संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe
जो लोग गुरुओं का आदर नहीं करते उन लोगों के लिए हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीरदास जी ने कहा है कि गुरु सर्वोपरि है इसलिए गुरु के आगे किसी अन्य की मत सुनो क्योंकि गुरु अपने शिष्य की हमेशा भलाई के लिए सोचता है।
दोहा–
गुरु मूरति आगे खड़ी,
दुतिया भेद कुछ नाहिं।
उन्हीं कूं परनाम करि,
सकल तिमिर मिटि जाहिं।।
दोहे का अर्थ-
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि अगर गुरु की मूर्ति आगे खड़ी है, उसमें दूसरा भेद कुछ मत मानो। उन्हीं की सेवा बंदगी करो, फिर सब अंधकार मिट जाएगा।
क्या सीख मिलती है-
महान संत कबीरदास जी के दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा अपने गुरुओं की बात पर यकीन करना चाहिए और उनकी सच्चे मन से सेवा करनी चाहिए क्योंकि एक गुरु ही है जो हमारे जीवन से अंधकार मिटाने में हमारी मद्द करता है।
संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe
जो लोग गुरु की सेवा नहीं करते हैं, उन लोगों के लिए कबीरदास जी ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –
दोहा –
ज्ञान समागम प्रेम सुख,
दया भक्ति विश्वास।
गुरु सेवा ते पाइए,
सद् गुरु चरण निवास।।
दोहे का अर्थ-
इस दोहे मे कबीरदास जी ने कहा है कि ज्ञान, सन्त- समागम, सबके प्रति प्रेम, निर्वासनिक सुख, दया, भक्ति सत्य-स्वरुप और सद् गुरु की शरण में निवास – ये सब गुरु की सेवा से ही मिलते हैं।
क्या सीख मिलती है-
कबीरदास जी के इस दोहे में हमें यह सीख मिलती है कि हमें सदैव अपने गुरु की सेवा करनी चाहिए क्योंकि गुरु की सेवा करने से ही हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe
इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु के गुणों के महत्व को समझाने की कोशिश की है –
दोहा–
सब धरती कागज करूँ,
लिखनी सब बनराय।
सात समुद्र की मसि करूँ,
गुरु गुण लिखा न जाय।।
दोहे का अर्थ-
सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
क्या सीख मिलती है-
इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें गुरु के गुण के महत्व को समझना चाहिए क्योंकि गुरु के सिखाए गए गुणों से ही इंसान अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है।
संत कबीर दोहा– Kabir ke Dohe
जो लोग यह सोचते हैं कि बड़े-बड़े शास्त्रों को पढ़कर वे ज्ञानी पुरुष बन जाएंगे तो ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है।
दोहा–
पंडित यदि पढि गुनि मुये,
गुरु बिना मिलै न ज्ञान।
ज्ञान बिना नहिं मुक्ति है,
सत्त शब्द परमान।।
दोहे का अर्थ – इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि बड़े-बड़े विद्धान शास्त्रों को पढ़-लिखकर ज्ञानी होने का दम भरते हैं, लेकिन गुरु के बिना उन्हें ज्ञान नही मिलता। ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं मिलती।
क्या सीख मिलती है-
हमें इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमे चाहे कितनी भी किताबी विद्या क्यों नहीं हासिल कर लें लेकिन गुरु के बिना हमारा ज्ञान अधूरा ही है क्योंकि गुरु ही हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में हमारी मद्द करता है।
निष्कर्ष-
इन दोहों के माध्यम से कबीरदास जी ने बेहद सुंदर ढंग से गुरु के महत्व को समझाया है जो कि वाकई प्रशंसनीय है। एक बेहतर भविष्य के निर्माण में गुरुओं की अहम भूमिका होती है। गुरु सिर्फ अपने शिष्य को ही नहीं सही दिशा दिखाते बल्कि एक सभ्य समाज का निर्माण भी करते हैं। इसलिए हम सभी को भी गुरुओं का सम्मान करना चाहिए।
और भी Kabir Ke Dohe हम जल्द ही लेकर आयेंगे… धन्यवाद
bahut hi useful aur life ko change karne wale dohe
I like all done . because kavir das inspire for good habit and we should love to god by hearylt
Very nice sir