Eid e Milad
ईद-ए-मिलाद मुस्लिम पर्व के लोगों के लिए बेहद खास दिन हैं। इस पर्व को मुस्लिम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हजरत साहब के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी, बारावफात एवं मव्लिद के नाम से भी जाना जाता है।
इस मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोग अपने-अपने घरों को सुंदर तरीके से सजाते हैं एवं मस्जिदों में विशेष प्रकार की नमाज अदा करते हैं। इस पावन पर्व पर हर तरफ शांति, सोहार्द और खुशहाली का वातावरण देखने को मिलता है, आइए जानते हैं इस पर्व को कब,क्यों और कैसे मनाया जाता है-
जानिए आख़िर क्यों मनाया जाता हैं “ईद-ए-मिलाद”? क्या हैं इसके पीछे की कहानी? – Eid e Milad
कब मनाया जाता है ईद-ए-मिलाद – when is Eid e Milad
ईद-ए-मिलाद का पर्व इस्लाम धर्म के कैलेंडर के मुताबिक इस्लाम के तीसरे माह के रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिवस के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है।
क्यों मनाया जाता है ईद-ए-मिलाद-उन-नबी – Why is Eid e Milad Celebrated
ईद–ए–मिलाद–उन–नबी या बारावफात का पर्व इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। दरअसल इस्लामिक महीने रबी–उल–अव्वल की चांद की 12वीं तारीख को 571 ईसवी में मक्का में हजरत मोहम्मद साहब की पैदाइश हुई थी, इसलिए इस पर्व को मुस्लिम धर्म के लोग ईद–ए–मिलाद और बारावफात के रुप में धूमधाम से मनाते हैं।
इस दिन मुस्लिम धर्म के लोग जुलूस निकालते हैं। इस्लाम मजहब के बानी हजरत मोहम्मद साहब ने इस्लाम धर्म की पवित्र कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन लोग पैगम्बर साहब के उपदेश और पवित्र संदेशों को पढ़ते हैं और उन्हें याद करते हैं।
कैसे मनाया जाता है ईद-ए-मिलाद( बारावफात) का पर्व एवं इसका महत्व – Prophet Muhammad Birthday Celebration
ईद–ए– मिलाद या बारावफात के पर्व का मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए बेहद खास महत्व है। इस मौके पर मस्जिदों और घरों को विशेष तरीके से सजाया जाता है। इस दिन भव्य जुलूस सड़कों पर निकाले जाते हैं। जुलूसों को बेहद शानदार ढंग से सजाया जाता है।
मस्जिदों में विशेष तरह की नमाज अदा की जाती है एवं इस दिन लोग हजरत पैगम्बर साहेब की शिक्षाओं को याद करने के साथ–साथ बेसहाय और जरूरतमदों और गरीबों की मद्द करते हैं साथ ही भूखों को खाना खिलाते हैं। इस मौके पर लोग अमन और शांति कायम करने का संकल्प लेते हैं।
मान्यता है कि, इस दिन इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान का पाठ पढ़ने से अल्लाह का रहम बरसता है। इस दिन हर तरफ हजरत पैगम्बर साहेब की प्रशंसा में गीतों की गूंज सुनाई देती हैं। इस पर्व पर हर तरफ खुशी का माहौल होता है।
हालांकि कई जगह इस पर्व को शोक के रुप में भी मनाया जाता है, क्योंकि कई लोगों का ऐसा भी मानना है कि, इस दिन मुस्लिम धर्म के संस्थापक पैगम्बर हजरत साहब की इसी दिन मृत्यु भी हुई थी।
वहीं मुस्लिम धर्म के शिया और सुन्नी समुदाय में बंटे लोगों को इस पर्व को मनाने की अलग–अलग मान्यता है। शिया मुस्लिमों द्धारा यह माना जाता है कि, ईद–ए–मिलाद–उन–नबी पर पैगम्बर मोहम्मद साहेब ने हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी चुना था एवं वे इस दिन पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहेब की जन्म की खुशी में मनाते हैं।
जबकि सुन्नी मुस्लिम इस दिन को पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब की मृत्यु का दिन मानकर शोक के रुप में मनाते हैं, और वे इसी वजह से पूरे महीने शोक भी करते हैं और इस दिन प्रार्थना सभाओं आदि का आयोजन करते हैं।
बारावफात के पवित्र पर्व के मौके पर मुस्लिम धर्म के लोगों के घरों में विशेष रुप से खीर बनाए जाने की परंपरा है। इस मौके पर लोग एक–दूसरे के गले लगकर इस पर्व की बधाई देते हैं एवं उनके खुशी जीवन की कामना करते हैं।
गुल ने गुलशन से गुलफाम भेजा है,
सितारों ने आसमान से सलाम भेजा है,
मुबारक हो आपको ईद का दिन,
हमने ये पैगाम भेजा है,
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मुबारक।।
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