संत कबीर दास के दोहे अर्थ सहित – Sant Kabir Ke Dohe

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

वर्तमान में कई लोग ऐसे भी हैं जो गुरु के महत्व को नहीं समझते और अंधकार में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसे लोगों को कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख देने की कोशिश की है और बताया है कि गुरु के ज्ञान से पैदाइश बुराई भी जड़ से खत्म हो जाती है।

दोहा–

कुमति कीच चेला भरा,

गुरु ज्ञान जल होय।

जनम – जनम का मोरचा,

पल में डारे धोया।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में महान संत कबीरदास जी कहते हैं कि कुबुद्धि रूपी कीचड़ से शिष्य भरा पड़ा है, जिसे धोने के लिए गुरु का ज्ञान जल है। वहीं गुरुदेव एक ही पल में जन्म – जन्मान्तरो की बुराई भी नष्ट करते जा रहे हैं।

क्या सीख मिलती है-

महान कवि तुलसीदास जी ने यह सीख दी है कि हम सभी के जीवन में गुरु का खास स्थान और अपना एक अलग महत्व है क्योंकि गुरु,अपने शिष्यों की जन्म-जम्नान्तरों की बुराई भी जड़ से खत्म कर देते  हैं और शिष्य को सफलता के पथ पर अग्रसर करते हैं।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

आजकल जैसे कि हम रोज खबरों में सुनते हैं जिस तरह गुरु-शिष्य का रिश्ता तार-तार हो रहा है अर्थात वर्तमान में गुरु-शिष्य का रिश्ता उतना पवित्र नहीं रह गया और न अब गुरु अपने शिष्य की भलाई के लिए उतनी मेहनत करना चाहता है, जिस तरह उसको अपने शिष्य के भविष्य को संवारने के लिए करनी चाहिए।

वहीं दूसरी तरफ शिष्य भी अपने गुरुओं की बात को नजरअंदाज कर रहे हैं जिससे उनमें ज्ञान की कमी रह जाती है और वह अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाते। फिलहाल कबीरदास जी ने अपने इस दोहे में ऐसे लोगों को बड़ी सीख देने की कोशिश की है और इस दोहे में उन्होंने बेहद सरल और सुंदर ढंग से गुरु-शिष्य की तुलना कुम्हार और घड़े से की है।

अर्थात जैसे कुम्हार मिट्टी के मथ-मथ कर घड़ा का आकार देते हैं वैसे ही एक गुरु भी अपने शिष्य को उसकी बुराईयों को दूर कर अच्छाइयों की तरफ ले जाता है।

दोहा–

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है,

गढ़ि – गढ़ि काढ़ै खोट।

अन्तर हाथ सहार दै,

बाहर बाहै चोट।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कवि कबीरदास जी गुरु-शिष्य की तुलना कुम्हार और घड़े से कर रह रहे हैं। इसमें कवि कह रहे हैं कि गुरु, एक कुम्हार की तरह है और शिष्य एक घड़े की तरह है, अर्थात जिस तरह से कुम्हार, घड़े में अंदर से हाथ का सहारा देकर और बाहर से चोट मारकर और गढ़ – गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकलते हैं।

और घड़े को एक सुंदर आकार देते हैं उसी तरह गुरु भी अपने शिष्यों की बुराइयों को दूर करते हैं और उन्हें अच्छाई के रास्ते पर चलना सिखाते हैं।

क्या सीख मिलती है-

कवि कबीरदास जी के इस दोहे से यह सीख मिलती है कि एक गुरु के लिए अपने शिष्य के भविष्य को संवारने के लिए उनकी बुराइयों को दूर करना बेहद जरूरी है।

संत कबीर दोहा – Kabir ke Dohe

इस दोहे में संत कबीरदास जी बेहद सुंदर ढंग से गुरु को दानवीर और शिष्य को याचक बताया है।

दोहा–

गुरु समान दाता नहीं,

याचक शीष समान।

तीन लोक की सम्पदा,

सो गुरु दीन्ही दान।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने गुरु-शिष्य के अनमोल रिश्ते की व्याख्या करते हुए बताया है कि गुरु के समान कोई देने वाला नहीं है अर्थात दाता नहीं हैं और शिष्य के सामान कोई लेने वाला नहीं है यानि कि याचक नहीं। इस दोहे में कवि ने कहा है कि गुरु ने त्रिलोक की सम्पत्ति से भी बढ़कर ज्ञान दिया है।

संत कबीर दोहे– Kabir ke Dohe

जो लोग गुरु से ज्ञान लेकर भूल जाते हैं अथवा उसका अनुसरण नहीं करते हैं या फिर लगातार अभ्यास नहीं करते हैं। ऐसे लोगों के लिए महान संत कबीर दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से बड़ी सीख दी है।

दोहा–

जो गुरु बसै बनारसी,

शीष समुन्दर तीर।

एक पलक बिखरे नहीं,

जो गुण होय शारीर।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने कहा है कि अगर गुरु वाराणसी में निवास करें और शिष्य समुद्र के पास हो, लेकिन शिष्य के शरीर में गुरु का गुण होगा, जो कि गुरु को एक पल भी नहीं भूलेगा।

क्या सीख मिलती है-

इस दोहे में महान संत कबीर दास जी ने यह सीख दी है कि हमें हमेशा गुरु के संपर्क में रहना चाहिए और उनसे ज्ञान लेते रहना चाहिए।

कबीर की साखियाँ – Kabir ki Sakhiyan

इस दोहे में कबीरदास जी ने गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया है। कबीरदास जी ने गुरु को ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों के समकक्ष बताया गया है। क्योंकि एक गुरु ही साधक की ज्ञानज्योति जगाता है और  शिष्य की आंख और दृष्टिक क्षमता भी बताता है।

दोहा–

गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः, गुरुर्देवो महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः।।

दोहे का अर्थ-

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि गुरू ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही भगवान शिव है। गुरु ही साक्षात परम ब्रहम है। ऐसे गुरु के चरणों में मैं प्रणाम करता हूँ।

क्या सीख मिलती है-

कबीरदास जी के इस दोहे से में हमें यह सीख मिलती है कि हमें गुरुओं के महत्व को समझना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए क्योंकि गुरु, हमारे जीवन के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

1
2
3
4

63 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here