हुमायूँ का मकबरा – Humayun Tomb (मकबरा ए हुमायूँ तुर्किश- हुमायूँ कबरी) भारत के दिल्ली में बना हुआ मुग़ल शासक हुमायूँ का मकबरा है।
1569-70 में हुमायूँ के बेटे अकबर ने इसे मान्यता दी थी और बेगा बेगम द्वारा चुने गये पर्शियन आर्किटेक्ट मिरक मिर्ज़ा घियास ने इसे डिजाईन किया था। भारतीय उपमहाद्वीप का यह पहला गार्डन-मकबरा है।
Humayun Tomb Image
हुमायूँ के मकबरे का रोचक इतिहास -Humayun Tomb In Hindi
1533 में मुग़ल शासक हुमायूँ द्वारा स्थापित पुराना किला के नजदीक दिल्ली के निजामुद्दीन ईस्ट में स्थापित है। और बनाते समय उसमे लाल पत्थरो का उपयोग किये जाने वाला यह पहला मकबरा है। 1993 में इस मकबरे को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया था और तभी से यह मकबरा पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।
हुमायूँ के इस मकबरे के अन्दर बहुत से छोटे-छोटे स्मारक भी बने हुए है, जैसे ही हम मकबरे के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते है वैसे ही हमें रास्ते में बने छोटे-छोटे स्मारक दिखाई देते है।
इसे हुमायूँ के मुख्य मकबरों में से एक माना जाता था। मुग़ल कालीन प्रसिद्ध इमारतो और धरोहरों में हुमायूँ का मकबरा भी शामिल है और इसके साथ ही चारबाग गार्डन, जो एक पर्शियन गार्डन की तरह लगता है वह भी शामिल है क्योकि इस तरह का गार्डन भारत मंर कभी नही देखा गया था।
इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता और पहले मुग़ल शासक बाबर की भी समाधी काबुल (अफगानिस्तान) में बनवायी थी जिसे बाग-ए-बाबर कहा जाता था। और तभी से मुगल साम्राज्य में शासको की मृत्यु के बाद उनकी याद में जन्नत का बाग़ बनाने की प्रथा शुरू हुई।
यमुना का तट निजामुद्दीन दरगाह के निकट होने के कारण ही हुमायूँ के मकबरे को यमुना तट पर ही बनाया गया था और वही मकबरे के पास दिल्ली के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की भी कब्र है। बाद में मुगल इतिहास के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर यहाँ शरणार्थी बनकर आये थे, 1857 की क्रांति के समय, अपनी तीन बेगमो के साथ कप्तान होड्सों ने उन्हें पकड़ लिया था और रंगून में कैद कर के रखा था।
फिर बाद में गुलाम वंश के काल में यह ज़मीन नसीरुद्दीन (1268-1287) के बेटे सुल्तान केकुबाद की राजधानी में “किलोखेरी किला” के नाम से जानी जाती थी।
बत्ताशेवाला मकबरा भी हुमायूँ के मकबरे के वर्ल्ड हेरिटेज साईट के पास ही है, इन दोनों मकबरों को बिच में एक दीवार बनाकर अलग किया गया है जहा पे एक छोटा रास्ता भी बना हुआ है।
हुमायूँ के मकबरे का इतिहास- Humayun Tomb History
20 जनवरी 1556 को हुमायूँ की मृत्यु के बाद उनके शरीर को पहले दिल्ली के पुराना किले में दफनाया गया। बाद में उन्हें खंजर बेग पंजाब के सिरहिंद ले गये क्योकि उन्हें डर था की कही हिन्दू राजा हेमू जिसने अक्टूबर 1556 में आगरा और दिल्ली में मुगल सेना को पराजित किया था कही वह पुराना किला हासिल कर के मकबरे को नुकसान न पहोचाये।
1558 में मकबरे की देखरेख उनके बेटे मुगल शासक अकबर ने की थी। अकबर मकबरे को 1571 में देखने गये थे जिस समय लगभग वह पूरी तरह से बन चूका था।
हुमायूँ के मकबरा किसने बनवाया – Who Built Humayun Tomb
हुमायूँ का मकबरा मुगल साम्राज्य के तीसरे शासक अकबर के आदेश से मिराक मिर्ज़ा घियास (Mirak Mirza Ghiyath) ने बनाया गया था, उनकी मौत के 9 साल बाद 1565 में इसका निर्माणकार्य शुरू हुआ था और 1572 AD में इसका निर्माणकार्य पूरा हुआ था, उस समय इस मकबरे को बनाने में तक़रीबन 1.5 मिलियन रुपये लगे थे।
हुमायूँ की पत्नी अर्नव देओरुखर ने उनकी काफी सहायता की थी। बिल्डिंग और कब्र को बनाने में लगने वाले पैसे बेगा बेगम ने दिये थे।
जब 1556 में हुमायूँ की मृत्यु हो गयी थी तो उनकी मौत का बेगा बेगम को काफी अफ़सोस हुआ था और इसीलिये उन्होंने हुमायूँ की याद में मकबरा-ए-हुमायूँ बनाने की ठानी। आईने-ए-अकबरी के अनुसार 16 वी शताब्दी में अकबर के शासनकाल में इस मकबरे पर डॉक्यूमेंट्री बनायी गयी थी।
हुमायूँ का मकबरे की वास्तुकला – Humayun Tomb Architecture
अब्द-अल-कादिर बंदायूनी, एक समकालीन इतिहासकार के अनुसार इस मकबरे का स्थापत्य फारसी वास्तुकार मीराक मिर्ज़ा घियास (मिर्ज़ा थियाउद्दीन) ने किया था, जिन्हें हेरात, बुखारा (वर्तमान उज्बेकिस्तान में) से विशेष रूप से इस ईमारत के लिये बुलवाया गया था।
इन्होने हेरात की और भारत की भी कई इमारतो की अभिकल्पना की थी। इस ईमारत के पूरा होने से पहले ही वे चल बसे, किन्तु उनके पुत्र सैयद मुहम्मद इब्न मीराक थियाउद्दीन ने अपने पिता का कार्य पूरा किया और मकबरा 1571 में बनकर पूरा हुआ।
एक इंग्लिश व्यापारी, विलियम फिंच 1611 में मकबरे को देखने आया था, उसने बाद में अपने लेख में मकबरे की आतंरिक सुन्दरता, शामियाने, कब्र और दीवारों पर की गयी कलाकृतियों के बारे में बताया। उसने लिखा है कि केन्द्रीय कक्ष की आंतरिक सज्जा आज के खालीपन से अलग बढ़िया कालीनों व गलीचों से परिपूर्ण थी। कब्रों के ऊपर एक शुद्ध श्वेत शामियाना लगा होता था और उनके सामने ही पवित्र ग्रंथ रखे रहते थे।
इसके साथ ही हुमायूँ की पगड़ी, तलवार और जूते भी रखे रहते थे। यहां के चारबाग 13 हेक्टेयर क्षेत्र में फ़ैले हुए थे। आने वाले वर्षों में ये सब तेजी से बदलता गया। इसका मुख्य कारण राजधानी का आगरा स्थानांतरण था।
बाद के मुगल शासकों के पास इतना धन नहीं रहा कि वे इन बागों आदि का मंहगा रख रखाव कर सकें। 18वीं शताब्दी तक यहां स्थानीय लोगों ने चारबागों में सब्जी आदि उगाना आरंभ कर दिया था।
1860 में मुगल शैली के चारबाग अंग्रेज़ी शली में बदलते गये। इनमें चार केन्द्रीय सरोवर गोल चक्करों में बदल गये व क्यारियों में पेड़ उगने लगे। बाद में 20 वीं शताब्दी में लॉर्ड कर्ज़न जब भारत के वाइसरॉय बने, तब उन्होंने इसे वापस सुधारा।
1903-09 के बीच एक वृहत उद्यान जीर्णोद्धार परियोजना आरंभ हुई, जिसके अंतर्गत्त नालियों में भी बलुआ पत्थर लगाया गया।
1915 में पौधारोपण योजना के तहत केन्द्रीय और विकर्णीय अक्षों पर वृक्षारोपण हुआ। इसके साथ ही अन्य स्थानों पर फूलों की क्यारियां भी वापस बनायी गईं।
भारत के विभाजन के समय, अगस्त, 1947 में पुराना किला और हुमायुं का मकबरा भारत से नवीन स्थापित पाकिस्तान को लिये जाने वाले शरणार्थियों के लिये शरणार्थी कैम्प में बदल गये थे। बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नियंत्रण में ले लिया गया। ये कैम्प लगभग पांच वर्षों तक रहे और इनसे स्मारकों को अत्यधिक क्षति पहुंची, खासकर इनके बगीचों, पानी की सुंदर नालियों आदि को।
इसके उपरांत इस ध्वंस को रोकने के लिए मकबरे के अंदर के स्थान को ईंटों से ढंक दिया गया, जिसे आने वाले वर्षों में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने वापस अपने पुराने रूप में स्थापित किया। हालांकि 1985 तक मूल जलीय प्रणाली को सक्रिय करने के लिये चार बार असफल प्रयास किये गए।
मार्च 2003 में आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा इसका जीर्णोद्धार कार्य सम्पन्न हुआ था। इस जीर्णोद्धार के बाद यहां के बागों की जल-नालियों में एक बार फिर से जल प्रवाह आरंभ हुआ। इस कार्य हेतु पूंजी आगा खान चतुर्थ की संस्था के द्वारा उपहार स्वरूप प्रदान की गई थी।
चार बाग़ गार्डन – Char Bagh Garden Humayun’s Tomb
मुख्य इमारत के निर्माण में आठ वर्ष लगे, किन्तु इसकी पूर्ण शोभा इसको घेरे हुए 30 एकड़ में फैले चारबाग शैली के मुगल उद्यानों से निखरती है। ये उद्यान भारत ही नहीं वरन दक्षिण एशिया में अपनी प्रकार के पहले उदाहरण थे। ये उच्च श्रेणी की ज्यामिती के उदाहरण हैं। जन्नत रूपी उद्यान चहार दीवारी के भीतर बना है।
ये उद्यान चार भागों में पैदल पथों (खियाबान) और दो विभाजक केन्द्रीय जल नालिकाओं द्वारा बंटा हुआ है। ये इस्लाम के जन्नत के बाग में बहने वाली चार नदियों के परिचायक हैं। इस प्रकार बने चार बागों को फिर से पत्थर के बने रास्तों द्वारा चार-चार छोटे भागों में विभाजित किया गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर 32 भाग बनते हैं।
केन्द्रीय जल नालिका मुख्य द्वार से मकबरे तक जाती हुई उसके नीचे जाती और दूसरी ओर से फिर निकलती हुई प्रतीत होती है, ठीक जैसा कुरआन की आयतों में ’जन्नत के बाग’ का वर्णन किया गया है। मकबरे को घेरे हुए चारबाग हैं, व उन्हें घेरे हुए तीन ओर ऊंची पत्थर की चहार दीवारी है व तीसरी ओर कभी निकट ही यमुना नदी बहा करती थी, जो समय के साथ परिसर से दूर चली गई है।
केन्द्रीय पैदल पथ दो द्वारों तक जाते हैं, एक मुख्य द्वार दक्षिणी दीवार में और दूसरा छोटा द्वार पश्चिमी दीवार में। ये दोनों द्वार दुमंजिला हैं। इनमें से पश्चिमी द्वार अब प्रयोग किया जाता है, व दक्षिणी द्वार मुगल काल में प्रयोग हुआ करता था और अब बंद रहता है। पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई एक बारादरी है। इसमें नाम के अनुसार बारह द्वार हैं और इसमें ठंडी बहती खुली हवा का आनंद लिया जाता था।
उत्तरी दीवार से लगा हुआ एक हम्माम है जो स्नान के काम आता था। मकबरे के परिसर में चारबाग के अंदर ही दक्षिण-पूर्वी दिशा में 1590 में बना नाई का गुम्बद है। इसकी मुख्य परिसर में उपस्थिति दफ़नाये गये व्यक्ति की महत्ता दर्शाती है। वह शाही नाई हुआ करता था।
यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बना है जिस पहुंचने के लिये दक्षिण ओर से सात सीढ़ियां बनी हैं। यह वर्गाकार है और इसके अकेले कक्ष के ऊपर एक दोहरा गुम्बद बना है। अंदर दो कब्रों पर कुरआन की आयतें खुदी हुई हैं। इनमें से एक कब्र पर 999 अंक खुदे हैं, जिसका अर्थ हिजरी का वर्ष 999 है जो 1590-91 ई. बताता है।
हुमायूँ के मकबरे को देखने का समय – Humayun Tomb Timings
हुमायूँ का मकबरा को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया हैं इसलिए यहाँ बहुत से पर्यटन आते रहते हैं। इसे देखने का समय सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक का हैं।
हुमायूँ के मकबरे की कुछ रोचक बाते – Humayun’s Tomb Interesting Facts
1. हुमायूँ के मकबरे में हुमायूँ का शरीर दो अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया है।
2. एक इंग्लिश व्यापारी, विलियम फिंच 1611 में मकबरे को देखने आया था, उसने बाद में अपने लेख में मकबरे की आतंरिक सुन्दरता, शामियाने, कब्र और दीवारों पर की गयी कलाकृतियों के बारे में बताया। उसने लिखा है कि केन्द्रीय कक्ष की आंतरिक सज्जा आज के खालीपन से अलग बढ़िया कालीनों व गलीचों से परिपूर्ण थी।
कब्रों के ऊपर एक शुद्ध श्वेत शामियाना लगा होता था और उनके सामने ही पवित्र ग्रंथ रखे रहते थे। इसके साथ ही हुमायूँ की पगड़ी, तलवार और जूते भी रखे रहते थे।
3. मकबरे की डिजाईन पर्शियन और भारतीय परंपराओ के अनुसार बनायी गयी है।
4. हुमायूँ के मकबरे में तक़रीबन 150 कब्रे है जो एक गार्डन से घिरी हुई है।
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sir 32 bagh h aapne 36 likhe h….?
vansh ji,
post ko update kar diya gaya hain.
Apaka bahut dhanyavad
ऐसा कहा जाता है कि वे एक युद्ध के दौरान एक झोपड़ी में रुके थे और उसी झोपडी को वे एक महल बना देना चाहते थे। बाद में हुमायूँ के मरने के बाद अकबर ने उसी स्थान पर मंदिर बनाया जिसमे लिखा था कि
“सातों देश के नरेश हुमायूं ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था।
Lekin uper likha he k humayun ko हुमायूँ के मकबरे में हुमायूँ का शरीर दो अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया है. Ek sharir ko do alag alag jagah pe kaise dafnaya ja sakta he hame ye yakin nahi ho RHA he or nahi kabhi hogi
आपने यहाँ पर एक गलत जानकारी दी है कि हुमांयू के मकबरे में हुमायु को दो बार दफनाया गया | जबकि वास्तविकता यह है कि हुमायु के मकबरे में हुमायु को एक बार ही दफनाया गया बल्कि उसके मौत के बाद सबसे पहले पुराने किले में उसके शरीर को दफन किया गया लेकिन हिन्दू सम्राट हेमू के डर से उनकी कब्र को पंजाब के शिरिंद में दफ़नाया गया | इसके बाद जब अकबर फिर सम्राट बना तब उसने अपने पिता के लिए दिल्ली में फिर से जगह बनवाई और हुमायु की मौत के बाद अंतिम बार उसकी कब्र हुमायु के मकबरे में बनवाई गयी जो हुमायु की असली कब्र है |
Sir Aapne India Ke History Ke Bareme Jankari Dekar Hamara Gyan Badha Rahe Hain, Aaj Kal Ke Yug Me Technology Ke Sath Sath Hame Hamare Desh Ke Itihas Ki Jankari Hona Bhi Jaruri Hain.
Thanks Shilpa Ji,
Humayun ke bare me or bhi janakari hai site par…