इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी जी देश की प्रथम और अब तक की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थी, जो कि अपने राजनैतिक कौशल और सूझबूझ के लिए भी पहचानी जाती थी। उन्होंने उस समय देश का प्रधानमंत्री के रुप में नेतृत्व किया जब महिलाओं को घर से बाहर निकलने तक की इजाजत नहीं दी जाती थी।
तमाम चुनौतियों का सामना कर वे न सिर्फ देश के पीएम के पद पर आसीन हुई, बल्कि अपनी राजनैतिक प्रतिभा से उन्होंने देश के लिए कई अहम फैसले लिए। इंदिरा गांधी जी के शासनकाल में ही बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
तो आइए जानते हैं अपनी राजनैतिक निष्ठुरता एवं दृढ़ता के लिए पहचाने जाने वाली इंदिरा गांधी जी के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में-
भारत की लौह महिला इंदिरा गांधी जी का प्रेरणादायी सफर – Indira Gandhi Biography in Hindi
एक नजर में –
नाम (Name) | इंदिरा फिरोज गांधी |
जन्म (Birthday) | 19 नवंबर, 1917, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश |
पिता (Father Name) | जवाहर लाल नेहरू |
माता (Mother Name) | कमला नेहरू |
पति (Husband Name) | फिरोज गांधी |
बेटे (Son Name) | राजीव गांधी, संजय गांधी |
बहु (Daughter In Law) | सोनिया गांधी, मेनका गांधी |
नाती/नातिन | राहुल गांधी, वरुण गांधी, प्रियंका गांधी |
शिक्षा (Education) |
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मृत्यु (Death) | 31 अक्टूबर, 1984 |
जन्म एवं प्रारंभिक जीवन –
इंदिरा गांधी जी 19 नवंबर, 1917 को उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद शहर में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी और कमला नेहरू जी के यहां प्रियदर्शनी के रुप में जन्मीं थी।
इंदिरा गांधी जी आर्थिक रुप से संपन्न, देश के जाने-माने राजनैतिक परिवार एवं देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत परिवार से संबंध रखती थी, उनके दादा मोतीलाल नेहरू और उनके पिता जवाहरलाल नेहरू जी दोनों ने ही देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वहीं अपने परिवार को देख इंदिरा गांधी जी के अंदर देशभक्ति की भावना बचपन से ही आ गई थी। इंदिरा गांधी जी की माता का नाम कमला नेहरू था। वहीं जब इंदिरा गांधी 18 साल की थी, तब उनकी मां कमला नेहरू जी की तपेदिक बीमारी के कारण मृत्यु हो गई।
पढ़ाई-लिखाई –
इंदिरा गांधी जी के पिता की राजनैतिक व्यस्तता और मां का स्वास्थ्य खराब होने के कारण इंदिरा गांधी जी को शुरुआत में शिक्षा का अनुकूल माहौल नहीं मिला थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई घर पर रहकर ही की थी।
उनके पिता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने उनकी पढ़ाई के लिए घर पर ही शिक्षकों का बंदोबस्त किया था।
इसके कुछ समय बाद उन्होंने पुणे विश्वविद्यालय से अपनी हाईस्कूल की पढ़ाई की एवं फिर साल 1934-35 में इंदिरा गांधी जी ने शान्ति निकेतन में एडमिशन लिया और यहां पर ही उनका नाम रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा प्रियदर्शिनी रखा गया।
फिर इसके बाद वे लंदन चली गईं जहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सोमेरविल्ले कॉलेज से अपनी आगे की पढ़ाई की। वहीं इसी दौरान उनकी मुलाकात फिरोज गांधी से भी हुई थी।
अपनी पढ़ाई के दौरान इंदिरा गांधी ने कुछ खास हासिल नहीं किया, वे एक औसत दर्जे की विद्यार्थी थीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी।
शादी एवं वैवाहिक जीवन –
अपने अद्भुत राजनैतिक प्रतिभा के लिए पहचाने जाने वाली महान राजनेता इंदिरा गांधी जी जब अपने पढ़ाई के दिनों के दौरान नेशनल कांग्रेस की सदस्य बनी तभी उनकी मुलाकात फिरोज गांधी से हुई।
उस दौरान फिरोज गांधी एक जर्नलिस्ट होने के साथ-साथ यूथ कांग्रेस के प्रमुख सदस्य भी थे, जो कि गुजरात के एक पारसी परिवार से थे।
फिर दोनों की मुलाकातें प्रेम में बदल गईं और साल 1942 के दौरान उन्होंने फिरोज गांधी से शादी कर ली थी।
हालांकि, इंदिरा गांधी के इस फैसले से उनके पिता जवाहर लाल नेहरू बिल्कुल भी सहमत नहीं थे, लेकिन बाद में अपनी बेटी की जिद के सामने उन्हें इन दोनों के रिश्ते को स्वीकार करना पड़ा था।
वहीं इस शादी का सार्वजनिक तौर पर भी काफी विरोध हुआ था, क्योंकि उस दौरान इंटरकास्ट विवाह होना इतना आम नहीं था। शादी के बाद इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी को 2 बच्चे हुए। पहले राजीव गांधी हुए और फिर इसके करीब ढाई साल बाद संजय गांधी का जन्म हुआ। वहीं साल 1960 में एक कार्डियक गिरफ्तारी के बाद फिरोज गांधी की मृत्यु हो गई थी।
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका –
इंदिरा गांधी जी अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना निहित थी। दरअसल, उनके पिता और दादा जी दोनों ही देश के महान स्वतंत्रता सेनानी थे।
शुरू से ही देशप्रेम की भावना से प्रेरित परिवार में जन्म लेने से इंदिरा गांधी जी पर इसका गहरा असर पड़ा था। वे अपने पढ़ाई के दौरान ही इंडियन लीग की सदस्य बन गईं थीं और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई के बाद जब वे साल 1941 में भारत वापस लौंटी तो फिर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गईं।
यही नहीं स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ी थी। इंदिरा गांधी एक देशप्रेमी थी। देशसेवा उनमे कूट-कूट के भरी थी। वह हमेशा कहती थी,
“आपको गतिविधि के समय स्थिर रहना और विश्राम के समय क्रियाशील रहना सीख लेना चाहिये।”
मतलब इंसान को कोई भी काम करते समय वो सचेत दिमाग से करना चाहिये। जीवन में क्रियाशील होने के साथ-साथ विश्राम भी जरुरी होता है ताकि हम हमारे दिमाग को और अधिक क्रियाशील बना सके।
राजनैतिक करियर –
इंदिरा गांधी जी का परिवार देश के सबसे प्रमुख एवं प्रसिद्ध राजनैतिक परिवारों में से एक है, इसलिए इंदिरा गांधी जी की भी शुरु से हीराजनीति की तरफ दिलचस्पी कोई हैरान करने वाली बात नहीं है।
जब उनके पिता जी जवाहर लाल नेहरू जी स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्त हुए थे। तब से ही उनके घर में आजादी के महानायक महात्मा गांधी समेत कई बड़े राजनेताओं का उनके घर में आना-जाना था, जिसकी मेजबानी अक्सर इंदिरा गांधी जी ही करती थी।
इस दौरान कई बार वे अपने पिता जी और राजनैतिक आगंतुकों द्वारा देश के विकास एवं बेहतर भविष्य के लिए हो रही बातचीत को भी ध्यानपूर्वक सुनती थी, जिसके चलते धीमे-धीमे उनका मन भी राजनीति की तरफ लगने लगा था।
वहीं साल 1951 और 1952 के बीच हुए लोकसभा चुनावों के दौरान इंदिरा गांधी जी ने अपने पति फिरोज गांधी जी के कई चुनावी रैली और सभाओं का आयोजित करने की जिम्मेदारी अच्छी तरह संभाली थी।
इसके बाद साल 1955 में इंदिरा गांधी जी को कांग्रेस पार्टी की कार्यकारिणी के रुप में शामिल कर लिया था। यही नहीं इंदिरा गांधी जी की राजनैतिक समझ को परखते हुए नेहरू जी भी न सिर्फ अपनी बेटी इंदिरा से कई अहम मुद्दों पर राजनैतिक सलाह लेते थे, बल्कि उन पर अमल भी करते थे।
इसके बाद साल 1959 में इंदिरा गांधी जी कांग्रेस की प्रेसीडेंट के रुप में नियुक्त हुईं।
फिर साल 1964 में अपने पिता एवं देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी की मौत के बाद उन्हें लाल बहादुर शास्त्री जी के सरकार के समय सूचना और प्रसारण मंत्री बना दिया गया था।
इस पद की जिम्मेदारी भी इंदिरा गांधी जी ने बखूबी निभाई एवं आकाशवाणी के कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया। साल 1965 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान आकाशवाणी राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इसके अलावा इस युद्ध के दौरान उन्होंने सकुशल नेतृत्व किया एवं सीमाओं पर जाकर भारतीय सेना के जवानों का हौसला भी बढ़ाया।
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रुप में –
इंदिरा गांधी जी महिला सशक्तिकरण का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण रही हैं।
उन्होंने प्रधानमंत्री के रुप में देश का 4 बार कुशल नेतृत्व किया एवं देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। साल 1966 से 1977 तक लगभग 11 साल वे लगातार 3 बार प्रधानमंत्री के पद पर कार्यरत रहीं।
फिर साल 1980 से 1984 में उन्हें चौथी बार देश का प्रधानमंत्री बनने का गौरव हासिल हुआ।
आपको बता दें कि पहली बार 1966 में देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अचानक मौत के बाद, कांग्रेस के अध्यक्ष के. कामराज जी ने इंदिरा गांधी जी को देश के प्रधानमंत्री बनने की सलाह दी।
हालांकि इस दौरान कांग्रेस पार्टी के जाने-माने एवं कद्दावर नेता मोरारजी देसाई खुद प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, फिर पार्टी द्धार वोटिंग के बाद इंदिरा गांधी जी को देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रुप में नियुक्त किया गया।
इस तरह 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी जी ने देश की प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली। फिर इसके करीब एक साल बाद 1967 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी जी फिर से पीएम उम्मीदवार के रुप में खड़ी हुईं।
इस चुनाव में वे ज्यादा बहुमत तो हासिल नहीं कर पाईं लेकिन चुनाव जीतने में सफल रहीं और फिर से उन्हें देश के प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला। हालांकि, इस दौरान मोरार जी देसाई और इंदिरा गांधी जी को लेकर कांग्रेस पार्टी के अंदर कई आपसी मतभेद हो गए।
दरअसल, पार्टी के कुछ बड़े नेता जहां इंदिरा गांधी जी का समर्थन कर रहे थे तो कुछ मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री के रुप में चाहते थे, जिसके चलते साल 1969 में कांग्रेस पार्टी दो अलग-अलग गुटों में बंट गई।
प्रधानमंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान इंदिरा गांधी जी ने देश के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए। उन्होंने साल 1969 में भारत के 14 सबसे बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1971 में इंदिरा गांधी जी द्वारा मध्याविधि चुनाव की घोषणा –
साल 1971 में इंदिरा गांधी जी ने कांग्रेस की बिगड़ती हालत को देख एवं देश में अपनी स्थिति और अधिक मजबूत करने के लिए मध्याविधि चुनाव को घोषणा कर विपक्ष को बड़ा झटका दे दिया।
अपनी राजनैतिक कौशल के लिए पहचानी जानी वाली इंदिरा गांधी जी ”देश से गरीबी हटाओ” के नारे के साथ इस चुनाव में उतरीं और देश में चुनावी महौल बनाकर 518 में से 352 सीटें हासिल कर अपनी सरकार बनाने में सफल रहीं।
इस चुनाव के बाद देश में इंदिरा गांधी जी की स्थिति काफी मजबूत हो गई थी।
भारत-पाक के युद्ध में का सकुशल नेतृत्व
इंदिरा गांधी जी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 1971 में बांग्लादेश के मुद्दे को लेकर जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ, उस दौरान देश में काफी तनाव बढ़ गया और इंदिरा गांधी जी को भी काफी बड़े संकट से जूझना पड़ा।
हालांकि इस दौरान उन्होंने सूझबझ और समझदारी से काम लेते हुए देश का सकुशल नेतृत्व किया। आपको बता दें कि युद्ध के दौरान जब स्थिति और भी ज्यादा गंभीर हो गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाक का समर्थन देना शुरु कर दिया और चीन पहले से ही पाकिस्तान को हथियार सप्लाई कर उसका समर्थन कर रहा था।
इसके बाद इंदिरा गांधी के नेतृत्व ने भारत ने सोवियत संघ के साथ ”शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि” पर हस्ताक्षर किए।
इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान से भारी संख्या में शरणार्थियों ने भारत में प्रवेश करना शुरु कर दिया।
इस दौरान इंदिरा गांधी जी ने न सिर्फ लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण दी बल्कि पश्चिमी पाकिस्तान से लड़ने के लिए सैन्य सहायता भी प्रदान की।
इंस दौरान इंदिरा गांधी जी ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के महत्व को समझते हुए बांग्लादेश के निर्माण को समर्थन देने की घोषणा की। वहीं इसके बाद 16 दिसंबर को पश्चिमी पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर दिया, जिसके चलते बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
इस युद्ध में भारत की जीत से इंदिरा गांधी जी की छवि एक लोकप्रिय राजनेता के रुप में बन गई एवं उनकी स्थिति देश में इतनी अधिक मजबूत हो गई कि वे स्वतंत्र फैसले लेने के लिए भी सक्षम हो गईं।
वहीं इस युद्ध के बाद इंदिरा गांधी जी ने खुद को पूरी तरह देश की सेवा और विकास में समर्पित कर दिया।
उन्होंने साल 1972 में बीमा और कोयला उद्योग का भी राष्ट्रीयकरण कर जनता का ध्यान अपनी तरफ खींचा एवं एक सक्रिय एवं कुशल राजनेता के रुप में समाज कल्याण, अर्थ जगत समेत भूमि सुधार के लिए कई सुधार काम किए।
देश में आपातकाल लागू करना एवं सत्ता छिनना –
इंदिरा गांधी जी ने अपने प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान देश के विकास के लिए कई नई योजनाएं लागू की थी एवं कई काम करवाए थे, लेकिन 1975 के दौरान देश में महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक संकट, भ्रष्टाचार, की समस्याए काफी बढ़ गई थी, जिसके चलते कई विपक्षी दलों और देश की जनता ने इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शन किए थे।
वहीं इसी दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी इंदिरा गांधी जी के चुनाव से संबंधित एक केस पर फैसला सुनाते हुए उनका चुनाव रद्द करने के साथ 6 साल तक उनका चुनाव लड़ने से भी बैन लगा दिया।
जिसके बाद देश के राजनैतिक हालात और भी अधिक खराब हो गए और लोगों के अंदर उनके खिलाफ और अधिक प्रतिशोध भर गया।
फिर 26 जून, 1975 के दिन इंदिरा गांधी जी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की बजाय देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। जिसके तहत उन्होंने मोरारजी देसाई, जयप्रकाश नारायण समेत तमाम विपक्षी नेता और उनके राजनैतिक दुश्मनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
यही नहीं आपातकाल के दौरान आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकार भी छीन लिए गए एवं मीडिया पर भी प्रतिबंध लगा दिया, रेडियो अखबार और टीवी पर सेंसर लगा दिए गए।
फिर इसके बाद साल 1977 की शुरुआत में इंदिरा गांधी जी ने आपातकाल को हटाते हुए चुनाव की घोषणा कर दी।
इस दौरान राजनैतिक कैदियों की रिहाई कर दी गईं एवं फिर से मीडिया से बैन हटा दिया था एवं जनता को मौलिक अधिकार वापस देने के साथ राजनैतिक सभाओं और चुनाव प्रचार की आजादी दे गई।
हालांकि इस चुनाव के दौरान आपातकाल और नसबंदी अभियान के चलते आम जनता में उनके खिलाफ काफी क्रोध बढ़ गया था।
वहीं उस दौरान जनता ने आपातकाल और नसबंदी अभियान के बदले में इंदिरा गांधी जी को समर्थन नहीं किया। जिसके परिणाम स्वरुप, मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में ”जनता पार्टी” एक सशक्त एवं मजबूत होकर सामने आईं एवं चुनाव में 542 में 330 सीटें हासिल कीं, जबकि इंदिरा गांधी जी के खेमे में सिर्फ 153 सीटें ही आईं।
जनता पार्टी की आंतरिक कलह और इंदिरा गांधी जी की सत्ता में फिर से वापसी:
साल 1979 में जनता पार्टी के अंदर आंतरिक कलह की वजह से यह सरकार गिर गई जिसका फायदा इंदिरा गांधी जी को हुआ।
दरअसल, जनता पार्टी के राजनेताओं ने इंदिरा गांधी जी को संसद से बाहर निकालने के मकसद से इंदिरा गांधी जी पर कई गंभीर आरोप लगाए थे एवं भ्रष्टाचार के आरोप में इंदिरा गांधी जी को जेल भी भेजा गया था।
वहीं जनता पार्टी की यह रणनीति और इंदिरा गांधी जी के प्रति ऐसा रवैया जनता को रास नहीं आया और फिर भारी संख्या में आम जनता इंदिरा गांधी जी के समर्थन में आ गई और फिर साल 1980 के चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 592 में से 353 सीटें हासिल की और इंदिरा गांधी ने बड़े बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की और एक बार फिर उन्हें देश के प्रधानमंत्री के रुप में देश का नेतृत्व करने का मौका मिला।
नाम पर धरोहर –
नई दिल्ली में उनके नाम पर इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूजियम बना हुआ है।
इसके अलावा इंदिरा गांधी जी के नाम पर इंदिरा गांधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी(अमरकंटक), इंदिरा गांधी टेक्निकल यूनिवर्सिटी फॉर वीमेन, इंदिरा गांधी इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू), इंदिरा गांधी इंस्टीटयूट ऑफ डेंटल साइंस समेत कई शिक्षण संस्थान हैं।
यही नहीं देश के कई शहरों में बहुत सी सड़कों और चौराहों के नाम भी इंदिरा गांधी जी के नाम पर है।
इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम भी इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है और देश के सबसे मुख्य समुद्री ब्रिज पंबन ब्रिज का नाम भी इंदिरा गांधी रोड ब्रिज है।
पुरस्कार और सम्मान –
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी को साल 1971 में देश के सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” से सम्मानित किया गया था।
साल 1972 में उन्हें बांग्लादेश को आजाद करवाने के लिए मेक्सिकन अवॉर्ड से नवाजा गया।
साल 1976 में उन्हें नागरी प्रचारिणी सभा के द्वारा हिन्दी में साहित्य वाचस्पति सम्मान से नवाजा गया था।
इसके अलावा उन्हें मदर्स अवार्ड, हॉलैंड मेमोरियल प्राइज से भी सम्मानित किया गया था।
ऑपरेशन ब्लू स्टार और हत्या –
1981 में एक सिख आतंकवादी समूह ”खालिस्तान” की मांग को लेकर अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर एवं हरिमिंदर साहिब परिसर के अंदर प्रवेश कर गए थे।
मंदिर परिसर में हजारों लोग होने के बाबजूद भी इंदिरा गांधी जी ने सेना के जवानों को इन आतंकवादियों से निपटने के लिए सिखों के प्रमुख धार्मिक स्थल ऑपरेशन ब्लू स्टार करने की इजाजत दे दी।
वहीं ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान हजारों बेकसूरों और मासूमों की जान चली गईं एवं सिख समुदाय की धार्मिक आस्था को काफी ठेस पहुंची।
इस ऑपरेशन के बाद इंदिरा गांधी जी के खिलाफ विद्रोह की भावना भड़क उठी एवं देश में संप्रदायिक तनाव की स्थिति बन गई, यही नहीं सिख समुदाय के कई लोगों ने इस दौरान सरकारी पदों से इस्तीफा दे दिया एवं सरकारी पुरस्कार एवं उपाधियां वापस कर विरोध जताया।
इस तरफ एक बार फिर से इंदिरा गांधी जी की राजनैतिक छवि काफी खराब हो गई एवं इसकी कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
दरअसल, गोल्डन टेंपल में हुए भयावह नरसंहार का बदला लेने के लिए इंदिरा गांधी जी के दो सिख बॉडीगार्ड सतवंत सिंह और बित सिंह ने 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी।
निस्कर्ष-
देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी के प्रधानमंत्री बनने का सफर काफी प्रेरणादायक है। इसके साथ ही उन्होंने जिस तरह काफी चुनौतियों का सामना कर खुद को दुनिया की सबसे सशक्त एवं मजबूत महिला के रुप में पहचान दिलवाई वो सराहनीय है।
यही नहीं प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए इंदिरा गांधी जी ने देश के आर्थिक, औद्योगिक, विज्ञान और कृषि समेत कई क्षेत्रों में विकास काम करवाए एवं भारत को एक मजबूत राष्ट्र के रुप उभारने में मदत की।
इंदिरा गांधी जी के देश के लिए किए गए योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता।
Not complet information
Indra was a great pm
Hatiya kab hui
31 October 1984
But this is ok for project.
this is not complete information about indra jee