भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं प्रथम उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को पूरे भारत में शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। राधाकृष्णन जी एक अच्छे राजनेता होने से पहले एक प्रख्यात शिक्षक, महान दार्शनिक एवं हिन्दू विचारक थे।
उन्होंने अपने जीवन के करीब 40 साल एक शिक्षक के रुप में काम किया था। उन्होंने न सिर्फ देश की नामचीन यूनिवर्सिटी में अपने लेक्चर से भारतीयों का दिल जीता था, बल्कि विदेशों में भी अपने लेक्चर एवं महान विचारों से लोगों को मंत्रमुग्ध किया।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने समाज के लोगों को शिक्षकों की महत्वता एवं राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों के योगदान के बारे में जागरूक किया साथ ही समाज में शिक्षकों को उचित स्थान दिलवाने के लिए काफी प्रयास किए। आपको बता दें कि राधाकृष्णन जी समस्त संसार को एक स्कूल मानते थे।
उनका मानना था कि, मनुष्य के दिमाग का सही तरीके से इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ शिक्षा द्धारा ही किया जा सकता है। राधाकृष्णन जी दर्शनशास्त्र के एक प्रकंड विद्धान भी थे, जिन्होंने अपने महान विचारों, लेखों एवं भाषणों के माध्यम से पूरे संसार को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित करवाया, आइए जानते हैं राधाकृष्णन जी के बारे में कुछ महत्वपूर्ण एवं दिलचस्प तथ्य –
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – Dr Sarvepalli Radhakrishnan Biography in Hindi
एक नजर में –
पूरा नाम (Name) | डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन |
जन्म (Birthday) | 5 सितंबर, 1888, तिरूमनी गांव, तमिलनाडु |
मृत्यु (Death) | 17 अप्रैल, 1975, चेन्नई, तमिलनाडु |
पिता (Father Name) | सर्वपल्ली वीरास्वामी |
माता (Mother Name) | सीताम्मा |
पत्नी (Wife Name) | सिवाकामू (1904) |
बच्चे (Childrens) | 5 बेटे, 1 बेटी |
शिक्षा (Education) | एम.ए. (दर्शन शास्त्र) |
पुरस्कार – उपाधि (Awards) | भारत रत्न |
जन्म, परिवार एवं शुरुआती जीवन –
देश के महान शिक्षक एवं प्रकांड विद्धान डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरूतनी ग्राम (मद्रास) में एक ब्राहमण परिवार में जन्में थे। वे सर्वपल्ली वीरास्वामी और सीताम्मा की संतान थे। वहीं इनके परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी, इसलिए इनके बचपन में इन्हें ज्यादा सुविधाएं नहीं मिली। राधाकृष्णन जी को अपने शुरुआती दिनों में काफी गरीबी में गुजर बसर करना पड़ा था।
कुछ विद्दानों की माने तो राधाकृष्णन जी के पैतृक (पुरखे) पहले सर्वपल्ली नाम के एक गांव में निवास करते थे, इसलिए उनके परिवार में अपने नाम के आगे सर्वपल्ली लिखने की परंपरा थी। डॉ. राधाष्णन सर्वपल्ली जी जब 16 साल के हुए तब बाल विवाह की प्रथा के मुताबिक उनकी शादी अपनी दूर की एक चचेरी बहन सिवाकामू के साथ करवा दी गई। उनकी पत्नी सिवाकामू को अंग्रेजी और तेलुगु भाषा का अच्छा ज्ञान था।
वहीं शादी के बाद दोनों को 6 बच्चे पैदा हुए। इनके बेटे के नाम सर्वपल्ली गोपाल था, जो कि देश का एक महान इतिहासकार था। वहीं साल 1956 में राधाकृष्णन जी की पत्नी साल 1956 में हमेशा के लिए यह दुनिया छोड़कर चल बसी थी।
शिक्षा एवं विद्यार्थी जीवन –
देश के महान शिक्षक रह चुके डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी बचपन से ही काफी प्रतिभावान और मेधावी छात्र थे, उनके अंदर चीजों को सीखने एवं समझने की शक्ति काफी प्रबल थी। उनकी विवेकशीलता देखकर कई बार लोग दंग तक रह जाते थे। वहीं उनके मेधावी होने के गुण की वजह से ही उन्होंने स्कॉलरशिप की बदौलत उच्च शिक्षा हासिल की थी।
राधाकृष्णन जी ने अपनी शुरुआती शिक्षा तिरुपति के क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल से हुई थी। फिर उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने मद्रास के मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई प्रथम श्रेणी के साथ पूरी की। अपने ग्रेजुएशन के दौरान राधाकृष्णन जी ने गणित, इतिहास, मनोविज्ञान विषय में विशेष योग्यता प्राप्त की।
राधाकृष्णन जी की पढ़ाई के प्रति लगन और उनकी समर्पणता एवं उनकी विवेकशीलता को देखकर आगे की पढ़ाई के लिए मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज की तरफ से उन्हें स्कॉलरशिप प्रदान की गई। जिसके बाद राधाकृष्णन जी ने दर्शन शास्त्र से M.A. की परीक्षा पास कर मास्टर डिग्री हासिल की।
शुरुआती करियर –
अपनी M.A की पढ़ाई पूरी करने के बाद होनहार और प्रतिभावान छात्र डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक (एसोसिएट प्रोफेसर) के तौर पर कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्हें साल 1918 में मैसूर यूनिवर्सिटी द्धारा दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया।
साल 1921 में राधाकृष्णन जी को कोलकाता यूनविर्सिटी के दर्शनशास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर मनोनीत किया गया। इसके बाद उन्होंने अपने महान विचारों और लेखों के माध्यम से पूरी दुनिया को भारतीय दर्शन शास्त्र से परिचय करवाया। वहीं इस दौरान उनकी ख्याति दर्शन शास्त्र के महान प्रकांड विद्धान के रुप में दुनिया के कोने-कोने में फैल गई।
इसके बाद राधाकृष्णन जी को न सिर्फ देश की कई नामचीन यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में लेक्चर देने के लिए बुलाया जाने लगा, बल्कि विदेशों मसे भी उन्हें लेक्चर देने के लिए निमंत्रण आने लगा। पहले राधाकृष्णन जी को इंग्लैंड की प्रख्यात ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हिन्दू दर्शनशास्त्र पर लेक्चर देने के लिए बुलाया गया, इसके बाद उन्हें ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर के रुप में नियुक्त किया गया था।
फिर साल 1931 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर (कुलपति) के पद का चुनाव लड़ा। फिर 1939 से 1948 तक उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रुप में अपनी सेवाएं प्रदत्त कीं।
राजनैतिक जीवन –
1947 में जब हमारा देश भारत ब्रिटिश शासकों के चंगुल से आजाद हुआ, तब उस दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू जी ने उन्हें एक विशिष्ट राजदूत के रुप में सोवियत संघ के साथ राजनयिक कामों को करने का आग्रह किया।
जिसके बाद उन्होंने पंडित नेहरू जी की बात मान ली और करीब 2 साल तक 1949 तक निर्मात्री सभा के सदस्य के रुप में काम किया। इस तरह राधाकृष्णन जी को राजनीति में लाने का क्रेडिट देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी को जाता है।
देश के पहले उपराष्ट्रपति एवं दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर –
आजादी के करीब 5 साल बाद 1952 में सोवियत संघ का गठन होने के बाद हमारे देश के संविधान में उपराष्ट्रपति के पद का नया पद सृजित किया गया, इस पद पर सर्वप्रथम डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी आसीन हुए और करीब 10 साल तक उपराष्ट्रपति के रुप में देश की सेवा की।
इस दौरान उनके द्धारा किए गए कामों को भी काफी सराहा गया। इसके बाद 13 मई 1962 को डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया। देश के सर्वोच्च पद पर रहते हुए उन्होनें करीब 1967 तक सेवाएं की।
अपने राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उन्हें काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा। इनके कार्यकाल के दौरान ही भारत और चीन के बीच हुए भयानक युद्ध में भारत को हार का सामना करना पड़ा था, इसके साथ ही इस दौरान देश में दो प्रधानमंत्रियों का भी देहांत हो गया था। हालांकि, 1967 में राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे मद्रास जाकर बस गए थे।
पुस्तकें –
राष्ट्र सेवा एवं शिक्षकों को समाज में उचित दर्जा दिलवाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले देश के महान शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन ने अपने महान विचारों के माध्यम से अपनी जिंदगी में कई किताबें लिखीं, जिनमें से उनके द्धारा लिखी गईं कुछ महत्वपूर्ण किताबों के नाम इस प्रकार हैं
- द रेन ऑफ़ कंटम्परेरी फिलासफी
- द फिलासफी ऑफ़ रवीन्द्रनाथ टैगोर
- द एथिक्स ऑफ़ वेदांत
- ईस्ट एंड वेस्ट-सम रिफ्लेक्शन्स
- ईस्टर्न रिलीजन एंड वेस्टर्न थॉट
- इंडियन फिलोसोफी
- एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ़ लाइफ
- द एसेंसियल ऑफ़ सायकलॉजी
पुरस्कार / सम्मान –
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को राष्ट्र के लिए किए गए उनके महान कामों एवं उनके श्रेष्ठ गुणों के कारण उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है।
आपको बता दें कि ड़ॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी देश के ऐसे पहले शख्सियत थे, जिन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न” से नवाजा गया था। डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को मिले पुरस्कार और सम्मान की सूची निम्मलिखित है –
- देश में शिक्षा एवं राजनीति के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए डॉ. राधाकृष्णन जी को साल 1954 में देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया था।
- साल 1954 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को जर्मन “आर्डर पौर ले मेरिट फॉर आर्ट्स एंड साइंस से नवाजा गया था।
- साल 1961 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को जर्मन बुक ट्रेड के ”शांति पुरस्कार” से सम्मानित किया गया था।
- साल 1962 में जब वे देश के राष्ट्रपति के रुप में नियुक्त हुए थे। इस दौरान ही उनके जन्मदिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाए जाने की भी घोषणा की गई थी।
- साल 1963 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान से नवाजा गया।
- साल1913 में ब्रिटिश सरकार ने डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को “सर” की उपाधि से नवाजा था।
- साल 1938 में डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की ब्रिटिश एकाडमी के सभासद के रुप में नियुक्ति की गई थी।
- 1975 में सर्वपल्ली राधाकृष्णन को अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्प्लेटों पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। बता दें कि इस सम्मान को पाने वाले वह पहले गैर- ईसाई शख्सियत थे।
- इंग्लैंड सरकार द्धारा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को ऑर्डर ऑफ मैरिट सम्मान से नवाजा गया था।
- साल 1968 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था, वे इस पुरस्कार को हासिल करने वाले देश के पहले शख्सियत थे।
- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्धारा डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के नाम से साल 1989 में स्कॉलरशिप की शुरुआत की गई थी।
मृत्यु –
शिक्षकों को समाज में उचित दर्जा दिलवाने एवं राष्ट्र के हित में काम करने वाले देश के महान शिक्षक डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने 17 अप्रैल 1975 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उन्हें अपने जीवन के आखिरी दिनों में काफी गंभीर बीमारी से जूझना पड़ा था, जिसकी वजह से उनका देहान्त हो गया था।
हालांकि, उनकी मृत्यु के कई सालों बाद आज भी वे हम सभी भारतीयों के दिल में जिंदा है। उनके द्धारा राष्ट्र के लिए किए गए महान कामों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदानों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है साथ ही उनके सम्मान में उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस –
भारत में हर साल डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है। इस मौके पर समाज में उत्कृष्ट काम करने वालों शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। इसके साथ ही इस दौरान राधाकृष्णन जी के प्रेरणादायी जीवन पर भी प्रकाश डाला जाता है।
इसके साथ की इस मौके पर आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से छात्र अपने शिक्षक का आभार प्रकट करते हैं। यह दिन शिक्षक एवं शिष्यों दोनों के लिए बेहद खास दिन होता है।
आपको बता दें कि साल 1962 में जब राधाकृष्णन जी को देश के राष्ट्रपति के रुप में नियुक्त किया गया था, उस दौरान विद्यार्थियों ने उनके जन्मदिवस 5 सितंबर को ‘राधाकृष्णन दिवस’ मनाए जाने का फैसला किया था, लेकिन राधाकृष्णन जी ने अपनी जयंती को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस मनाने का आग्रह किया तब से लेकर आज तक उनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रुप में मनाया जाता है।
आपको बता दें कि राधाकृष्णन जी देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिन्होंने शिक्षकों के हित के बारे में सोचा एवं समाज में शिक्षकों को महत्वता दिलवाने के लिए कई सराहनीय प्रयास किए।
अनमोल विचार –
शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने अपने महान विचारों से लोगों को न सिर्फ शिक्षकों का महत्व बताया है, बल्कि अपने विचारों के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में आगे बढ़ने की भी प्रेरणा दी है। डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के कुछ महत्वपूर्ण विचार इस प्रकार हैं –
- हमें मानवता को उन नैतिक जड़ों तक वापस ले जाने की कोशिश करना चाहिए, जहां से आजादी एवं अनुशासन दोनों का उद्गम होता है।
- ज्ञान हमें आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करता है, जबकि प्रेम हमे परिपूर्णता प्रदान करता है।
- किताबें पढ़ने से हमें एकांत में विचार करने की आदत और सच्ची खुशी मिलती है।
- हमें तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ आत्मा की महानता को भी हासिल करना चाहिए।
- शिक्षा का परिणाम, एक मुक्त रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो कि ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ लड़ सके।
- किताबें महज एक माध्यम होती हैं, जिनके माध्यम से अलग- अलग संस्किृतियों के बीच पुल का निर्माण किया जा सकता है।
- शिक्षक वे नहीं कहलाते,जो कि छात्र के दिमाग में जबरदस्ती तथ्यों को भरने का प्रयास करें, बल्कि सही मायने में एक शिक्षक वो होता है, जो कि शिष्यों को भविष्य में आने वाली कड़ी चुनौतियों के लिए तैयार करें।
- कोई भी आजादी सही मायने में तब तक सच्ची आजादी नहीं मानी जाती है, जब तक उसे हासिल करने वाले लोगों को अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी न दी जाए।।
- राजनीतिक या आर्थिक परिवर्तन से शांति नहीं प्राप्त हो सकती है, बल्कि मानवीय स्वभाव में बदलाव से आ सकती है
- शिक्षा के माध्यम से ही मनुष्य के दिमाग का सही इस्तेमाल किया जा सकता है, अर्थात पूरी दुनिया को एक ही इकाई मानकर शिक्षा का उचित प्र बंधन करना चाहिए।
Happy teachers day to all of you
Seva ka barama dejiya please
Dr.sarvpalli radhakrushana hamare liye hamesha we hi prernasthan rahe hain aapki di huyi jankari sabhi ke liye faydemand hain
डॉ राधा कृष्णन का जीवन हमेशा ही प्रेरणा दायक है | उन्होंने अपना सारा जीवन बच्चों की शिक्षा में लगाया | आपने उन की बायोग्राफी के माध्यम से उनके विशाल व्यक्तित्व से परिचय करवाया | शुक्रिया