जयपुर शहर की शान “सिटी पैलेस” का इतिहास | City Palace History

City Palace – सिटी पैलेस जयपुर शहर में ह्रदय में बसा हुआ है, साथ ही महल का परिसर भी ऊँची पहाडियों पर बना हुआ है, जो अम्बेर शहर के दक्षिण से पाँच मील दूर है।

City Palaceजयपुर शहर की शान “सिटी पैलेस” का इतिहास – City Palace History

सिटी पैलेस का इतिहास शुरू से ही जयपुर शहर और उसके शासको के इतिहास से जुड़ा हुआ है, जिसकी शुरुवात महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय से होती है, जिन्होंने 1699 से 1744 तक शहर पर राज किया था।

महल के निर्माण का श्रेय सबसे पहले उन्ही को दिया जाता है, क्योकि उन्होंने ही महल में काफी एकरो तक फैलने वाली दीवार के निर्माण की शुरुवात यहाँ की थी।

शुरू में महाराजा अपने शहर अम्बेर से जयपुर पर शासन करते थे, जो जयपुर से 11 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है।

लेकिन 1727 में अम्बेर में जनसँख्या की समस्या और पानी की कमी होने के कारण उन्होंने जयपुर को अपनी राजधानी बनाया। उन्होंने वास्तुशास्त्र के अनुसार इस शहर को 6 अलग-अलग भागो में बाटने की योजना बना रखी थी।

यह सब उन्होंने अपने सलाहकार विद्याधर भट्टाचार्य के कहने पर किया था, जो नैनीताल में रहने वाले एक बंगाली आर्किटेक्ट थे। शुरू में वे अम्बेर के खजाने के अकाउंट-क्लर्क थे और बाद में राजा ने उन्हें दरबार का मुख्य आर्किटेक्ट बनाया था।

1957 में जयसिंह की मृत्यु होने के बाद, क्षेत्र के राजपूतो के बीच ही आपसी युद्ध होने लगे थे लेकिन ब्रिटिश राज के साथ उन्होंने सौहार्दपूर्ण संबंध बनाये रखे थे।

1857 के सिपॉय विद्रोह में महाराजा राम सिंह ने ब्रिटिशो का साथ भी दिया और खुद को शाही शासक के रूप में स्थापित किया।

कहा जाता है जयपुर की सभी धरोहरों के गुलाबी होने का यही कारण है, सूत्रों के अनुसार शासक की योजनाओ के अनुसार ही शहर को पिंक सिटी उर्फ़ गुलाबी शहर का नाम दिया गया। तभी से यह रंग जयपुर शहर का ट्रेडमार्क बन चूका है।

महाराजा माधो सिंह द्वितीय द्वारा दत्तक लिए हुए पुत्र मान सिंह द्वितीय ही जयपुर के अंतिम महाराजा थे, जिन्होंने जयपुर के चंद्र महल पर शासन किया था। शुरू से ही यह महल शाही परिवारो के रहने की जगह बन चूका है, बल्कि 1949 में राजस्थान के जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर के साथ जयपुर साम्राज्य के इंडियन यूनियन में शामिल होने के बावजूद यहाँ शाही परिवार ही रहते थे।

इसके बाद जयपुर को भारतीय राज्य राजस्थान की राजधानी बनाया गया और मान सिंह द्वितीय को राजप्रमुख बनाया गया और बाद में उन्हें स्पेन में भारत का एम्बेसडर भी बनाया गया।

सिटी पैलेस की संरचना

सिटी पैलेस जयपुर शहर के मध्य-उत्तरपूर्वी भाग में बना हुआ है, जिसका परिसर काफी फैला हुआ है। इसका परिसर बहुत से महलो, बागो, मंडपों और मंदिरों से घिरा हुआ है। परिसर के अंदर की सबसे प्रसिद्द धरोहरों में चंद्र महल, मुबारक महल, मुकुट महल, महारानी महल, श्री गोविन्द देव मंदिर और सिटी पैलेस म्यूजियम शामिल है।

जयपुर सिटी पैलेस मुख्य द्वार – City Palace Entrance gates

सिटी पैलेस के मुख्य प्रवेश द्वारो में वीरेन्द्र पोल, उदय पोल और त्रिपोलिया गेट शामिल है। जिनमे से त्रिपोलिया गेट से केवल शाही परिवार के लोग ही प्रवेश करते है।

सामान्य जनता और यात्रियों को सिटी पैलेस के अंदर वीरेन्द्र पोल और उदय पोल या आतिश पोल से प्रवेश दिया जाता है। वीरेन्द्र पोल से प्रवेश करने के बाद यह हमें सीधे मुबारक महल के पास ले जाता है। सिटी पैलेस के प्रवेश द्वारा प्राचीन वास्तुकला से सुशोभित है।

मुबारक महल – Mubarak Mahal

मुबारक महल का अर्थ ‘शुभ महल’ से है, जिसे इस्लामिक, राजपूत और यूरोपियन वास्तुकला स्टाइल की कल्पनाओ के आधार में 19 वी शताब्दी में महाराजा माधो सिंह द्वितीय ने रिसेप्शन सेंटर के रूप में बनवाया था।

यह एक म्यूजियम है : जिसमे शाही परिवार की पोशाख और उनके वस्त्रो, शॉल, कश्मीरी वस्त्रो, प्राचीन साड़ी इत्यादि का प्रदर्शन किया गया है। साथ ही यहाँ सवाई माधो सिंह प्रथम द्वारा धारण किये गये वस्त्रो का प्रदर्शन भी किया गया है, जो 1.2 मीटर चौड़े है और जिनका वजन 250 किलो है और कहा जाता है की उनकी 108 पत्नियाँ थी।

प्रीतम निवास चौक – Pritam Niwas Chowk 

यह महल का भीतरी आंगन है, जहाँ से हम चंद्र महल भी जा सकते है। यहाँ चार छोटे द्वार भी है, जो हिन्दू भगवान की थीम से विभूषित है।

इन द्वारो में मुख्य रूप से उत्तर-पूर्वी मोर द्वार (इस द्वार पर मोर की आकृति बनी हुई है) है जो पतझड़ का भी प्रतिनिधित्व करते है और यह द्वार भगवान विष्णु को समर्पित है, दक्षिणपूर्वी द्वार कमल द्वार है, जो गर्मी के मौसम का प्रतिनिधित्व करता है और यह द्वार भगवान शिव-पार्वती को समर्पित है, उत्तर-पश्चिमी द्वार हरा द्वार है, जिसे लहेरिया भी कहा जाता है और यह द्वार भगवान गणेश को समर्पित है और अंतिम द्वार गुलाब द्वार है जो देवियों को समर्पित है और इस अंतिम द्वार पर भी फूलो की आकृति बनाई गयी है।

दीवान-ए-खास – Diwan-E-Khas

दीवान-ए-खास एक करामाती कक्ष है, जिसकी छतो को महंगे लाल और सुनहरे रंगों से सजाया गया है, जो आज भी हमें जीवंत लगते है। मुबारक महल के परिसर का यह मुख्य आकर्षण का केंद्र है।

इस कक्ष का उपयोग वर्तमान में आर्ट गैलरी के रूप में किया जा रहा है, बहुत सी प्राचीन राजस्थानी, मुघल और पर्शियन चित्रों, प्राचीन शिलालेखो और कश्मीरी कारपेट का प्रदर्शन किया जाता है।

इसकी छत को भी खूबसूरती से सजाया गया है। इस आर्ट गैलरी में प्राचीन मनुस्म्रुतियो को भी दर्शाया गया है। साथ ही इस आर्ट गैलरी में हमें शाही सिंहासन (तख़्त ए रावल) भी देखने मिलता है, जो सार्वजानिक श्रोताओ के समय महाराजा की कुर्सी हुआ करती थी।

महल के बाहर जब महाराजा यात्रा करते जाते थे तो उनके वे हाथी पर सवार होकर अपने घुड़सवारीयो के साथ जाते थे और उनके साथ एक पालकी धारक भी होता था। इस हॉल के प्रवेश द्वार पर मार्बल पत्थरों से दो विशाल हाथियों को बनाया गया है।

दीवान-ए-आम – Diwan-i-Aam

दीवान ए आम सार्वजानिक श्रोताओ का एक हॉल है। इस हॉल को सतह को मार्बल से सजाया गया है। साथ ही यहाँ १.6 मीटर ऊँचे चाँदी के बर्तन भी है, जिनमे 4000 लीटर की क्षमता है और उनका वजन तक़रीबन 340 किलोग्राम है। इनका निर्माण 14000 चाँदी के सिक्को को पिघलाकर उन्हें टाके बिना ही किया गया था।

इनके नाम दुनिया के सबसे विशाल चाँदी के बर्तन होने का भी रिकॉर्ड है। इन बर्तनो का निर्माण महाराजा सवाई माधो सिंह द्वितीय ने करवाया था, जो एक पवित्र हिन्दू थे।

उन्होंने इन बर्तनो का निर्माण 1901 में उनकी इंग्लैंड यात्रा के दौरान गंगा का पानी पिने के लिए ले जाने के लिए किया था, क्योकि उनके अनुसार यदि वे इंग्लिश पानी का सेवन करते तो उनका हिन्दू धर्म भ्रष्ट हो जाता। इसके बाद इन बर्तनों का नाम भी गंगाजली रखा गया था।

यहाँ पर क्रिस्टल से सुशोभित बहुत से झूमर भी बने हुए है, जो दीवान ए आम की छत पर लटके हुए है, जिन्हें वर्तमान में अक्सर कयी त्योहारों पर सजाया भी जाता है। (वर्तमान में धुल से ख़राब होने की वजह से उन्हें कपड़ो से ढंका गया है।)

चंद्र महल – Chandra Mahal

चंद्र महल या चंद्र निवास सिटी पैलेस की सबसे प्रसिद्द ईमारत है, जो महल के पश्चिमी अंत में बनी हुई है।

यह एक सात मंजिला ईमारत है और इसकी हर एक मंजिल को अलग-अलग नाम दिया गया है, जैसे की पीतम-निवास, सुख-निवास, रंग-मंदिर, श्री-निवास, चाबी-निवास, और मुकुट-मंदिर या मुकुट-महल। इस महल में बहुत सी आकर्षक पेंटिंग्स, शीशे और दीवारे बनी हुई है।

वर्तमान में, इस महल में जयपुर शासको के प्राचीन अनुयायी ही रहते है। केवल निचली मंजिल पर ही यात्रीयो को यहाँ जाने की अनुमति है, जहाँ एक म्यूजियम बना हुआ है, जिनमे हमें शाही परिवार से जुडी बहुत सी चीजे दिखाई देती है।

महल में प्रवेश लेते समय यहाँ एक सुंदर मोर द्वार भी बना हुआ है। साथ ही महल में बहुत सी सुंदर बालकनी भी है, जहाँ से जयपुर शहर का मनमोहक और अतिसुंदर रूप हमें दिखाई देता है।

गोविंद देवजी मंदिर – Govind Dev Ji temple

गोविंद देवजी मंदिर हिन्दू भगवान श्री कृष्णा को समर्पित एक मंदिर है, जो शहर के परिसर में ही बना हुआ है। इसका निर्माण 18 वी शताब्दी के शुरू में ही किया गया था। इस मंदिर में हमें यूरोपियन झूमर और भारतीय पेंटिंग भी देखने मिलती है। मंदिर की छतो को सोने के आभूषणों से सजाया गया है।

यह ऐसी जगह पर बना हुआ है की यहाँ के चंद्र महल परिसर से हम सीधे महाराजा को देख सकते है। आरती करते समय यहाँ पर भक्त दीन में केवल सात बार ही देवता को देखते है।

महारानी महल – Maharani palace

असल में महारानी महल शाही रानियों के रहने की जगह हुआ करती थी। लेकिन बाद में इसे म्यूजियम में परिवर्तित कर दिया गया, जहाँ शाही युद्ध के समय उपयोग की जाने वाले हथियारों को रखा गया है, इनमे से कुछ हथियारों का उपयोग 15 वी शताब्दी में भी किया गया है।

इस कक्ष की छतो पर अद्वितीय भित्तिचित्र किया गया है, जिन्हें गहनों की धुल से सजाया गया है। यहाँ प्रदर्शित किये गये मुख्य हथियारों में मुख्य रूप से कैची –कार्यात्मक कैची शामिल है।

हॉल में प्रदर्शित दुसरे हथियारों में एक तलवार है जिसपर पिस्तौल लगी हुई है, कहा जाता है की इस तलवार को रानी विक्टोरिया ने महाराजा सवाई राम सिंह को भेट स्वरुप दी थी।

बग्गी खाना – Bhaggi Khana

सिटी पैलेस के महल परिसर में बग्गी खाना भी बना हुआ है, जो एक म्यूजियम है। यहाँ प्राचीन गाडी, पालकी और यूरोपियन टैक्सी को प्रदर्शित किया गया है।

आकर्षित करने वाली बग्गी को 1876 में वेल्स के प्रिंस ने महाराजा को भेट स्वरुप दी थी, जिसे विक्टोरिया बग्गी भी कहते है।

यहाँ प्रदर्शित की गयी दूसरी चीजो में महाडोल भी शामिल है, जो एक बाम्बू से बनी पालकी है और इस पालकी का उपयोग पुजारियों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लिए किया जाता था। साथ ही रथ यात्रा के समय हिन्दू देवी-देवताओ के लिए इस पालकी का उपयोग किया जाता था।

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