सिख धर्म के प्रथम गुरु – गुरु नानक जी की जीवनी

“धन-समृद्धि से युक्त बड़े बड़े राज्यों के राजा-महाराजों की तुलना भी उस चींटी से नहीं की जा सकती है जिसमे ईश्वर का प्रेम भरा हो।”

गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक होने के साथ-साथ सिख धर्म के प्रथम गुरु भी थे। गुरु नानक जी ने अपने शिष्यों को कुछ ऐसे उपदेश और शिक्षाएं दी जो उनके अनुयायियों के बीच आज भी काफी लोकप्रिय और प्रसांगिक है। गुरु नानक देव जी के अध्यात्मिक शिक्षा के आधार पर ही सिख धर्म की स्थापना की गई थी।

गुरु नानक स को, बाबा नानक, नानकशाह, गुरु नानक देव जी आदि के नामों से भी जाना जाता है। इसके साथ ही उन्हें धार्मिक नवप्रवर्तनक माना जाता है। सिख धर्म के प्रथम गुरु होने के साथ-साथ वे एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, देशभक्त, धर्मसुधारक, योगी आदि भी थे।

गुरु नानक जी बहुमुखी प्रतिभा वाले व्यक्तित्व थे। उन्होंने अंधविश्वास, मूर्ति पूजा आदि का कट्टर विरोध किया। इसके अलावा गुरु नानक जी ने अपने जीवन में धार्मिक कुरोतियों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। गुरु नानक जी ने दुनिया के कोने-कोने में सिख धर्म का प्रचार करने के लिए मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में यात्रा भी की थी, उन्होंने अपने अनुयायियों को ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता बताया।

इसके साथ ही उन्होंने लोगों को आपस में प्रेम करना, जरूरतमंदों की सहायता करना, महिलाओं का आदर करना आदि सिखाया, अपने अनुयायियों को ईमानदारी पूर्वक गृहस्थ जीवन की शिक्षा दी और जीवन से संबंधित कई उपदेश भी दिए।

आपको बता दें कि गुरु नानक देव जी की महान शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया था, जिसे सिख धर्म के पवित्र पाठ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता हैं। चलिए जानते हैं गुरु नानक देव जी के जीवन से जुड़ी खास बातों के बारे में –

सिख धर्म के प्रथम गुरु – गुरु नानक जी की जीवनी – Guru Nanak Biography in Hindi

Guru Nanak Biography

एक नजर में –

नाम (Name) गुरु नानक देव जी
जन्म (Birthday) 29 नवम्बर, 1469, तलवंडी, शेइखुपुरा जिला(वर्तमान में पंजाब, पाकिस्तान में स्थित है )
पिता का नाम (Father Name) कल्याणचंद (मेहता कालू)
माता का नाम (Mother Name) तृप्ता देवी
पत्नी (Wife Name) सुलक्षिणी देवी
बच्चे (Children Name) श्री चंद और लखमी दास
मृत्यु (Death)  22 सितंबर, 1539 करतारपुर (वर्तमान में पाकिस्तान)

जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन –

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्मतिथि के बारे में इतिहासकारों के अलग-अलग मत है, लेकिन कई विद्धानों इनका जन्म 29 नवम्बर, 1469 में कार्तिक पूर्णिमा वाले दिन मानते हैं और इसी दिन पूरे देश में गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है, गुरु नानक के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है।

आपको बता दें कि गुरु नानक देव जी रावी नदी के किनारे स्थित गांव तलवंडी में जन्में थे। जो कि आज लाहौर पाकिस्तान में स्थित है। वहीं बाद में गुरु नानक जी के नाम पर इनके गांव तलवंडी का नाम ननकाना पड़ गया था।

गुरु नानक जी के पिता का नाम कल्याण चंद (मेहता कालू) था, जो कि स्थानीय राजस्व प्रशासन के अधिकारी थे, जबकि उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी एक बड़ी बहन भी थी, जिनका नाम नानकी था।

पाठशाला में नहीं रमा नानक जी का मन –

बचपन से ही सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक देव जी का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। वे शुरु ही अध्यात्म और भगवतप्राप्ति में रुचि रखते थे। नानक साहब हमेशा ही सांसारिक विषयों के प्रति उदासीन रहा करते थे एवं ज्यादातर अपना समय साधु-संतों के साथ धार्मिक भजन, कीर्तन, सत्संग और आध्यात्मिक चिंतन में व्यतीत करते थे, इसके साथ ही हमेशा ईश्वर, प्रकृति और जीवों के संबंध में बातें किया करते थे।

वहीं जब उनके पिता ने यह सब देखा तो उन्हें जानवर चराने के काम की जिम्मेंदारी सौंप दी, ताकि वे अपनी परिवारिक जिम्मेदारियों को समझ सकें, लेकिन इसके बाद भी गुरुनानक देव जी अपने आत्म चिंतन में डूबे रहते थे।

वहीं जब किसी तरह गुरु नानक देव जी का साधु-संतों की संगत में बैठना-उठना कम नहीं हुआ, फिर उनके पिता कालू मेहता जी ने उनकी साधु-संतों की संगत को कम करने के लिए और अपने परिवारिक कर्तव्यों का बोध करवाने के लिए एवं व्यापार के विषय में जानकारी हासिल करने के लिए उन्हें गांव में एक छोटी सी दूकान खुलवा दी और 20 रुपए देकर बाजार से खरा सौदा कर लाने के लिए कहा।

लेकिन गुरु नानक जी ने उन 20 रुपए से भूखे, निर्धनों और साधुओं को खाना खिला दिया। फिर घर आकर जब उनके पिता ने सौदा के बारे में पूछा तब, नानक जी ने जवाब देते हुए कहा कि, उन पैसों का उन्होंने सच्चा सौदा (व्यापार) किया है।

वहीं जिस जगह पर गुरु नानक जी ने गरीबों, भूखों को खाना खिलाया था, वहां आज भी सच्चा सौदा नाम का गुरुद्धारा बनाया गया है। इसके बाद उनके माता-पिता ने उनका गृहस्थ जीवन में लगाने के लिए उनकी शादी कर दी।

विवाह –

दुनिया को सच्चाई के मार्ग पर चलने की सीख देने वाले गुरु नानक देव जी की 16 साल की उम्र में शादी के बंधन में बंध गए थे। उनका विवाह गुरुदासपुर जिले के पास लाखौकी नामक गांव में रहने वाली मूलराज की बेटी सुलक्षिणी के साथ हुआ था।

शादी के बाद दोनों को श्री चंद और लखमी दास नाम के दो सुंदर पुत्र भी हुए। हालांकि शादी के बाद भी गुरुनानक जी का स्वभाव नहीं बदला और वे आत्म चिंतन में डूबे रहे।

रुढिवादिता एवं धार्मिक अंधविश्वास का किया जमकर विरोध:

गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा, धार्मिक आडम्बर, अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक कुरोतियों आदि के शुरु से ही घोर आलोचक रहे हैं। उन्होंने काफी कम उम्र से ही रुढ़िवादिता के खिलाफ विरोध करना शुरु कर दिया था। इसके लिए उन्होंने कई तीर्थयात्राएं भी की और धर्म प्रचारकों को उनकी कमियां बताई साथ ही लोगों से धार्मिक आडम्बरों एवं धर्मांधता से दूर रहने का अनुरोध किया।

गुरु नानक देव जी का मानना था कि ईश्वस कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ह्रदय में ही समाए हुए हैं, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जिसके ह्रदय में प्रेम, दया और करुणा का भाव नहीं होता अर्थात नफरत, निंदा, क्रोध, निर्दयता आदि दोष होते हैं, ऐसे ह्रदय में ईश्वर का बास नहीं हो सकता है।

जनेऊ धारण करवाने की परंपरा (यज्ञोपवित संस्कार) का किया विरोध:

गुरु नानक देव जी ने शुरु से ही रुढिवादिता और धार्मिक आडम्बरों के खिलाफ थे। जब गुरु नानक महज 11 साल के थे, तब हिन्दू धर्म की परंपरा के मुताबिक उनका भी यज्ञोपवीत संस्कार अर्थात जनेऊ धारण करवाने की फैसला लिया गया।

जिसके चलते उनके पिता कालू मेहता ने इस परंपरा को धूमधाम करने के लिए अपने सभी करीबियों एवं सगे-सबंधियों एवं रिश्तेदारों को न्योता दे डाला, वहीं इसके बाद जब पंडित जी नन्हें बालक नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने वाले थे, तब नानक देव जी ने इस जनेऊ को धारण करने से यह कहकर मना कर दिया कि, मुझे इस कपास के धागे पर भरोसा नहीं है।

क्योंकि यह वक्त के साथ मैला हो जाएगा, टूट जाएगा और मरते समय शरीर के साथ जल जाएगा, तो फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हो सकता है, इसके लिए तो किसी अलग तरह का जनेऊ होना चाहिए, जो कि आत्मा को बांध सकें। साथ ही गुरु नानक देव जी ने अपने यज्ञोपवित संस्कार के दौरान यह भी कहा कि गले में सिर्फ इस तरह का धागा डालने से मन पवित्र नहीं होता है बल्कि सदाचार और अच्छे आचरण के द्धारा ही मन को पवित्र किया जा सकता है।

इस तरह उन्होंने जनेऊ पहनने की परंपरा का विरोध किया एवं हिन्दू धर्म में फैली अन्य इस तरह की धार्मिक बुराइयों के खिलाफ भी अपनी आवाज उठाई। गुरु नानक देव जी के बचपन में कई ऐसी चमत्कारिक घटनाएं घटीं, जिसे देखकर गांव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व के रुप में मानने लगे।

यात्राएं (उदासियां) –

गुरुनानक देव जी ने अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति, धार्मिक बुराइयों को दूर करने और धर्म प्रचारकों को उनकी कमियों को बताने के लिए तीर्थस्थलों पर जाने का फैसला किया और वे अपने परिवार की जिम्मेदारी अपने ससुर पर छोड़कर करीब 1507 ईसवी में तीर्थयात्रा पर निकल गए।इन तीर्थयात्राओं के दौरान रामदास, मरदाना, बाला और लहरा साथी भी इनके साथ गए थे।

इस तरह गुरुनानक जी अपनी तीर्थयात्राओं के माध्यम से चारों तरफ संप्रदायिक एकता, सदभाव एवं प्रेम की ज्योति जलाई थी, जो कि आज भी प्रज्जवलित है।

इसके साथ ही अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान गुरुनानक देवी जी ने व्यक्ति के मरने के बाद यानि की पितरों को करवाए जाने वाले भोजन का भी काफी विरोध किया था और कहा कि मरने के बाद दिया जाने वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता है, इसलिए सभी को जीते जी अपने मां-बाप की सच्चे भाव से सेवा करनी चाहिए।

आपको बता दें कि 1521 ईसवी तक गुरु नानक देव जी अपनी तीन यात्राचक्र पूरे किए थे, जिनमें उन्होंने भारत, फारस, अरब और अफगानिस्तान जैसे देशों में प्रमुख स्थानों की यात्राएं की। आपको बता दें कि इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियाँ” कहा जाता है।

गुरु नानक जी पहली धार्मिक यात्रा (उदासी)

गुरु नानक जी ने अपनी पहली तीर्थ यात्रा (उदासी) 1507 ईसवी में शुरु की और करीब 8 साल तक 1515 ईसवी तक उन्होंने अपनी यह यात्रा पूरी की।

इस यात्रा में उन्होंने प्रयाग, नर्मदातट, हरिद्वार, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, अयोध्या, कुरुक्षेत्र, रामेश्वर, पानीपत, बीकानेर, द्वारिका, सोमनाथ, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, लाहौर मुल्तान, आदि स्थानों की तीर्थयात्रा की। इन जगहों पर जाकर उन्होंने अपने महान शिक्षाओं और उपदेशों के माध्यम से कई लोगों का ह्रदय परिवर्तन किया और लोगों को सही मार्ग पर चलने की सलाह दी।

लोगो्ं के अंदर दया, करुणा आदि का भाव पैदा किया, कर्मकाण्डियों को ब्राह्मड्म्बरों से निकलाकर रागात्मिकता  भक्ति करना सिखाया, निर्दयी लोगों को प्रेम करना सिखाया, लुटेरों, ठगों को साधु बनाकर उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया।

गुरु नानक की दूसरी यात्रा (‘उदासी’)

सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक जी ने अपनी दूसरी यात्रा के माध्यम से भी लोगों को सही तरीके से जीवन जीने का पाठ पढ़ाया, यह यात्रा उन्होंने 1517 ईसवी से शुरु की और करीब 1 साल के दौरान उन्होंने सियालकोट, ऐमनाबाद, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और लोगों को सही कर्तव्य पथ पर आगे चलने की सीख दी एवं आखिरी में 1518 ईसवी तक वे करतारपुर पहुंचे।

गुरु नानक जी की तीसरी यात्रा (‘उदासी’)

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी यात्रा के दौरान क़ाबुल, साधुबेला (सिन्धु), बग़दाद, बल्ख बुखारा, मक्का मदीना, रियासत बहावलपुर, कन्धार आदि स्थानों की यात्रा की। उनकी यह यात्रा 1518 ई. से 1521 ई. तक करीब 3 साल की रही।

वहीं 1521 ईसवी में जब ऐमनाबाद पर मुगल वंश के संस्थापक बाबर ने आक्रमण करना शुरु कर दिया तो, उन्होंने वे अपनी यात्राओं को खत्म कर करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में बस गए और अपने जीवन के अंत तक गुरु नानक जी करतारपुर में ही रहे।

गुरु नानक देव जी का आसाधारण व्यक्तित्व:

सिख धर्म के प्रथम गुरु एवं संसार को सही दिशा दिखाने वाले गुरु नानक देव जी एक बहुमुखी एवं विलक्षण प्रतिभा वाले आसाधरण व्यक्ति थे। उन्होंने अपने महान विचारों एवं उपदेशों के माध्यम से लोगों को सुखी जीवन जीने एवं मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताया था।

वह न सिर्फ एक महान दार्शनिक, समाजसुधारक, धर्म सुधारक और पैगम्बर थे बल्कि देश के प्रति निष्ठा रखने वाले देशभक्त, लोगों को आपस में प्रेम सिखाने वाले विश्वबंधु, महान कवि, संगीतज्ञ, त्यागी एवं राजयोगी भी थे। उन्होंने अपने महान विचारों का गहरा प्रभाव लोगों पर छोड़ा था, यहां तक की उनकी क्रिया शक्ति के माध्यम से कई लोगों का ह्रदय परिवर्तन भी हुआ है।

महान विचार वाले गुरु नानक देव जी ने ऊंच-नीच और जात-पात का भेदभाव खत्म करने के लिए सबसे पहले गुरुद्धारों में लंगर की परंपरा चलाई थी, ताकि सभी जाति के लोग एक पंक्ति में बैठकर भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं आज भी हर गुरुदारा में गुरु नानक साहब द्धारा चलाई गई लंगर की परंपरा कायम है। लंगर में बिना किसी भेदभाव के संगत सेवा करती हैं।

प्रमुख उपदेश एवं शिक्षाएं –

सतगुरु गुरु नानक देव जी ने अपने अध्यात्मिक ज्ञान और महान विचारों से अपने अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति एवं सुखमय जीवन जीने के लिए कई उपदेश और शिक्षाएं दीं, जिनमें से कुछ नीचे लिखे गए हैं –

  • कण-कण में ईश्वर की मौजूदगी है।
  • ईश्वर एक है।
  • हमेशा एक ही ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।
  • सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने वालों को कभी किसी का डर नहीं रहता।
  • सच्चाई, ईमानदारी और कठोर परिश्रम कर ही धन कमाना चाहिए।
  • हमेशा खुश रहना चाहिए एवं भगवान से सदैव ही अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए।
  • मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंदों और गरीबों की सहायता जरूर करना चाहिए।
  • कभी भी बुरा काम करने के बारे में न सोचें और न ही कभी किसी का दिल दुखाएं।
  • सभी महिलाएं और पुरुष बराबर होते हैं और दोनों की आदर के पात्र हैं।
  • भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है लेकिन, लोभ-लालच करना बुरी आदत है, यह आदत इंसान से उसकी खुशी छीन लेती है।
  • कभी भी किसी दूसरे का हक नहीं छीनना चाहिए।
  • सबके साथ बिना किसी ईर्ष्या भाव से प्रेमपूर्वक रहना चाहिए।

रचनाएं,दोहे, पद एवं लेख –

गुरुनानक देव जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों एक सुखी एवं समृद्ध जीवन जीने की सीख दी है। सिख धर्म का पवित्र एवं सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ ”श्री ग्रंथ गुरु ग्रन्थ साहब” उनके द्धारा लिखी गई रचनाओें में सबसे प्रमुख है। ‘श्री गुरु-ग्रन्थ साहब’ में उनकी रचनाएं ‘महला 1′ के नाम से संकलित हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं में, गुरबाणी तखारी’ राग के बारहमाहाँ, जपुजी आदि मशहूर हैं।

आपको बता दें कि गुरु नानक जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से ईश्वर को सर्वशक्तिमान, अनन्त और निर्भय बताया है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि परमात्मा तक किसी मूर्ति पूजा या फिर धार्मिक आडम्बरों से नहीं बल्कि सच्ची आंतरिक साधना से ही पुहंचा जा सकता है।

गुरुनानक जी की रचनाएं और दोहों में सामाजिक,राजनीतिक और धार्मिक विषयों का भी बेहद खूबसूरती से बखान किया गया है, इसके साथ ही उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम एवं देशभक्ति की भी अनूठी झलक देखने को मिलती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिन्दू और मुस्लिम धर्म में फैली कुरोतियों एवं कुसंस्कारों की कड़ी निंदा की है साथ ही महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलवाने पर जोर दिया है।

गुरुनानक जी की रचनाओं और वाणी में पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, फारसी, मुल्तानी, खड़ीबोली का इस्तेमाल किया है। इसके साथही उनकी वाणी में श्रंगार एवं शांत रस की प्रधानता देखने को मिलती है। गुरु नानक देव जी का दोहा-

“हरि बिनु तेरो को न सहाई। काकी-मात-पिता सुत बनिता, को काहू को भाई।।

अर्थात इस दोहे के माध्यम से गुरुनानक देव जी का कहा है कि हरि यानि कि परमात्मा के बना कोई और सहारा नहीं होता है और परमात्मा को ही काकी, माता-पिता और पुत्र बताया है, इनके बिना कोई और दूसरा नहीं होता है।।

मृत्यु –

सिख धर्म की स्थापना करने वाले गुरु नानक देव जी ने अपनी महान शिक्षाओं, उपदेशों से पूरी दुनिया में काफी ख्याति बटोर ली थी, वे लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए थे।

वे एक आदर्श गुरु के तौर पर पहचाने जाने लगे थे, उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई थी, गुरुनानक जी ने एक करतारपुर नाम का शहर बसाया था, जो कि अब पाकिस्तान में है और यही उन्होंने 1539 ईसवी में अपने प्राण त्याग दिए थे। उनकी मृत्यु के बाद गुरु नानक जी के परम भक्त एवं प्रिय शिष्य गुरु अंगदगेव जी (बाबा लहना) को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।

जयंती –

कार्तिक मास की पूर्णिमा वाले दिन, सिख धर्म के प्रथम गुरु नानक साहब जी की जयंती आज पूरे दूश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। इस जयंती को प्रकाश पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन जगह-जगह पर धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, इसके साथ ही गुरुद्धारा आदि में लंगर आदि भी आयोजित किए जाते हैं, इसके साथ ही सत्संग और भतन-कीर्तन भी होते हैं।

गुरुनानक जयंती के दिन ढोल-नगाड़ो के साथ प्रभाव फेरी भी निकाली जाती है। इस जयंती के मौके पर गरीबों को दान आदि करने का भी बहुत महत्व है। सिक्ख समाज के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने अपने उपदेशों से सांप्रदायिक एकता, प्रेम, भाईचारा एवं सदभाव की ज्योति जलाई थी, जो आज भी प्रज्जवलित है।

साथ ही उन्होंने मूर्ति पूजा और धार्मिक आडम्बरों का विरोध किया था एवं जातिवाद, ऊंच-नीच, छूआछूत जैसी कुरोतियों का जमकर विरोध किया था। उन्होंने अपनी सरल वाणी एवं महान विचारों से लोगों को काफी प्रभावित किया था एवं हिन्दू और मुस्लिम धर्म की मूल एवं सर्वोत्तम शिक्षाओं को लेकर एक सिख धर्म की स्थापना की थी।

सिख धर्म के लोगों द्धारा गुरु नानक साहब की उपासना की जाती है एवं आज भी सिख धर्म मानने वाले लोग उनके उपदेशों का अनुसरण करते हैं।

4 COMMENTS

  1. Hamme Guru Nanak ji Ka biography bhut Acha Lga. Main yah Janna Chahta hu ki guru Nanak ji jis kund me asnan kiye the wo Bihar me rajgir me kund k pass hai ya nhi.

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