Jalaram Bapa
जलाराम बापा को साधारणतः बापा के नाम से जाना जाता है और वे भारत के गुजरात में रहने वाले एक संत थे। उनका जन्म हिन्दू महोत्सव दिवाली के एक सप्ताह बाद 14 नवम्बर 1799 हुआ और इसीलिए उनके नाम को भगवान राम के साथ भी जोड़ा जाता है।
संत जलाराम बापा – Jalaram Bapa
जलाराम बापा का जन्म सन 1799 में भारत के गुजरात राज्य के राजकोट जिले के वीरपुर में कार्तिक माह के 17 वे दिन हुआ। उनके पिता का नाम प्रधान ठक्कर और माता का नाम राजबाई ठक्कर था। वे हिन्दू भगवान राम के भक्त थे।
जलाराम बापा को शुरू से ही सांसारिक जीवन में रूचि नही थी और इसीलिए वे पिता के व्यवसाय में ध्यान देने लगे। अपना ज्यादातर समय वे तीर्थयात्रीयो की सेवा करने और साधू-संतो की सेवा करने में ही व्यतीत करते थे। बाद में कुछ समय बाद वे अपने पिता के व्यवसाय से अलग होकर अपने अंकल वालजी भाई के साथ रहने लगे।
18 साल की उम्र में ही तीर्थयात्रा से वापिस आने के बाद जलाराम बापा फतेहपुर के भोज भगत के शिष्य बन गये और गुरु ने भी उन्हें शिष्य के रूप में अपना लिया।
जलाराम को उनके गुरु भोजल राम ने भगवान राम के नाम का “गुरु मंत्र” भी दे रखा था। अपने गुरु के आशीर्वाद से ही उन्होंने “सदाव्रत” नामक भोजन केंद्र की शुरुवात की, जहाँ सभी साधू-संतो और जरुरतमंद लोगो को भोजन मिलता था।
एक दिन, एक साधू उनके घर आया और उन्हें भगवान राम की मूर्ति भेट स्वरुप दी और पूर्वानुमान लगाया की हनुमान भी जल्द ही यहाँ विराजमान होंगे। जलाराम बाप ने अपने पारिवारिक देवता के रूप में भगवान राम की स्थापना की और कुछ दिनों बाद भगवान हनुमान की मूर्ति अपने आप जमीन से अवतरित हुई।
साथ ही भगवान राम के साथ सीता और उनके भाई लक्ष्मण की मूर्तियाँ भी जमीन से अवतरित होने लगी। जलाराम अपने घर में यह सब चमत्कार होता हुआ देख आश्चर्यचकित हो चुके थे। बाद में गाँव के दुसरे लोग भी यह चमत्कार देखने उनके घर जाने लगे।
एक बार गुणातीत स्वामी जूनागढ़ जाते समय रास्ते में वीरपुर में ही रुक गये जहाँ जलाराम बापा ने उनकी सेवा की। जलाराम बापा की इस सेवा से गुणातीत स्वामी काफी खुश हुए और उन्होंने जलाराम को आशीर्वाद दिया की भारत में उनके नाम को सदैव याद रखा जाएंगा और भविष्य में वीरपुर ग्राम एक तीर्थस्थल के रूप में पहचाना जाएंगा।
जल्द ही उनकी प्रसिद्धि दिव्य ज्योति के रूप में देश भर में फ़ैल गयी। इसके बाद जो भी वीरपुर आता, उसे बिना किसी भेदभाव के जलाराम द्वारा संचित (खाना खिलाना) किया जाता। वह परंपरा आज भी वीरपुर में बरकरार है।
एक बाद हरजी नाम का दर्जी जब गंभीर पेट के दर्द से जूझ रहा था, तो वह स्वयं जलाराम के पास आया और ठीक हो गया। जलाराम बापा ने जैसे ही भगवान से प्रार्थना की वैसे ही हरजी ठीक हो गया।
ऐसा होते ही वह जलाराम के पैरो पर गिर पड़ा और उसने जलाराम को बापा के नाम से पुकारा। तभी से उन्हें जलाराम बापा के नाम से जाना जाता है। तभी से उनकी प्रसिद्धि आग की तरह देशभर में फैलने लगी और लोग अपनी मुश्किलों का हल ढूंडने और परेशानियों को दूर करने के लिए भी उनके पास आते थे।
जलाराम बाप हमेशा भगवान राम को प्रार्थना करते और चमत्कार हो जाता था। हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग उनके शिष्य बन चुके थे।
सन 1822 में समृद्ध मुस्लिम व्यापारी का बेटा जमाल बीमार हो गया और डॉक्टर्स ने भी उसका ईलाज करने से मना कर दिया था। उसी समय, हरजी ने जमाल को उनके अनुभव के बारे में बताया। जमाल ने अपने घर से ही प्रार्थना की के यदि उसका बेटा ठीक हो जाता है तो वह 40 गेहू की बोरियां जलाराम बापा को सदाव्रत के लिए देंगा।
भगवान ने भी उसकी प्रार्थना सुन ली और उसका बेटा ठीक हो गया और फिर जमाल भी गेहू की बोरियां लेकर जलाराम बापा के दर्शन के लिए गया।
जलाराम जयंती – Jalaram Bapa Jayanti
हिन्दू कार्तिक माह ए शुक्ल पक्ष के सांतवे दिन को जलाराम बापा का जन्मदिन “जलाराम जयंती” के नाम से मनाया जाता है। उनका जन्मदिन दिवाली के सांतवे दिन आता है।
इस दिन, भक्तो को प्रसाद के रूप में खाना खिलाया जाता है। साथ ही वीरपुर में इस पर्व पर विशाल मेले और उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमे लाखो श्रद्धालु आते है।
इस दिन प्रसाद के रूप में खिचड़ी और बूंदी होती है, जो गुजरात का प्रसिद्ध फरसान भी है। जलाराम जयंती का आयोजन जलाराम मंदिर में किया जाता है, जो भारत में जगह-जगह पर बने हुए है।
जलाराम बापा मंदिर – Jalaram Bapa Temple
जलाराम बापा की मूर्ति को एक हसते हुए आदमी की तरह बनाया गया है, जिसके हाथो में एक डंडा है और जो सफ़ेद पगड़ी और सफ़ेद धोती-ककुर्ता पहनते है।
जलाराम के मंदिरों में हमें उनकी मूर्ति के अलावा भगवान राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमानजी की मूर्तियाँ भी दिखाई देती है। भारत के अलावा उनके मंदिर पूर्वी अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट ऑफ़ अमेरिका और न्यू ज़ीलैण्ड में भी है।
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