गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Nibandh

Guru Purnima Nibandh

हमारा भारत देश त्योहारों और मेलों का देश हैं, जहां अलग-अलग धर्म, जाति संस्कृति के लोग अपने-अपने तरीके और रीति-रिवाज से त्योहारों को मनाते हैं, वहीं इस त्योहारों में न सिर्फ धार्मिक और सौहार्दपूर्ण वातावरण देखने को मिलता है, बल्कि इन त्योहारों के माध्यम से लोगों के बीच में आपस में प्रेम, भाईचारा बढ़ता है और मिलजुल कर रहने की सीख मिलती है एवं आपसी रिश्ते मजबूत होते है।

वहीं उन्हीं त्योहारों में से एक है गुरु पूर्णिमा, जो कि गुरुओं को समर्पित त्योहार है, इस त्योहार का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। वहीं आज की युवा पीढ़ी को गुरुओं के प्रति आदर-सम्मान का भाव लाने और जीवन में गुरुओं के महत्व को समझाने के लिए गुरु पूर्णिमा पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है।

इसलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट में गुरु पूर्णिमा पर अलग-अलग शब्द सीमाओं में निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसे आप अपनी जरुरत के मुताबिक इस्तेमाल कर सकते हैं –

Guru Purnima Nibandh

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Nibandh

प्रस्तावना

गुरु का हर किसी के जीवन में बेहद महत्व है, गुरु के ज्ञान के बिना व्यक्ति अपने जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता है और न ही कभी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है, इसलिए बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों, संत और महाकवियों ने भी गुरु के महत्वता का वर्णन किया है और गुरु को ईश्वर का दर्ज दिया है –

“गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं, जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों को दूर करता है।ऐसे गुरु को मैं बार-बार नमन करता हूँ।

वहीं गुरु पूर्णिमा का पर्व भी गुरुओं के आदर-सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पावन पर्व है।

गुरु पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती है – Guru Purnima Kab Hai

गुरुओं के प्रति श्रद्धा-भाव और आस्था के इस पर्व को हिन्दू कैलेंडर के आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व को, श्री मदभगवतगीता, समस्त 18 पुराण और चार वेदों की रचना करने वाले संस्कृत के प्रकंड विद्धान महर्षि वेदव्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।

वेदव्यास जी ने अपनी महान रचनाओं के माध्यम से समस्त संसार को सही और गलत के ज्ञान का बोध करवाया है, साथ ही अपनी रचनाओं में कई ऐसे उपदेश दिए हैं, जिससे मनुष्य का कल्याण हो सकता है, इसलिए उन्हें पूरे संसार का गुरु यानि कि “आदि गुरु” भी माना जाता है।

महामुनि वेद व्यास जी के नाम पर गुरुओं के आदर भाव के इस पर्व को व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती भी कहा जाता है। इसके अलावा गुरु पूर्णिमा को गुरु पूनम और आषाढ़ी पूनम आदि के नामों से भी जाना जाता है।

इसके अलावा गुरु पूर्णिमा को मनाने के पीछे ये भी मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही भगवान शंकर ने सप्तऋषियों को योग करने का मंत्र दिया था एवं गौतम बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश सुनाया था इसलिए इस पर्व को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाते हैं।

उपसंहार

तो गुरु पूर्णिमा के इस पावन पर्व के माध्यम से हर शिष्य के अंदर अपने गुरु के अंदर मान-सम्मन की भावना पैदा होती है साथ ही गुरु-शिष्य के रिश्ते की डोर और भी अधिक मजबूत होती है।

“गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,
कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।”

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Guru Purnima Essay

प्रस्तावना

गुरु-शिष्य का रिश्ता दुनिया का सबसे सच्चा और पवित्र रिश्ता है, जिसमें एक सच्चा गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य के जीवन को सफल बनाने के लिए मेहनत करता है और अपने शिष्य के अंदर सभी अच्छे गुणों का विकास करता है।

और एक सच्चा शिष्य अपनी पूरी श्रद्धा और लगन के साथ अपने गुरुओं के बताए गए मार्ग पर चलता और उनके उपदेशों का अनुसरण करता है। इसलिए गुरु-शिष्य के रिश्ते का महत्व अनादिकाल से चला रहा है।

वहीं गुरुओं को हमारे शास्त्रों में भी विशिष्ट स्थान दिया गया है,और गुरुओं के आदर-सम्मान और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।

“गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।”

गुरु पूर्णिमा का पर्व – Guru Purnima

आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा का पर्व गुरुओं के प्रति समर्पित एक आदर्श पर्व है। जिसे पूरे भारत देश में चार वेदों की निर्मति करने वाले वेदव्यास जी की जयंती के उपलक्ष्य में हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।

इस दिन लोग अपने आराध्य गुरु का ध्यान करते हैं और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते है एवं उनके जीवन को सफल बनाने एवं उन्हें सभ्य और सदाचारी बनाने के लिए आभार प्रकट करते हैं।

गुरुओं के आदर-सम्मान करने के इस पावन पर्व वाले दिन लोग गरीब, असहाय और जरूरतमंदों की मद्द करते हैं। गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व लोगों को गुरु की महत्वता को बताने के लिए और गुरु और शिष्य के पवित्र बंधन को डोर को मजबूत करने का एक श्रेष्ठ पर्व हैं।

गुरु पूर्णिमा कैसे मनाई जाती है? – How to Celebrate Guru Purnima

हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग भगवान विष्णु, ब्रहा् और शिव जी समेत अपने आराध्य गुरु का पूरे श्रद्धा भाव और आस्था के साथ पूजन करते हैं।

इसके साथ ही अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं एवं उनके सभी दोषों को विकारों को मिटाने के लिए उन्हें एक सभ्य और शिक्षित मनुष्य बनाने के लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

इस दिन शिष्य अपने गुरुओं का पूजन कर उन्हें वस्त्र आदि भी भेंट करते हैं, साथ ही गुरु दक्षिणा भी देते हैं।

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के मौके पर शिष्य, उनका सही मार्गदर्शन करने वाले एवं उनके अंदर सही-गलत की समझ पैदा करने वाले अपने गुरुओं का मान-सम्मान एवं उनका पूजन आदि करने से कल्याणकारी आशीर्वाद प्राप्त होता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

गुरुओं की पूजा करने के इस खास पर्व के दिन गंगा, यमुना समेत किसी भी पवित्र आदि में स्नान करते हैं। इस दिन कई स्कूल-कॉलेजों में गुरुओं और शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है।

इसके साथ ही कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, भाषण एवं निबंध लेखन प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं जिसमें छात्र गुरुओं की महिमा का बखान करते हैं और उनके महत्व को बताते हैं।

इस पावन पर्व पर जगह-जगह भंडारों का आयोजन होता है और मेले लगते हैं। इसके अलावा इस दिन लोग अपने गुरुओं का पूजन कर उनके लिए उपवास भी रखते हैं।

वहीं जो लोग किसी को अपना गुरु नहीं मानते हैं, वे लोग इस दिन भगवान शिव जी, ब्रह्रा जी और गुरु-शिष्य परंपरा के प्रथम गुरु वेद व्यास जी का पूजन करते हैं।

उपसंहार

गुरु पूर्णिमा जैसे पर्वों के माध्यम से जहां अपने गुरुओं के प्रति सम्मान का भाव प्रकट कर अपने गुरु से अपने रि्श्ते को और अधिक मजबूत करने का मौका मिलता है, वहीं दूसरी तरफ आजकल गुरु-शिष्य का रिश्ता भी कलंकित हो रहा है।

कई ऐसी अपराधिक घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे इस रिश्ते की महत्वता कम होती जा रही है, वहीं लोग कहीं न कहीं अपने जीवन में भटक गए हैं, जिन्हें फिर से एक मार्ग पर लाने की जरूरत है और इस रिश्ते की महत्वता को समझने की जरूरत है।

गुरु पुर्णिमा पर निबंध – Essay on Guru Purnima

प्रस्तावना

गुरु निस्वार्थ भाव से पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ अपने पूरे जीवन भर अपने शिष्यों के जीवन को सफल बनाने के लिए कठोर मेहनत और तप करता है एवं उनके जीवन में ज्ञान की ज्योति जलाकर उनके जीवन से अंधकार मिटाता है।

ऐसे गुरु की महिमा अपरम्पार है, गुरु की महिमा को शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है, वहीं किसी बड़े कवि ने गुरु के गुणों को अपने दोहे के माध्यम से बताने की कोशिश करते हुए कहा है –

“सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए।।”

अर्थात इस दोहे के माध्यम से कवि कहते हैं कि अगर पूरी धरती को लपेट कर कागज बना लिया जाए और सभी जंगलों के पेड़ो से कलम बना ली जाए, एवं इस दुनिया के सभी समुद्रों को मथकर स्याही बना ली जाए, तब भी गुरु की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है।

वहीं गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरुओं के सम्मान और उनकी पूजा करने का दिन है। इसलिए इस पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाना चाहिए।

गुरु का अर्थ – Meaning of Guru

गुरु शब्द, गु और रु दो अक्षरों से मिलकर बना है, जिसमें गु का अर्थ अंधकार से और रु का अर्थ निरोधक अथवा अंधकार को दूर करने वाले लिया गया है अथवा गुरु ही व्यक्ति के जीवन में सभी तरह के अंधकारों को दूर कर उसके जीवन में प्रकाश भरता है और सही मार्गदर्शन कर व्यक्ति को सफलता के पथ पर अग्रसर करता है।

इसलिए, हम सभी को गुरुओं का सम्मान करना चाहिए और उनके महत्व को समझना चाहिए क्योंकि गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है और ज्ञान के बिना कोई भी व्यक्ति आत्मसात नहीं कर सकता है क्योंकि वह मनुष्य एक पशु की भांति नासमझ और अज्ञानी होता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व – Importance of Guru Purnima

गुरुओं के महत्वता का तो बखान बड़े-बड़े कवि और ऋषि मुनियो ने भी किया है, वहीं कई संत कबीर ने तो गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा देते हुए कहा है कि –

“गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

गुरु ने ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताया है औऱ मनुष्य को संसारिक ज्ञान का बोध करवाया है, इसलिए गुरुओं का शास्त्रों और वेदों में भी विशष्ट स्थान दिया गया है। अर्थात गुरु, भगवान की तरह पूज्य होते हैं, इसलिए गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व के मौके पर गुरुओं की पूजा-अर्चना की जाती है और उनका आदर-सम्मान कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

गुरुओं के पर्व गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्यों को अपने गुरु को गुरु दक्षिणा भी देनी चाहिए। मोक्ष का मार्ग दिखाने वाले गुरुओं से मंत्र प्राप्त करने का और अपने गुरु से रिश्ते को और अधिक मजबूत करने का यह दिन बेहद खास दिन है, इसलिए इस पावन पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाना चाहिए।

उपसंहार

गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व अपने गुरुओं के महत्व को समझने के लिए और उनका आदर-सम्मान करने के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, इस दिन हर किसी को अपने गुरुओं का शुक्रिया अदा करना चाहिए एवं इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

“गुरु आपके इस उपकार का,
मै कैसे चुकाऊं मोल ?
लाख कीमती धन भला..
लेकिन गुरु है मेरा सबसे अनमोल..”

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