Galteshwar Mahadev Temple
भगवान शिव के मंदिर हमारे चारो तरफ़ देखने को मिलते है। लेकिन भगवान शिव के मंदिर अलग अलग तरह के होते है। कुछ मंदिरों में भगवान शिव की मूर्ति की पूजा की जाती है। लेकिन कुछ मंदिरों में भगवान शिव की मूर्ति नहीं रहती मगर ऐसे मंदिरों में भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा की जाती है।
मगर किसी भी देवी या देवता का कोई भी मंदिर हो उसे पूरी तरह से सुरक्षित किया जाता है। कहने का मतबल यह है की जब भी कोई मंदिर बनाया जाता है तो उसे पूरी तरह से बनाया जाता है, उसे कभी भी आधा अधुरा नहीं रखा जाता। लेकिन कुछ मंदिरों को जानबूझकर आधा रखा जाता है लेकिन उसके पीछे भी कोई ना कोई वजह होती है।
कुछ ऐसा ही भगवान शिव का एक मंदिर है जो गुजरात में है। इस मंदिर की खास बात यह है की इसे पूरी तरह से बनाया तो गया लेकिन कुछ रहस्य के कारण इस मंदिर के छत को बनाया ही नहीं गया।
इस बात को समझने के बाद कोई भी आश्चर्यचकित हो सकता है क्यों की कोई भी मंदिर बनाने के बाद उसे सुरक्षित करने के लिए उसपर छत बनाया जाता है लेकिन गुजरात के एक महान और भव्य मंदिर को छत ही नहीं है। इस मंदिर का नाम है गल्तेश्वर मंदिर।
क्यों गुजरात के गल्तेश्वर मंदिर को छत नहीं हैं जाने पूरा इतिहास …..
आखिर क्यों इस मंदिर को छत नहीं इस बात को जानना बहुत जरुरी है। किस वजह से आज भी इस मंदिर में सारी सुविधा होने के बाद भी एक छोटासा छत इस मंदिर में नहीं इसकी जानकरी आज हम आपको देने वाले है।
भगवान शिव का प्रसिद्ध और भव्य गल्तेश्वर मंदिर गुजरात के खेडा जिले के एक छोटेसे सर्नल गाव में स्थित है।
12 वी सदी में निर्माण किये गए इस पवित्र मंदिर को मालवा की प्रसिद्ध भूमिजा शैली में बनवाया गया है लेकिन जब इस मंदिर को बनवाया गया तो इसपर उस समय की परमार शैली और गुजराती चालुक्य शैली का कुछ भी प्रभाव नहीं होने दिया।
इस मंदिर का गर्भगृह पूरी तरह से चौकोनी है और इस मंदिर का जो भवन है वह भी अष्टकोनी है।
गल्तेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास – Galteshwar Mahadev Temple History
सोलंकी के शासनकल में बना भगवान शिव का गल्तेश्वर मंदिर मही और गलती नदी के संगम पर स्थित है और ऐसा कहा जाता है की यहापर एक समय में प्रसिद्ध गालव मुनी चंद्रहास भी रहते थे।
मही नदी के किनारे पर स्थित भगवान शिव के इस सुन्दर मंदिर में जो शिवलिंग है उसपर आज भी गलती नदी के झरने का पानी गिरता है।
इस मंदिर में आठ बाजूवाला एक भवन है। इस मंदिर की दीवारों पर सभी देवी देवता, गन्धर्व, मनुष्य, ऋषिमुनी, घोड़सवार, हाथी सवार, रथ, डोली, मनुष्य का जीवनचक्र इन सभी के चित्र दिखाई देते है।
गल्तेश्वर महादेव मंदिर की विशेषताए – Characteristics of the Galteshwar Mahadev Temple
लाल पत्थरों की नक्काशी में बनाये गए इस सुन्दर मंदिर को आठ भुजाओ में बनाया गया है। सोलंकी के शासनकाल में बनाया गया यह मंदिर आज भी बिलकुल अच्छी स्थिति में है। इस मंदिर की दीवारों पर देवी देवता, मनुष्य, रथ, घोड़सवार, हाथी के चित्र दिखाई देते है।
यात्री लोग यहाँ की देवता की मूर्ति पर हाथ घिसते है और बादमे माथे को उसपर रखते है और उनका उसपर की गयी नक्काशी पर ध्यान भी नहीं जाता।
इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने पर किसी का भी ध्यान इस मंदिर के छत पर बड़ी आसानी से जा सकता है क्यों की इस मंदिर का छत अन्य मंदिरों के छतो से बिलकुल अलग है।
असल में इस मंदिर को किसी भी तरह का कोई छत नहीं है। इस मंदिर को छत क्यों नहीं इसके पीछे भी दो वजह है।
पहली बात यह है की इस मंदिर को खुद भगवान शिव ने अपने हाथों से बनाया था। वे नहीं चाहते थे कोई इस मंदिर को बनाने के वक्त उन्हें देख ले इसीलिए भगवान रात्रि के समय में मंदिर का निर्माण करते थे और दिन होने से पहले ही चले जाते थे।
लेकिन दुःख की बात यह है की वे इस मंदिर को पूरी तरह से निर्मित नहीं कर सके।
इस कहानी के मुताबिक जब महमूद ग़जनी सोमनाथ मंदिर के खजाने को लूटकर जा रहा था तो उसकी नजर इस गल्तेश्वर मंदिर पर पड़ी और उसने इस मंदिर के छत को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था।
गल्तेश्वर मंदिर की वास्तुकला – Galteshwar Mahadev Temple Architecture
गुजरात में स्थित गल्तेश्वर मंदिर को भूमिजा शैली में बनाया गया है और यह गुजरात की काफी प्राचीन शैली है जो बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती है। मालवा के शासनकाल में यह भूमिजा शैली काफी प्रसिद्ध थी।
अष्टभद्र मंदिर बड़ी मुश्किल से देखने को मिलते है और यह मंदिर उन मंदिरों में से ही एक है। मध्य भारत में भूमिजा शैली में बने मंदिर बहुत ही कम है जैसे की आरंग का भूमिजा शैली में बनाया गया मंदिर।
गल्तेश्वर मंदिर परमार शैली से पूरी तरह से अछुता है। यह मंदिर निरंधरा तरह का है जिसमे गर्भगृह और मंडप पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है।
गर्भगृह
इस मंदिर का मुख्य गर्भगृह मंडप के सतह से भी निचे स्थित है साथ ही इस मंदिर का गर्भगृह अन्दर से चार भुजा में बनाया गया है। लेकिन बाहर से यह मंदिर गोलाकार है जिसका व्यास 24 फीट है।
मंदिर के सभी दिशाओ में सारे दिशाओ की संरक्षक देवता दिकपाल की तस्वीरे है। मंदिर की सबसे पहली जो दीवार है उसपर भगवान शिव को विभिन्न अवतार में दर्शाया गया है लेकिन अब भगवान शिव के सभी चित्र पूरी तरह से ख़राब हो चुके है।
मंदिर के प्रवेशद्वार को रुपस्थंभ से अलंकृत किया है और इसे अबू की शैली कहा जाता है। मंदिर की दीवारों पर गन्धर्व, तपस्वी, घोड़सवार, हाथी सवार, रथ और पालकी के चित्र बनाये गए है।
मंडप
इस मंदिर के मंडप को आठ भुजा में बनाया गया है और इसे देखकर गुजरात के चालुक्य के समय बनाये गए मंदिरों की याद आती है।
यह मंदिर चालुक्य के शासनकाल में बनाये गए मोढेरा का सूर्य मंदिर, सोमनाथ मंदिर, और सेजकपुर मंदिर की तरह ही है। मंडप के पिछ्ले हिस्से में दो भुजा के बदले में तीन भुजा दिखाई देती है।
इस मंडप को अन्दर से आठ स्तंभ और बाहर से सोलह छोटे स्तंभ है जिसकी वजह से मंडप का छत पूरी तरह से सुरक्षित किया गया है।
मंदिर के जो अन्दर के स्तंभ है उन्हे चौकोण के आकार में बनाया गया है उन्हें थोड़ासा किनारों पर काटा भी गया है। इस स्तंभ के एक तिहाई के हिस्से में चार बाजूवाले दस्ता बनाये गए और उसके निचे के आधे हिस्से में अष्टकोणी दस्ता बनाये गए है।
उसके बाद भी स्तंभपर सोलह अलग से और गोलाकार दस्ता को कीर्तिमुख में अलंकृत किया गया है। सबसे आखिरी में इन स्तम्भोपर निचे गिरनेवाले पेड़ की पत्तियों को दिखाया गया है।
सन 1908 में इस मंदिर का शिखर और मंडप दोनों भी गिर गए थे। इस मंदिर का शिखर भी गुजरात की भूमिजा शैली में बनाया गया था जिसमे कुतास्ताम्भिका और श्रिंग भी मौजूद थे।
भूमिजा शैली मे बनाये गए सुरसेनाका शिखर भी इस मंदिर में स्थित है लेकिन इस तरह के सभी शिखर परमार शैली से बिलकुल अलग है।
गल्तेश्वर मंदिर तक कैसे पहुँचे – How to reach Galteshwar Mahadev Temple
भगवान शिव का गल्तेश्वर महादेव मंदिर खेडा जिले के डाकोर में स्थित है। डाकोर थसरा तहसील में आता है।
अहमदाबाद इस मंदिर से केवल 90 किमी की दुरी पर स्थित है। वड़ोदरा का हवाईअड्डा इस मंदिर से केवल 78 किमी है।
गल्तेश्वर मंदिर को भेट देने का सही समय – Best time to visit Galteshwar Mahadev Temple
भगवान शिव के भक्तों को इस मंदिर को एक बार अवश्य भेट देनी चाहिए। मही नदी और गलती नदी के संगम को एक बार जरुर देखना चाहिए क्यों की इन दोनों नदियों के मिलने का अनोखा और सुन्दर दृश्य कही और देखने को नहीं मिलता।
शिवरात्रि के पर्व पर इस मंदिर में बड़ा त्यौहार मनाया जाता है और ऐसे अवसर पर भक्तों ने जरुर आना चाहिए।
खेडा जिले में स्थित इस गल्तेश्वर मंदिर की कई सारी बाते है जो बड़ी आसानी से समझ में नहीं आती। पहली बात यह की इस मंदिर को आठभुजा में बनाया गया है। इस मंदिर को क्यों आठ भुजा में ही बनाया गया इसके पीछे की वजह किसी को पता नहीं।
दूसरी बात यह की जब इस मंदिर को बनाया जा रहा था उस वक्त परमार शैली और चालुक्य शैली काफी प्रभावी थी और सभी तरह इसी शैली में मंदिरों का निर्माण किया जाता था लेकिन इस मंदिर के साथ ऐसा नहीं हुआ और इस मंदिर को किसी दूसरी ही भूमिजा शैली में बनाया गया।
तीसरी बात यह की भगवान शिव के अधिकतर शिवलिंग सामान्य होते है यानिकी उनपर कोई नक्काशी का काम नहीं किया जाता लेकिन इस मंदिर के शिवलिंग पर बहुत ही सुन्दर तरीके से नक्काशी का काम किया गया है इसके पीछे क्या वजह थी किसीको भी मालूम नहीं।
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Per aapney ye nahi bataya ki is per chaat kyoun nahi hai, Log boltey hai ki wo muglon ne tood di thi, Kya ye baat sahi hai?????
Mene aaj is mandir ki mulakat li he or us samay is mandir ne mujhe mohit kar liya tha. Is ki nakkassi la javab he 800 sal purane samay ka mandir dekhna bhi ek ajube se kam na tha.
काफी अच्छा लगा ये पोस्ट पढके, gyanipandit के हर एक पोस्ट पढने में बहुत मजा अत है, फिर से सुक्रिया
धन्यवाद। आपने हमारे इस पोस्ट को पढ़ा। उम्मीद है कि आप हमारी वेबसाइट पर उपलब्ध बाकी पोस्ट भी पढ़ते रहेंगे।