Inspiring Personalities of India
असफल होने पर कई लोग मायूस और निराश हो जाते हैं और उस काम को करना छोड़ देते हैं और अपनी जिंदगी में हार मान लेते हैं। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होनें असफलता को ही अपनी सफलता की सीढ़ी बनाया।
भारत की ऐसी शख्सियत जिनकी असफलताओं ने बनाया उन्हें सफल – Inspiring Personalities of India
हम आपसे ऐसे ही प्रेरणादायक लोगों की बात करेंगे, जिन्होनें अपनी जिंदगी में लंबे समय तक संघर्ष किया और जिन्हें अपनी जिंदगी में कई बार हार का सामना भी करना पड़ा, लेकिन हार ने ही उनके लिए जीत का मार्ग प्रशस्त किया है।
उनके सच्चे इरादे, आत्मविश्वास, मेहनत और लगन से ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है। और उन्होनें दुनिया के सामने अपनी एक अलग पहचान बना ली और वे दुनिया के सबसे सफल व्यक्तित्व के तौर पर पहचाने जाने लगे। चलिए आपको बताते हैं भारत के कुछ ऐसी ही शख्सियत के बारे में जो अपनी जिंदगी में कई बार असफल हुए लेकिन आज वे दुनिया के लिए एक मिसाल हैं – ऐसे लोगों के लिए नीचे लिखा कथन एकदम सटीक बैठता है –
”गिरकर उठना गिरकर उठना उठकर चलना यह क्रम है संसार का
कर्मवीर को फर्क न पड़ता किसी जीत या हार का”
महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi
“अगर मनुष्य सीखना चाहे, तो उसकी हर भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती है”
महात्मा गांधी जिनको कौन नहीं जानता, उनके देश की आजादी में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, गांधी जी को, उनके द्धारा देश के लिए दिए गए त्याग, बलिदान, समर्पण और उनके महान कामों के लिए याद किया जाता है। वे भारत के सबसे प्रेरक व्यक्तित्व में से भी एक हैं, लेकिन आम इंसान की तरह ही महात्मा गांधी को अपने जीवन में बहुत सी असफलताएं मिली थीं।
आपने ज्यादातर लोगों से गांधी जी की सफलता और महानता के किस्से सुने होंगे लेकिन उन्होनें इन सफलताओं को कैसे हासिल किया शायद ही आप जानते होंगे।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में अपनी असफलताओं के बारे में विस्तार से बताया है। महात्मा गांधी, महात्मा बनने से पहले पेशे एक वकील थे।
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात राज्य के पोरबंदर शहर में हुआ था। उन्होनें शुरुआत में काठियावाड़ शिक्षा ग्रहण की और बाद में लंदन यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की। और भारत में आकर उन्होनें अपनी वकालत का अभ्यास भी किया लेकिन वे सफल नहीं हुए।
अदालत में गांधी जी अपने ग्वाहों से भी ठीक से सवाल-जवाब भी नहीं कर पाते थे क्योंकि वे अदालत में काफी डर जाते थे और नर्वस हो जाते थे और इसी वजह से उन्हें अपने केस वापस लेने पड़ते थे।
जब गांधी जी महज 24 साल के थे उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में कानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में ही अपने डर पर काबू पाना सीखा और साथ ही साथ अपने राजनीतिक कौशल भी विकसित किए। दक्षिण भारत में ही महात्मा गांधी को यह अनुभव हुआ कि उनको अपनी कानूनी शिक्षा का इस्तेमाल भारतीयों के हित में करना चाहिए।
आपको बता दें कि भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में करीब 20 साल तक रहे। वहां उन्होनें भारतीयों के मूल अधिकारों को दिलवाने में भी काफी संघर्ष किया। यहां तक कि उन्हें इसके लिए कई बार जेल की सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा, आपको बता दें कि उस समय दक्षिण अफ्रीका में बहुत ज्यादा नस्लवाद हो रहा था।
उस समय के बारे में एक कहानी ये भी है कि जब महात्मा गांधी अंग्रेजों के स्पेशल कंपार्टमेंट में चढ़े तो उन्हें बेइज्जत करके बाहर ढकेल दिया गया था। भारत में उनका सत्याग्रह आंदोलन भी कम मुश्किलों से भरा नहीं था, यही नहीं गांधी जी के कई आंदोलन ऐसे थे जिन्हें उन्हें बीच में ही छोड़ना पड़ा था और हार का सामना करना पड़ा था।
लेकिन इन सबके बीच गांधी जी की खास बात यह थी कि उन्होंने अपनी गलतियाो से भी बुहत कुछ सीखा और लगातार असफल होने पर भी उन्होनें हार नहीं मानी। वैसे हमें भी महात्मा गांधी जी की जिंदगी से हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। इसके साथ ही महात्मा गांधी जी का संघर्ष से सफलता तक का सफर वाकई प्रेरणा देने वाला है।
वहीं अगर हम किसी क्षेत्र में सफल नहीं हो पाते तो हमें नर्वस और मायूस नहीं होना चाहिए और ये नहीं मान लेना चाहिए कि हम किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकते बल्कि हमें अपनी प्रतिभा को पहचानना चाहिए और उस दिशा में लगातार काम करना चाहिए। ऐसा करने से हमें सफल बनने से कोई नहीं रोक सकता है।
अमिताभ बच्चन – Amitabh Bachchan
”अगर आप में लगन, धैर्य, हिम्मत, है तो आप किसी भी विकट परिस्थिति में उसका सामना करते हुए सफलतापूर्वक बाहर निकल कर आगे जा सकते है”
बॉलीबुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन, जिन्होनें अपने किरदारों से न सिर्फ लोगों के दिल में जगह बनाई है, बल्कि वे एक प्रेरणादायक और सफल व्यक्ति के रूप में भी जाने जाते हैं। अमिताभ बच्चन आज जिस मुकाम पर हैं, उन्हें यहां तक पहुंचने के लिए कई कठिन संघर्ष और हार का सामना पड़ा है।
बाबजूद इसके उन्होनें कभी अपनी जिंदगी से हार नहीं मानी और हमेशा अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सच्चे मन से काम करते रहे और आज वे कामयाबी के शिखर तक पहुंच चुके हैं। इसके साथ ही कई लोगों के लिए एक आइडियल भी है।
अमिताभ बच्चन के शून्य से शिखर तक पहुंचाने की कहानी बॉलीबुड के भीतर एक असली बॉलीवुड की कहानी हैं।
आपको बता दें कि जब अमिताभ बच्चन सपनों की नगरी मुंबई में आए थे तब उनकी पहचान उनके पिताजी हरिवंशराय बच्चन से थी। लेकिन जब उन्हें फिल्मों में काम नहीं मिला तो उन्होनें गुजारा करने के लिए रेडियो स्टेशन में काम शुरू किया। लेकिन भारी आवाज होने की वजह से उन्हें वहां से भी निकाल दिया गया।
अनजान शहर में अब उनके पास रहने का ठिकाना भी नहीं बचा था। जिसकी वजह से कई उन्होनें मुंबई के फुटपाथ पर सोकर निकाली। उसके बाद उन्हें फिल्मों में काम मिला लेकिन उनकी एक के बाद एक सात फिल्में फ्लॉप हो गईं।
इसके बाद उन्होनें इलाहाबाद वापस जाने की सोची तभी प्रकाश मेहरा के रूप में उनकी किस्मत ने उनका दरवाजा खटखटाया और उन्हें जंजीर फिल्म में काम करने का अवसर मिला। उनकी फिल्म जंजीर सुपरहिट हो गई और बच्चन बॉलीवुड के एंग्री यंगमैन बन गए। और फिर ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से वह टीवी की दुनिया में आए और लोगों के दिलों पर छा गए।
इस तरह बिग बी ने खुद को साबित कर दुनिया के सामने अपनी एक अलग पहचान बनाई और इस पेशे में अपने कौशल से सम्मान अर्जित किया है। वाकई में बॉलीबुड महानायक अमिताभ बच्चन हम सभी के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत हैं।
धीरूभाई अंबानी – Dhirubhai Ambani
”जो सपने देखने की हिम्मत करते हैं, वो पूरी दुनिया को जीत सकते हैं”
धीरूभाई अंबानी का कहना था कि बड़े सपने देखिए क्योंकि बड़े सपने देखने वालों के सपने ही पूरे हुआ करते हैं। ये सिर्फ उन्होनें कहा ही नहीं बल्कि उन्होनें खुद बचपन से एक बड़े बिजनेसमैन बनने का ख्वाब देखा और उसको हकीकत में बदला।
अपने इस सपने को असलियत में बदलने के लिए उन्हें कई बार असफल भी होना पड़ा और काफी संघर्षों को भी झेलना पड़ा, लेकिन उनके जज्बे और जुनून ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा दी और वे शून्य से सफलता के शिखर तक पहुंच गए और रिलायंस इंडस्ट्री के रूप में अपना एक एम्पायर खड़ा किया।
धीरू भाई अंबानी ने 1966 में रिलायंस टैक्सटाइल्स की स्थापना की थी। आपको बता दें कि धीरू भाई अंबानी ने महज 300 रुपए की पगार पर भी काम किया, लेकिन जब धीरू भाई ने दुनिया से अलविदा किया उस समय उनकी संपत्ति 62 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा थी।
आपको बता दें कि धीरू भाई अंबानी गुजरात के छोटे से गांव चोरवाड़ गांव में जन्मे थे। शुरुआत में उनके परिवार की आर्थिक हालत बेहद खराब थी यहां तक कि धीरू भाई को अपनी पढ़ाई भी इसी वजह से छोड़नी पड़ी थी। इसलिए उन्होंने काफी कम उम्र में ही छोटे-मोटे काम करने शुरु कर दिए थे।
यहां तक कि धीरूभाई ने पढ़ाई छोड़ने के बाद फल और नाश्ता बेचने का काम शुरू किया, लेकिन कुछ ज्यादा फायदा नहीं हुआ। उन्होंने गांव के पास एक धार्मिक स्थल पर पकौड़े बेचने का काम शुरू किया लेकिन यह काम पूरी तरह पर्यटकों पर निर्भर था, जो साल के कुछ समय तो अच्छा चलता था बाकी समय इसमें खास फायदा नहीं था।
धीरू भाई अंबानी ने इस काम को भी कुछ समय बाद बंद कर दिया। बिजनेस से मिली पहली दो असफलताओं के बाद धीरूभाई के पिता ने उन्हें नौकरी करने की सलाह दी।
धीरू भाई अंबानी के बड़े भाई यमन में नौकरी किया करते थे। उनकी मदद से धीरू भाई को भी यमन जाने का मौका मिला। वहां उन्होंने 300 रुपये प्रति माह के हिसाब से एक पेट्रोल पंप पर काम किया।
महज दो साल में ही अपनी योग्यता की वजह से प्रबंधक के पद तक पहुंच गए। इस नौकरी के दौरान भी धीरू भाई का मन इसमें कम और व्यापार में करने के मौकों की तरफ ज्यादा रहा।
वहीं उस समय यमन में आजादी के लिए आन्दोलन शुरू हो गए, इस कारण वहां रह रहे भारतीयों के लिए व्यापार के सारे दरवाज़े बंद कर दिए गये। इसके बाद धीरुभाई अंबानी यमन से भारत लौट आए और अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी के साथ मिलकर पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का व्यापार काम शुरू किया।
रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन की शुरुआत मस्जिद बन्दर के नरसिम्हा स्ट्रीट पर एक छोटे से ऑफिस के साथ हुई। और तभी रिलायंस कंपनी का जन्म हुआ। इसके बाद उन्होंने 1966 में अहमदाबाद के नैरोड़ा में एक कपड़ा मिल स्थापित की। और पिर वे धीरूभाई लगातार सफलता का सीढ़ी चढ़ते गए। धीरुभाई अंबानी ने इक्विटी कल्ट की भी भारत में शुरुआत की।
अपने जीवनकाल में ही धीरुभाई ने रिलायंस के कारोबार का विस्तार विभिन क्षेत्रों में किया।
इसमें मुख्य रूप से पेट्रोरसायन, दूरसंचार, सूचना प्रोद्योगिकी, ऊर्जा, बिजली, फुटकर, कपड़ा/टेक्सटाइल, मूलभूत सुविधाओं की सेवा, पूंजी बाज़ार और प्रचालन-तंत्र शामिल हैं।
धीरुभाई के दोनों पुत्र 1991 के बाद मुक्त अर्थव्यवस्था के कारण निर्माण हुये नए मौकों का पूरी तरह इस्तेमाल करके ‘रिलायन्स’ की पीढ़ी सफल तरीके से आगे चला रहे हैं।
धीरूभाई ने मेहनत, ईमानदारी और लगन से तरक्की की है। जिसकी वजह से भारत का हर युवा उनसें प्रेरणा लेता है। धीरूभाई भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के सबसे प्रेरणादायक व्यक्तियों में से एक थे।
रतन टाटा – Ratan Tata
”हर व्यक्ति सपने देखता है पर सपने सच उन्हीं के होते हैं जो सपनों के पीछे दौड़ते हैं और तब तक भागते हैं जब तक कि उनके सपने सच ना हो जाएं”
रतन टाटा, जो कि भारत के सबसे सफल व्यापारियों में से एक हैं और जिन्होनें अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर टाटा ग्रुप को एक नई ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया। लेकिन इस सफर में उन्हें कई बार उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा।
लेकिन वे असफलताओं और अपमान से डरे नहीं बल्कि इसे ही अपनी सफलता की सीढ़ी बनाया और कामयाबी की मिसाल कायम की।
रतन टाटा जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था। वे टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के दत्तक पोते नवल टाटा के बेटे हैं। रतन टाटा ने IBM की नौकरी छोड़कर टाटा ग्रुप के साथ अपने करियर की शुरुआत 1961 में एक कर्मचारी के तौर पर की थी।
लेकिन अपनी काबिलियत के दम पर वे साल 1991 टाटा ग्रुप के अध्यक्ष बन गए और साल 2012 में वह रिटायर हो गए। रतन टाटा ने अपने 21 साल के राज में टाटा कंपनी को शिखर पर पहुंचा दिया इसके साथ ही कंपनी की वैल्यू 50 गुना बढ़ा दी।
रतन टाटा का कंपनी के लिए हर एक फैसला सही साबित होता गया और ये कंपनी दुनिया की सबसे अच्छी कंपनियों में शुमार हो गई।
दरअसल 1998 में रतन टाटा ने अपनी पहली पैसेंजर कार इंडिका बाजार में उतारी थी, जो कि उसका ड्रीम प्रोजेक्ट था और इसके लिए उन्होंने जीतोड़ मेहनत भी की।, लेकिन इस कार को बाजार से उतना अच्छा रेस्पोंस नहीं मिल पाया, जिसकी वजह से टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी।
जिसके बाद रतन टाटा ने अपनी कंपनी बेचने का फैसला लिया और वे अमेरिका की कंपनी फोर्ड के पास गए, इस दौरान फोर्ड कंपनी के मालिक बिल फोर्ड ने रतन टाटा का अपमान करते हुए कहा कि, जिस व्यापार के बारे में आपको जानकारी नहीं है उसमें इतना पैसा क्यों लगा दिया। ये कंपनी खरीदकर हम आप पर एहसान कर रहे हैं।
इस अपमान के बाद रतन टाटा इस डील को कैंसल कर चले आए और कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए जमकर मेहनत की। इसके कुछ साल बाद शुरुआती तौर पर ज्यादा मुनाफा नहीं कमाया लेकिन बाद में रतन टाटा का कार बिजनेस एक नई ऊंचाइयों तक पहुंच गए।
वहीं दूसरी तरफ फोर्ड कंपनी का पतन शुरू हो गया। साल 2008 के आखिरी में फोर्ड कंपनी दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई जिसके बाद मौके की नजाकत को समझते हुए रतन टाटा ने फोर्ड की लक्जरी कार लैंड रोवर और जैगुआर बनाने वाली कंपनी जेएलआर को खरीदने का प्रस्ताव रखा, जिसको फोर्ड ने स्वीकार भी कर लिया।
इसके बाद मीटिंग के लिए फोर्ड के अधिकारी भारत आए और बॉम्बे हाउस में मीटिंग फिक्स हुई। इसके बाद ये सौदा लगभग 2.3 अरब डॉलर में हुआ। तब बिल फोर्ड ने रतन टाटा से वही बात दोहराई जो उन्होंने रतन टाटा से कही थी, लेकिन इस बार थोड़ा बदलाव था।
उस समय बिल फोर्ड के शब्द थे- आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं।
आज जेएलआर टाटा ग्रुप का हिस्सा है और बाजार में बेहतर मुनाफे के साथ आगे बढ़ रहा है। और इस तरह रतन टाटा ने कठिन संघर्षों को झेलकर न सिर्फ टाटा ग्रुप को सफलता की नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया बल्कि बाकी लोगों के लिए सफलता की एक मिसाल कायम की।
नरेन्द्र मोदी – Narendra Modi
एक चाय बेचने वाला कभी देश का पीएम भी बन सकता है ये शायद ही किसी ने सोचा होगा, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में इस समय देश के सामने एक ऐसा व्यक्तित्व मौजूद है, जिन्होनें कई संघर्षों के बाद इस सफलता को हासिल किया है और अपने बुद्धि, विवेद और नेक विचारों से देश को तरक्की को एक नया आयाम भी दिया है।
आपको बता दें कि प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के लिए नरेन्द्र मोदी ने कई जोखिम उठाए हैं। कई बार वे असफल भी हुए और उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा बाबजूद इसके उन्होनें कभी हार नहीं मानी क्योंकि वे एक सकारात्मक सोच से भरपूर, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, देश के लिए बड़े सपने देखने वाले और उच्च विचार रखने वाले व्यक्तित्व हैं।
नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को गुजरात में हुआ था। मोदी के पिता वादनगर रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। बचपन में मोदी को जब भी पढ़ाई से समय मिलता था वे अपने पिता की मदद करने दुकान पर पहुंच जाया करते थे। आज बाद में उन्होनें खुद चाय की दुकान खोल ली थी।
बचपन से ही उनका संघ की तरफ अच्छा खासा झुकाव था। इसलिए 1967 में जब वह अहमदाबाद पहुंचे तब साल उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली। इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। इस तरह सक्रिय राजनीति में आने से पहले मोदी कई सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रह चुके हैं।
2001 में जब गुजरात में भूकंप के आने से 20,000 लोग मारे गए तब राज्य में राजनीतिक सत्ता में भी बदलाव हुआ। दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा। पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई और इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
वहीं मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब 1000 से 2000 लोग मारे गए। इस दौरान मोदी ने दंगों को भड़काने का आरोप लगाया गया और साथ ही यह भी कहा गया कि अगर वे चाहते हैं तो दंगे रोक सकते थे लेकिन मोदी ने दंगों को रोकने की कोशिश नहीं की। फिलहाल इसके बाद 2005 में मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से मना कर दिया था। लेकिन मोदी लगातार अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर रहे।
हालांकि साल 2012 तक मोदी का बीजेपी में कद इतना बड़ा हो गया था कि उन्हें पार्टी के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा।
20 दिसंबर, 2012 को मोदी ने फिर बहुमत हासिल किया और गुजरात राज्य में तीसरी बार अपनी सत्ता का डंका बजाया और मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित हुए।
इसके बाद साल 2013 में उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी मेहनत और अच्छे कामों से एक अच्छे राजनेता की अमिट छाप भी छोड़ी है।
वहीं चुनावी जीत-हार की परवाह किए बिना नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे फैसले (नोटबंदी, जीएसटी आदि) भी लिए हैं, जिन्हें लेने के लिए बहुत ज्यादा साहस और हिम्मत की जरूरत होती है। सबसे बड़ी खासियत यह है कि केन्द्र की मोदी सरकार पर अभी तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। क्योंकि तमाम समस्याओं के सामने वह डटे दिखाई देते हैं। शायद इसलिए आज उनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है।
इसके साथ ही वे जमीनी स्तर से जुड़े हुए हैं। वे एक कर्मठ, जुझारू, दृढ़ इच्छाशक्ति, स्पष्ट फैसले लेने की क्षमता रखने वाले एक परिश्रमी राजनेता और एक कुशल वक्ता भी है। इसी वजह से आज नरेंद्र मोदी की गिनती दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में होती है।
शिव खेरा – Shiv Khera
”विपरीत परिस्थितियों में कुछ लोग टूटते है और कुछ लोग जो खास होते है वही रिकॉर्ड तोड़ते है ”
शिव खेरा एक मशहूर लेखक ही नहीं बल्कि एक प्रेरक वक्ता भी है। जिन्होनें अपने सकारात्मक विचारों ने सिर्फ खुद को सफलता के इस शिखर तक पहुंचाया बल्कि कई लोगों की जिंदगी भी बदल डाली है। आपको बता दें शिव खेरा का जीवन भी काफी संघर्षों से भरा पड़ा है।
लेकिन उनके सकारात्मक विचारों और अटूट आत्मविश्वास ने उन्हें कभी हार नहीं मानने दी और यही वजह है कि वे आज कई लोगों के लिए एक मिसाल बने हुए है।
शिव खेरा का जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ था। जिन्हें बचपन में कई तरह की आर्थिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ा था। यहां तक कि उन्हें अपने शुरुआती करियर में कार धोने का काम भी किया था।
इसके बाद शिव खेरा ने बीमा कंपनी में अपनी किस्मत आजमाई थी। उन्होंने जीवन बीमा कंपनी में काम किया और ग्राहकों को बीमा पॉलिसियां बेची, लेकिन वह इस क्षेत्र में भी सफलता हासिल करने में नाकामयाब रहे। शिव खेड़ा की जिंदगी बेहद कठिनाइयों से भरी हुई है और उन्होंने अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत संघर्ष किया।
खेड़ा ने 1998 में,अपनी पहली पुस्तक यू कैन विन प्रकाशित की, जिसमें उन्होनें सकारात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से सफलता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने की बातें बताई गई है।
इसके बाद उन्होनें लाइव विद होनर और फ्रीडम इज नॉट फ्री जैसी कई किताबें प्रकाशित की। लेकिन फ्रीडम इज नॉट फ्री के लिए एक रिटायर्ड भारतीय सिविल सेवक अमृत लाल ने साहित्य की चोरी के मामले में खेड़ा पर आरोप लगाया। उन्होनें आरोप लगाते हुए कहा कि जो किताब खेड़ा ने प्रकाशित की उस किताब के कंटेट को 8 साल पहले ही उनकी पुस्तक इनफ इज इनफ में प्रकाशित किया जा चुका है। इसके अलावा भी उन्होनें ये भी आरोप लगाया कि, शिव खेड़ा के अन्य पुस्तकों में कई चुटकुले और उदाहरण भी कई स्रोतों से बिना अनुमित लिए छापे गए हैं।
लेकिन इस आरोप से खेड़ा एकदम मायूस नहीं हुए बल्कि उन्होनें इस परेशानी का डटकर सामना किया और कहा कि उन्होंने कई स्रोतों से केवल प्रेरणा ली है। लाल ने बाद में एक अकुशल राशि के लिए एक आउट-ऑफ-कोर्ट सेटलमेंट स्वीकार कर लिया, जिसमें उन्होंने कहा कि वह 25 लाख रूपये मिशनरी ऑफ चैरिटी को दान करेंगे।
फिलहाल शिव खेरा ने अपनी प्रेरक किताबों के माध्यम से पाठकों के दिल में एक अलग जगह बना ली थी और उनकी किताबों की मार्केट में काफी डिमांड थी क्योंकि उनकी किताबें पढ़कर लोगों में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
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शिवांगी जी बहुत ही Inspirational Article आपने लिखा है thank for sharing. वैसे शिव खेड़ा & अमित जी की जितनी तारीफ की जाए वो कम है ।
शुक्रिया जी इस पोस्ट को पढ़ने के लिए। वाकई इन भारतीय शख्सियतों का जीवन प्रेरणादायक है। इन्होंने न सिर्फ तमाम संघर्षों का सामना करते हुए सफलता के इस मुकाम को हासिल किया है बल्कि खुद को भी साबित कर दिखाया है।