मदर टेरेसा पर निबंध – Essay on Mother Teresa in Hindi

Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा, न सिर्फ एक अच्छी समाजसेविका थी, बल्कि वे दया, और परोपकार की देवी थी, जिन्होंने गरीब और जरूरतमंदों की मद्द के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि जो जीवन दूसरों के परोपकार और सेवा में काम नहीं आ सके, ऐसा जीवन जीने से कोई फायदा नहीं है।

उनके दया और परोपकार की भावना से प्रेरणा लेने और उनके सरल व्यक्तित्व के बारे में आज की पीढ़ी को जागरूक करने के मकसद से स्कूल / कॉलेजों पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम अपने इस आर्टिकल में आपको “मदर टेरेसा” के विषय पर अलग-अलग शब्द सीमा में निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं।

Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा पर निबंध – Essay on Mother Teresa in Hindi

मदर टेरेसा एक ममतामयी मां थी, जो गरीब, असहाय और जरूरतमंद लोगों की एक मां की तरह निस्वार्थ सेवा करती थी। मदर टेरेसा बेहद उदार, दयालु महिला थी, जो कि सबके प्रति प्रेम और सेवा भाव रखती हैं, इसी वजह से उनको गरीबों की मसीहा के नाम से भी संबोधित किया जाता था। हमेशा दूसरों की सेवा में समर्पित रहने वाली मदर टेरेसा से हर शख्स को प्रेरणा लेने की जरूरत है।

मदर टेरेसा का संघर्षपूर्ण शुरुआती जीवन – Mother Teresa Information in Hindi

करुणामयी मदर टेरेसा 26 अगस्त साल 1910 को मेसेडोनिया के बेहद गरीब परिवार में जन्मी थी, जिनके सिर से बचपन में ही पिता का साया उठ गया था। इसके बाद मां द्राना बोयाजू ने उनकी परवरिश की और उन्हें अच्छे संस्कार दिए।

बचपन में वे अपनी मां और बहन के साथ चर्च में धार्मिक गीत गाती थी। 12 साल की उम्र में वे अपनी धार्मिक यात्रा पर येशु के परोपकार और समाजसेवा के वचन को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए विश्व भ्रमण पर निकल पड़ी थी।

इसी दौरान उन्होंने अपने जीवन को गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित करने का मन बना लिया था। मदर टेरेसा ने अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना घर त्याग दिया। वहीं इसके बाद वे नन बनी और अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा और परोपकार में लगा दिया फिर बाद में वे मदर टेरेसा के रुप में विख्यात हुईं।

भारतीय मूल की नहीं होकर भी भारतीयों पर अपनी जान छिड़कती थी मदर टेरेसा:

18 साल की उम्र में मदर टेरेसा भारत आईं थी, और उन्होंने कलकत्ता में एक क्रिश्च्यन स्कूल की स्थापना की थी। इसी स्कूल में वे एक अच्छी टीचर के तौर पर बच्चों के पढ़ाती थी।

वहीं यह वह समय था जब कलकत्ता में अकाल की वजह से कई लोगों की जान चली गई थी और गरीबी के कारण लोगों की हालत बेहद खराब हो गई थी, इस भयावह मंजर को देखकर उनका मन आहत हो उठा, जिसके बाद उन्होंने अपने शेष जीवन भर भारत में रहकर ही बीमार, गरीब, असहाय और जरूरतमंद लोगों की सेवा करने का संकल्प लिया।

आपको बता दें कि मदर टेरेसा भारतीय मूल की नहीं थी, लेकिन फिर ही वे भारत के गरीब, निर्धनों की सहारा बनी और उन्होंने कई चैरिटी संस्थान खोलकर भारतीय समाज में अपने महत्वपूर्ण योगदान दिए।

गरीबों और असहाय लोगों की मसीहा थी मदर टेरेसा:

गरीबी से मजबूर और गंभीर बीमारी से पीड़ित असहाय रोगियों और बुजर्गों की सेवा करना ही करुणामयी मदर टेरेसा के जीवन का एक मात्र उद्देश्य था। यही वजह है कि वे अपनी जिंदगी की आखिरी पलों तक ऐसे लोगों की सेवा में लगीं रहीं।

गंभीर बीमारी से पीडि़त रोगियों की मद्द के लिए उन्होंने पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल में नर्सिंग की ट्रेनिंग भी ली थी। मदर टेरेसा गरीब,असहाय, दीन-हीन और पीडि़त लोगों के दुख-दर्द को दूर कर उनके मन में जीवन जीने की आस जगाने और सकारात्मक विचार उत्पन्न करने का काम करत थीं।

मदर टेरेसा एक ऐसी समाजसेवी थी, जो अपने पूर्ण विश्वास और एकाग्रता के माध्यम से गरीब लोगों की मद्द करती थी। उनके अंदर दया और करुणा का भाव इस तरह समाहित था कि, वे निर्धन और असहाय व्यक्ति की पूरी निष्ठा के साथ सेवा करती थी।

वहीं कई बार तो वे पीडि़त व्यक्ति की देखभाल के लिए रातों जगती थी, तो कई उनके साथ कई किलोमीटर का लंबा सफर पैदल ही तय करती थी।

उपसंहार

मदर टेरेसा एक सच्ची समाजसेविका थी, जिन्होंने अपने उम्र के आखिरी पड़ाव तक लोगों की सेवा की। मदर टेरेसा जरूरतमंदों की सेवा में इस तरह समर्पित थी कि वे इसके लिए रात-दिन मेहनत करती थी और थकने के बाबजूद भी कभी हार नहीं मानती थी।

वहीं जब तक पीडि़त, निर्धनों का दर्द दूर नहीं हो जाता था, तब तक चैन से नहीं बैठती थी। उनके परोपकार, सेवा और करुणा के भाव से हम सभी को सीखने की जरूरत है।

मदर टेरेसा पर निबंध – Essay about Mother Teresa

प्रस्तावना –

मानवता की मिसाल और करुणामयी मदर टेरेसा के अंदर परोपकार और दया की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी, इसलिए वे अपने जिंदगी की आखिरी पलों तक मानवता की सेवा में लगी रहीं।
उनका मानना था, जो शरीर गरीब, दीन-हीनों और असहायों के काम में नहीं आए, ऐसा शरीर किसी काम का नहीं है। मदर टेरेसा का जीवन प्रेरणास्त्रोत है, जिससे हर किसी को सीखने की जरूरत है।

दूसरों की सेवा में पूरी तरह समर्पित थी मदर टेरेसा:

मदर टेरेसा के जीवन का एकमात्र उद्देश्य दूसरों की सेवा करना और दीन-हीनों की मद्द करना था। वे हमेशा जरुरतमंदों की सेवा करने के लिए तत्पर रहती थीं। वहीं उन्होंने असहाय और पीडि़त रोगियों की सेवा के लिए नर्स की ट्रेनिंग भी ली थी, ताकि वे उनकी अच्छे तरीके से देखभाल कर सकें।

मदर टेरेसा ने कई संक्रामक और गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों को भी सही किया था। इसके साथ ही कुछ कुष्ठ एवं संक्रामक रोगों के प्रति फैली लोगों की गलत धारणा को भी सही करने की कोशिश की थी। त्याग और दया की मूर्ति मदर टेरेसा की महान और करुणामयी व्यक्तित्व वाकई प्रेरणादायी है।

मदर टेरेसा जी की मिशनरीज संस्था:

दया की देवी मदर टेरेसा जी ने जरुरतमंदो, असहाय, पीडि़त, लंगड़े आदि की सेवा करना और गरीबों की भूख मिटाने समेत असहाय रोगियों का उपचार करने के उद्देश्य से साल 1950 को “मिशनरीज ऑफ चैरिटी नामक” संस्था की स्थापना की।

आपको बता दें कि मदर टेरेसा की इस संस्था के तहत साल 1996 तक लगभग 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले गए, जिससे कई बेसहारा लोगों को सहारा दिया गया और गरीबों की भूख मिटाई गई।

उपसंहार

अपना जीवन दूसरे की सेवा और हित में सर्मपित करने वाली मदर टेरेसा ने अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए ‘निर्मला शिशु भवन’ और बीमारी से पीडि़त रोगियों की सेवा करने के लिए ‘निर्मल हृदय’ नाम से आश्रम भी खोले थे।

जहां वे खुद एक करुणामयी मां की तरह बच्चों को अपने आंचल में सुलाती थी और पीड़ित रोगियों और गरीबों की पूरी निष्ठा के साथ देखभाल करती थीं। उनसे हर किसी को परोपकार और दया करने की सीख लेने की जरूरत है।

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