भारत के राष्ट्रपति के सूचि में पहला नाम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का आता है। जो भारतीय संविधान के आर्किटेक्ट और आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति भी थे। आजादी के करीब 3 साल बाद 1950 में हमारे देश में संविधान लागू होने के बाद उन्हें देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर सुशोभित किया गया था।
राजेन्द्र प्रसाद जी एक ईमानदार, निष्ठावान एवं उच्च विचारों वाले महान शख्सियत थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र की सेवा में सर्मपित कर दिया था।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बेहद शांत और निर्मल स्वभाव वाले राजनेता थे, जो कि सादा जीवन, उच्च विचार की नीति में विश्ववास रखते थे। सन् 1884 में बिहार के सीवान जिले में जन्में राजेन्द्र प्रसाद जी ने गुलाम भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद – Dr Rajendra Prasad in Hindi
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार राजनेता होने के साथ-साथ एक सच्चे देश भक्त थे। इसके साथ वे महात्मा गांधी जी के विचारों से काफी प्रभावित थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गांधी जी को अपना आदर्श मानते थे और उनके द्धारा बताए गए आदर्शों का अनुसरण करते थे।
उन्होंने महात्मा गांधी जी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए स्वतंत्रता के कई आंदोलनों में अपना सहयोग दिया। आपको बता दें कि राजेन्द्र प्रसाद जी ने साल 1931 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन और साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई। इन आंदोलनों के दौरान उन्हें जेल की यातनाएं भी सहनी पड़ी थीं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी बिहार राज्य के मुख्य कांग्रेस नेताओं में से एक थे। कांग्रेस के अध्यक्ष पद के साथ उन्होंने केन्द्र में खाद्य एवं कृषि मंत्री पद की जिम्मेदारी भी बेहद अच्छे से निभाई थी।
उन्होंने राजनीति के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहते हुए देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार को भी काफी बढ़ावा दिया। वहीं उनके अंदर एक ईमानदार राजनेता के गुण होने के साथ-साथ उनमें साहित्यिक प्रतिभा भी भरी थी, उनके कई लेख जैसे भारतोदय, भारत मित्र काफी लोकप्रिय हुए।
वहीं राष्ट्र के प्रति अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” से सम्मानित किया गया। तो आइए जानते हैं देश के प्रथम राष्ट्रपति, सच्चे देशभक्त, एक आदर्श शिक्षक एवं एक प्रसिद्ध अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद जी के बारे में –
पूरा नाम (Name) | डॉ. राजेन्द्र प्रसाद |
जन्म (Birthday) | 3 दिसंबर, 1884, बिहार के जीरादेई गांव |
मृत्यु (Death) | 28 फरवरी, 1963, पटना, बिहार |
पिता (Father Name) | महादेव सहाय |
माता (Mother Name) | कमलेश्वरी देवी |
पत्नी (Wife Name) | राजवंशी देवी |
बच्चे (Children’s) | मृत्युंजय प्रसाद |
शिक्षा (Education) | कोलकाता यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पोस्ट ग्रेजुएट, लॉ में पोस्ट ग्रेजुएशन (LLM), एवं लॉ में डॉक्ट्रेट |
पुरस्कार – उपाधि (Awards) | भारत रत्न |
जन्म, प्रारंभिक जीवन एवं परिवार
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव के रहने वाले महादेव सहाय और कमलेश्वरी देवी के घर जन्में थे। वे अपनी माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे। उनके पिता महादेव सहाय जी संस्कृत और फारसी भाषा के महान विद्धान थे, जबकि उनकी माता एक धार्मिक महिला थी।
राजेन्द्र प्रसाद जी पर अपनी मां के व्यक्तित्व एवं संस्कारों का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। राजेन्द्र प्रसाद जी जब महज 12 साल के थे, तभी बाल विवाह की प्रथा के अनुसार उनकी शादी राजवंशी देवी के साथ कर दी गई थी।
प्रारंभिक शिक्षा –
डॉ. राजेंद्र प्रसाद बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा वाले एक बुद्दिमान बालक थे। जिनकी सीखने, समझने की क्षमता काफी प्रबल थी। 5 साल की छोटी सी उम्र में ही राजेन्द्र प्रसाद जी को हिन्दी, उर्दू और फारसी भाषा का काफी अच्छा ज्ञान हो गया था।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके गांव जीरादेई से हुई। बचपन से ही वे पढ़ाई में काफी होनहार थे और पढ़ाई के प्रति उनकी गहरी रुचि थी।
इसी के चलते अपनी आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी में एंट्रेस एग्जाम दिया, इस परीक्षा में उन्होंने पहला स्थान प्राप्त किया, जिसके बाद उन्हें कोलकाता यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के लिए 30 रूपए की मासिक स्कॉलरशिप दी गई। साल 1902 में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया।
यहां उन्होंने महान वैज्ञानिक एवं प्रख्यात शिक्षक जगदीश चन्द्र बोस से शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद साल 1907 में उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी से इकॉनोमिक्स विषय से M.A. की शिक्षा ग्रहण की और फिर इसके बाद उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री हासिल की। वहीं इसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल भी दिया।
इसके बाद उन्होंने लॉ (कानून ) में phd की उपाधि (डॉक्ट्रेट की उपाधि)भी प्राप्त की। लॉ की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अपने राज्य पटना में आकर वकालत करने लगे। वहीं धीरे-धीरे वे एक अच्छे अधिवक्ता के रुप में लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए।
वहीं इस दौरान देश को आजाद करवाने के लिए चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ उनका ध्यान गया और फिर उन्होंने खुद को पूरी तरह देश की सेवा में समर्पित कर दिया।
राजनीतिक सफर –
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गांधी द्धारा किए गए प्रयासों से काफी प्रभावित हुए, गांधी जी की विचारधारा का उन पर इतना गहरा असर हुआ कि वे गांधी जी के प्रबल समर्थक बन गए एवं गांधी जी द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलनों में उनका साथ दिया।
गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपनी नौकरी छोड़कर इस आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई। इसके बाद जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजने के मिशन पर थे, तब वे गांधी जी के एक काफी करीब आ गए और फिर गांधी जी के सांदिग्ध में आने के बाद उनकी सोच ही बदल गई, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी गांधी जी के आदर्शों का अनुसरण करने लगे।
इसके बाद एक नई ऊर्जा और जोश के साथ उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी भागीदारी निभाई। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने गांधी जी के चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह ( 1930 ) में एक सच्चे देशभक्त की तरह अपना सहयोग दिया, वहीं इस दौरान उन्हें जेल की कई यातनाएं भी झेलनी पड़ी थी।
वहीं जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने बिहार में आए एक भयानक भूकंप से पीड़ित लोगों की मद्द और राहत के लिए काम किया।
इस दौरान उनके व्यवस्थात्मक एवं संगठनात्मक कौशल को देखते हुए उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। वहीं कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर उन्होंने कई सालों तक काम किया।साल 1942 में गांधी जी द्धारा अंग्रेजों के खिलाफ चलाए गए ”भारत छोड़ो आंदोलन” में भी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि इस दौरान उन्हें जेल की सजा भुगतनी पड़ी। जेल से रिहा होने के कुछ समय बाद उन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के नेतृत्व में केन्द्र में खाद्य और कृषि मंत्री के पद की जिम्मेदारी भी संभाली।
देश को स्वतंत्रता मिलने से कुछ समय पहले ही जुलाई 1946 में जब संविधान का गठन किया गया, जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने साल 1949 तक संविधान सभा की अध्यक्षता की। संविधान के निर्माण में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के साथ राजेन्द्र प्रसाद जी ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में –
आज़ादी के करीब ढाई साल बाद 26 जनवरी 1950 को जब हमारा देश में संविधान लागू हुआ और हमारा देश एक स्वतंत्र लोकतंत्रात्मक, धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बना। उस दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी को देश का प्रथम राष्ट्रपति बनाया गया। देश के इस सर्वोच्च पद पर रहते हुए उन्होंने देश के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए एवं देश में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ विदेश नीति को बढा़वा दिया।
आपको बता दें कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी देश के ऐसे पहले व्यक्ति थे, जो राष्ट्रपति पद का कार्यभार अपने जीवन में दो बार संभाल चुके हैं। उन्होंने करीब 12 साल तक राष्ट्रपति के रुप में देश का कुशल नेतृत्व किया। इसके बाद साल 1962 में वे राष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देकर अपने गृहराज्य पटना चले गए।
मृत्यु –
कई सालों तक निस्वार्थ भाव से देश की सेवा करने एवं राष्ट्रपति के रुप में देश का नेतृत्व करने के बाद राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपने जीवन के आखिरी पलों को सामाजिक सेवा में समर्पित करने का फैसला किया। राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपनी जिंदगी के अंतिम दिन अपने राज्य बिहार में व्यतीत किए। अपनी आखिरी सांस तक जन सेवा में समर्पित रहे राजेन्द्र प्रसाद जी ने 28 फरवरी, 1963 में पटना में स्थित सदाकत आश्रम में दम तोड़ दिया।
सम्मान/पुरस्कार –
राष्ट्र की सेवा में समर्पित रहने वाले देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जी को उनके राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें साल 1962 में भारत के सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” से नवाजा गया।
साहित्यिक कौशल एवं प्रमुख रचनाएं –
राजेन्द्र प्रसाद जी भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी, ईमानदार राजनेता होने के साथ-साथ साहित्यिक प्रेमी भी थे। उन्होंने अपने महान विचारों से बेहद सरल एवं व्यवहारिक भाषा में कई रचनाएं संपादित की। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कृतियां इस प्रकार है –
- मेरी आत्मकथा
- बापू के कदमों में बाबू
- मेरी यूरोप-यात्रा
- इण्डिया डिवाइडेड
- सत्याग्रह एट चंपारण
- गांधी जी की देन
- भारतीय शिक्षा
- भारतीय संस्कृति व खादी का अर्थशास्त्र
- साहित्य
- शिक्षा और संस्कृति
एक नजर में –
- 1906 में राजेंद्र बाबु के पहल से ‘बिहारी क्लब’ स्थापन हुवा था। उसके सचिव बने।
- 1908 में राजेंद्र बाबु ने मुझफ्फरपुर के ब्राम्हण कॉलेज में अंग्रेजी विषय के अध्यापक की नौकरी मिलायी और कुछ समय वो उस कॉलेज के अध्यापक के पद पर रहे।
- 1909 में कोलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र इस विषय का उन्होंने अध्यापन किया।
- 1911 में राजेंद्र बाबु ने कोलकता उच्च न्यायालय में वकीली का व्यवसाय शुरु किया।
- 1914 में बिहार और बंगाल इन दो राज्ये में बाढ़ के वजह से हजारो लोगोंको बेघर होने की नौबत आयी। राजेंद्र बाबु ने दिन-रात एक करके बाढ़ पीड़ितों की मदत की।
- 1916 में उन्होंने पाटना उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
- 1917 में महात्मा गांधी चंपारन्य में सत्याग्रह गये ऐसा समझते ही राजेंद्र बाबु भी वहा गये और उस सत्याग्रह में शामिल हुये।
- 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में वो शामील हुये। इसी साल में उन्होंने ‘देश’ नाम का हिंदी भाषा में साप्ताहिक निकाला।
- 1921 में राजेंद्र बाबुने बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की।
- 1924 में पाटना महापालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
- 1928 में हॉलंड में ‘विश्व युवा शांति परिषद’ हुयी उसमे राजेंद्र बाबुने भारत की ओर से हिस्सा लिया और भाषण भी दिया।
- 1930 में अवज्ञा आंदोलन में ही उन्होंने हिस्सा लिया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जेल में बुरा भोजन खाने से उन्हें दमे का विकार हुवा। उसी समय बिहार में बड़ा भूकंप हुवा। खराब
- 1936 में नागपूर यहा हुये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन के अध्यक्षपद पर भी कार्य किया।
- 1942 में ‘छोडो भारत’ आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।
- 1946 में पंडित नेहरु के नेतृत्व में अंतरिम सरकार स्थापन हुवा। गांधीजी के आग्रह के कारन उन्होंने भोजन और कृषि विभाग का मंत्रीपद स्वीकार किया।
- 1947 में राष्ट्रिय कॉग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना गया। उसके पहले वो घटना समिती के अध्यक्ष बने। घटना समीति को कार्यवाही दो साल, ग्यारह महीने और अठरा दिन चलेगी। घटने का मसौदा बनाया। 26 नव्हंबर, 1949 को वो मंजूर हुवा और 26 जनवरी, 1950 को उसपर अमल किया गया। भारत प्रजासत्ताक राज्य बना। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने का सम्मान राजेन्द्रबाबू को मिला।
- 1950 से 1962 ऐसे बारा साल तक उनके पास राष्ट्रपती पद रहा। बाद में बाकि का जीवन उन्होंने स्थापना किये हुये पाटना के सदाकत आश्रम में गुजारा।
हम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में याद करते है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी मुख्य भूमिका निभाई थी और संघर्ष करते हुए देश को आज़ादी दिलवायी थी।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद में भारत का विकास करने की चाह थी। वे लगातार भारतीय कानून व्यवस्था को बदलते रहे और उपने सहकर्मियों के साथ मिलकर उसे और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करने लगे। हम भी भारत के ही रहवासी है हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है की हम भी हमारे देश के विकास में सरकार की मदद करे।ताकि दुनिया की नजरो में हम भारत का दर्जा बढ़ा सके।
राजेन्द्र प्रसाद जी बहुमुखी प्रतिभा वाले एक महान राजनेता एवं सच्चे देश भक्त थे, जो कि अपनी पूरे जीवन भर देश की सेवा करते रहे। वहीं आज वे हमारे बीच जरूर नहीं है, लेकिन उनके द्धारा राष्ट्र के लिए दिए गए महत्वपूर्ण योगदान एवं आजादी की लड़ाई में उनके त्याग, समर्पण और बलिदान को हमेशा याद किया जाता रहेगा। उनके लिए हर देशवासी के मन में आज भी काफी सम्मान है। राजेन्द्र प्रसाद जी देश के एक सच्चे वीर सपूत थे, जिन पर हर भारतीय को नाज है।
FAQs
जवाब: राजेंद्र प्रसाद जी को साल १९६२ को सर्वोच्च भारतीय नागरी सन्मान भारत रत्न से सन्मानित किया गया था।
जवाब: राष्ट्रपती राजेंद्र प्रसाद जी को बिहार के गांधी नामसे पहचाना जाता था।
जवाब: राजेंद्र प्रसाद जी दो बार भारत के राष्ट्रपती बने थे,जिसका संपूर्ण कार्यकाल लगभग १२ साल का था।
जवाब:- महान भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस जी से राजेंद्र प्रसाद जी ने शिक्षा प्राप्त की थी।
जवाब: राजेंद्र प्रसाद जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से लॉ मे मास्टर की डिग्री हासिल की थी, इसके अलावा अलाहाबाद विश्वविद्यालय से लॉ मे डॉक्टरेट की उपाधी प्राप्त की थी।
जवाब : अंग्रेजी।
जवाब: डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी संविधान समिती के पहले अध्यक्ष थे, जो साल १९४९ तक इस पद पर रहे थे।
जवाब: चंपारण्य सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, छोडो भारत जैसे आंदोलन मे गांधीजी के साथ राजेंद्र प्रसाद जी ने हिस्सा लिया था।
जवाब: २६ जनवरी १९५०, को जब भारत का संविधान लागू किया गया तब राष्ट्रपती के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को नियुक्त किया गया था।
जवाब: हाई कोर्ट ऑफ बिहार अँड ओडिशा, इसके साथ उन्होने भागलपूर के कोर्ट मे कानुनी पढाई की तैयारी भी की थी।
Where is Dr. Rajendra Prasad assassinated
अरे भाई उनकी स्वभाविक मृत्यु हुई थी उनको मारा नहीं गया था
unko sat sat namn karta hi
Aisa mahan insaan ke jaisa ek bhartiya nagrik ke liye rajendra prasad ek example hai is example ko har bhartiya nagrik ko chalana chahiye
Nice jivan prachaiy
mritunjay prasad was the only child of rajendra prasad