई के लिए यूरोप चली गईं। यूरोप से कादम्बिनी ने मेडिसिन और सर्जरी की तीन एडवांस और डिग्रियां ली। इसके साथ ही, वो उस दौर की सबसे पढ़ी – लिखी महिला भी बन चुकी थी।

उन्होंने शुरुआत में लेडी डफरिन हॉस्पिटल में काम किया, लेकिन कुछ दिनों तक काम करने के बाद वे प्राइवेट प्रैक्टिस करने लगी और इस तरह इतिहास में उनका नाम भारत समेत पहली दक्षिणी एशियाई महिला, जिसने यूरोप मेडिसिन में शिक्षा ली के रूप में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।

महज़ 21 साल की उम्र में कादम्बिनी की शादी, 39 साल के विधुर द्वारकानाथ गांगुली के साथ हुई। उनके पति भी ब्रह्मो समाज के एक्टिविस्ट थे, जिनका पहले भी एक विवाह हो चुका था और उनकी पहली शादी से 5 बच्चे भी थे। कादम्बिनी से शादी के बाद दोनों के तीन बच्चे हुए।

लेकिन कादम्बिनी ने हमेशा खुद को 8 बच्चों की मां कहा और मेडिकल प्रैक्टिस के साथ-साथ इन बच्चों का भी ख्याल रखा। लिहाज़ा, भारत की पहली वर्किंग मॉम बनने का खिताब भी कादम्बिनी गांगुली के नाम गया।

हालांकि, काद्मिबनी गांगुली ने अपने जीवन में कई सफलताएं हासिल की, लेकिन इसके बाबजूद भी उन्हें रूढ़िवादी समाज और कट्टरपंथी हिंदू लोगों की तुच्छ मानसिकता का शिकार होना पड़ा।

एक अच्छी मां, डॉक्टर के अलावा वह एक सोशल एक्टिविस्ट भी थी जिन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने के लिए कई काम किए। इसके अलावा,कादम्बिनी जी को कांग्रेस अधिवेशन में सबसे पहले भाषण देने वाली महिला का सम्मान भी प्राप्त है।

इस तरह उन्होंने समाज में ही नहीं बल्कि राजनीति समेत हर जगह महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर महिलाओं को आगे बढ़ने की नई दिशा दी।

इस सशक्त और बहादुर महिला ने 7 अक्टूबर, 1923 को अपनी आखिरी सांस ली और दुनिया छोड़कर हमेशा के लिए चली गईं।

वाकई में कादम्बिनी जी ने अपने जीवन का हर एक किरदार बेहद खूबसूरत तरीके से निभाया। उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को आगे बढ़ने की हिम्मत दी बल्कि उन्होंने रुढ़िवादियों की तुच्छ मानसिकता पर भी गहरा प्रहार किया। वे सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

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