एकाम्बरनाथ मंदिर – Ekambareswarar Temple
दक्षिण भारत में मंदिरों की कोई कमी नहीं। और जहातक इन दक्षिण भारत के मंदिरों बात है उनकी हमेशा से एक विशेषता यह रही है की उनका निर्माण अभी नहीं हुआ बल्की हजारों साल पहले किया गया। इसके साथ ही सभी मंदिरों के अपनी अपनी अलग अलग पहचान होती है।
आज हम आपको एक ऐसे ही खास मंदिर के बारे में बताने जा रहे है। यह मंदिर कांचीपुरम में स्थित है और सभी इस मंदिर को एकाम्बरेश्वर मंदिर यानी एकाम्बरनाथ मंदिर के नाम से जानते है।
कांचीपुरम का एकाम्बरनाथ मंदिर – Ekambareswarar Temple
सभी लोग इस मंदिर को स्वयंभू मंदिर मानते है। लेकिन सभी इसे स्वयंभू मंदिर क्यों कहते है इसके पीछे एक रहस्यमयी कहानी छिपी है।
हजारों साल पहले भगवान शिव ने क्रोध में आकर देवी पार्वती को पृथ्वी पर जाने के लिए भेज दिया था। देवी पार्वती पृथ्वी पर आने के बाद भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने लगी।
लेकिन भगवान शिव ने भी देवी की तपस्या भंग करने की पूरी कोशिश की। उनकी चारो तरफ़ आग लगा दी, उसके बाद उनके शिव लिंग को बहा के ले जाने के लिए गंगा नदी को भेज दिया लेकिन फिर भी देवी पार्वती ने उस शिवलिंग को अपने से अलग नहीं होने दिया और आखिरकार भगवान शिव वहापर प्रकट हुए और देवी को दर्शन दिया। इसी वजह से इस मंदिर को जागृत और स्वयंभू मंदिर कहा जाता है।
एकाम्बरेश्वर मंदिर का इतिहास – Ekambareswarar Temple History
भारत के इस प्राचीन मंदिर का निर्माण करीब सन 600 में पल्लव वंश के शासको ने करवाया था। वेदांत का पालन करनेवाले कचियाप्पर इस मंदिर के एक समय में पुजारी रह चुके है। लेकिन बाद में चोल वंश के शासको ने इस मंदिर को गिराकर फिर से इस मंदिर का नए तरह से निर्माण करवाया।
10 वी सदी के आदी शंकराचार्य ने इस मंदिर की फिर से एक बार संरचना करवाई और इस मंदिर के साथ साथ कामाक्षी अम्मन मंदिर और वरदराज पेरूमल मंदिर की भी रचना की थी।
15 वी सदी में इस मंदिर को बनाने में विजयनगर के राजा ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इस मंदिर को और भी बेहतर बनाने के लिए बाद में वल्लाल पचैयाप्पा मुदालिअर ने विशेष ध्यान दिया था क्यों की वो भगवान के दर्शन करने के लिए चेन्नई से कांचीपुरम हमेशा आते थे।
अंग्रेजो के समय में उन्होंने इस मंदिर को बनाने के लिए काफी पैसा खर्च किया था।
इस मंदिर के स्तंभ पर पचैयाप्पा मुदालियर घोड़े पर बैठे हुए दिखाई देते है। कुछ समय गुजरने के बाद पचैयाप्पा मुदालिअर ने कांचीपुरम को आने के समय को बचाने के लिए उन्होंने एकाम्बरेश्वर नाम का एक और मंदिर बनवाया।
एकाम्बरेश्वर मंदिर की कहानी – Ekambareswarar Temple Story
एक प्राचीन कहानी के अनुसार एक बार देवी पार्वती इस मंदिर के बाजु में 3500 साल पुराने आम पेड़ के निचे वगावाठी नदी के किनारे पर तपस्या कर रही थी।
देवी पार्वती की परीक्षा लेने के लिए भगवान शिव ने देवी पार्वती के चारो तरफ़ आग लगा दी थी। उस आग से खुद को बचाने के लिए देवी पार्वती ने उनके भाई भगवान विष्णु से मदत मांगी थी।
देवी पार्वती को उस आग से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने भगवान शिव के माथे पर से चाँद की मदत से सारे पेड़ और परिसर को पूरी तरह से ठंडा कर दिया था।
उन्होंने चाँद के शीतल किरणों की मदत से देवी पार्वती के चारो और लगी आग को बुझा दिया। लेकिन फिर भी देवी पार्वती की तपस्या को भंग करने के लिए भगवान शिव ने गंगा नदी को भेज दिया था।
जब गंगा नदी देवी पार्वती की तपस्या भंग करने आयी तो देवी पार्वती ने उन्हें बताया की वह दोनों बहने है और इसीलिए उन्होंने देवी पार्वती की तपस्या को भंग नहीं करना चाहिए। देवी पार्वती ने समझाने के बाद गंगा नदी उनकी बात मान गयी और उनकी तपस्या को भंग नहीं किया।
इसके बाद देवी पार्वती ने रेत से भगवान शिव का लिंग बनाया और शिव को प्रसन्न किया और उसके बाद ही यहापर एकाम्बरेश्वर मंदिर की स्थापना की। एकाम्बरेश्वर का मतलब होता है की आम पेड़ के देवता।
एकाम्बरेश्वर मंदिर की वास्तुकला – Ekambareswarar Temple Temple Architecture
इस मंदिर में देवी कामाक्षी और शिवलिंग की मूर्ति है। देवी कामाक्षी भगवान शिव के लिंग पकडे हुए दिखाई देती है। भगवान एकाम्बरेश्वर मूर्ति के सामनेवाली बाजु में स्पटीक शिवलिंग और प्रकार में स्पटिक नंदी है। रथ सप्तमी के दिन थाई महीने में सूरज की किरणे भगवान के ऊपर पड़ती है।
पंचभूत स्थलों में यह मंदिर पृथ्वी का माना जाता है। यहाँ के पेड़ की चारो शाखाये चारो वेदों के फलो को दर्शाती है जिसके फ़ल मीठे, खट्टे, तीखे और कडवे है। इस मंदिर की देवता एकाम्बरेश्वर एक अलग से कच से बने हुए रुद्राक्ष मंडप में स्थित है। इस मंडप का छत 5008 रुद्राक्ष से बना हुआ है।
सभी पंडितो कहना है इसके दर्शन लेने के बाद में भक्त को जन्म मृत्यु चक्र से मुक्ति मिल जाती है। स्पटिक लिंग के दर्शन लेने के बाद इन्सान अच्छा बन जाता है और उसके दिमाग से सारे बुरे विचार चले जाते है। ब्रह्महती दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्री राम ने भी सहस्रलिंग की पूजा की थी।
इस मंदिर में सहस्रलिंग और अश्तोथरा लिंग भी स्थापित है। लोग इस मंदिर में आने के बाद 108 दिए जलाते है। महान तमिल कवी कचिअप्पा शिवाचार्य (जिन्होंने कंद पुराण लिखा और उसे भगवान मुरुगा मंदिर में प्रस्तुत किया) का जन्म भी कांचीपुरम में ही हुआ था।
साधू तिरुनावुक्कारासर भी कांची को अध्ययन का बड़ा केंद्र मानते है। इस केंद्र को कल्वियिल कराइ इलाधा कांची मनागाराम कहते है।
भगवान शिव के पंचभूत स्थलों में इस मंदिर को गिना जाता है और यह मंदिर पृथ्वी को दर्शाता है। थिरुवानैकवल जम्बुकेश्वर मंदिर (जल), चिदंबरम नटराजर मंदिर (आकाश), थिरुवान्नामालाई अरुनाचालेश्वर मंदिर (अग्नि) और कालहस्ती नाथर मंदिर (वायु) यह सभी मंदिर उन पंचभूत स्थलों में से है।
यह मंदिर उन 275 पदाल पत्र स्थलों में से है और यहापर चार महान नयमर (शैव साधू) ने इस मंदिर की महानता का वर्णन किया था। इस मंदिर का गोपुरम 59 मीटर उचा है जो की भारत के सबसे उचे गोपुरम में गिना जाता है।
एकाम्बरेश्वर मंदिर में मनाये जानेवाले त्यौहार – Ekambareswarar Temple Festival
इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा छह तरीके से की जाती है उन्हें अलग अलग नाम दिए गए है, उनमे उशाद्कलम, कलासंथी, उची कलम, प्रदोषम और सयाराक्शाई, और अर्धजमम कहा जाता है।
इस मंदिर में हर साल अनी तिरुमंजनाम (जून-जुलाई), आदि कृतिकई (जुलाई-अगस्त), अवनि मुलम (अगस्त-सितम्बर), नवरात्रि (सितम्बर-अक्तूबर), कार्तिकी दीपम (नवम्बर-दिसम्बर), थाई पूसम (जनवरी-फरवरी), पंगुनी उथिरम (मार्च-अप्रैल), चित्र पौर्णिमा (अप्रैल-मई), और वैकाशी विशाकम (मई-जून) जैसे त्यौहार मनाये जाते है।
इस मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार पंगुनी त्यौहार है और यह पुरे 13 दिनों तक चलता है इस त्यौहार के अवसर पर इस मंदिर के भगवान का विवाह किया जाता है। नायनमार की तमिल कविताओ में भी भगवान के विवाह के बारे में बताया गया है।
एकाम्बरेश्वर मंदिर पर भेट देने का सबसे उचित समय – Best time to visit Ekambareswarar Temple
इस मंदिर में पुरे साल भर में अलग अलग त्यौहार मनाये जाते है। इस मन्दिर में 13 दिन चलनेवाला फाल्गुनी त्यौहार भगवान शिव का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार के अवसर पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह रचा जाता है।
एकाम्बरेश्वर मंदिर पर कैसे पंहुचा जाए – How to reach Ekambareswarar Temple
हवाईजहाज से : चेन्नई का हवाईअड्डा कांचीपुरम से केवल 75 किमी की दुरी पर स्थित है।
रेलवे से: कांचीपुरम का रेलवे स्टेशन दक्षिण भारत के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है।
रास्ते से: कांचीपुरम पहुचने के लिए सभी सभी राज्य के रास्ते कांचीपुरम से अच्छे तरह से जुड़े है। यहापर आने के लिए चेन्नई से नियमित रूप से बस मिल जाती है। यहापर आने के लिए निजी वाहन भी बड़ी आसानी से मिल जाते है।
इस मंदिर की इतनी सारी जानकारी मिलने के बाद पता चलता है की यह मंदिर काफी अद्भुत और चमत्कारिक मंदिर है। इस मंदिर की और भी सारी विशेषताए है। इसकी एक और खास बात यह है की इस एकाम्बरेश्वर मंदिर में चमत्कारिक आम का पेड़ है। यह पेड़ काफी प्राचीन और अद्भुत है।
यह पेड़ लगभग 3500 साल पुराना है। इस पेड़ के निचे ही देवी कामाक्षी यानि देवी पार्वती ने भगवान शिव की कड़ी तपस्या की थी। इस पेड़ की एक और खास बात यह है की इसे अलग अलग तरह के आम के फ़ल लगते है।
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