भारत में महिलाओं पर निबंध – Essay on Women

Essay on Women

भारतीय संस्कृति और शास्त्रों में स्त्री को देवी का दर्जा दिया गया है, महिलाओं के लिए संस्कृत में एक श्लोक भी है –

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।”

Eassy on women
Eassy on women

भारत में महिलाओं पर निबंध – Essay on Women

अर्थात जिस कुल में नारियों का सम्मान होता है और उनकी पूजा होती है वहां देवाताओं का वास होता है, वहीं जिस कुल में महिलाओं का आदर सत्कार नहीं होता, उस कुल का विनाश होता है अर्थात कोई भी काम सफल नहीं होता।

नारी शक्ति एक अद्भुत और अलौकिक शक्ति है, इसके साथ ही नारी सृष्टि की सबसे शानदार रचना हैं, जो न सिर्फ कुल को आगे बढ़ाती हैं बल्कि अन्याय का भी विनाश करती है। नारी के बिना संसार की समस्त क्रियाएं अधूरी मानी जाती है।

नारी ममता, त्याग, प्रेम की देवी है, वहीं जब-जब नारी का अपमान हुआ है, तब-तब धर्म की हानि हुई है और युद्ध हुआ है। वहीं रामायण और महाभारत भी इस बात का प्रमाण हैं। सीता के अपमान के कारण ही लंकाधिपति रावण का विनाश हुआ है और द्रोपदी के अपमान का नतीजा ही महाभारत का युद्ध था।

हमारे देश में नारियों ने सदैव अपने साहस और बलिदान से अपनी अद्मय शक्ति और क्षमता का परिचय दिया है, हालांकि फिर भी आज हमारे देश में महिलाओं की जमकर उपेक्षा हो रही है, उन्हें अपने ही हक के लिए ही लड़ना पड़ रहा है।

वहीं महिलाओं की स्थिति भारत में हमेशा से ही बदलती रही है, लेकिन महिलाओं ने हर परिस्थिति में खुद को साबित किया और परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति

प्राचीन भारत में अगर महिलाओं की स्थिति की बात करें तो महलिाओं की स्थिति काफी अच्छी हुआ करती थी। उस युग में नारियों का महत्व समझा जाता था और उन्हें देवी का रुप मानकर उनका आदर सत्कार किया जाता था। प्राचीन भारत में महिलाओं को शिक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य, साहित्य समेत तमाम क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुष की तरह अधिकार प्राप्त थे। इसके साथ ही महिलाएं हर जगह पुरुषों की तरह अपनी भागीदारी निभाती थी।

वहीं प्राचीन भारत में महिला-पुरुष में भेदभाव नहीं किया जाता था अर्थात कोई भी काम लैंगिग भेदभाव के आधार पर नहीं बंटा था। प्राचीन भारत में मैत्रेयी, लोपामुद्रा, गार्गी आदि महान उच्च शिक्षित महिलाओं का उल्लेख मिलता है।

मध्ययुगीन भारत में महिलाओं की स्थिति

मध्युगीन भारत में महिलाओं की स्थिति काफी खराब थी, क्योंकि इस युग में महिलाओं-पुरुषों में भेद किया जाने लगा था। इस युग में महिलाओं को उनके हक से वंचित रखा गया, इसके साथ ही उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा समेत कई मामलों में पुरुषों से पीछे रखा गया।

इसके अलावा महिलाओं को इस युग में सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, दहेज प्रथा जैसी कुरोतियों का शिकार होना पड़ा। जिससे उनकी स्थिति काफी बिगड़ती गई और आज भी इसी वजह से महिलाएं अपने हक के लिए संघर्ष कर रही हैं।

हालांकि मध्ययुगीन भारत में रानी दुर्गावती, अहिल्याबाई होल्कर, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई, मीराबाई, सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा जैसी कई महिलाओं ने पुरुष प्रधान देश में अपनी साहस और शक्ति का परिचय दिया और नारी शक्ति का एहसास करवाया।

इस युग में मध्युगीन भारत के महान कवि मैथिलीशरण गुप्त ने महिलाओं की स्थिति का वर्णन इस तरह किया है –

अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।।

वर्तमान में महिलाओं की स्थिति

मध्ययुगीन भारत में महिलाओं की बिगड़ती स्थिति और उनकी दशा को देखकर 19वीं शताब्दी में राजाराम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, भीमराव अम्बेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई समेत तमाम समाज सुधारकों ने महिलाओं के विकास और उनके उत्थान के लिए काम किए।

जिससे काफी हद तक महिलाओं की स्थित में सुधार तो आ गया, लेकिन आज भी महिलाओं के प्रति लोगों की विचारधारा पूरी तरह नहीं बदली है, जिसकी वजह से महिलाओं का पूरी तरह से विकास नहीं हो पा रहा है, वहीं जब तक महिलाओं का विकास नहीं होगा तब तक देश का भी सही मायने में विकास नहीं हो सकेगा, क्योंकि महिलाएं देश की आधी शक्ति होती हैं, और जब हमारे देश की आधी शक्ति ही मजबूत नहीं होगी तो देश कैसे मजबूत बनेगा।

वहीं भारत के महान दार्शनिक और समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद महिलाओं को लेकर कहा है कि –

“नारी जब अपने ऊपर थोपी हुई बेड़ियों एवं कड़ियों को तोड़ने लगेगी तो विश्व की कोई शक्ति उसे नहीं रोक पायेगी।”

उपसंहार

इसलिए नारियों का सम्मान और विकास जरूरी है। अर्थात हम सभी को महिलाओं के उत्थान के लिए काम करने चाहिए और सभी को महिलाओं के प्रति सोच को बदलना होगा, तभी हम सही मायने में तरक्की कर सकेंगे और हमारा देश शक्तिशाली और विकसित देश में शुमार होगा।

नारियों के सम्मान में हिंदी साहित्य के महान कवि जयशंकर प्रसाद ने भी लिखा है –

‘नारी तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास रजत नग पद तल में
पियुश श्रोत वहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

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