Harivansh rai Bachchan Books
हिन्दी साहित्य के महान कवि हरिवंश राय जी की ख्याति भारतीय सिनेमा जगत के विख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन के पिता के तौर पर भी फैली हुई है। वहीं सुपरस्टार अमिताभ जी ने अपने पिता हरिवंश राय बच्चन जी की कई कविताओं को अपनी आवाज दी है, जो कि लोगों द्धारा खूब पसंद की गई हैं। आपको बता दें कि हरिवंश राय जी की एकदम अलग भाषाशैली की वजह से इन्हें नवीन युग के प्रारंभ के रूप में भी जाना जाता है।
हिन्दी साहित्य में इनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए इन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। आपको बता दें कि साल 1968 में हरिवंशराय बच्चन जी को उनकी कृति दो चट्टाने के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उन्हें साल 1968 में ही सोवित लैंड नेहरू पुरस्कार और एफ्रो एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था और उसी साल इन्हें बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी लिखी हुई आत्मकथा के विषय में उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था।
इसके अलावा उन्हें भारत सरकार के कर कमलों द्धारा साल 1976 में साहित्य और हिंदी लेखन में अभूतपूर्व योगदान और प्रेरणादायक काम के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। हरिवंश राय बच्चन जी की कविताओं में जीवंत वर्णन देखने को मिलता है वहीं उनकी सभी रचनाएं हमारे देश के लिए धरोहर है। जिनके बारे में आज हम आपको अपने इस आर्टिकल में बताएंगे –
आइए जानते हैं हिन्दी के महान कवि हरिवंश बच्चन की मशहूर किताबों के बारे में – Harivansh rai Bachchan Books
क्या भूलूं क्या याद करुं – Kya Bhulu Kya Yaad Karu
क्या भूलूं क्या याद करूं हिन्दी साहित्य के महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की आत्मकथा ही नहीं, बल्कि भारतीय हिन्दी साहित्य की एक कालजयी कृति है, जो कि 4 हिस्सों में बंटी हुई है, जिसमें कवि ने अपने युवावस्था से कवि बनने तक के सफर का बखूबी वर्णन किया है।
हरिवंश राय जी की इस कृति से यह पता चलता है कि उनकी कविता उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति कैसे बन गई और और उनका काम कैसे समाज के कई पहलुओं से प्रभावित हुआ है।
महान लेखक हरिवंश जी के इस किताब ने हिन्दी साहित्य में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि हरिवंश राय जी की यह कृति क्या भूलूं क्या याद करुं, उनके व्यक्तिगत और व्यावसायिक यात्रा की एक व्यापक कहानी है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन की उन घटनाओं का वर्णन किया गया है, जिन घटनाओं की वजह से वे इस मुकाम तक पहुंचे और जिनसे उन पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। इसके अलावा कई ऐसे कारण भी बताए जो उनकी कविता को प्रभावित करते हैं।
इस रचना के लिए हरिवंश राय बच्चन जी को भारतीय साहित्य के सबसे ऊंचे पुरस्कार सरस्वती सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी के द्दारा लिखी यह आत्मकथा का हिन्दी प्रकाशनों में सबसे ऊंचा स्थान है।
मधुशाला – Madhushala
मधुशाला, भारतीय हिन्दी साहित्य के महान कवि और प्रख्यात लेखक हरिवंश राय बच्चन जी का अनुपम काव्य है। जिसे साल 1935 में प्रकाशित किया गया। आपको बता दें कि हरिवंश राय जी की इस मशहूर काव्य रचना में 135 रुबाइयां हैं। यह 20 के दशक की काफी मशहूर और भारतीय हिन्दी साहित्य की अहम रचना हैं, जिसे पढ़कर पाठको के मन में भाव पैदा होते हैं। इस काव्य रचना में सूफीवाद का दर्शन भी होता है।
हरिवंश राय जी की इस काव्य रचना की वजह से उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और वे लोगों के बीच काफी मशहूर हो गए। वहीं यह मशहूर काव्य की अच्छी बिक्री भी हुई और हर साल मधुशाला के दो-तीन संस्करण प्रकाशित किए गए।
हरिवंश राय जी ने अपनी इस काव्य रचना में मधु, मदिरा, हाला (शराब), साकी (शराब पड़ोसने वाली), प्याला (कप या ग्लास), मधुशाला और मदिरालय की मदत से जिंदगी की कठिनाइयों का भावपूर्ण और सहजता से बखान किया है।
हरिवंश राय जी की इस काव्य रचना ने जहां एक तरफ ख्याति बटोरी वहीं दूसरी तरफ कई लोगों ने शराब की प्रशंसा के लिए उनकी आलोचना भी की। हरिवंश राय बच्चन जी की आत्मकथा के मुताबिक, महात्मा गांधी ने मधुशाला का पाठ सुनकर कहा कि मधुशाला की आलोचना ठीक नहीं है।
मधुशाला बच्चन की रचना-त्रय ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ का हिस्सा है जो उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित है।
मधुशाला डॉक्टर हरिवंश राय जी की ऐसी रचना हैं, जिसकी बदौलत उनका नाम हिन्दी साहित्य के बेशकीमती सितारों में शुमार हो गया। वहीं यह रचना इतनी मशहूर हुई कि जगह-जगह इसे नृत्य नाटिका के रूप में भी प्रस्तुत किया गया और मशहूर नृत्यकों ने इसे प्रस्तुत किया।
इसके अलावा हरिवंश राय बच्चन जी के बेटे और बॉलीवुड के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने भी कई जगहों पर मधुशाला की रूबाइयों का पाठ किया और लोगों को अभिभूत किया।
दो चट्टानें – Do Chattanein
हिन्दी साहित्य के महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की काव्य रचना दो चट्टाने भी उनकी काफी मशहूर कविता-संग्रह है। आपको बता दें कि बच्चन जी की इस रचना ने काफी प्रसिद्धि हासिल की। वहीं इस रचना के लिए उन्हें साल 1968 में देश के सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक पुरस्कार, हिन्दी कविता के साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मनित किया जा चुका है।
आपको बता दें कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित होना भी अपनी विशिष्टता लिये हुए है। हिन्दी के महान कवि हरिवंश राय जी को हिन्दी साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार दिए जाने पर न सिर्फ उन्होंने देश का मान बढ़ाया है बल्कि साहित्य अकादमी के पुरस्कार की भी गरिमा बढ़ी है।
अपनी कविताओं के माध्यम से जिंदगी की सच्चाई का बखान जितनी सहजता से हरिवंश राय बच्चन जी ने किया है, उतने ही उनके प्रशंसकों में भी बढ़ोतरी हुई है। उनके लिए पाठकों के दिल में एक अलग सम्मान है।
नीड़ का निर्माण फिर – Need ka Nirman Phir Phir
यह किताब, हिन्दी साहित्य के प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन जी की आत्मकथा के चार खंडों में दूसरी है। आपको बता दें कि हरिवंश राय जी ने अपनी आत्माकथा के चारो खंडों में बेहद सुंदर और सहज तरीके से एक साथ अपने युवावस्था से एक लेखक बनने के सफर की व्याख्या की है।
उनकी यह किताब नीड़ के निर्माण से पता चलता है कि उनकी कविता, उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति कैसे बन गई और उनके काम को समाज के कई पहलुओं से किस तरह प्रभावित होना पड़ा।
हालांकि हरिवंश जी की यह पुस्तक, नीड़ का निर्माण फिर हरिवंश राय बच्चन की एक मशहूर रचना है और यह पद्यखंड श्री हरिवंश राय ‘बच्चन’ के सतरंगिनी नामक काव्य से ली गई है।
महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की आत्मकथा के दूसरे भाग नीड़ का निर्माण फिर का प्रकाशन साल 1970 में किया गया। आपको यह भी बता दें कि डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी को इसके लिए प्रथम सरस्वती सम्मान से भी सम्मानित किया गया।
बसेरे से दूर – Basere se door
हिन्दी साहित्य के प्रख्यात कवि हरिवंशराय बच्चन जी की यह कृति उनकी बहुप्रशंसित आत्मकथा के चार खंडों में से एक है। जिसमें कवि ने एक प्रतिभावान और साहसी लेखक के तौर पर एक सशक्त महागाथा का बखान किया है। डॉक्टर हरिवंश राय जी की यह कृति उनकी जिंदगी की अन्तर्धारा का वृत्तान्त ही नहीं कहती बल्कि छायावादी युग के बाद के साहित्यिक परिदृश्य का विवेचन भी बेहद सहजता से प्रस्तुत करती है।
आपको बता दें कि बच्चन जी की यह आत्मकथा हिन्दी साहित्य के सफर का मील का पत्थर है। वहीं इस मशहूर कृति के लिए हरिवंश राय बच्चन जी को भारतीय हिन्दी साहित्य के सबसे ऊंचे पुरस्कार ‘सरस्वती सम्मान’ से भी नवाजा जा चुका है।
आपको बता दें कि अपनी आत्मकथा के इस खंड में डॉक्टर हरिवंश जी ने बड़े ही बेबाकी और साहसी तरीके से अपने बारे में पाठकों को बताया है। और भारतीय हिन्दी साहित्य के प्रकाशनों में यह आत्मकथा सबसे महत्वपूर्ण है।
निशा – निमंत्रण – Nisha Nimantran
मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन जी की यह पुस्तक निशा निमंत्रण कई गीतों का संकलन हैं। उनकी इस पुस्तक को साल 1938 में प्रकाशित किया गया। आपको बता दें कि हरिवंश जी की इस किताब में 13-13 लाइन के यह गीत हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक हैं।
डॉक्टर हरिवंश राय जी कि इस किताब की भाषा शैली भी बेहद सरल और सुगम है। इसके साथ ही इसके गीत अतुलनीय है। इसके साथ ही कवि ने अपनी इस पुस्तक निशा-निमंत्रण में भावपूर्ण तरीके से सभी गीतों को लिखा है, जो कि पाठकों के ह्र्दय में सुख की अनुभूति कराते हैं।
वहीं इस पुस्तक का पहला गीत ‘दिन जल्दी जल्दी ढलता है’ से शुरु होता है। और अंत तक निशा-निमंत्रण के गीत पाठकों को बांधे रखती है।
सतरंगिनी – Sataraingini
यह पुस्तक भी डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन जी की प्रख्यात पुस्तक में से एक है, जिसमें 50 कविताएं हैं। हरिवंश राय जी की इस मशहूर किताब में 1 प्रवेश गीत है और 49 कविताएं 7-7 कविताओं के 7 खंड़ों में अलग-अलग बांटा गया है। डॉक्टर हरिवंश राय जी की इस किताब का प्रकाशन साल 1945 में हुआ था।
इनके अलावा भी हरिवंश राय बच्चन जी की कई और कृतियां हैं, जिनके नाम नीचे लिखे गए हैं –
- जाल समेटा
- उभरते प्रतिमानों के रूप
- कटती प्रतिमाओं की आवाज
- बहुत दिन बीते
- चार खेमे चौंसठ खूंटे
- त्रिभंगिमा
- बुद्ध और नाचघर
- आरती और अंगारे
- धार के इधर उधर
- प्रणय पत्रिका
- मिलन यामिनी
- सूत की माला
- खादी के फूल
- बंगाल का काव्य
- हलाहल
- आकुल अंतर
- एकांत संगीत
- आत्म परिचय
- मधुकलश
- मधुबाला
- तेरा हाल
- आत्म कथा
- दशद्धार से सोपान तक
- नीड़ का निर्माण फिर
- बसेरे से दूर
- क्या भूंलूं क्या याद करूं
- मेरी श्रेष्ठ कविताएं
- मधुबाला
- खैयाम की मधुशाला
- मधुकलश
- तेरा हार
हरिवंश राय बच्चन जी की विविध कृतियां –
- आ रही रवि की सवारी
- बच्चन रचनावली के नौ खंड
- मेरी श्रेष्ठ कविताएं
- आठवें दशक की प्रतिनिधि श्रेष्ठ कविताएं
- सोहं हंस
- मेरी कविताओं की आधी सदी
- गोलंबर
- टूटी छूटी कड़ियां
- किंग लियर
- प्रवास की डायरी
- पंत के सौ पत्र
- भाषा अपनी भाव पराए
- हैमलेट
- मरकट द्दीप का स्वर
- डब्लू बी यीट्स एंड औकल्टिज्म
- बचपन के लोकप्रिय गीत
- नागर गीत
- चौसठ रूसी कविताएं
- अभिनव सोपान
- नए पुराने झरोखे
- नेहरू: राजनैतिक जीवनचित्र
- आधुनिक कवि
- आज के लोकप्रिय हिन्दी कवि: सुमित्रानंदन पंत
- कवियों के सौम्य संत पंत
- उमर खय्यामकी रुबाइयां
- ओथेलो
- जनगीता
- मैकबेथ
- सोपान
- खय्याम की मधुशाला
- बचपन के साथ क्षण भर
छायावादी युग के महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविताओं का इस्तेमाल कई फिल्मों में भी किया गया है। दरअसल सिलसिला मूवी का अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया प्रसिद्ध गाना रंग बरसे हरिवंशराय जी द्धारा लिखी गई एक कविता है। इसके अलावा रितिन रोशन की फिल्म अग्निपथ में बार-बार दोहराई गई पंक्ति अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ भी हरिवंश राय की लिखी हुई रचना है।
इसके अलावा अलाप मूवी का प्रसिद् गाना, कोई गाता मै सो जाता भी हरिवंश राय बच्चन की लिखी गई कृति है।
हिन्दी साहित्य के महान कवि हरिवंश राय जी कविताएं और पुस्तकें पढ़ने से न सिर्फ लोगों के दिल में नई ऊर्जा प्रदान होती है बल्कि यह आगे बढ़ने के लिए भी प्रेरित करती हैं।
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