Golden Temple History in Hindi
भारत अपने अनूठे रहस्यों, चमत्कारों, आर्कषण, एवं कलात्मकता की वजह से पूरी दुनिया भर में मशहूर है, यहां कई ऐसे धार्मिक स्थल मौजूद हैं, जिनकी अद्भुत शिल्पकारी, वास्तुकला एवं बनावट देखते ही बनती है, उन्हीं में एक है, भारत के अमृतसर का प्रसिद्ध गोल्डन टेम्पल जिसका निर्माण सोना धातु का इस्तेमाल कर किया गया है।
स्वर्ण मंदिर – Golden Temple हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है, और सिख धर्म का यह मुख्य देवस्थान भी है, जिसे देखकर दुनिया भर के लाखो लोग आकर्षित होते है, केवल सिख धर्म के लोग ही नही बल्कि दूसरे धर्मो के लोग भी इस मंदिर में आते है।
वहीं वर्तमान में यह मंदिर न सिर्फ भारत का, बल्कि पूरी दुनिया भर के स्वर्ण मंदिरों की लिस्ट में सबसे शीर्ष स्थान पर आता है। अमृतसर का गोल्डन टेम्पल सिख धर्म के प्रसिद्ध धार्मिकस्थलों में एक है, जिससे लाखों श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है।
इस मंदिर में न सिर्फ सिख धर्म के लोग, बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इसके धार्मिक महत्व और अद्भुत बनावट को देखने आते हैं। गोल्डन टेम्पल को हरमिंदर साहेब और श्री दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है।
वहीं आज हम आपको अपने इस लेख में स्वर्ण मंदिर का निर्माण, इसका इतिहास एवं इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में बता रहे हैं, जो कि इस प्रकार है-
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर का इतिहास और रोचक बाते – Golden Temple History In Hindi
- मंदिर का नाम – स्वर्ण मंदिर / श्री दरबार साहिब/श्री हरमिंदर साहेब
- मंदिर कहां स्थित है – अमृतसर
- कब बनवाया गया था गोल्डन मंदिर? – सन् 1577
- किसने किया निर्माणकाम शुरु – गुरु रामदास ने
- मंदिर की वास्तुकला और पूरा बनवाने का काम किसने किया – गुरु अर्जुन देव ने
स्वर्ण मंदिर का निर्माण एवं इसका इतिहास – Golden Temple Information
अमृतसर में स्थित विश्वप्रसिद्ध इस स्वर्ण मंदिर का इतिहास 400 से भी ज्यादा सालों से पुराना है। इस मंदिर के निर्माण के लिए चौथे सिख गुर रामदास साहिब जी ने कुछ जमीन दान दी थी, जबकि प्रथम सिख गुरु नानक और पांचवे सिख गुरु अर्जुन साहिब ने गोल्डन टेम्पल की अनूठी वास्तुकला की डिजाइन तैयार की थी।
जिसके बाद 1577 ईसवी में इस मंदिर का निर्माण काम शुरु किया गया था।
इसके बाद अर्जुन देव जी ने बाद में इसके अमृत सरोवर को पक्का करवाने का काम करवाया। आपको बता दें कि इस प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर का निर्माण पवित्र टंकी के बीचों-बीच यानि की तालाब के बीच किया गया है, जिसमें बाद में सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ को भी स्थापित किया गया है।
सिख धर्म के इस पवित्र तीर्थस्थल के अंदर ही एक अकाल तख्त भी स्थित है, जिसे सिख धर्म के छठवें गुरु हरगोविंद जी का घर माना जाता है।
आपको बता दें कि 1604 ईसवी में इस मंदिर का निर्माण काम पूरा कर लिया गया था, हालांकि इस मंदिर पर कई बार आक्रमण किए गए, जिससे इस मंदिर की इमारत को काफी नुकसान पहुंचा।
लेकिन बाद में फिर सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने इस मंदिर का फिर से निर्माण करवाया और इसे वर्तमान स्वरूप देने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आपको बता दें आहूवालिया खालसा दल के कमांडर और मिसल के प्रमुख सरदार थे।
स्वर्ण मंदिर की अद्भुत संरचना, अनूठी वास्तुकला एवं बनावट – Golden Temple Architecture
अमृतसर में स्थित गोल्डन टेम्पल अपनी अद्भुत कलाक़ति एवं अनूठी शिल्पकारी के लिए जाना जाता है। हरमिंदर साहेब के छतों और दीवारों की डिजाइन हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित करती हैं। गोल्डन टेम्पल की दीवारों में की गई कारिगरी बेहद शानदार है।
श्री हरमिंदर साहेब का निर्माण करीब 67 फीट स्क्वायर फीट क्षेत्रफल में किया गया है, यह एक तालाब के बीचों-बीच बनाया गया है, जिसमें करीब 40.5 स्क्वायर फुट क्षेत्रफल में गुरुद्धारा फैला हुआ है।
गुरुद्धारा के चारों दरवाजों में बेहतरीन नक्काशी की गई है, जो कि देखने में काफी आर्कषक लगती है। दर्शनी देवरी (एक मेहराब) कार्य-मार्ग के किनारे पर स्थित है।
इस गुरुद्धारे के डोर पैन को कलात्मक तरीके से सजाया गया है, जो कि सेतु की तरफ खुलता है और यह सेतु मार्ग श्री हरमिंदर साहिब के मुख्य भवन की तरफ खुलता है। इस सेतु की लंबाई करीब 202 फीट और चौड़ाई 21 फीट है।
लाखों श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़े इस पावन तीर्थस्थल की इमारत तीन मंजिला है, जिसमें पहली मंजिल की छत 26 फीट और 9 इंच की ऊंचाई पर है। वहीं इसके पहली मंजिल पर गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर पाठ होता रहता है।
रात के समय में तालाब के बीच में बना यह विशाल स्वर्ण मंदिर देखने में बेहद आर्कषक और मनोरम लगता है।
अमृतसर के गोल्डन टेंपल की वास्तुकला हिन्दू और मुस्लिम के बीच के प्रेम और सामंजस्य का प्रतिनिधित्व करने वाली एक उत्कृष्ट नमूना है, जो कि तकनीकी दृष्टि से विश्व की सबसे बेहतरीन शिल्पकलाओं में से एक मानी जाती है।
स्वर्णमंदिर के दर्शनीय स्थल एवं आकर्षण – Golden Temple Tourist Places
अमृतसर में स्थित स्वर्णमंदिर भारत के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक है, जिसके सौंदर्य, भव्यता और आर्कषण को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं।
सेंट्रल सिख संग्रहालय – Central Sikh Museum
हरमंदिर साहेब के प्रवेश द्धार के पास सेंट्रल सिख संग्रहालय (Museum) स्थित है। यह स्वर्ण मंदिर के मुख्य आर्कषणों में से एक है। इस म्यूजियम में जाकर कोई भी व्यक्ति इस भव्य गुरुद्धारा इतिहास की संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में अकाल तख्त को पहुंचा था काफी नुकसान – Operation Blue Star
सिख धर्म की आस्था से जुड़े इस गुरुद्धारे के बाहर की तरफ अकाल तख्त है, जिसे सिख धर्म के छठवें गुरु हरगोविंद जी का घर माना जाता है। इस तख्त का निर्माण 1606 में बनाया गया था।
आपको बता दें कि, यहां पहले कई मुख्य फैसले लिए जाते थे। वहीं इसके पास शिरोमणि गुरुद्धारा प्रबंधक का ऑफिस भी हैं, जहां सिखों से जुड़े कई अहम फैसले आज भी लिए जाते हैं।
आपको बता दें कि साल 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के समय इस भव्य स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त को काफी नुकसान पहुंचा था।
इस ऑपरेशन में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय सेना को स्वर्ण मंदिर में छिपे धर्म युद्ध मोर्चा को रोकने के लिए सेना और टैंक मंदिर में प्रवेश करवाए थे, जिसके चलते सेना के जवान और सिखों के बीच काफी संघर्ष छिड़ गया था।
वहीं इस ऑपरेशन में कई भारतीयों की जान भी चली गई थी, वहीं इस निर्मम ऑपरेशन का बदला इंदिरा गांधी जी के सिख बॉडीगाडी ने उनकी हत्या कर लिया था।
हालांकि, बाद में साल 1986 ईसवी में राजीव गांधी जी ने फिर से इस अद्भुत स्वर्ण मंदिर में अकाल तख्त का निर्माण करवा दिया था, लेकिन फिर साल 1989 में इस तख्त का हटा दिया गया। इसके बाद साल 1999 में कार सेवकों ने फिर से अकाल तख्त का निर्माण करवा दिया।
स्वर्ण मंदिर से जुड़े कुछ रोचक एवं महत्वपूर्ण तथ्य – Interesting Facts About Golden Temple In Hindi
अपनी धार्मिक महत्वता होने के बावजूद स्वर्ण मंदिर के बारे में कुछ और ऐसी बाते है जिन्हें जानना आपके लिये बहोत जरुरी है –
- अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहले ईंटों और पत्थरों से बना था, लेकिन बाद में इसमें सफेद मार्बल का इस्तेमाल किया गया, और फिर 19वीं शताब्दी में इस मंदिर के गुंबद पर सोने की परत चढ़वाई गई थी।
- स्वर्ण मंदिर में बने चार दरवाजे, चारों धर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका मतलब यहां हर धर्म के व्यक्ति मत्था टेकने आ सकते हैं।
- हरमंदिर साहब गुरुद्धारा में विश्व की सबसे बड़ी किचन है, जहां रोजाना करीब 1 लाख से ज्यादा लोगों को लंगर करवाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि मुगल सम्राट अकबर ने भी गुरु के लंगर में आम लोगों के साथ प्रसाद ग्रहण किया था।
- इस विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर की सीढ़ियां ऊपर की तरफ नहीं, बल्कि नीचे की तरफ जाती हैं जो कि मनुष्य को ऊपर से नीचे की तरफ आना सिखाती हैं।
- अपनी अद्भुत बनावट और आर्कषक चित्रकारी की वजह से पंजाब में स्थित यह स्वर्ण मंदिर पूरी दुनिया भर में मशहूर है। इस स्वर्ण मंदिर की कारीगिरी मुगल और भारतीय वास्तुकला के मिश्रित स्वरुप को दर्शाती है।
- पंजाब के अमृतसर में स्थित इस विशाल स्वर्ण मंदिर में कभी रात नहीं होती, जी हां यह साल के सभी 365 दिन और दिन के चौबीसों घंटे अपनी कृत्रिम रोश्नी से जगमगाता रहता है।
- सिख धर्म की आस्था से जुड़ा यह विश्व प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के बारे में सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी नींव एक मुस्लिम सूफी पीर साईं मियाँ मीर ने रखी थी, जबकि सिखों के चौथे गुरु गुरु राम दास जी ने 1577 में इसकी स्थापना की थी और सिखों के पांचवे गुरु अर्जनदेव ने इसकी डिजाइन और निर्माण काम की शुरुआत की थी।
- श्री हरमंदिर साहिब के नाम का अर्थ “भगवान का मंदिर” है और इस मंदिर में सभी जाती-धर्म के लोग बिना किसी भेदभाव के आते है और भगवान की भक्ति करते है.
- सिख धर्म की आस्था से जुड़े इस स्वर्ण मंदिर में बैसाखी, प्रकाशोत्सव, लोह़ड़ी, संक्रांति, शहीदी दिवस जैसे त्योहार काफी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वहीं इस पवित्र गुरुद्धारा में श्रद्धालुओं को कई नियमों का भी पालन भी करना होता है।
पर्यटकों के लिए कुछ जरूरी नियम – Golden Temple Rules
अमृतसर में स्थित गोल्डन टेम्पल में आने वाले हर श्रद्धालुओं को यहां के कुछ नियमों का पालन करना होता है, जो कि इस प्रकार हैं-
- गुरुद्धारा के अंदर जूता पहनकर आने की अनुमति नहीं है, जूतों को बाहर निकालने के बाद ही लोग यहां आ सकते हैं।
- गुरुद्धारा के परिसर में सिर खोलकर जाने पर मनाही है, स्कार्फ या फिर रुमाल, दुपट्टा आदि बांधकर ही इसमें अंदर प्रवेश किया जा सकता है।
- सिख धर्म की आस्था से जुड़े इस पवित्र तीर्थस्थल के अंदर मांसाहारी भोजन करना, सिगरेट पीना, शऱाब पीना आदि पर सख्त मनाही है।
- दरबार साहिब के अंदर गुरुवाणी को सुनने के लिए भक्तों को जमीन पर ही बैठना चाहिए।
कैसे पहुंचे स्वर्ण मंदिर – How To Reach Golden Temple
पंजाब में स्थित स्वर्ण मंदिर वायु, सड़क एवं रेल तीनों मार्गों द्धारा पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से अमृतसर करीब 500 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से अमृतसर पहुंचने में ट्रेन या फिर बस से जाने में करीब 9 घंटे का समय लगता है।
वहीं दिल्ली से अमृतसर पहुंचने के लिए कई ट्रेने और बसें चलती हैं। इसके अलावा अमृतसर के लिए भारत के सभी प्रमुख शहरों से भी काफी अच्छी बस सुविधा भी उपलब्ध है।
इसके अलावा वायु मार्ग के द्धारा भी अमृतसर आसानी से पहुंचा जा सकता है। आपको बता दें कि अमृतसर में राजासांसी एयरपोर्ट है, जहां से टैक्सी से महज 15 मिनट में गोल्डन टैंपल पहुंचा जा सकता है।
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स्वर्ण मंदिर एक गुरुद्वारा होने के बावजूद भी इसे मंदिर क्यों कहा जाता है
is gurdware ki detail me kaha gaya h ki yeh gurudwara jamin se thoda upar h.par kai mandir jameen se jiada upar hote h jo ki is gurudware se alag h.but is gurudware ko swaran mandir is liye kaha gaya kyunki isme sona zameen se thoda jiada upar hi lagaya gaya h,neeche nahi.so unhone hint diya h ki jaha tak sone ka h usko mandir maan lo.kyunki mandir thode upar hote h.so swaran mandir h.means jo swaran ka part h vo mandir h.to welcome for hindus.
U r right
Kya ham yaha per hall me ya mandir me kahi raat bhi ruk sakte hai, please bataye,yaha free me bhi reh sakte hai kya
yes sab kuch free h par aap apni eccha anusar dan bhi kar sakte hai
क्या स्वर्ण मन्दिर में पहले यानि 1926 से पहले तक शिव लिंग और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित थी ?कृपया जानकारी दे। अगर थी तो प्रमाण भी दे ।
Reply
इतिहास की जानकारी :-
आम धारणा हैं कि सिखों ने हिंदुओं की रक्षा की।सिख और हिंदुओं में वही फ़र्क़ है जो मेरे और आपके बचपन जवानी और इस उम्र में है।
खालसा पन्थ की स्थापना के समय ब्राह्मण,हिन्दू खत्री आगे आये थे। हर हिन्दू ने अपने परिवार का बड़ा बेटा खालसा फौज के लिए दिया था। एक और जहां मराठे लड़ रहे थे वहीं दूसरी और राजपूतों और ब्राह्मणों ने मुगलों की नाक में दम किया हुआ था।
जब पहली खालसा फ़ौज बनी तब उसका नेतृत्व एक ब्राह्मण भाई प्राग दास जी के हाथ में था। उसके बाद उनके बेटे भाई मोहन दास जी ने कमान सम्भाली।
सती दास जी,मति दास जी,दयाल दास जी जैसे वीर शहीद ब्राह्मण खालसा फ़ौज के सेनानायक थे। इन्होंने गुरु जी की रक्षा करते हुए अपनी जान दी। गुरु गोबिंद जी को शस्त्रों की शिक्षा देने वाले पण्डित कृपा दत्त जी भी एक ब्राह्मण थे, उनसे बड़ा योद्धा कभी पंजाब के इतिहास में नही देखा गया। जबकि 40 मुक्ते मैदान छोड़ कर भाग गए
एक बैरागी ब्राह्मण लक्ष्मण दास जी उर्फ़ बन्दा बहादुर जी और उनके नाबालिग बेटे अजय भरद्वाज गुरु जी के परिवार के बलिदान का बदला लेने के लिए सरहिंद में लड़े।
चप्पड़ चिड़ी की लड़ाई में उनकी इतिहासिक विजय हुई।
1906 में खालसा पन्थ सिख धर्म बना। अकाली लहर चला कर उसे हिन्दू धर्म से कुछ लोगों ने अलग कर दिया। इतिहास से छेड़छाड़ हुई पर सच्चाई कभी बदल नही सकती।
महान ब्राह्मण योद्धा का इतिहास जानबूझ कर बिकाऊ वामपंथी इतिहासकारों ने मिटा दिया
all informetion is currect thanks toall