Savinay Avagya Andolan
सविनय अवज्ञा आंदोलन – Civil Disobedience Movement in Hindi
सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत – Civil Disobedience Movement Started In
महात्मा गांधी जी द्धारा साल 1930 में ब्रिटिश हूकुमत से भारतीयों को स्वतंत्रता दिलवाने के लिए यह आंदोलन शुरु किया गया था। यह आदोंलन स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए चलाए गए एक बड़े जनआंदोलनों में एक था।
साल 1929 में लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से पूर्ण स्वराज की मांग की थी।
लेकिन ब्रिटिश सरकार ने जब उनकी मांगे नहीं मानी तब गांधी जी ने स्वाधीनता प्राप्ति की मांग पर जोर देने के लिए 12 मार्च, 1930 को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इस आदोंलन की शुरुआत कर दी। महात्मा गांधी जी ने इस जनआंदोलन की शुरुआत 12 मार्च, 1930 को दांडी यात्रा के साथ की।
इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार द्धारा बनाए गए नमक कानून को तोड़ना था, इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के आदेशों की अवेहलना करना था।
दरअसल, उस समय ब्रिटिश सरकार ने नमक अधिनियम के तहत भारतीयों के आहार में नमक एकत्र करने एवं इसे बेचने पर पूरी तरह बैन लगा दिया था एवं ब्रिटिश सरकार ने नमक बनाने पर अपना एकाधिकार कर कस्टम ड्यूटी यानि कि आबकारी कर लगा दिया था, जिससे अंग्रेजों का खजाना तो बढ़ता गया, लेकिन नमक पर कर लगने से भारतीयों को काफी नुकसान हुआ।
इसके बाद गांधी जी ने ब्रिटिश कानून के इस नमक अधिनियम को अहिंसक तरीके से तोड़ने का तरीका अपनाया। दरअसल, उस समय नमक का मुद्दा हर भारतीय से जुड़ा था एवं गरीब किसानों का प्रभावित कर रहा था।
इसलिए नमक जैसी रोज में इस्तेमाल किए जाने वाली वस्तु पर कर लगाने के विरोध में किए गए आंदोलन से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बड़े स्तर पर भारतीयों का समर्थन हासिल किया जा सकता था।
इसलिए नमक को सबसे सशक्त एवं सर्वमान्य मुद्दा मानते हुए गांधी जी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूर्ण स्वराज प्राप्ति के उद्देश्य से सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया।
दांडी यात्रा से हुई सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत – Why Was Civil Disobedience Movement Launched
महात्मा गांधी जी ने अपने इस जनआंदोलन की शुरुआत 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से अपने 78 अनुयायियों के साथ दांडी की पैदल यात्रा के साथ की।
गांधी जी अपने समर्थकों के साथ अरब सागर के पास बसे दांडी के लिए करीब 241 मील की यात्रा पर निकल पड़े और उन्होंने करीब 24 दिनों में अपनी यह पदयात्रा पूरी की और 5 अप्रैल को दांडी पहुंचे।
इसके बाद 6 अप्रैल को महात्मा गांधी जी ने समुद्रतट में नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के नमक अधिनियम का उल्लंघन किया और ब्रिटिश शासकों के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया।
दरअसल, ब्रिटिश सरकार विदेश से आयात नमक को भारत में बेचकर लाभ कमाना चाहती थीं, लेकिन गांधी जी समुद्र के किनारे भारतीयों द्धारा नमक बनाना अपना मौलिक अधिकार मानते थे, इसलिए उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ समुद्र के किनारे जाकर खुद नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ काम किया, और यहीं से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई।
गांधी जी के इस नमक सत्याग्रह के तहत सभी देशवासियों को खुलेआम ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन कर अवैध रुप से एवं अहिंसक तरीके से नमक बनाने की छूट दे दी गई, लेकिन इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने नमन बनाने वाले आंदोलनकारियों पर लाठी बरसाकर इस आंदोलन को हिंसक बना दिया, इसमें करीब 300 लोग बुरी तरह घायल हो गए।
इसके बाद गांधी जी समेत कई लोगों की गिरफ्तारी हुईं, हालांकि गिरफ्तारी के बाद भी देश की जनता ने इस आंदोलन को जारी रखा था।
हालांकि, बाद में गांधी जी की रिहाई के बाद कुछ शर्तों के तहत गांधी जी और लॉर्ड इरविन के बीच समझौता किया गया और फिर इस आंदोलन को बंद किया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत होने वाली गतिविधियां –
गांधी जी के द्धारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाए गए नमक सत्याग्रह आंदोलन में बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी भागीदारी निभाई। इसके तहत देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों ने जनसमूह बनाकर ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत लोगों ने निम्नलिखित गतिविधियों को अंजाम दिया, जो कि इस प्रकार है-
- इस आंदोलन के तहत नमक कानून का उल्लंघन कर खुद के द्धारा नमक बनाए जाने का फैसला लिया।
- भारत में सभी देशवासियों ने अपने बच्चों को सरकारी नीतियों एवं सरकारी कार्यालयों का जमकर बहिष्कार किया। सरकारी नौकरी करने वाले भारतीय कर्मचारियों ने दफ्तर जाना छोड़ा दिया।
- इस दौरान लोगों द्धारा सरकारी उपाधियों, सरकारी शिक्षाओं एवं सरकारी सेवाओं का जमकर उल्लंघन किया गया। भारतीयों ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल भेजना बंद कर दिया, ताकि अंग्रेजों को भारतीयों की एकता की ताकत समझ आ सके एवं भारतीयों की गुस्सा से उन्हें इस बात का एहसास हो सके कि अब उनका शासन भारत पर ज्यादा दिन तक नहीं चल सकेगा।
- इस आंदोलन के तहत देश के सभी नागरिकों ने ब्रिटिश शासकों को किसी भी तरह का टैक्स देने से मना कर दिया एवं ब्रिटिश सरकार की नीतियों का उल्लंघन किया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के तहत बड़ी संख्या में महिलाओं द्धारा विदेशी शराब, अफीम एवं अन्य नशीले पदार्थों का विरोध किया गया और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना-प्रदर्शन किया गया।
- गांधी जी के इस आंदोलन के दौरान भारतीय लोगों द्धारा विदेशी वस्तुओं एवं विदेशी कपड़ों का पूरी तरह बहिष्कार किया गया एवं विदेशी वस्तुओं को जलाकर नष्ट किया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के मुख्य कारण – Causes Of Civil Disobedience Movement
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गांधी जी द्धारा सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरु करने के निम्नलिखित कारण थे, जो कि इस प्रकार हैं-
- साल 1929 में कांग्रेस के अधिवेशन में जब नेहरू और गांधी जी की पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव को ब्रिटिश सरकार द्धारा अस्वीकृत कर दिया था, ऐसी स्थिति में भारतीयों के पास आंदोलन करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था, इसलिए पूर्ण स्वराज को लेकर गांधी जी ने ब्रिटिशों के खिलाफ सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया था।
- देश में आर्थिक मंदी और चीन की क्रान्ति के प्रभाव ने दुनिया के कई अलग-अलग देशों में क्रांति पैदा कर दी थी एवं किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गई थी, जिसके चलते भारत की जनता में ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आक्रोश पैदा हो गया था। वहीं गांधी जी ने समय की नजाकत को समझते हुए लोगों के इस आक्रोश को सविनज्ञ अवज्ञा आंदोलन छेड़ दिया।
- हिन्दुस्तान को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाने के लिए उन्हें हिन्दुस्तानियों की ताकत का एहसास करवाना जरूरी था, ऐसे में सामूहिक रुप से शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए अंग्रेजों के बनाए कानूनों को तोड़ने से अंग्रेज सरकार पूरी तरह हिल गई थी।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के मुख्य प्रभाव – Effects Of Civil Disobedience Movement
- गांधी जी द्धारा चलाए गए इस सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिट्रिश सरकार को भारतीयों की शक्ति का एहसास करवा दिया था। यहां तक की इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के कुछ बड़े नेताओं को लंदन में आयोजित गोलमेज सम्मेलन में आने का भी निमंत्रण दिया था, जो कि भारतीयों के लिए काफी बड़ी बात थी। हालांकि, वे लोग इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान देश की महिलाओं ने भी बड़े स्तर पर अपनी भागीदारी निभाई थी। यह एक ऐसा पहला आंदोलन था, जब महिलाओं ने पहली बार घरों से निकलकर देश की आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया था, इस आंदोलन के दौरान कई हजार महिलाओं को जेल की सजा भी भुगतनी पड़ी थी।
- इस आंदोलन के बाद ही देश की स्वाधीनता के प्रति सभी भारतीयों के मन में एक आशा की किरण जाग गई थी।
- महात्मा गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद सभी भारतीय अपने हक के लिए निडर होकर खड़े हुए थे।
सविनय अवज्ञा आंदोलन के असफल होने के प्रमुख कारण – Why Civil Disobedience Movement Failed
- इस आंदोलन का भारतीयों पर व्यापक प्रभाव पड़ा था, बड़े स्तर पर लोग इस आंदोलन के भागीदार बने थे। इसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार की नींव भी कमजोर पड़ गई थी, लेकिन इस आंदोलन के तहत कांग्रेस ने जनसमूह का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया और न ही उन्हें सही दिशा दी। जिसके चलते इस आंदोलन का असर धीमे-धीमे खत्म होने लगा था।
- गांधी जी द्धारा शुरु किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन से व्यापारी वर्ग एवं मुस्लिम समुदाय धीमे-धीमे पीछे हट गए थे।
करीब 10 महीने तक दो चरणों में चले गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन लोगों के अंदर ब्रिटिश सरकार के प्रति और अधिक नफरत एवं आक्रोश भरने के लिए जाना जाता है। वहीं इस आंदोलन को शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त करने के लिए गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच साल 1931 में एक एक समझौत भी हुआ।
वहीं इस दौरान भगत सिंह समेत देश के कई महान क्रातिकारियों को फांसी होने वाली थी। हालांकि, गांधी जी ने इस समझौते के तहत भगत सिंह की फांसी नहीं रोकी, जिससे कई जगह लोगों ने गांधी जी के प्रति अपना गुस्सा भी जताया। बहरहाल, गांधी जी के इस आंदोलन के बाद देश में हर भारतीय के मन में स्वाधीनता पाने की लहर और अधिक तेज हो गई थी।
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