राजमाता जीजाबाई का इतिहास | Jijabai History in Hindi

Jijabai History

जीजाबाई एक महान देशभक्त थी, जिनके रोम-रोम में देश प्रेम की भावना प्रज्जवलित थी। इसके अलावा वे भारत की वीर राष्ट्रमाता के रुप में भी मशहूर थी। क्योंकि उन्होंने अपने वीर पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज को ऐसे संस्कार दिए और उनके अंदर राष्ट्रभक्ति और नैतिक चरित्र के ऐसे बीजे बोए जिसके चलते छत्रपति शिवाजी महाराज आगे चलकर एक वीर, महान निर्भिक नेता, राष्ट्रभक्त कुशल प्रशासक बने।

राजमाता जीजाबाई का पूरा जीवन साहस, त्याग और बलिदान से परिपूर्ण रहा। भारत की वीर प्रसविनी माता जीजाबाई ने अपने जीवन में विपरीत परिस्थियों में भी तमाम तरह की कठिनाइयों का हिम्मत से और डटकर सामना किया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और धैर्य नहीं खोया और हमेशा अपने लक्ष्य को पाने के लिए आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने अपने पुत्र शिवाजी को भी समाज के कल्याण के प्रति समर्पित रहने की सीख दी।

इसके अलावा हिन्दू साम्राज्य को स्थापित करने में भी उनकी भूमिका काफी महत्वूपर्ण रही। वह जीजाई, जीजाऊ, राजमाता जीजाबाई के नाम से भी जानी जाती थी। चलिए जानते हैं भारत की इस महान और वीर राजामाता जीजाबाई के बारे में जिनसे हर किसी को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

Rajmata Jijabai History In Hindi

राजमाता जीजाबाई का इतिहास – Rajmata Jijabai History in Hindi

पूरा नाम (Name)जीजाबाई भोंसले
अन्य नाम (Other Name)‘जीजाई’, ‘जीजाऊ’, राजमाता जीजाबाई
जन्म(Rajmata Jijau Jayanti)12 जनवरी, 1598 ई.
जन्म भूमि (Birthplace)सिंधखेड़ राजा, बुलढ़ाणा ज़िला, महाराष्ट्र
पिता का नाम (Jijabai Father Name)लखोजीराव जाधव
पति का नाम (Spouse)छत्रपति शाहजीराजे भोंसले
संतान (Children)6 बेटियां और 2 बेटे
निधन (Death)17 जून 1674
(छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के महज 11 दिन बाद)

राजमाता जीजाबाई की जानकारी – Veermata Jijabai Information

सच्ची देशभक्त और भारत की वीर माता जीजाबाई (Veermata Jijabai) 12 जनवरी, 1598 को महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के पास निजामशाह के राज्य सिंधखेंड़ में जन्मी थी। उनके पिता का नाम लखुजी जाधवराव था, जो कि निजामशाह के दरबार में पंचहजारी सरदार थे। आपको बता दें कि वे निजाम के नजदीकी सरदारों में से एक थे। जीजाबाई की माता का नाम म्हालसा बाई था। जीजाबाई को बचपन में जीजाऊ नाम से पुकारा जाता था।

उस समय बाल विवाह की प्रथा थी, इसलिए जीजाबाई की भी शादी बेहद कम उम्र में हो गई थी। उनका विवाह शाहजी राजे भोसले के साथ हुआ था। शाहजी राजे भोसले बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह के दरबार में सैन्य दल के सेनापति और साहसी योद्दा थे। आपको बता दें कि जीजाबाई उनकी पहली पत्नी थी।

शादी के बाद जीजाबाई और शाहजी भोसले को 8 संताने हुईं, जिनमें से 6 बेटियां और 2 बेटे थे। उनमें से ही एक छत्रपति शिवाजी महाराज भी थे। जो कि जीजाबाई के मार्गदर्शन से आगे चलकर महान मराठा शासक बने, जिन्होंने मराठा स्वराज्य की नींव रखी थी।

एक वीर और आदर्श माता के रुप में जीजाबाई  – Jijabai and Shivaji Maharaj

अपनी दूरदर्शिता के लिए मशहूर जीजाबाई एक योद्धा और सशक्त प्रशासक ही नहीं थी, बल्कि वे एक वीर और आदर्श माता भी थी, जिन्होंने अपने पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज की ऐसी परिवरिश की और उनके अंदर ऐसे गुणों का संचार किया, जिसकी वजह से छत्रपति शिवाजी महाराज एक वीर, माहन, साहसी, निर्भीक योद्धा बने।

जीजाबाई ने हिन्दू धर्म के महाकाव्य रामायाण और महाभारत की कहानियां सुनाकर शिवाजी में वीरता, धर्मनिष्ठा, धैर्य और मर्यादा आदि गुणों का विकास अच्छे से किया, जिससे शिवाजी के बाल ह्रद्य पर स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित शुरु से ही हो गई थी।

इसके साथ ही अपनी देखरेख और मार्गदर्शन में उन्होंने शिवाजी में नैतिक संस्कारों का संचार किया। इसके अलावा उन्हें मानवीय रिश्तों की अहमियत समझाई, महिलाओं का मान-सम्मान करने की शिक्षा दी और उनके अंदर देश प्रेम की भावना जागृत की।

जिसके चलते उनके अंदर महाराष्ट्र की आजादी की प्रवल इच्छा जागृत हुई। यही नहीं वीरमाता जीजाबाई ने अपने वीर पुत्र शिवाजी महाराज से मातृभूमि, गौ, मानव जाति की रक्षा का संकल्प भी लिया। जीजाबाई ने शिवाजी महाराज को तलवारबाजी, भाला चलाने की कला, घुड़सवारी, आत्मरक्षा, युद्ध-कौशल की शिक्षा में निपुण बनाया।

जीजाबाई के दिए हुए इन संस्कारों की वजह से ही शिवाजी महाराज आगे चलकर समाज के संरक्षक और गौरव बने। और उन्होंने भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और एक स्वतंत्र और महान शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से मशहूर हुए।

वहीं शिवाजी भी अपनी सभी सफलताओं का श्रेय अपनी वीर माता जीजाबाई  को देते थे, जो उनके लिए प्रेरणास्रोत थी। जीजाबाई ने अपनी पूरी जिंदगी अपने बेटे को मराठा साम्राज्य का महानतम शासक बनाने पर लगा दी थी।

वीरमाता जीजाबाई का निधन – Jijabai Death

जीजाबाई एक बेहद प्रभावी और बुद्धिमान महिला थी जिन्होनें न सिर्फ मराठा साम्राज्य को स्थापित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई बल्कि मराठा सम्राज्य की नींव को मजबूती देने में भी अपना विशेष योगदान दिया और अपनी पूरी जिंदगी मराठा साम्राज्य की स्थापना के लिए समर्पित कर दी। वह सच्चे अर्थों में राष्ट्रमाता और ऐसी वीर नारी थी।

जिन्होंने अपने कौशल और प्रतिभा के दम पर अपने पुत्र को सूर्यवीर बना दिया। इस तरह उनका निधन शिवाजी के राज्याभिषेक के कुछ दिनों बाद ही 17 जून, 1674 ई. को हो गया। उनके बाद वीर शिवाजी ने मराठा साम्राज्य का विस्तार दिया।

वहीं वीर माता और राष्ट्रमाता के रूप में उन्हें आज भी याद किया जाता है। उनका जीवन सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, वहीं जीजाबाई की देशभक्ति और उनके शौर्य की जितनी भी तारीफ की जाए उतनी कम है।

भारत की ऐसी वीर और महान प्रसविनी राजमाता जीजाबाई को ज्ञानपंडित की टीम की तरफ से शत-शत नमन!

Read More:

Note: आपके पास About Rajmata Jijabai History in Hindi मैं और Information हैं। या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट और ईमेल मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे।

अगर आपको Life History Of Rajmata Jijabai History in Hindi Language अच्छी लगे तो जरुर हमें Whatsapp और Facebook पर Share कीजिये।
Note: E-MAIL subscription करे और पायें Essay with short Biography about Rajmata Jijabai and more new article. आपके ईमेल पर।

17 COMMENTS

  1. Shivaji Mahan ki wajahase hi Bharat ek sangh raha hai aisa warana hindustan ke tukade ho jate ,
    Francois gauitior ,French Historian inone kaha hai

  2. बहोत छोटी आर्टिकल है यह।
    जीजीबाई के शादी के वक़्त शहाजीराजे निजामशाही सरदार थे,आदिलशाही नही।

    • डॉ.अमित सर,

      आपका बहोत-बहोत धन्यवाद्.. अपने दी जानकारी पर थोडा अभ्यास करके इस लेख को अपडेट कर दिया जायेंगा, आपको लेख में और कुछ गलत लगे या आपके पास और अधिक जानकारी हैं जो इस लेख में होनी चाहिए तो हमें बताये, हम इस लेख में अपडेट कर देंगे.. हमसे जुड़ें रहें

      धन्यवाद्

    • जिजाऊ सृष्टी ( सिंदखेड राजा बुलडाणा जिला – महाराष्ट्र )

  3. Sab galat likha hai agar shivaji maharaj kurmi hote to unka rajyabhishek nahi hota aur tumhne agar itihas nahi pada to ek baar Maratha ka 96 Kuli Maratha ye ancestry cheque karlo

    • Bharat Sir,

      Hamane Ye Janakari Wikipedia Se Li Hai, Fir Bhi Kuch Information Galat Lage To Kripaya Bataye… Ham Usame Jarur Change Kar Dege, Kyoki Shivaji Maharaj Ka sahi itihas yaha likha hona chahiye. jisase nayi pidhi ko shivaji maharaj ke shurata ke bare me pata chale.. ho sakata hai ya kuch galatiya ho… aap sahayog kare to ham ise or sahi likh sikate hai.
      Hamne apake kahane par thoda internet par search kiya or Is lekh me thoda badalav kar diya hai. fir bhi agar apako kuch galat lage to bataye, ham ise update kar dege.

      Apaka Bahut Dhanyawad.

    • Kya aapko malum nahi ki ve Maratha kunbhi pariwar se hai Jo Maharashtra ka kurmi community hai aur kurmi hi original Kshatriya surwanshi hota hai

      • jahan tak meri samah hai kurmi ek kheti badi karne wali community hoti hai. Jyadatar madhya yugin ladai karne wali jatiyan kheti badi karne wali hi theen aur kab koi hathiyar uthakar kshatriya ho jata hai, itihaas mein kaha nahi ja sakta. Kyonki hatiyaar uthakar, apni veerata aur ikhshshakti se koi pahle chota raj banta hai, phir maharaja. Chunki use acceptance chahiye so voh apne aap ko kshatriya hi kahega. Surya vansh aur Chandra vansh, ye sab to vansh hain aur kis ko pata kaun kis vansh ka beta hai, kiska DNA kisme hai. Itihaas mein har chees hume maloom nahi hoti. Apna samman badhane ke liye hum in shabdon ka istemal karte hain ki hum is vansh ke hain, us vansh ke hain. Isliye karte hain, kyonki “ooparwale” jo hain voh “neechewalon” ko neech dihate hain, apamanit karte hain. Shivaji ko hum samman isliye nahi dete ki vo koi “vansh” ke the. Shivaji ko janta ne samman diya. Unhe samman unke guno ke liye, unki veerta ke liye, aur gareebon ke prati unke nyay ke liye diya jata hai. Aur ye bhi satya hai ki koi unki kamiyan nikalega to use log gali bakenge aur usi tarah dand denge jis tarah “oonche log”, neechelogon ko dete hain. Arthat dar aur bhay ki vajah se koi unke khilaf kuch nahi bolega.
        Ye sochna aur kahna sarwatha galat hai ki vo kish wansh ke the, kis vansh ke nahi.
        Ye satya prateet hota hai ki unki mata ko lagta tha ki mughal paraye hain aur unse hume satta vapas leni hai, isliye unhone apne bete ko veer, sahasi aur dimaagi banaya. Aisi mata bhagwaan har putra ko de. Shivaji ne bhi ek achche bete ki tarah vo sab kuch kiya jo unhe teek laga. Ab yahan par “vansh” kahan se ghus gaya?
        Kisi ka samman uske karyon ke liye kiya jana chahiye na ki vo kis vansh ka hai. Varna antar kya hai mughalo aur hinduon ya isaiyon mein?
        Main shivaji ka samman karta hoon, us samay aur kaal mein jisme ve the.
        Parantu main unki bahut se neetiyon aur karyon se asahmat bhi hoon.
        Mai is vichardhara se hi asahmat hoon. Kyonki yadi ye vichardhara hi chali to phie har vo vyakti to apne aap ko kisi ka gulam samajhta hai vo hathiyar uthayega aur phir vo hi hoga jo ab tak hota aaya hai.
        Samay ki maang hai ki hum vansh aur khandano se oopar uthein aur naya sochein.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here