डॉ. हरगोविंद खुराना जी एक महान भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिक थे, जिन्होंने DNA को डिकोड किया था और जीन इंजीनियरिंग की नींव रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन्हें प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का बेहतर प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार भी प्रदान किया गया था, तो आइए जानते हैं महान वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना जी के जीवन और उनके द्वारा की गईं महत्वपूर्ण रिसर्च के बारे में-
डॉ. हरगोविंद खुराना जी की जीवनी – Dr Hargobind Khorana In Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | डॉ. हरगोविंद खुराना |
जन्म (Birthday) | 9 जनवरी 1922, रायपुर, मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान में) |
शिक्षा (Education) |
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पेशा | महान वैज्ञानिक |
कार्यक्षेत्र | मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी |
पुरस्कार (Awards) |
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मृत्यु (Death) | 9 नवंबर, 2011, कॉनकॉर्ड, मैसाचूसिट्स, अमरीका |
शुरुआती जीवन एवं शिक्षा –
हरगोविंद खुराना जी 9 जनवरी, साल 1922 में एक पटवारी के घर में अविभाजित भारत के रायपुर, जन्में थे, जो कि वर्तमान में पाकिस्तान के मुल्तान जिले का हिस्सा है।
वे अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान के रुप में एक बेहद गरीब और निर्धन परिवार में जन्में थे, हालांकि उनकी परिवार की मालीय हालत का असर उनके पिता ने कभी अपने बच्चों की पढ़ाई पर नहीं पड़ने दिया, जिसकी वजह से शुरु से ही हरगोविंद जी को पढ़ाई का माहौल मिल सका।
वहीं उस दौरान 1 हजार लोगों की जनसंख्या वाले गांव में हरगोविंद जी का परिवार ही एकमात्र पढ़ा-लिखा एवं शिक्षित परिवार था।
साल 1934 में जब हरगोविंद जी 12 साल के थे, तब उनके सिर से उनके पिता का साया उठ गया, जिसके बाद उनके बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी उठाई।
पढ़ाई –
हरगोविंद खुराना जी बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा वाले एवं कुशाग्र बुद्धि के बालक थे, जिन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई स्थानीय स्कूल में रहकर ही की, फिर इसके बाद उन्होंने मुल्तान के डी.ए.वी. हाईस्कूल में दाखिला लिया।
साल 1943 में हरगोविंद जी ने पंजाब यूनिवर्सिटी से Bsc (ऑनर्स) और साल 1945 में इसी यूनिवर्सिटी से MSC (ऑनर्स) की पढ़ाई पूरी की।
वहीं इसके बाद उन्हें भारत सरकार की तरफ से आगे की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप प्राप्त हुई, जिसे लेकर वे इंग्लैंड चले गए और फिर इंग्लैंड में उन्होंने लिवरपूल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरैट की उपाधि हासिल की।
फिर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में लार्ड टाड के साथ काम किया। साल 1950 से 1952 करीब 2 साल हरगोविंद ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में ही गुजारे।
इसके बाद उन्होंने वहां के प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में न सिर्फ रिसर्च वर्क किया बल्कि प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने का काम भी किया, वहीं हरगोविंद जी के बारे में सबसे हैरानी की बात यह थी कि उच्च शिक्षा हासिल करने के बाबजूद भी उस समय उन्हें भारत में कोई काम नहीं मिल सका, जिसके चलते उन्हें इंग्लैंड का रुख करना पड़ा था।
फिलहाल साल 1952 में हरगोविंद जी को कैनाडा की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से ऑफर आया, जिसके बाद उन्होंने इस यूनिवर्सिटी को ज्वॉइन कर लिया, यहां उन्हें जैव रसायन विभाग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। वहीं इसी यूनिवर्सिटी में रहकर हरगोविंद जी ने आनुवांशिकी के क्षेत्र में अपनी रिसर्च शुरु की।
वहीं धीमे-धीमे हरगोविंद जी के इंटरनेशनल मैग्जीन, शोध जर्नलों में प्रकाशित होने लगे थे। वहीं इस दौरान उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली और उनके शोधपत्रों की चर्चा होने लगी।
इसके बाद 1960 में डॉ. हरगोविंद जी को कनाडा में प्रोफेसर इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक सर्विस में गोल्ड मेडल दिया गया एवं मर्क अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
इसी साल डॉ. हरगोविंद खुराना अमेरिका के विस्कान्सिन यूनिवर्सिटी (University Of Wisconsin)के इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस रिसर्च में प्रोफेसर बनाए गए।
साल1960 में ही महान वैज्ञानक डॉ. खुराना ने नीरबर्ग की इस रिसर्च को स्पष्ट करते हुए यह बताया था कि डी.एन.ए. अणु के घुमावदार‘सोपान’पर चार अलग-अलग तरह के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को उचित तरीके से निर्धारित करता है।
इसके अलावा महान वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना जी ने जीन इंजानियरिंग यानि की बायोटेक्नोलॉजी की नींव रखने में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
आपको बता दें कि उन्हें जेनेटिक कोड की भाषा को सही तरीके से समझने एवं प्रोटीन संश्लेषण में न्यक्लिटाइड की भूमिका का प्रर्दशन करने के लिए साल 1968 में नोबल पुरस्कार से भी नवाजा गया था।
हालांकि यह पुरस्कार सांझा तौर पर दो और अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ. रॉबर्ट होले और डॉ.मार्शल निरेनबर्ग के साथ दिया गया था। आपको बता दें कि इस दौरान इन तीनों ने DNA अणु की संरचना को भी स्पष्ट करने के साथ यह भी बताया था कि D.N.A प्रोटीन्स का संश्लेषण किस तरह करता है।
वहीं उनकी इस रिचर्स के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि जीन्स का निर्माण RNA और DNA के संयोग से बनता है, वहीं यह जीवन की मूल इकाई भी माना जाता हैं, वहीं इन अम्लों में ही आनुवंशिकता का मूल रहस्य छिपा हुआ है।
साल 1966 में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता स्वीकार कर ली थी। इसके बाद वे साल 1970 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में (MIT) में जीव विज्ञान के अल्फ्रेड स्लोअन प्रोफेसर के तौर पर नियुक्त किेए गए।
इसके बाद वे करीब 37 साल इसी इंस्टीट्यूट से जुड़े रहे और इस दौरान उन्हें काफी प्रसिद्धि हासिल की।
विवाह, बच्चे एवं निजी जीवन –
दुनिया के महान वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद खुराना जी ने 30 साल की उम्र में साल 1952 में स्विजरलैंड के संसद सदस्य की बेटी एस्थर एलिजाबेथ सिब्लर से शादी कर ली थी।
शादी के बाद दोनों को डेव रॉय, जूलिया एलिजाबेथ, एमिली एत्र नाम की तीन संतान पैदा हुईं। आपको बता दें कि हरगोविंद जी की तरह उनकी पत्नी एलिजाबेथ भी वैज्ञानिक थी, दोनों की काफी अच्छी बॉन्डिंग थी, एलिजाबेथ, रिसर्च और स्टडी में उनका काफी सहयोग करती थी और अपने पति की भावनाओं का सम्मान करती थी एवं उन्हें बेहद अच्छी तरह से समझती थीं।
पुरस्कार/ सम्मान –
मॉलीक्यूलर बॉयोलॉजी में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले विश्व के महान वैज्ञानिक डॉ हरगोविंद खुराना को उनके द्वारा की गई महान रिसर्च के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार समेत तमाम सम्मानों से नवाजा गया, उन्हें मिले पुरस्कारों की सूची इस प्रकार है-
- डॉ. हरगोविंद खुराना जी को साल 1968 में प्रोटीन संश्लेषण में न्यूक्लिटाइड की भूमिका का बेहतर प्रदर्शन करने के लिए चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है।
- इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वे भारतीय मूल के पहले वैज्ञानिक थे।
- साल 1968 में ही डॉ. खुराना को लूसिया ग्रास हारी विट्ज पुरस्कार और लॉस्कर फेडरेशन पुरस्कार से भी नवाजा गया।
- साल 1969 में डॉ. हरगोविन्द खुराना जी को भारत सरकार की तरफ से पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- साल 1967 में डॉ. हरगोविंद खुराना जी को डैनी हैनमैन अवॉर्ड दिया गया था।
- डॉ. हरगोविंद खुराना जी को साल 1958 में उन्हें कनाडा का मर्क मैडल पुरस्कार से सम्मानित किया।
निधन –
जीन इंजीनियरिंग या बायोटेक्नोलॉजी की नींव रखने वाले विश्व के महान वैज्ञानिक डॉ. हरगोविंद जी 9 नवंबर साल 2011 में इस दुनिया को अलविदा कहकर चले गए। वे आज भले ही हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा की गई महान खोज के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।