भारत के संविधान पर निबंध – Essay on Indian Constitution

Essay on Indian Constitution

15 अगस्त, 1947 को जब भारत देश ने अंग्रेजों के चंगुल से आजादी पाई थी तो उस समय तक अपने देश का कोई संविधान नहीं था। संविधान का मतलब है कि देश के नियम और कानून जिसके द्धारा पूरे देश को निंयत्रित किया जा सके, इसलिए अपने देश के नियम और कानून की जरूरत पड़ी क्योंकि आजादी पा लेने से ही सब कुछ नहीं होता एक अच्छे राष्ट्र की पहचान तभी होती है, जब उसके देश के खुद के नियम और कानून हो।

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भारत के संविधान पर निबंध – Essay on Indian Constitution

इसलिए किसी भी देश का संविधान उस देश की मानसिकता, इच्छा-आकांक्षाओं, तत्कालीन और दीर्घकालीन जरूरतों को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है। क्योंकि संविधान ही राष्ट्रीय अस्मिता का प्रतीक और परिचायक होता है।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसका संविधान विश्व का सबसे बड़ा संविधान है। इसमें 448 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 94 संसोधन शामिल हैं। भारतीय संविधान मौलिक अधिकार, अपने नागरिकों के लिए निर्देशक सिद्धांतों और सरकारी संस्थानों की शक्तियों और कर्तव्यों के बारे में एक लिखित दस्तावेज है। जो कि लोगों को उनके मौलिक, राजनैतिक, सामाजिक अधिकार दिलावाता है। इसके साथ ही संविधान राजनीतिक सिद्धांतों, प्रक्रियाओं और सरकार की शक्तियों के लिए एक ढांचा है।

वहीं संविधान के अनुसार भारत को एक गणतांत्रिक व्यवस्था वाला राष्ट्र घोषित किया गया है। संविधान की सुरक्षा सर्वोच्च न्यायालय करता है। जबकि इसका प्रधान अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति है और प्रत्यक्ष रूप से इसका इस्तेमाल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री करते हैं। भारत के सविंधान में सभी नियम और कानून अलग-अलग देशों के संविधान से लिए गए हैं।

आपको बता दें कि भारतीय संविधान मुख्य रूप से अमेरिकी संविधान से प्रेरित है। हालांकि इस संविधान का निर्माण करते समय अमेरिका के अलावा इंग्लैड, फ्रांस और रूस राष्ट्रों के संविधान से भी कई अच्छी बातें ग्रहण की गई।

भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों में से मौलिक अधिकार को रूसी सविंधान से लिया गया है और गणतंत्र को फ्रांसीसी संविधान से लिया गया है। जबकि अमेरिका के संविधान से राष्ट्रपति के कार्य और अधिकार लिए गए है।

साथ ही उपराष्ट्रपति के कार्य और संसोधन को भी अमेरिका के संविधान से लिया गया है। इसके अलावा भी भारतीय संविधान में दिए गए अधिकारों और कानूनों को कई अन्य देशों से से लिया गया है।

भारत का संविधान 26 जनवरी, 1949 को पारित किया गया था और 26 जनवरी, 1950 में इसे पूरी तरह से लागू किया गया था। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इसका निर्माण किया था इस वजह से उन्हें भारतीय संविधान का पिता कहा गया है।

आपको बता दें कि भारतीय सविंधान के निर्माण में 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे थे। सबसे पहले  संविधान सभा 9 दिसंबर, 1946 को बैठी थी जबकि संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 नवंबर, 1949 को हुई थी।

भारतीय संविधान दुनिया के सबसे अच्छे संविधानों में से एक है। जो कि  हमें आर्थिक और व्यक्तिगत तौर पर मजबूती देता है। इसके साथ ही यह देश को एकता और विकास शीलता प्रदान करता है ।वहीं भारतीय संविधान की सबसे बड़ी खासियत यह है कि  इसमें देश को एक- धर्म –निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है।

संविधान का मसौदा – Constitution Draft

संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया। संविधान सभा के सदस्य कों भारत के राज्यों के सदनों के निर्वाचित सदस्यों के द्धारा चुना गया था। जिसके लिए 9 जुलाई, 1946 को चुनाव हुआ था।

जबकि संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई थी। जिसमें भीमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद, राजगोपालाचारी, वल्लभभाई पटेल, डॉ राजेंद्र प्रसाद और श्यामा प्रसाद मुखर्जी इस सभा में शामिल हुए जबकि महात्मा गांधी और कायदे-ए आजम मोहम्मद अली जिन्न इस सभा में शामिल नहीं हए।

वहीं  संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद को बनाया गया और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में डॉक्टर सच्चिदानंद को चुना जबकि 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा द्वारा  डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को ड्राफ्टिंग समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

आपको बता दें कि ड्राफ्टिंग समिति में कुल 7 सदस्य थे जिनको संविधान का एक मसौदा तैयार करनी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। जिसमें डॉ. भीमराव अम्बेडकर, एन गोपाल स्वामी आयंगर, अलादी कृष्ण स्वामी आयार, डॉ. के एम मुंशी, सैयद मोहम्मद सादुल्लाह, एन माधव राव और  टी टी कृष्णमचारी शामिल थे।  इसके अलावा  संविधान सभा ने बी एन राव को संवैधानिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया था।।

आपको बता दें कि ड्राफ्टिंग समिति ने भारत के संविधान का पहला मसौदा फरवरी 1948 में प्रकाशित किया था।  जबकि भारत के लोगों को मसौदे पर चर्चा और संशोधन का प्रस्ताव करने के लिए 8 महीने का समय दिया गया था।

सार्वजनिक टिप्पणी, आलोचनाओं और सुझावों के प्रकाश में, ड्राफ्टिंग समिति ने दूसरा मसौदा तैयार किया जिसे अक्टूबर 1948 में प्रकाशित किया गया था।

जबकि संविधान का आखिरी मसौदा डॉ. भीमराव अंबेडकर ने नवम्बर 4, 1948 को संविधान सभा में पेश किया था। जिसके बाद मसौदे की हर धारा पर विस्तृत विचार-विमर्श और बहस की गई थी।

जबकि सभी विचारों और संशोधनों को संविधान में शामिल करने के बाद ड्राफ्ट संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित कर दिया गया। जिसमें एक उद्देशिका, 395 आर्टिकल तथा 8 अनुसूचियां शामिल थी लेकिन अब इसमें 445 अनुच्छेद, 25 भाग और 12 अनुसूचियां शामिल हो गईं हैं। दरअसल समय- समय पर संविधान में कई संशोधन किए गए हैं। जैसे, 42 वें संशोधन अधिनियम,1976 द्वारा कई बदलाव किए गए।

इस तरह भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को पूरी तरह से लागू किया गया था इसलिए हर साल इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप में देशभर में मनाया जाता है।

वहीं खासकर  26 जनवरी को संविधान के शुरु होने की तिथि के रूप में इसलिए चुना गया था क्योंकि साल 1930 में इसी दिन ‘पूर्ण स्वराज’ मनाया गया था। जिसका संकल्प दिसंबर 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र के दौरान लिया था।

संविधान सभा को संविधान तैयार करने में 2 साल, 11 महीने और 17 दिन का समय लगा था । इसके साथ ही इसकी तैयारी में करीब 6.4 करोड़ रुपए का खर्चा आया था।

आपको बता दें कि भारत के मूल संविधान को हिंदी और अंग्रेजी भाषा में प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने लिखा गया है। इसके हर पेज को बेहद कठिन और इटैलिक धाराप्रवाह में लिखा गया था।

वहीं पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन के कलाकारों ने हर पेज के प्रस्तुतीकरण पर भी काम किया था। इसकी अंग्रेजी और हिंदी की मूल कॉपियां भारतीय संसद पुस्तकालय में, हीलियम से डिजाइन किए गए खास तरीके के पात्र में सुरक्षित रखी गईं हैं।

भारत के संविधान को संस्कृति, धर्म और भूगोलिक की दृष्टिकोण से सबसे अच्छा लिखित संविधान माना जाता है। वहीं आज तक भारतीय संविधान में कुल 101 संशोधन हुए हैं, जबकि संविधान सभा के द्धारा लिखित अपने विचारों की व्यापक प्रकृति को दर्शाते हैं।

समय-समय पर संविधान में कई संशोधन किए गए हैं। आपको बता दें कि इसमें 42 वें संशोधन अधिनियम,1976 द्वारा कई बदलाव किए गए।

संविधान की मुख्य विशेषताएं – Features of the Constitution

भारतीय संविधान एकता और राष्ट्रवाद के आर्दर्शों के सम्मेलन को बढ़ावा देता है। एकल संविधान सिर्फ भारत की संसद को संविधान में बदलाव करने की शक्ति देता है। यह संसद को नए राज्य के गठन या मौजूदा राज्य को खत्म करने या उसकी सीमा में बदलाव करने की भी शक्ति प्रदान करता है।

भारत के संविधान को इस देश की ऐतिहासिक सामाजिक धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। भारत के संविधान की अपनी खास विशेषताएं हैं जो कि नीचे लिखी गईं हैं –

  • भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान

भारत का संविधान दुनिया में सबसे बड़ा संविधान हैl इसमें 444 अनुच्छेद , 22 ,भाग और 12 अनुसूचियां शामिल हैl भारतीय संविधान की खासियत यह है कि, इसमें  हर विषय का व्यवस्थित विस्तार शामिल हैं। क्योंकि इसमें केंद्र और राज्य और उनके संबंधों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं। अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं और बच्चों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं । इसमें निर्देशक सिद्धांतों, राज्य नीति, मौलिक अधिकार और नागरिकों के कर्तव्यों की विस्तृत सूची भी शामिल है।

  • संविधान के स्रोत

भारतीय संविधान ने अलग-अलग देशों के प्रावधान अपनाए गए हैं और देश की जरुरतों के लिहाज से उसमें संशोधन भी किया गया है। भारत के संविधान का संरचनात्मक भाग भारत सरकार अधिनियम, 1935 से लिया गया है। वहीं सरकार की संसदीय प्रणाली और कानून के नियम जैसे प्रावधान यूनाइटेड किंग्डम से भी लिए गए हैं।

  • भारत के कठोर और लचीला संविधान

भारतीय संविधान की खास बात यह है कि ये न तो कठोर है और न ही लचीला है यानि कि भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेद ऐसे भी हैं, जिन्हें संसद बिल्कुल साधारण बहुमत से भी बदल सकती है। इसी वजह से भारतीय संविधान को लचीला और नरम संविधान कहा जाता है। वहीं कुछ अनुच्छेद ऐसे हैं जिनमें बदलाव करने के लिए संसद के 2/3 बहुमत और भारत के आधे प्रदेशों की सरकार की सहमति जरूर होती है, सरकारों की सहमति से ही कुछ संशोधन किए जाते हैं इसलिए इस संविधान को कठोर संविधान कहा जाता है।

  • धर्मनिरपेक्ष सरकारें

धर्मनिरपेक्ष शब्द का मतलब यह है कि – इस शब्द का अर्थ है कि भारत में मौजूद सभी धर्मों को देश में समान संरक्षण और समर्थन मिलेगा। वहीं भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं, धर्मनिरपेक्ष सरकारों का मतलब है कि भारत में केन्द्र और प्रदेश की सरकारों का कोई धर्म नहीं होगा। भारत एक बड़ा और अलग-अलग धर्मों वाला देश है, इसलिए संविधान में यह उल्लेख किया गया है कि संविधान में किसी भी धर्म के लोगों के साथ भेदभाव नहीं होगा। इसके अलावा, सरकार सभी धर्मों के साथ एक जैसा व्यवहार करेगी और उन्हें एक समान मौके उपलब्ध कराएगी। इसके साथ-साथ भारतीय नागरिकों को यह मौलिक अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी धर्म को अपना सकते हैं और अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं।

  • भारत में संघवाद

आपको बता दें कि भारत के संविधान में संघ/केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के बंटवारे का प्रावधान है। यह संघवाद के कुछ अन्य विशेषताओं जैसे संविधान की कठोरता, लिखित संविधान, दो सदनों वाली विधायिका, स्वतंत्र न्यायपालिका और संविधान के वर्चस्व, को भी पूरा करता है। इसलिए भारत एकात्मक पूर्वाग्रह वाला एक संघीय राष्ट्र है।

  • सरकार का संसदीय स्वरूप

भारत में सरकार का संसदीय स्वरूप है। भारत में दो सदनों लोकसभा और राज्य सभा, वाली विधायिका है । सरकार के संसदीय स्वरूप में, विधायी और कार्यकारिणी अंगों की शक्तियों में कोई स्पष्ट अंतर नहीं है। भारत में, सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री होता है।

  • एकल नागरिकता

भारत देश एकता और अखंडता का प्रतीक है। इसलिए देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए संविधान में एक ही नागरिकता की व्यवस्था की गई है। भारत में कोई भी राज्य किसी अन्य राज्य के वासी होने के आधार पर कई भेदभाव नहीं कर सकता। इसके अलावा, भारत में, किसी भी व्यक्ति को देश के किसी भी हिस्से में जाने में जाने और किसी भी स्थान में रहने का अधिकार प्राप्त है।

  • एकीकृत और स्वतंत्र न्यापालिका

भारत का संविधान एकीकृत और स्वतंत्र न्यायपालिका प्रणाली प्रदान करता है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका की स्थापना की गई है। वहीं संविधान और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। इसे भारत के सभी न्यायालयों पर अधिकार प्राप्त है। इसके बाद उच्च न्यायालय, जिला अदालत और निचली अदालत का स्थान है। वहीं अगर सरकार कोई ऐसा कानून बनाती है जिससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है तो सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे कानून को रद्द करने का पूरा अधिकार होतो है। इसके लिए किसी भी तरह के प्रभाव से न्यायपालिका की रक्षा के लिए संविधान में कुछ प्रावधान बनाए गए हैं जैसे कि जजों के लिए कार्यकाल की सुरक्षा और सेवा की निर्धारित शर्ते आदि।

  • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत

संविधान के भाग IV (अनुच्छेद 36 से 50) में राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के बारे में बात की गई है। इन्हें कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती हैं, जो कि मोटे तौर पर समाजवादी, गांधीवादी और उदार– बौद्धिकता में अलग-अलग तरीके से बांटा गया हैं आपको बता दें कि इन सिद्धान्तों की स्थापना इसलिए की गई है, जिससे किसी भी राज्य का कल्याण हो सके। हालांकि इन सिद्धांतो के पीछे कोई भी बाध्यकारी कानूनी शक्ति नहीं है, वहीं यह राज्यों पर भी निर्भर करता है कि वो इन सिद्धांतो का पालन करें अथवा नहीं करें।

  • मौलिक कर्तव्य और मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान में भारत के हर नागरिक के विकास के लिए  6 मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं। जिसमें समानता का अधिकार, स्वतन्त्रा का अधिकार, शोषण के खिलाफ अधिकार, धार्मिक स्वतन्त्रा का अधिकार, संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार, संवैधानिक उपचारो का अधिकार मूल अधिकारो के साथ भारतीय नागरिको के 11 मौलिक कर्तव्य भी संविधान में निर्धारित किए गए हैं।

  • सार्वभौम व्यस्क मताधिकार

भारत में,18 साल से ज्यादा उम्र के हर नागरिक को जाति, धर्म, वंश, लिंग, साक्षरता आदि के आधार पर भेदभाव किए बिना मतदान देने का अधिकार प्राप्त है। आपको बता दें कि सार्वभौम व्यस्क मताधिकार सामाज में फैली असमानताओं को दूर करता है और सभी नागरिकों के लिए राजनीतिक समानता के सिद्धांत को बनाए रखता है।

  • लोकतंत्र की स्थापना

भारत एक गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक राज्य है। भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है क्योंकि भारतीय जनता के पास राजनीतिक सम्प्रभुता है। राजनीतिक सम्प्रभुता जिसका अर्थ है कि भारत की जनता अपने मतों का इस्तेमाल कर अपने प्रतिनिधि चुनकर सरकार बनाती है। यानि कि इस व्यवस्था में जनता द्धारा, जनता के लिए प्रतिनिधि चुना जाता है।

  • आपातकाल के समय राष्ट्रपति को खास अधिकार

देश की संप्रभुता, सुरक्षा, एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए किसी भी असाधारण स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रपति को कुछ खास कदम उठाने का अधिकार है। जैसे अगर भारत पर कोई आक्रमण करता है तो इस स्थिति में अनुच्छेद-352 के तहत देश में राष्ट्रपति आपातकाल लागू कर सकता है।

इसके साथ ही देश या किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र सफल नहीं होने पर राष्ट्रपति धारा-356 के तहत आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

देश में कोई भारी वित्तीय संकट आ जाए तो उस स्थिति में  राष्ट्रपति धारा-360 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।

आपको बता दें कि किसी भी प्रदेश में अगर आपातकाल लगा दिए जाने के बाद राज्य पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधीन हो जाते हैं। जरूरत के मुताबिक आपातकाल देश के कुछ हिस्सों या पूरे देश में लगाया जा सकता है।

इस तरह भारत का संविधान सबसे निचले स्तर पर लोकतंत्र, मौलिक अधिकारों और सत्ता के विकेंद्रीकरण के रूप में खड़ा है। और संविधान नियमों के एक समूह के रूप में कार्य करता है, जिसके अनुसार लोगों या देश का एक समूह शासित होता है। यह देश के सभी नागरिकों को उनके जाति, पंथ और धर्म के बावजूद स्वीकार्य नियम प्रदान करता है। वहीं  एक सभ्य समाज के लिए संविधान बहुत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही भारतीय संविधान अपने नागरिकों के लिए समानता, न्याय और बंधुता सुनिश्चित करता है।

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