Gautam Budh ki Jivani
“पूरी दुनिया में इतना अँधेरा नही है की वह एक मोमबत्ती के प्रकाश को फीका कर सके।”
भगवान गौतम बुद्ध जिन्होंने अपने महान विचारों और उपदेशों से दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया और समाज में अभूतपूर्व परिवर्तन लाने में अपना अहम योगदान दिया। गौतम बुद्ध द्धारा दिए उपदेशों को मानकर कई लोग न सिर्फ अपने जीवन में सफल हुए बल्कि उनके मन में समाज के प्रति प्रेम, सदभाव की भावना का भी विकास हुआ।
गौतम बुद्ध, भारत के महान दार्शनिक, वैज्ञानिक, धर्मगुरु, एक महान समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। गौतम बुद्ध ने हिन्दू धर्म में सिद्धार्थ के रूप में जन्म लिया था, बाद में उन्होंने ग्रहस्थ जीवन में भी प्रवेश किया लेकिन अपनी शादी के कुछ समय बाद उन्होनें अपनी पत्नी और बच्चे का त्याग दिया और परिवारिक मोह-माया से अलग होकर वे बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बन गए।
आपको बता दें कि भगवान गौतम बुद्ध, दुनिया को जन्म, मृत्यु और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग की तलाश और सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में लग गए। इसके बाद उन्होनें भौतिकवादी दुनिया में अपना रास्त ढूंढ़ा।
करूणा भाव से भरे हुए और सत्य, अहिंसा को महात्मा गौतम बुद्द ने अपना जीवन का आधार माना और बाद में उन्होनें लोगों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। उनके महान उपदेशों को सुनकर कई लोगों ने अपने जीवन तक बदल डाला चलिए जानते हैं – बौद्द धर्म के संस्थापक Gautam Buddha के जीवन के बारे में और उपलब्धियों के बारे में –
भगवान गौतम बुद्ध जीवन परिचय – Gautam Buddha in Hindi
भगवान गौतम बुद्ध के जीवन के बारे – Gautam Buddha Information in Hindi
पूरा नाम (Name) | सिद्धार्थ गौतम बुद्ध (Siddharth Gautam Buddha) |
जन्म (Birthday) | 563 ईसा पूर्व, लुम्बिनी |
मृत्यु (Death) | 463 ईसा पूर्व, कुशीनगर |
पिता का नाम (Father Name) | शुद्धोधन |
माता का नाम (Mother Name) | महामाया |
शिक्षा (Education) | गुरु विश्वमित्र के पास वेद और उपनिषद पढ़े, राजकाज और युद्ध – विद्या की भी शिक्षा ली। |
विवाह (Wife Name) | यशोधरा के साथ। |
धर्म (Religion) | जन्म से हिन्दू, बौद्ध धर्म के प्रवर्तक |
गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन – Gautam Buddha Biography in Hindi
महात्मा गौतम बुद्ध का पूरा नाम सिद्धार्थ गौतम बुद्ध था। उनका जन्म 483 और 563 ईस्वी पूर्व के बीच कपिलवस्तु के पास लुंबिनी, नेपाल में हुआ था। आपको बता दें कि कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने पीहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और उन्होने एक बालक को जन्म दिया था।
आपको बता दें कि उनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो कि शाक्य के राजा थे। परंपरागत कथाओं के मुताबिक उनकी माता मायादेवी थि जो कोली वन्श से संबंधित थी, जिनका सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद निधन हो गया था। इसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी (महाप्रजावती गौतमी) ने किया था। जिसके बाद इनका नाम सिद्धार्थ रख दिया गया।
जिनके नाम का अर्थ है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो”। अर्थात सिद्ध आत्मा जिसे सिद्धार्थ ने गौतम बुद्ध बनकर अपने कामों से सिद्ध किया। वहीं इनके जन्म के समय एक साधु ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक महान राजा या किसी महान धर्म का प्रचारक होगा और आगे चलकर साधु महाराज की इस भविष्यवाणी को गौतम बुद्ध ने सही भी साबित किया और वे पवित्र बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बने और समाज में फैली बुराइयों को दूर कर उन्होनें समाज में काफी हद तक सुधार किया।
वहीं जब राजा शुद्धोधन को इस भविष्यवाणी के बारे में पता चला तो वे काफी सतर्क हो गए और उन्होनें इस भविष्यवाणी को गलत साबित करने के लिए अथक प्रयास किए क्योंकि सिद्धार्थ के पिता चाहते थे कि वे उनके राज सिंहासन को संभालें और अपने पुत्र के कर्तव्य को पूरा करें।
वहीं इसलिए वे उन्हें अपने राजमहल से बाहर भी नहीं निकलने देते थे। वे सिदार्थ को अपने महल में सभी ऐशो-आराम देने की कोशिश करते थे। लेकिन बालक सिद्धार्थ का मन बचपन से ही इन आडम्बरों से दूर ही था इसलिए राजा की काफी कोशिशों के बाबजूद भी सिद्धार्थ ने अपने परिवारिक मोह-माया का त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े।
आपको बता दें कि गौतम बुद्ध शुरू से ही दयालु प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। एक कहानी के मुताबिक जब इनके सौतेले भाई देवव्रत ने एक पक्षी को अपने बाण से घायल कर दिया था, इस घटना से गौतम बुद्ध को काफी दुख हुआ था। जिसके बाद उन्होंने उस पक्षी की सेवा कर उसे जीवन दिया था। वहीं गौतम बुद्ध स्वभाव के इतने दयालु थे कि वे दूसरे के दुख में दुखी हो जाया करते थे। उन्हें प्रजा की तकलीफों को नहीं देखा जाता था लेकिन उनका यह स्वभाव राजा शुद्धोधन को अच्छा नहीं लगता था।
जब परिवारिक मोह को त्याग कर सिद्धार्थ ने लिया सन्यासी बनने का फैसला – Gautam Buddha Story in Hindi
राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ का मन शिक्षा में लगाया, जिसके चलते सिद्धार्थ ने विश्वामित्र से शिक्षा ग्रहण की थी। यही नहीं गौतम बुद्ध को वेद, उपनिषदों के साथ युद्ध कौशल में भी निपुण बनाया गया। सिद्धार्थ को बचपन से ही घुड़सवारी का शौक था वहीं धनुष-बाण और रथ हांकने वाला एक सारथी में कोई दूसरा मुकाबला नहीं कर सकता था।
वहीं 16 साल की उम्र में उनके पिता ने सिद्धार्थ की शादी राजकुमारी यशोधरा से कर दी। जिससे उन्हें एक बेटे पैदा हुआ, जिसका नाम राहुल रखा गया। गौतम बुद्ध का मन ग्रहस्थ जीवन में लगाने के लिए उनके पिता ने उन्हें सभी तरह की सुख-सुविधाएं उपलब्ध करवाईं। यहां तक कि सिद्धार्थ के पिता ने अपने बेटे के भोग-विलास का भी भरपूर बंदोबस्त किए था।
राजा शुद्दोधनने अपने बेटे सिद्धार्थ के लिए 3 ऋतुओं के हिसाब से 3 महल भी बनाए थे। जिसमें नाच-गान और ऐशो आराम की सभी व्यवस्थाएं मौजूद थी लेकिन ये चीजें भी सिद्धार्थ को अपनी तरफ आर्कषित नहीं कर सकी। क्योंकि सिद्धार्थ को इन आडम्बरों से दूर रहना ही पसंद था इसलिए वे इस पर कोई खास ध्यान नहीं देते थे। वहीं एक बार जब महात्मा बुद्ध दुनिया को देखने के लिए सैर करने निकले तो उन्हें एक बूढ़ा दरिद्र बीमार मिला जिसे देखकर सिद्धार्थ का मन विचलित हो गया और वे उसके कष्ट के बारे में सोचते रहे।
इस तरह दयालु प्रवृत्ति होने की वजह से उनका मन संसारिक मोह-माया से भर गया। वहीं एक बार भ्रमण के दौरान ही सिद्धार्थ ने एक संन्यासी को देखा, जिसके चेहरे पर संतोष दिखाई दिया, जिसे देखकर राजकुमार सिद्धार्थ काफी प्रभावित हुए और उन्हें सुख की अनुभूति हुई।
वहीं इसके बाद उन्होंने अपने परिवारिक जीवन से दूर जाने और अपनी पत्नी और अपने बच्चे का त्याग करने का फैसला लिया और तपस्वी बनने का फैसला लिया। जिसके बाद वे जंगल की तरफ चले गए।
कठोर तपस्या कर की प्रकाश और सच्चाई की खोज – Gautam Buddha ka Jeevan Parichay
आपको बता दें कि गौतम बुद्ध सिद्धार्थ ने जब घर छोड़ा था तब उनकी आयु महज 29 साल थी। इसके बाद उन्होंने जगह-जगह ज्ञानियों से ज्ञान लिया और तप के मार्ग की महत्ता को जानने की कोशिश की। इसके साथ ही उन्होनें आसन लगाना भी सीखा और साधना शुरु की।
आपको बता दें कि सबसे पहले वो वर्तमान बिहार के राजगीर स्थान पर जाकर मार्गो पर भिक्षा मांगकर अपना तपस्वी जीवन शुरू किया। वहीं इस दौरान राजा बिम्बिसार ने गौतम बुद्ध सिद्दार्थ को पहचान लिया और उनके उपदेश सुनकर उन्हें सिंहासन पर बैठने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
इसके अलावा कुछ समय के लिए वे आंतरिक शांति की खोज में वो पूरे देश के घूमकर साधू संतो से मिलने लगे। उस दौरान उन्होंने भी एक साधू की तरह भोजन का त्याग कर जीवन व्यतीत करना शुरू कर दिया।
इस दौरान वे शरीर से काफी कमजोर हो गए लेकिन इन्हें कोई संतुष्टि नहीं मिली, जिसके बाद उन्हें यह एहसास हुआ कि अपने शरीर को तकलीफ देकर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है और फिर उन्होंने सही तरीके से ध्यान लगाना शुरु किया जिसके बाद उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि अति किसी बात की अच्छी नहीं होती और अपने ईश्वर के लिए खुद को कष्ट देना अपराध है। यही नहीं इस सत्य को जानने के बाद महात्मा गौतम बुद्ध ने तपस्या और व्रत के तरीको की निंदा भी की।
भगवान गौतम बुद्ध को हुई ज्ञान की प्राप्ति – Gautam Buddha ki Kahani
एक दिन गौतम बुद्ध बौद्ध गया पहुंचे। वे उस दौरान बहुत थक गए थे, वैशाखी पूर्णिमा का दिन था, वे आराम करने के लिए पीपल के पेड़ के नीचे बैठ गए और ध्यान लगाने लगे। इस दौरान भगवान गौतम बुद्ध ने यह प्रतिज्ञा ली कि जब तक उनको सत्य की खोज नही हो जाती तब तक वो यहां से नही हिलेंगे। 49 दिनों के ध्यान के बाद उन्होंने एक दिव्य रोशनी उनकी ओर आती हुई दिखी।
आपको बता दें कि यह गौतम बुद्ध की खोज का नया मोड़ था। इस दौरान उन्होनें इसकी खोज की थी कि सत्य हर मनुष्य के साथ है और उसे बाहर से ढूंढना निराधार है। इस घटना के बाद से उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से जाना गया। वहीं उस वृक्ष को बोधिवृक्ष और उस जगह को बोध गया कहा जाने लगा। इसके बाद इन्होंने पालि भाषा में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया।
आपको बता दें कि उस समय आम लोगों की भी पाली भाषा थी। यही वजह थी लोगों ने इसे आसानी से अपना लिया क्योंकि अन्य प्रवर्तक उस दौरान संस्कृत भाषा का इस्तेमाल करते थे। जिसे समझना लोगों के लिए थोड़ा कठिन था। इस वजह से भी लोग गौतम बुद्ध और बोद्ध धर्म की तरफ ज्यादा से ज्यादा आर्कषित हुए। देखते ही देखते बौद्ध धर्म की लोकप्रियता लोगों के बीच बढ़ती गई।
वहीं इसके बाद भारत में कई अलग-अलग प्रदेशों में कई हजार अनुयायी फैल गए। जिनसे उनके संघ का गठन हुआ। वहीं इस संघ ने बौद्ध धर्म के उपदेशों को पूरी दुनिया में फैलाया। जिसके बाद बौद्ध धर्म की अनुयायिओं की संख्या दिन पर दिन बढ़ती गई।
गौतम बुद्ध ने लोगों को सच्चाई के मार्ग पर चलकर सरल मार्ग अपनाने का ज्ञान दिया। आपको बता दें कि किसी भी धर्म के लोग बौद्ध धर्म अपना सकते थे क्योंकि यह सभी जाति-धर्मों से एकदम दूर था। आपको बता दें कि गौतम बुद्ध को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का रूप माना गया था इसलिए इन्हें भगवान बुद्ध कहा जाने लगा। इसके अलावा बौद्ध धर्म की इस्लाम में भी अपनी एक अलग जगह थी। बौद्ध धर्म में अहिंसा को अपनाने और सच्चाई के मार्ग पर चलकर सभी मानव जाति एवं पशु-पक्षी को सामान प्रेम का दर्ज देने को कहा गया। इसके साथ ही आपको बता दें कि महात्मा बुद्ध के पिता और उनके बेटे राहुल दोनों ने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया था।
गौतम बुद्ध के उपदेशों एवं प्रवचनों का प्रचार प्रसार सबसे ज्यादा सम्राट अशोक ने किया। दरअसल कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार से व्यथित होकर सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने महात्मा बुद्ध के उपदेशों को अपनाते हुए इन उपदेशों को अभिलेखों द्वारा जन-जन तक पहुंचाया। यही नहीं सम्राट अशोक ने विदेशों में भी बौद्ध धर्म के प्रचार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
गौतम बुद्ध की दी गयी शिक्षा – Gautam Buddha Teachings in Hindi
गौतम बुद्ध ने तत्कालीन रुढियों और अन्धविश्वासों का खंडन कर एक सहज मानवधर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा की जीवन संयम, सत्य और अहिंसा का पालन करते हुए पवित्र और सरल जीवन व्यतीत करना चाहिए।
उन्होंने कर्म, भाव और ज्ञान के साथ ‘सम्यक्’ की साधना को जोड़ने पर बल दिया, क्योंकि कोई भी ‘अति’ शांति नहीं दे सकती। इसी तरह पीड़ाओ तथा मृत्यु भय से मुक्ति मिल सकती है और भयमुक्ति एवं शांति को ही उन्होंने निर्वाण कहा है।
उन्होंने निर्वाण का जो मार्ग मानव मात्र को सुझाया था,वह आज भी उतनाही प्रासंगिक है जितना आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व था, मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने स्वयं राजसी भोग विलास त्याग दिया और अनेक प्रकार की शारीरिक यंत्रणाए झेली।
गहरे चिंतन – मनन और कठोर साधना के पश्चात् ही उन्हें गया (बिहार) में बोधिवृक्ष के निचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ था। और उन्होंने सर्व प्रथम पांच शिष्यों को दिक्षा दी थी।
गौतम बुद्ध का परिनिर्वाण – Gautam Buddha Death
आपको बता दें कि 80 साल की आयु में गौतम बुद्द ने अपने निर्वाण की घोषणा की थी। समाधि धारण करने के बाद गौतम बुद्ध के अनुनयायियों ने बौद्ध धर्म का जमकर प्रचार-प्रसार किया था। उस दौरान महात्मा बुद्ध द्दारा दिए गए उपदेशों को जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की गई और बड़े स्तर पर लोगों ने बौद्ध धर्म के उपदेशों का अनुसरण भी किया। भारत के अलावा भी चीन, थाईलैंड, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, श्रीलंका जैसे देशों ने बौद्ध बौद्ध धर्म को अपनाया था।
बौद्ध धर्म का प्रचार – Promotion of Buddhism
तत्पश्चात अनेक प्रतापी राजा भी उनके अनुयायी बन गये।उंका धर्म भारत के बाहर भी तेजी से फैला और आज भी बौद्ध धर्म चीन, जापान आदि कई देशों का प्रधान धर्म है।
उनके द्वारा बताये गयी बातो की स्थानिक लोग बड़ी श्रद्धा से मानते थे और उनकी मृत्यु के बाद भी लोग उनके द्वारा बताये गए रास्तो पर चलते थे और उनकी बातो का पालन करते थे। उनकी बातो को कई लोगो ने अपने जीवन में अपनाकर अपना जीवन समृद्ध बनाया है और उनकी मृत्यु के 400 साल बाद भी लोग उन्हें भगवान का रूप मानते थे।
दुखों से मक्ति दिलाने के लिए बुद्ध ने बताया अष्टांगिक मार्ग – Ashtang marg
महात्मा बुद्ध के उपदेश बड़े ही सीधे और सरल थे। उन्होंने कहा था कि समस्त संसार दु:खों से भरा हुआ है और यह दु:ख का कारण इच्छा या तृष्णा है। इच्छाओं का त्याग कर देने से मनुष्य दु:खों से छूट जाता है। उन्होंने लोगों को ये भी बताया कि सम्यक-दृष्टि, सम्यक- भाव, सम्यक- भाषण, सम्यक-व्यवहार, सम्यक निर्वाह, सत्य-पालन, सत्य-विचार और सत्य ध्यान से मनुष्य की तृष्णा मिट जाती है और वह सुखी रहता है। भगवान बुद्ध के उपदेश आज के समय में भी बहुत प्रासंगिक हैं।
महात्मा बुद्ध का जीवन वाकई प्रेरणा देना वाला है। उन्होंने मानवता की मुक्ति का मार्ग ढूंढने के लिए उन्होंने खुद राजसी भोग विलास त्याग दिया और कई तरह की शारीरिक परेशानियों का सामना किया। उन्होनें ज्ञान और सत्य की खोज के लिए कठोर साधना की। जिसके बाद ही उन्हें बिहार में बोधिवृक्ष के नीचे तत्वज्ञान प्राप्त हुआ।
आपको बता दें कि महात्मा बुद्ध ने अपने 5 शिष्यों को दिक्षा भी दी थी यहां तक की कई बुद्धिमान और प्रतापी राजा भी महात्मा बुद्ध के उपदेशों को ध्यानपूर्वक सुनते थे और उनका अनुसरण करते थे और वे भी गौतम बुद्ध के अनुयायी बन गए थे। इस तरह बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़ी तेजी से फैल गया था।
भगवान गौतम बुद्ध के मुताबिक मानव जीवन दुखों से भरा पड़ा है। उन्होंने बताया कि पूरे संसार मे सारी वस्तुएं दु:खमय है। इसके अलावा भगवान गौतम बुद्ध में मानव जीवन और मरण के चक्र को दुखों का मूल कारण माना और बताया कि किसी भी धर्म का मूल उद्देश्य मानव को इस जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाना होना चाहिए।
महात्मा गौतम बुद्ध ने संसार में व्याप्त न सिर्फ दुखों के बारे में बताया बल्कि दुख उत्पन्न होने के कई कारण भी बताए। इसके अलावा भगवान गौतम बुद्ध ने दुखों से छुटकारा दिलाने के मार्ग को भी बताया है। आपको बता दें कि इसके लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग को उपयुक्त बताया है।
अष्टांग मार्ग – Ashtang marg
सम्यक दृष्टि – सत्य तथा असत्य को पहचानने कि शक्ति। महात्मा बुद्ध के मुताबिक जो भी शख्स दुखों से मुक्ति जाना चाहता है। उसमें सत्य और असत्य को पहचानने की शक्ति होनी चाहिए।
सम्यक संकल्प – इच्छा एवं हिंसा रहित संकल्प। महात्मा बुद्ध के मुताबिक जो लोग दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं। उन्हें ऐसे संकल्प लेने चाहिए जो कि हिंसा रहित हो और उनकी इच्छा प्रवल हो।
सम्यक वाणी – सत्य एवं मृदु वाणी। दुखों से निजात पाने के लिए महात्मा बुद्ध ने सम्यक वाणी का भी वर्णन किया है। बुद्ध की माने तो सत्य और मधुर बोलने से इंसान को सुख की अनुभूति होती है और दुख उसके आस-पास भी नहीं भटकता है।
सम्यक कर्म – सत्कर्म, दान, दया, सदाचार, अहिंसा इत्यादि। दया, करूणा का भाव रखना और दान-पुण्य और अच्छे कर्मों से भी मनुष्य दुखों से दूर रहता है।
सम्यक आजीव –जीवन यापन का सदाचार पूर्ण एवं उचित मार्ग। गौतम बुद्ध ने सम्यक आजीव को भी जीवन यापन का उचित मार्ग बताया है।
सम्यक व्यायाम – विवेकपूर्ण प्रयत्न। महात्मा बुद्ध ने दुखों को दूर करने के लिए सम्यक व्यायाम करने को भी कहा। उनका कहना था कि किसी काम को करने के लिए अगर विवेकपूर्ण प्रयास किए जाएं तो सफलता जरूर अर्जित होती है और मानव दुखों से दूर रहता है।
सम्यक स्मृति – अपने कर्मो के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सजग रहने कि शिक्षा देता है।
महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन के दुखों को दूर करने के लिए अपने कर्मों के प्रति विवेकपूर्ण ढंग से सजग रहने की भी शिक्षा दी है।
सम्यक समाधि – चित कि एकाग्रता। महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन में एकाग्रता के महत्वों को भी बताया है उन्होंने कहा सम्यक समाधि लेने से मनुष्य दुखों से दूर रहता है।
इसके अलावा गौतम बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्न दस शीलों पर बल दिया।
अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह(किसी प्रकार कि संपत्ति न रखना), मध सेवन न करना, असमय भोजन न करना, सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना, धन संचय न करना, स्त्रियो से दूर रहना, नृत्य गान आदि से दूर रहना।
इसके साथ ही भगवान बुद्ध ने जीवों पर दया करने का भी उपदेश दिया और हवन , पशुबलि जैसे आडम्बरों की जमकर निंदा की है। इसके अलावा महात्मा बुद्ध ने बुद्ध ने सनातन धर्म के कुछ संकल्पाओं का प्रचार और प्रसार किया था जैसे – अग्निहोत्र और गायत्री मन्त्र।
बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण बातें – Important Teachings of Buddhism
बौद्ध धर्म सभी जातियों और पंथों के लिए खुला है। उसमें हर आदमी का स्वागत है। ब्राह्मण हो या चांडाल, पापी हो या पुण्यात्मा, गृहस्थ हो या ब्रह्मचारी सबके लिए उनका दरवाजा खुला है। उनके धर्म में जात-पाँत, ऊँच-नीच का कोई भेद-भाव नहीं है।
महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने उपदेशों से न सिर्फ कई लोगों की जिंदगी को सफल बनाया बल्कि लोगों की सोच भी विकसित की। इसके साथ ही लोगों में करुणा और दया का भाव भी पैदा करने में अपनी अहम भूमिका निभाई।
बौद्ध शब्द का अर्थ इन्सान के अंतरात्मा को जगाना है। वहीं जब लोगों को बौद्ध धर्म के बारे में पता लगना शुरु हुआ तो लोग इस धर्म की तरफ आर्कषित हुए। अब न सिर्फ भारत के लोग बल्कि दुनिया के कई करोड़ लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं। इस तरह गौतम बुद्ध के अनुयायी पूरी दुनिया में फैल गए।
गौतम बुद्ध की जयंती या बुद्ध पूर्णिमा कब मनाई जाती है ? – Buddha Purnima Information in Hindi
गौतम बुद्ध की जयंती या फिर वैशाख की पूर्णिमा, हिन्दी महीने के दूसरे महीने में मनाई जाती है। इसलिए इसे वेसक या फिर हनमतसूरी भी कहा जाता है। खासकर यह पर्व बौद्ध धर्म के प्रचलित है। बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले लोग बुद्धि पूर्णिमा (Buddha Purnima) को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, क्योंकि यह उनका एक प्रमुख त्यौहार भी है।
आपको बता दें बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। जबकि ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ नहीं हुआ है। इसलिए इसी दिन को गौतम बुद्ध की जयंती या फिर बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा।
गौतम बुद्ध के और सुविचार – More Quotes on Gautam Buddha
- “वह हमारा खुद का ही दिमाग होता है, हमारे दुश्मन का नही होता- जो हमें गलत रास्तो पर ले जाता है।”
- “दर्द तो निश्चित है, कष्ट वैकल्पिक है।”
- “जहा आप खाते हो, चलते हो यात्रा करते हो, वही रहने की कोशिश करे. नहीं तो आप अपने जीवन में बहोत कुछ खो सकते हो।”
- “हमेशा याद रखे एक गलती दिमाग पर उठाए भारी बोझ के सामान है।”
- “आप तब तक रास्ते पर नही चल सकते जब तक आप खुद अपना रास्ता नही बना लेते।”
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Sandaar anubhav hai budhh ko padna art of living hai unka jivan duniya me ahinsaaa vaadi hona sabse bada dhrem hai
बहुत ही अच्छा धर्मगुरु थे भगवन गौतम बुद्ध
Nice article, good work