Dhari Devi Mandir
उत्तराखंड की संरक्षक और पालक देवी के रुप में मशहूर माता धारी देवी मंदिर, उत्तराखंड में श्री नगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर बद्रीनाथ रोड पर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच अलकनंदा नदी के तट पर बना हुआ है।
इस चमत्कारिक मंदिर में काली माता को समर्पित एक बेहद प्राचीन सिद्धपीठ है। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि धारी देवी चारों धाम की रक्षा करती हैं। इसलिए “धारी देवी” को पहाड़ों की रक्षक देवी के रुप में जाना जाता है।
उत्तराखंड का मां धारी देवी का चमत्कारी मंदिर और इससे जुड़े कई अद्भुत एवं अविश्वनीय रहस्य – Dhari Devi Mandir
कैसे हुई धारी देवी सिद्धपीठ की स्थापना – Dhari Devi Mandir Ki Sthapna
एक पौराणिक धारणा एवं धार्मिक परंपरा के मुताबिक कालीमठ एक ऐसा स्थान है, जहां माता काली एक पापी राक्षस को मारकर, पृथ्वी के नीचे चली गई थी, लेकिन धारी देवी की मूर्ति एक चट्टान से सटी होने की वजह से धारी देवी की प्रतिमा का ऊपरी हिस्सा उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के धरी गांव में बाढ़ में बहकर आ गया था, जिसके बाद गांव के लोगों ने माता के ऊपरी हिस्से को एक ऊंची चट्टान पर स्थापित कर दिया और यह “धारी देवी” के रुप में पूजी जाने लगी।
जबकि इस चमत्कारी प्रतिमा का निचला हिस्सा अभी भी कालीमठ में स्थित है। आपको बता दें कि सिद्धपीठ माता काली की यह मूर्ति वर्तमान में अलकनंदा नदी पर जल विद्युत परियोजना के निर्माण के चलते नदी के ऊपर मंदिर बनाकर स्थापित की गई है।
चमत्कारी धारी देवी माता के बदलते स्वरुप से जुड़ी मान्यता –
जनकल्याणी, रक्षक एवं सिद्धपीठ दक्षिणी काली माता मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि माता धारी देवी दिन में तीन अलग-अलग स्वरुपों में दर्शन देती हैं। सुबह के दौरान माता धारी देवी अपने भक्तों को एक कन्या के रुप में दर्शन देती है और दिन के समय में एक महिला एवं युवती के रुप में दर्शन देती है, जबकि रात के समय में एक बूढ़ी माता के रुप में अपने भक्तों को अपने दिव्य दर्शन देती हैं।
पुजारियों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परन्तु धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है।
धारी देवी मंदिर से जुड़ा उत्तराखंड महाप्रलय का रहस्य – Dhari Devi Temple Mystery
धारी देवी को उत्तराखंड की संरक्षक एवं चारों धाम की रक्षक माना जाता है। वहीं इसे लोगों का अंधविश्वास कहें या फिर महज एक संयोग लेकिन लोग उत्तराखंड में आने वाली प्राकृतिक आपदाओं को इस मंदिर के स्थानांतरण करने से जोड़ते हैं।
आपको बता देंकि साल 2013 में उत्तराखंड में आई महाप्रलय को लोग माता धारी देवी के गुस्से से जोड़ते हैं। दरअसल यहां 16 जून, 2013 में श्री नगर में एक हाइडिल पॉवर प्रोजेक्ट के लिए रास्ता बनाने के लिए जनकल्याणकारी माता धारी देवी की प्रतिमा को मूल स्थान से शिफ्ट कर दिया गया था,जिससे बाद उत्तराखंड के केदारनाथ में बाढ़ ने भीषण तबाही मचाई थी, और जिसमें कई हजार जिंदगियां नष्ट हो गईं थी।
धारी देवी को प्रतिमा को उनके मूल स्थान से हटाने को लेकर एक अन्य मान्यता यह भी जुड़ी हुई है कि साल 1882 में भी एक स्थानीय राजा द्धारा देवी माता की प्रतिमा को हटाने की कोशिश की गई थी, जिसके बाद केदारनाथ में भारी भूस्खलन हुआ था।
उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित इस प्राचीन सिद्धपीठ माता धारी देवी के मंदिर से लाखों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है। आपको बता दें कि माता के दर्शन के लिए वैसे तो पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्रों में धारी देवी माता के मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और खास कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इसलिए इस दौरान अलग ही रौनक देखने को मिलती है। ऐसी मान्यता है धारी देवी के मंदिर में जो भी भक्त सच्चे दिल में मुराद मांगते हैं, उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती हैं। इसके साथ ही धारी देवी के प्राचीन शक्तिपीठ में कई नवविवाहित जोड़े माता के आशीर्वाद के लिए पहुंचते हैं और अपने सुखी जीवन का कामना करते हैं।
माँ धारी देवी मंदिर पहुंचने का मार्ग – How To Reach Dhari Devi Temple
उत्तराखंड का य़ह प्राचीन सिद्धपीठ माता धारी देवी का मंदिर जौली ग्रांट एयरपोर्ट से करीब 136 किलोमीटर और ऋषिकेश रेलवे स्टेशन से करीब 119 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धारी देवी मंदिर श्रीनगर और रुद्रप्रयाग के बीच कल्यासौर में बना हुआ है। वहीं श्रीनगर-धारी देवी के बीच की दूरी करीब 16 किलोमीटर और धारी देवी-रुद्रप्रयाग के बीच की दूरी करीब 20 किलोमीटर की दूरी है। रुद्रप्रयाग और श्रीनगर से बस या टैक्सी की मद्द से बेहद आसानी से यहां माता के दर्शन के लिए पहुंचा जा सकता है।
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