इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति | Harappan Civilization Information In Hindi

इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति – Indus Valley Harappan Civilization एक पुरातात्विक जगह है जो पंजाब, पाकिस्तान के पश्चिम साहिवाल से 24 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस जगह का नाम रवि नदी के तट पर बसे आधुनिक ग्राम के नाम पर ही रखा गया था। वर्तमान हड़प्पा शहर प्राचीन हड़प्पा से 6 किलोमीटर दूर है। इसके साथ ही वर्तमान हड़प्पा नगर में ब्रिटिश राज में बना एक रेल्वे स्टेशन भी है।

पुराने शहर में प्राचीन काँसे के की मजबूत प्रतिमाये बनी हुई है। वर्तमान हड़प्पा पंजाब और सिंध राज्य के मध्य में बसा हुआ है। सूत्रों कर अनुसार वर्तमान में हड़प्पा में 23,500 लोग 370 एकर के क्षेत्र में हड़प्पा काल में बने मिट्टी के घरो में आज भी रहते है। कहा जाता है की हड़प्पा शहर में पहले कई तरह की प्रजातिया रहती थी, जिसमे मुख्य रूप से रह रही इंडस घाटी सभ्यता / Indus Valley Civilization को हड़प्पा सभ्यता / Harappa Sabhyata भी कहा जाता था।

Harappan Civilization

इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति – Harappan Civilization Information In Hindi

प्राचीन हड़प्पा शहर को ब्रिटिश राज में क ई बार क्षतिग्रस्त किया गया था, उस समय के शासनकाल में ईंटो का उपयोग लाहौर-मुल्तान रेल्वे ट्रैक बनाने में किया जाता था। 2005 में जब यहाँ मनोरंजन पार्क बनाया जा रहा था तभी पुरातात्विक विभाग से इसे उन्मुक्त कर दिया था क्योकि उनके अनुसार इसे बनाते समय कई प्राचीन कलाकृतियों को नुकसान पहुचाया गया था।

पाकिस्तानी पुरातात्विक निवेदक अहमद हसन दानी ने इस जगह की मरम्मत करवाने के लिये भारतीय संस्कृति विभाग से निवेदन भी किया था।

इंडस घाटी सभ्यता – हड़प्पा संस्कृति इतिहास – Indus Valley Harappan Civilization History

इंडस घाटी सभ्यता (जो हड़प्पा संस्कृति (Harappan Civilization) के नाम से भी जानी जाती है) की संस्कृति के बीज हमें 6000 BCE में ही मेहरगढ़ में दिखायी देते है। दो महान शहर मोहेंजो-दारो और हड़प्पा लगभग 2600 BCE में इंडस नदी घाटी के साथ पंजाब और सिंध में थे।

मोहेंजो-दारो में सिंध के नजदीक लरकाना और हड़प्पा में पश्चिम पंजाब के लाहौर के दक्षिण में खुदाई होने के बाद 1920 में इस सभ्यता के लेखन सिस्टम, शहरी केंद्र और सामाजिक एवं आर्थिक सिस्टम में कई सुधार किये गए थे। उस समय बहुत सी हिमालय गिरिपीठ की दूसरी जगहों की खुदाई कर उनका भी फैलाव किया गया था, जिसमे भारत में उत्तर से गुजरात के दक्षिण और पश्चिम तक और पाकिस्तान में बलोचिस्तान के पश्चिमी भाग मुख्य रूप से शामिल है, इनकी खुदाई कर अभ्यास किया गया था।

1857 में जब इंजिनियर लाहौर-मुल्तान रेलरोड बना रहे थे तब भी हड़प्पा शासनकाल की ईंटो का उपयोग कर इस घाटी को क्षतिग्रस्त किया गया था। इससे पहले 1826 में हड़प्पा पश्चिम पंजाब में बसते थे और वही उन्होंने ब्रिटिश ऑफिसर के ध्यान को भारत में आकर्षित किया और तभी से हड़प्पा की खुदाई का काम शुरू किया गया।

इंडस लिपि के प्राचीन संकेत –

मिट्टी और पत्थर पहले से ही हड़प्पा काल में थे, लेकिन 3300 से 3200 BCE में इन्हें निकाला गया था। जिसमे त्रिशूल के आकर के विशेष पत्थर भी शामिल थे।

“आज भी यह एक बड़ा प्रश्न है क्योकि हमें इस हड़प्पा सभ्यता – Harappa Sabhyata की लिपि के कुछ संकेत तो मिले है लेकिन उनसे यह नही पता लगाया जा सकता की उस समय किस लिपि का प्रयोग किया जाता था” ऐसा हड़प्पा पुरातात्विक शोध प्रोजेक्ट के डायरेक्टर डॉ. रिचर्ड मीडो ने कहा था।

लेकिन हड़प्पा सभ्यता की थोड़ी झलक हमें मेसोपोटामिया के सुमेरियन की लिपि में दिखायी देती है, जिनका अस्तित्व तक़रीबन C. 3100 BCE के समय का था। क्योकि उन दोनों की लिपि में कयी समानताये पायी गयी थी जो बाद में इंडस लिपि के नाम से जानी गयी।

संस्कृति और आर्थिक स्थिति – Harappa Sanskriti

इंडस घाटी सभ्यता में शहरी संस्कृति के गुण दिखायी देते है, जिनमे मुख्य रूप से कृषि उत्पादन और व्यापार किया जाता था और बाद में उन्होंने दक्षिणी मेसोपोतामिस के सुमेर के साथ व्यापार करना भी शुरू किया था।

मोहन जोदड़ो और हड़प्पा दोनों को ही साधारणतः अपनी विशेष पहचान जैसे रहने के तरीके, ईंटो से बने विशेष घरो और धार्मिक रीतिरिवाजो के लिये जाना जाता था। मोहेंजो-दारो (Mohenjo Daro) और हड़प्पा इन दोनों शहरो में काफी समानताये पायी गयी थी बल्कि उनकी वेशभूषा, संस्कृति और आर्थिक स्थिति भी ज्यादातर एक जैसी ही थी।

हड़प्पा घाटी के ज्यादातर घर ईंटो से ही बने हुए थे और हड़प्पा घाटी की सभ्यता का मुख्य व्यवसाय व्यापार ही था। वहा के लोग खेती करते समय ज्यादातर कपास का ही उत्पादन करते थे। इसके साथ ही चावल, गेहू और कयी प्रकार की सब्जियों की खेती भी वहा की जाती थी।

उस समय में बहुत कम लोग फलो की खेती करते थे और लोग खेती करने के लिये लकड़े से बनी बैलगाड़ी का उपयोग भी करते थे। उस समय भी आज ही की तरह जानवरों का पालन-पोषणकिया जाता। हड़प्पा संस्कृति प्रगति का मुख्य कारण वहा के लोगो का आत्मनिर्भर होना था।

सूत्रों के अनुसार हड़प्पा घाटी के अधिकांश लोगो का जीवन समृद्ध था। हड़प्पा में संसाधनों के एकत्रीकरण की व्यवस्था ही संस्कृति के विकास का कारण बनी।

लेकिन हड़प्पा संस्कृति – Harappan Civilization के बाद में एक बात तो साफ़ तौर पर कही जा सकती है की हड़प्पा जीवन शांति भरा नही था, दक्षिण एशिया के पूर्व-इतिहास के अनुसार यहाँ पाये जाने वाले मानवी कंकाल हड़प्पा शासनकाल में आकस्मिक चोट का मुख्य कारण बने।

पुरातात्विक विभाग के सर्वे के अनुसार हड़प्पा काल के अंतिम समय में हड़प्पा घाटी के लोग कयी बीमारियों से जूझ रहे थे। जिसमे मुख्य रूप से कार्नियो-फेसिअल मानसिक आघात मुख्य रूप से शामिल था, यह बीमारी तेज़ी से संक्रमित हो रही थी। कहा जाता है की हड़प्पा घाटी के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध होने के बावजूद उनका स्वास्थ कभी अच्छा नही रहता था।

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13 COMMENTS

  1. Sir apka ye post mereko bht acha laga, Kya aap mjhe ye post pdf mein mere email pr send kr skte hain ismein bht deeply dia hua h or jitni b Ancient India ki aapke ps information h wo b mere exam k lye beneficial hgi wo..

    • Tauquir sir

      please take email subscription. then you will get our latest update on your email..

  2. bachapan me hum sabhi ne harappan aur mohenjo daro ki sanskruti ke bareme bahut bar padha hain. lekin aapke site par eski information bahut deeply hain bachcho ko esase kafi fayada honga.
    dhanyavad…………..

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