Ibrahim Lodi History in Hindi
भारत में लोदी वंश ने कई सालों तक राज किया था, इसकी स्थापना बहलोल लोदी ने की थी। इब्राहिम लोदी, लोदी वंश का अंतिम शासक था, जिन्हें उनके पिता सिकंदर लोदी के बाद लोदी वंश के सिंहासन पर अफगान सरदारों की सर्वसम्मति से बैठाया गया था।
दिल्ली सल्लतनत का अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी के अंदर एक शासक के सारे गुण थे, लेकिन उसके द्धारा जल्दबाजी में लिए गए कुछ फैसलों की वजह से उसे अपने जीवन में काफी असफलताओं का सामना करना पड़ा था। इब्राहिम लोदी एक बेहद गुस्सैल और उतावला स्वभाव का शासक था, जो कभी भी खुद से नियंत्रण खो बैठता था। इब्राहिम लोदी ने निरंकुश शाही शासन करने की भी कोशश की थी लेकिन उसके अभद्र बर्ताव से की उसकी सेना उससे काफी निराश थी और उसने उसका साथ नहीं दिया था, जिससे इब्राहिम लोदी का यह सपना अधूरा रह गया था।
वहीं इसकी वजह से उसे कई सालों तक सत्ता से भी दूर भी रहना पड़ा था। इसके अलावा इ्ब्राहिम लोदी ने अफगान सरदारों के साथ भी काफी बुरा और कठोर बर्ताव किया था, जिससे बाद में उनक कई शत्रु बन गए थे और उन्होंने पानीपत के मैदान में मुगल सम्राट बाबार द्धारा उनकी हत्या कर दी गई थी।
जिसके चलते लोदी वंश का अंत हो गया और मुगल शासन की शुरुआत हुई। आइए जानते हैं इब्राहिम लोदी की जिंदगी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में –
इब्राहिम लोदी की जीवनी – Ibrahim Lodi History in Hindi
पूरा नाम (Name) | सुल्तान इब्राहिम लोदी |
जन्म (Birthday) | 1480-1490 ईस्वी |
पिता (Father Name) | सिकंदर लोदी |
मृत्यु (Death) | 1526 ईस्वी |
इब्राहिम लोदी का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन – Ibrahim Lodi Information
दिल्ली सल्तनत के आखिरी शासक इब्राहिम लोदी का जन्म सिकंदर लोदी के घर 15वीं सदी में माना जाता गै। इतिहासकारों के मुताबिक उनका जन्म (1480-1490 ईस्वी) में हुआ था। वें सिकंदर लोदी के सबसे छोटे पुत्र थे, वहीं उनके दादा जी लोदी वंश के संस्थापक बहलोल लोदी थे।
उनके पिता सिकंदर लोदी की मौत के बाद इब्राहिम लोदी को लोदी वंश का उत्तराधिकारी बनाया गया, लेकिन वे एक शासक के रुप में न तो ज्यादा दिन तक राज ही कर पाए और न ही लोदी वंश को नई ऊंचाईयों पर पहुंचा पाए बल्कि, उनके रहते हुए उनके द्धारा लिए गए कई गलत फैसलों से लोदी वंश का अंत हो गया और फिर हिंदुस्तान की तल्ख पर मुगलों का डंका बजा।
इब्राहिम लोदी का शासन काल
सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी 1517 ईसवी में आगरा के सिंहासन पर काबिज हुआ। सभी अफगान सरदारों की सर्वसम्मति से इब्राहिम लोदी को लोदी वंश का शासक नियुक्ति की गई थी। वहीं जब इब्राहिम लोदी, लोदी वंश की राजगद्दी पर बैठा तो सिकंदर लोदी ने अपने लोदी साम्राज्य के विस्तार को लेकर कई सपने बुन लिए और लोदी वंश के विस्तार के बारे में सोचने लगे लेकिन आगे चलकर इब्राहिम लोदी उनकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतर सके।
दरअसल वह एक बेहद कठोर शासक था, जो कि अपनी सेना के साथ बेहद कड़की से पेश आता था और उनसे अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता था। इब्राहिम लोदी अपनी उग्रता के लिए जाना जाता था, जो कि लोगों को भयभीत कर एवं डरा धमकरा कर शासन करना चाहता था।
लेकिन उसके इसी उग्र रवैया की वजह से उसे न सिर्फ अपनी जीवन में कई असफलताओं का सामना किया बल्कि लोदी वंश को पतन के मुहाने में लाकर खड़ा कर दिया था। वहीं, उसकी उग्रता से तंग आकर लोगों ने उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करनी शुरु कर दी यहां तक की उसकी अपनी सेना के अंदर भी उसके खिलाफ भारी आक्रोश और प्रतिशोध की भावना बढ़ गई थी।
हालांकि, इब्राहिम लोदी के इसी तानाशाही रवैया की वजह से उनके दुश्मनों को काफी फायदा पहुंचा था और वे लोदी वंश के पतन कर अपने नए साम्राज्य के विस्तार की योजना बनाने में जुट गए थे।
इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर के किले पर की फतह – Gwalior Fort
ग्वालियर के किले पर विजय प्राप्त करना लोदी वंश के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी। दरअसल, इब्राहिम लोदी के पिता सिकंदर लोदी भी ग्वालियर के किले को जीतने की कई बार प्रयास किए लेकिन कुछ खामियों की वजह से वे इस जीत नहीं सके, जिसके बाद लोदी वंश का शासन अपने हाथ में लेते ही इब्राहिम लोदी ने शुरुआत में उसने सबसे पहले राजपूतों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
वहीं इब्राहिम लोदी, उनके पिता द्धारा ग्वालियर के किले पर जीत नहीं हासिल करने के सभी कारणों को और कुछ खामियों को भंली प्रकार जानता था, और उसका यही सटीक विश्लेषण के कारण आगे चलकर उसको काफी फायदा हुआ और उसने खास तरीके से विश्लेषण कर अपनी पूरी सेना को तैयार किया।
इसके बाद इब्राहिम लोदी अपने विशेष रणनीतियों और योजनाओं के अनुरूप आगे बढ़ा और दुश्मन सेना के खिलाफ जंग जीत ली एवं ग्वालियर के किले पर जीत हासिल की। वहीं कुछ इतिहासकारों की माने तो जिस समय इब्राहिम लोदी ग्वालियर के किले पर कब्जा करने की फिराक में हमला कर रहा था, उस दौरान ग्वालियर के राजा मान सिंह की मौत हो गई थी, जिसकी वजह से कुछ छोटे शासकों को इब्राहिम लोदी के खिलाफ मजबूरन आत्मसमर्पण करना पड़ा था। वहीं उसी समय ग्वालियर अंतिम रुप से साम्राज्य में शामिल हुआ था।
इब्राहिम लोदी द्वारा लड़ी गए बड़़े युद्ध – Ibrahim Lodi War
- 1517 ईसवी से 1518 ईसवी के बीच में लोदी वंश के आखिरी शासक इब्राहिम लोदी और मेवाड़ के सुल्तान राणा सांगा के बीच घटोली का युध्द हुआ, जिसमें इब्राहिम लोदी को हार का सामना करना पड़ा था।
- वहीं अप्रैल 1526 ईसवी में दिल्ली सल्तनत का आखिरी शासक इब्राहिम लोदी के द्धारा मुगल वंश के संस्थापक बाबर के साथ एक और बड़ा युद्ध पानीपत के मैदान में हुआ, जिसमें भी कुछ खामियों की वजह से इब्राहिम लोदी को हार का सामना करना पड़ा था।
इब्राहिम लोदी और मेवाड़ के सुल्तान राणा सांगा के बीच भीषण युद्द – Ibrahim Lodi and Rana Sanga (Battle of Khatoli)
लोदी वंश के आखिरी शासक इब्राहिम लोदी के उग्र और क्रूर स्वभाव की कड़ी आलोचना होने लगी थी, वहीं इब्राहिम लोदी की सेना के अंदर भी उसके खिलाफ आक्रोश और असंतोष पैदा हो गया था, ऐसे में इब्राहिम लोदी के दुश्मनों की संख्या बढ़ती जा रही थी और सब लोदी वंश के अंत करने की फिराक में योजना बनाने लगे थे।
ऐसे में मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह ने भी अपनी पूरी योजना के साथ इब्राहिम लोदी पर बिना भनक लगे हुए हमला कर दिया। जबकि राणा सिंह ने लोदी वंश के आखिरी सुल्तान पर हमला करने के लिए अपने सेना को काफी पहले से ही तैयार कर लिया था।
वहीं अचानक हुए हमले से इब्राहिम लोदी ने पहले तो राणा संग्राम सिंह को रोकने की कोशिश की और जब वे नहीं माने तो इब्राहिम लोदी ने भी राणा संग्राम सिंह को परास्त करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन फिर भी इब्राहिम लोदी इस युद्ध को जीतने में नाकामयाब साबित हुआ।
यही नहीं राणा सांगा के सैनिकों ने तानाशाह शासक इब्राहिम लोदी को बंदी भी बना लिया था, लेकिन कुछ दिनों के बाद इब्राहिम लोदी आजाद होने में सफल रहा। वहीं दूसरी तरफ से युद्ध में मेवाड़ के शासक राणा सांगा भी अपना एक हाथ खो बैठा। इसके बाद राणा साँगा ने चन्देरी पर अधिकार कर लिया।
इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच हुई पानीपत की लड़ाई – First Battle of Panipat
दिल्ली सल्तनत के आखिरी सुल्तान इब्राहिम लोदी और मुगल वंश के संस्थापक बाबर के बीच पानीपत के मैदान में 1526 ईसवी में भीषण लड़ाई हुई। इन दोनों शासकों की यह लड़ाई ऐतिहासिक एवं पानीपत की तीन लड़ाईयों में सबसे भयंकर और खतरनाक लड़ाई मानी जाती है।
आपको बता दें कि इस लड़ाई को लड़ने के लिए इब्राहिम लोदी ने काफी पहले से अपनी विशाल सेना को खास रणनीति के साथ प्रशिक्षण देना शुरु कर दिया था। इतिहासकारों की माने तो इब्राहिम लोदी ने करीब 30 हजार से 40 हजार सैनिकों को मुगल सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार किया था, लेकिन फिर भी उसकी विशाल सेना मुगल सम्राट बाबर के सिर्फ 15 हजार सैनिकों के सामने ढीली पड़ गई थी।
बाबरनामा के मुताबिक मुगल सम्राट बाबर की सेना संख्या के हिसाब से कम जरूर थी, लेकिन उसमें कई आधुनिक तकनीक से लैसे नवीनतम हथियार, बंदूक और तोपे भी शामिल थीं। इसके साथ ही सभी सैनिक भी बेहद अनुभवी और सैन्य गुणों से परिपूर्ण थे, जो धनुष-बाण -विद्या में परिपक्व थे।
वहीं अनुभवी मुगल सम्राट बाबर की बेहतरीन और कुशल रणनीति, सूझबूझ और आधुनिक शस्त्रों की ताकत के सामने लोदी वंश के आखिरी शासक इब्राहिम लोदी का विशाल सैन्य बल कमजोर पड़ गया था।
इब्राहिम की सेना के पास सिर्फ तलवार, लाठी, भाला, कुल्हाड़ी और धनुष-बाण आदि थे। इसके अलावा इब्राहिम लोदी के पास कुछ विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था। वहीं इब्राहिम लोदी की सेना में सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसमें एकता नहीं थी और न ही उनका सही दिशा में नेतृत्व किया गया था।
मुगल सम्राट बाबर एक अनुभवी और कुशल शासक था,जो कि इस लड़ाई से पहले कई और बड़ी लड़ाईयां लड़ चुका था, वहीं दूसरी तरफ सिकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी के पास शासकीय योग्यताएं और तजुर्बे की कमी थी।
इसलिए इस लड़ाई में बाबर की सेना ने इब्राहिम लोदी की सेना को काफी नुकसान पहुंचाया था, यही नहीं बाबर ने बारूद का इस्तेमाल कर इब्राहिम लोदी की सेना को उनके सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।
हालांकि इब्राहिम लोदी इस लड़ाई को जीतने में अंत तक लगे रहे लेकिन बाबर की कुशल रणनीति उन पर भारी पड़ गई और इब्राहिम लोदी को इस लड़ाई में बुरी तरह परास्त मिली और पानीपत के इस युद्ध में 21 अप्रैल 1526 में मुगल सम्राट बाबर ने मौत के घाट उतार दिया। और इस तरह लोदी वंश का अंत हो गया और दिल्ली के तल्ख पर मुगलों का राज हुआ।
लोदी वंश के पतन के प्रमुख कारण
लोदी वंश के पतन के कुछ प्रमुख कारणों के बारे में हम आपको नीचे बता रहे हैं जो कि इस प्रकार है – इब्राहिम लोदी का अत्याधिक उग्र, क्रूर और हटी स्वभाव लोदी वंश के अंत का कारण बना। इब्राहिम लोदी में दूरदर्शिता और शासकीय योग्यताओं में कमी। प्रशासनिक प्रणाली का अव्यवस्थित होना एवं व्यापार मार्गों का अवरुद्ध होना।
लोदी वंश में आंतरिक मनमुटाव और लोदी वंश के सिंहासन पर बैठने के लिए लगातार हुए युद्दों की वजह से राजकोष में भारी कमी का आ जाना, जिससे लोदी वंश की नींव कमजोर होती चली गई। लोदी वंश में उचित नीतियों का नहीं बनाना। लोदी वंश में संचार के उचित साधन नहीं थे, जिसकी वजह से समय पर प्रयासों दोनों की जमकर बर्बादी होती थी। इसके साथ ही सेना और प्रजा दोनों को ही इब्राहिम लोदी की योग्यता पर संदेह था।
तो इस तरह अपने पूरे जीवन भर लड़ाई करने वाला लोदी वंश के शासक इब्राहिम लोदी की पानीपत की लड़ाई में मृत्यु के बाद लोदी वंश के साथ-साथ दिल्ली सल्तनत का भी अंत हो गया। वहीं इब्राहिम लोदी जहां अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक एक वीर सैनिक की तरह लड़ता रहा, वहीं दूसरी तरफ इब्राहिम लोदी ने यह बात भी सिद्ध कर दी कि सिर्फ राजा बनना ही काफी नहीं होता है, बल्कि विरासत को आगे बढ़ाने के लिए काबिलियित और प्रतिभा की भी जरूरत होती है।
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