Gyani Zail Singh – ज्ञानी जैल सिंह भारत के सातवे राष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल 1982 से 1987 के बीच था। राष्ट्रपति बनने से पहले वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस पार्टी के एक राजनेता थे और यूनियन कैबिनेट में वह बहुत से पदों पर विराजमान भी थे, इसमें गृहमंत्री का पद भी शामिल है।
ज्ञानी जैल सिंह की जीवनी – Gyani Zail Singh Biography in Hindi
उनके राष्ट्रपति कार्यकाल में बहुत सी घटनाये घटी, जिनमे मुख्य रूप से ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गाँधी की हत्या और 1984 में सिक्ख विरोधी दंगा भी शामिल है। 1994 में एक कार एक्सीडेंट के बाद भारी चोट आने की वजह से उनकी मृत्यु हो गयी थी।
5 मई 1916 को फरीदकोट जिले के संधवान में उनका जन्म किशन सिंह के यहाँ हुआ था। धर्म से वे सिक्ख समुदाय के थे, अमृतसर के शहीद सिक्ख मिशनरी कॉलेज में उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की पढाई कर रखी थी, इसीलिए उन्हें ज्ञानी नाम दिया गया था।
भारत के राष्ट्रपति:
1982 में बिना किसी विरोध के उनका नामनिर्देशन भारत के राष्ट्रपति के रूप में किया गया। फिर भी मीडिया में ऐसी अफवाह फ़ैल रही थी की उनका नामनिर्देशन इसलिए किया गया था क्योकि इंदिरा गांधी अपने वफादारी इंसान को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी।
चुनाव के बाद सिंह ने कहा था की,
“यदि मेरे लीडर कहेंगे की मैंने झाड़ू उठाना चाहिए और झाड़ू लगाने वाला बन जाना चाहिए, तो मुझे ऐसा करना चाहिए। क्योकि उन्होंने ही मुझे राष्ट्रपति बनने के लिए चुना है।”
25 जुलाई 1982 को राष्ट्रपति कार्यालय में उन्होंने शपथ ली थी। राष्ट्रपति बनने वाले वे पहले सिक्ख थे।
वह गांधी के बगल में खड़े रहकर देश की सेवा करते थे और हर हफ्ते वे उन्हें तय किये गये प्रोटोकॉल की जानकारी देते थे। इसके बाद 31 अक्टूबर को उसी साल इंदिरा गाँधी की हत्या कर दी गयी और उन्होंने अपने बड़े बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया।
मृत्यु और स्मरणोत्सव:
29 नवम्बर 1994 को रोपर जिले के कितारपुर के पास से यात्रा करते समय एक ट्रक गलत साइड से आ रहा था और कार में यात्रा कर रहे जैल की कार ट्रक से टकरा गयी और उनका एक्सीडेंट हो गया, इस हादसे के बाद जैल बहुत सी बीमारियों से जूझ रहे थे और उन्हें बहुत चोट भी लगी थी।
25 दिसम्बर को 1994 में चंडीगढ़ में उपचार के दौरान की उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु के बाद भारत सरकार ने सात दिन का राष्ट्रिय शोक भी घोषित किया था। दिल्ली के राज घाट मेमोरियल में उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
उनकी याद में भारतीय पोस्ट विभाग ने 1995 में सिंह की पहली मृत्यु एनिवर्सरी पर एक पोस्टेज स्टैम्प भी जारी किया था।
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