Chittorgarh Fort in Hindi
उत्तर भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक चित्तौड़गढ़ का किला राजपूतों के साहस, शौर्य, त्याग, बलिदान और बड़प्पन का प्रतीक है। चित्तौड़गढ़ का यह किला राजपूत शासकों की वीरता, उनकी महिमा एवं शक्तिशाली महिलाओं के अद्धितीय और अदम्य साहस की कई कहानियों को प्रदर्शित करता है।
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में बेराच नदी के किनारे स्थित चित्तौड़गढ़ के किले को न सिर्फ राजस्थान का गौरव माना जाता है, बल्कि यह भारत के सबसे विशालकाय किलों में से भी एक है, जिसका निर्माण 7वीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्धारा किया गया था।
करीब 700 एकड़ की जमीन में फैला यह विशाल किला अपनी भव्यता, आर्कषण और सौंदर्य की वजह से साल 2013 में यूनेस्को द्धारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
आपको बता दें कि इस किले के निर्माण को लेकर एक किवंदति भी है, जिसके अनुसार इस किले का निर्माण सिर्फ एक ही रात में महाभारत के समय पांच पाण्डु भाइयों में से सबसे बलशाली राजकुमार भीम ने अपने अद्भुत शक्ति का इस्तेमाल कर किया था।
फिलहाल, चित्तौड़गढ़ का यह किला प्राचीन कलाकृति के सर्वोत्तम उदाहरण में से एक है। तो आइए जानते हैं भारत के इस सबसे बड़े किले के इतिहास और इससे जुड़े रोचक एवं दिलचस्प तथ्यों के बारे में –
भारत का सबसे विशालकाय किला- चित्तौड़गढ़ का किला – Chittorgarh Fort History in Hindi
चित्तौड़गढ़ किले का संक्षिप्त विवरण एक नजर में – Chittorgarh Kila
कहां स्थित है | चित्तौड़गढ़, राजस्थान (भारत) |
कब हुआ निर्माण | करीब 7वीं शताब्दी में |
किसने करवाया निर्माण | मौर्य शासकों द्धारा। |
प्रसिद्धि | राजपूतों के साहस, बलिदान और वीरता का प्रतीक। |
चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण व इतिहास – Chittorgarh kila History in Hindi
चित्तौड़गढ़ में करीब 180 मीटर की पहाड़ी में स्थित यह किला भारत का सबसे विशाल किला है, जिसके निर्माण और इतिहास हजारों साल पुराना माना जाता है।
इस भव्य किले के निर्माण कब और किसने करवाया इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन महाभारत काल में भी इस विशाल किले का होना बताया जाता था। इतिहासकारों की माने तो इस विशाल दुर्ग का निर्माण मौर्य वंश के शासकों द्धारा 7वीं शताब्दी में करवाया गया था।
वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि स्थानीय कबीले के मौर्य शासक राजा चित्रांग ने इस किले का निर्माण कर इसका नाम चित्रकोट रखा था।
इसके अलावा चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले के निर्माण को लेकर एक किवंदती के मुताबिक इस प्राचीनतम और भव्य किले को महाभारत के भीम ने बनवाया था, वहीं भीम के नाम पर भीमताल भीमगोड़ी, समेत कई स्थान आज भी इस क़िले के अंदर बने हुए हैं।
राजस्थान के मेवाड़ में गुहिल राजवंश के संस्थापक बप्पा रावल ने अपनी अदम्य शक्ति और साहस से मौर्य सम्राज्य के अंतिम शासक को युद्ध में हराकर करीब 8वीं शताब्दी में चित्तौड़गढ़ पर अपना शासन कायम कर लिया और करीब 724 ईसवी में भारत के इस विशाल और महत्वपूर्ण दुर्ग चित्तौड़गढ़ किले की 724 ईसवी में स्थापना की।
वहीं इसके बाद मालवा के राजा मुंज ने इस दुर्ग पर अपना कब्जा जमा लिया और फिर यह किला गुजरात के महाशक्तिशाली शासक सिद्धराज जयसिंह के अधीन रहा।
12वीं सदी में चित्तौड़गढ़ का यह विशाल किला एक बार फिर गुहिल राजवंश के अधीन रहा। इस तरह यह दुर्ग अलग-अलग समय पर मौर्य, सोलंकी, खिलजी, मुगल, प्रतिहार, चौहान, परमार वंश के शासकों के अधीन रह चुका है।
चित्तौड़गढ़ के किले पर हुए आक्रमण:
राजस्थान की शान माने जाने वाले चित्तौड़गढ़ के इस ऐतिहासिक किले पर कई हमले और युद्द भी किए गए, लेकिन समय-समय पर राजपूत शासकों ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए इस किले की सुरक्षा की।
चित्तौड़गढ़ किले पर 15वीं से 16वीं शताब्दी के बीच 3 बार कई घातक आक्रमण हुए
अलाउद्दीन खिलजी ने किया चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण:
1303 ईसवी में अल्लाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर आक्रमण किया था। दरअसल, रानी पद्मावती की खूबसूरती को देखकर अलाउद्धीन खिलजी उन पर मोहित हो गया, और वह रानी पद्मावती को अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन रानी पद्मावती के साथ जाने से मना करने जिसके चलते अलाउ्दीन खिलजी ने इस किले पर हमला कर दिया।
जिसके बाद अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध रानी पद्मिनी के पति राजा रतन सिंह और उनकी सेना ने अलाउद्धीन खिलजी के खिलाफ वीरता और साहस के साथ युद्ध लड़ा,लेकिन उन्हें इस युद्ध में पराजित होना पड़ा।
वहीं निद्दयी शासक अलाउद्दीन खिलजी से युद्द में हार जाने के बाद भी रानी पद्मावती ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने राजपूतों की शान, स्वाभिमान और अपनी मर्यादा के खातिर इस किले के विजय स्तंभ के पास करीब 16 हजार रानियों, दासियों व बच्चों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह किया।
वहीं आज भी इस किले के परिसर के पास बने विजय स्तंभ के पास यह जगह जौहर स्थली के रुप में पहचानी जाती है। इसे इतिहास का सबसे पहला और चर्चित जौहर स्थल भी माना जाता है।
इस तरह अलाउद्दीन खिलजी की रानी पद्मावती को पाने की चाहत कभी पूरी नहीं हो सकी एवं चित्तौड़गढ़ का यह विशाल किला राजपूत शासकों एवं महलिाओं के अद्धितीय साहस, राष्ट्रवाद एवं बलिदान को एक श्रद्धांली है।
गुजरात के शासक बहादुर शाह ने किया चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आक्रमण:
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल दुर्ग पर 1535 ईसवी में गुजरात के शासक बहादुर शाह ने आक्रमण किया और विक्रमजीत सिंह को हराकर इस किले पर अपना अधिकार जमा लिया।
तब अपने राज्य की रक्षा के लिए रानी कर्णावती ने उस समय दिल्ली के शासक हुमायूं को राखी भेजकर मद्द मांगी, एवं उन्होंने दुश्मन सेना की अधीनता स्वीकार नहीं की एवं रानी कर्णावती ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए करीब 13 हजार रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह कर दिया। इसके बाद उनके बेटे उदय सिंह को चित्तौड़गढ़ का शासक बनाया गया।
मुगल बादशाह अकबर ने किया चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर हमला:
मुगल शासक अकबर ने 1567 ईसवी में चित्तौड़गढ़ किले पर हमला कर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। वहीं राजा उदयसिंह ने इसके खिलाफ संघर्ष नहीं किया और इसके बाद उन्होंने पलायन कर दिया, और फिर उदयपुर शहर की स्थापना की।
हालाकिं, जयमाल और पत्ता के नेतृत्व में राजपूतों ने अकबर के खिलाफ अपने पूरे साहस के साथ लड़ाई लड़ी, लेकिन वे इस युद्ध को जीतने में असफल रहे, वहीं इस दौरान जयमाल, पत्ता समेत कई राजपूतों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी।
वहीं इसके बाद मुगल सम्राट अकबर ने चित्तौड़गढ़ के इस किले पर अपना कब्जा कर लिया और उसकी सेना ने इस किले को जमकर लूटा और नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश की। जिसके बाद पत्ता की पत्नी रानी फूल कंवर ने हजारों रानियों के साथ ”जौहर” या सामूहिक आत्मदाह किया।
वहीं इसके बाद 1616 ईसवी में मुगल सम्राट जहांगीर ने चित्तौड़गढ़ के किले को एक संधि के तहत मेवाड़ के महाराजा अमर सिंह को वापस कर दिया। वहीं वर्तमान में भारत के इस सबसे बड़े किले के अवशेष इस जगह के समृद्ध इतिहास की याद दिलाते हैं।
चित्तौड़गढ़ किले की अनूठी वास्तुकला एवं शानदार संरचना – Chittorgarh Fort Architecture
राजस्थान का गौरव माना जाने वाला यह चित्तौड़गढ़ का विशाल दुर्ग करीब 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। वहीं करीब 13 किलोमीटर की परिधि में बना यह भारत का सबसे विशाल और आर्कषक दुर्गों में से एक है।
चित्तौड़गढ़ में यह किला गंभीरी नदी के पास और अरावली पर्वत शिखर पर सतह से करीब 180 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है। राजपूतों के शौर्यता का प्रतीक माने जाने वाले इस विशाल दुर्ग के अंदर कई ऐतिहासिक स्तंभ, पवित्र मंदिर, विशाल द्धार आदि बने हुए हैं, जो कि इस दुर्ग की शोभा को और अधिक बढ़ाते हैं।
आपका बता दें कि चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले तक पहुंचने के लिए 7 अलग-अलग प्रवेश द्धार से होकर गुजरना पड़ता है, जिसमें पेडल पोल, गणेश पोल, लक्ष्मण पोल, भैरों पोल, जोरला पोल, हनुमान पोल, और राम पोल आदि द्वार के नाम शामिल हैं। वहीं इसके बाद मुख्य द्धार सूर्य पोल को भी पार करना पड़ता है।
यह ऐतिहासिक और भव्य दुर्ग के परिसर में करीब 65 ऐतिहासिक और बेहद शानदार संरचनाएं बनी हुई हैं, जिनमें से 19 मुख्य मंदिर, 4 बेहद आर्कषक महल परिसर, 4 ऐतिहासिक स्मारक एवं करीब 20 कार्यात्मक जल निकाय शामिल हैं।
इन सभी के अलावा 700 एकड़ क्षेत्रफल में फैले भारत के इस विशाल दुर्ग के अंदर सम्मिदेश्वरा मंदिर, मीरा बाई मंदिर, नीलकंठ महादेव मंदिर, श्रृंगार चौरी मंदिर, जैन मंदिर, गणेश मंदिर, कुंभ श्याम मंदिर, कलिका मंदिर, और विजय स्तंभ (कीर्ति स्तंभ) भी शोभायमान है, जो कि न सिर्फ इस विशाल किले के आर्कषण को और भी अधिक बढ़ा रहे हैं, बल्कि राजपूत वंश के गौरवशाली अतीत को भी दर्शाते हैं।
इसके साथ ही दुर्ग के अंदर बने यह स्तंभ पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ खींचते हैं।
चित्तौड़गढ़ के इस विशाल किले के अंदर मंदिर, जलाशयों और विजय स्तंभों के साथ-साथ कई बेहद सुंदर महल भी बने हुए हैं।
इस किले के अंदर बने राणा कुंभा, पद्धमिनी और फतेह प्रकाश महल इस किले की सुंदरता और आर्कषण को और अधिक बढ़ा रहे हैं। आपको बता दें कि फतेह प्रकाश पैलेस में मध्यकाल में इस्तेमाल किए जाने वाले अस्त्र-शस्त्र, मूर्तियां, कला समेत कई पुरामहत्व वाली वस्तुओं का बेहतरीन संग्रह किया गया है।
इसके साथ ही इस ऐतिहासिक महल के अंदर झीना रानी महल के पास बने शानदार गौमुख कुंड भी इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है।
यही नहीं चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बने जौहर कुंड का भी अपना अलग ऐतिहासिक महत्व है। इस शानदार कुंड को देखने दूर-दूर से पर्यटक आते हैं। इस किले में बने जौहर कुंड में अपने स्वाभिमान और सम्मान को बचाने के लिए रानी पद्मावती, रानी कर्णाती एवं रानी फूलकंवर ने खुद को अग्नि में न्यौछावर या जौहर ( आत्मदाह ) कर दिया था।
इसके साथ ही भारत के इस ऐतिहासिक और विशाल किले के परिसर में बने शानदार जलाशय (तालाब) भी इस दुर्ग की शोभा बढ़ाते हैं।
इतिहासकारों की माने तो पहले इस किले के अंदर पहले करीब 84 सुंदर जलाशय थे, जिसमें से केवल वर्तमान में महज 22 ही बचे हुए हैं। जिनका अपना एक अलग धार्मिक महत्व है।
भारत के इस विशाल चित्तौड़गढ़ दुर्ग को अगर विहंगम दृश्य से देखा जाए तो यह मछली की आकार की तरह प्रतीत होता है। मौर्यकाल में बने इस शानदार किले को राजपूताना और सिसोदियन वास्तुशैली का इस्तेमाल कर बनाया गया है, जो कि प्राचीनतम कृति का अनूठा नमूना है, साथ ही राजपूतों की अद्म्य शौर्य, शक्ति और महिलाओं के अद्धितीय साहस का प्रतीक है।
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बनी शानदार संरचनाएं एवं प्रमुख आर्कषण
विजय स्तंभ –
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के अंदर बना विजय स्तंभ इस किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थलों में से एक है। इस स्तंभ को मालवा के सुल्तान महमूद शाह की खिलजी ऊपर जीत के जश्न में बनाया गया था।
इस अनूठी वास्तुशैली से निर्मित विजय स्तंभ को शक्तिशाली शासक राणा कुंभा द्धारा बनवाया गया था। करीब 37.2 मीटर ऊँची इस अद्भुत संरचना के निर्माण में करीब 10 साल का लंबा समय लगा था। विजय स्तंभ की सबसे ऊपरी एवं नौवीं मंजिल पर घुमावदार सीढि़यों से पहुंचा जा सकता है, वहीं इससे चित्तौड़गढ़ शहर का अद्भुत नजारा देख सकते हैं।
कीर्ति स्तंभ (टॉवर ऑफ फ्रेम) –
भारत के इस विशाल दुर्ग के परिसर में बना कीर्ति स्तंभ या ( टॉवर ऑफ फ़ेम ) भी इस किले की सुंदरता को बढ़ा रहा है। 22 मीटर ऊंचे इस अनूठे स्तंभ का निर्माण जैन व्यापारी जीजा जी राठौर द्धारा दिया गया था।
पहले जैन तीर्थकर आदिनाथ को सर्मपित इस स्तंभ को जैन मूर्तियों से बेहद शानदार तरीके से सजाया गया है। इस भव्य मीनार के अंदर कई तीर्थकरों की मूर्तियां भी स्थापित हैं। इस तरह कीर्ति स्तंभ का ऐतिहासिक महत्व होने के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी है।
राणा कुंभा महल –
राजपूतों के अदम्य साहस का प्रतीक माने जाने वाले इस विशाल चित्तौड़गढ़ के दुर्ग के परिसर में बना राणा कुंभा महल भी इस किले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
यह अति रमणीय महल विजया स्तंभ के प्रवेश द्धार के पास स्थित है, इस महल को चित्तौड़गढ़ किले का सबसे प्राचीन स्मारक भी माना जाता है। वहीं उदयपुर नगरी को बसाने वाले राजा उदय सिंह का जन्म इसी महल में हुआ था।
राणा कुंभा महल में मुख्य प्रवेश द्धार सूरल पोल के माध्यम से भी घुसा जा सकता है। राणा कुंभा पैलेस में ही मीरा बाई समेत कई प्रसिद्ध कवि भी रहते थे। इस महल में कई सुंदर मूर्तियां भी रखी गई हैं, जो कि इस महल के आर्कषण को और अधिक बढ़ा रही हैं।
रानी पद्मिनी महल –
राजस्थान की शान माने जाने वाले चित्तौड़गढ़ किले का यह बेहद खूबसूरत और आर्कषक महल है। पद्मिनी पैलेस इस किले के दक्षिणी हिस्से में एक सुंदर सरोवर के पास स्थित है। पद्मिनी महल एक तीन मंजिला इमारत है, जिसके शीर्ष को मंडप द्धारा सजाया गया है।
अद्भुत वास्तुशैली से निर्मित यह महल पानी से घिरा हुआ है, जो कि देखने में बेहद रमणीय लगता है। 19 वीं सदी में पुर्ननिर्मित इस आर्कषक महल पर अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती ने अपनी एक झलक दिखाने की इजाजत दी थी।
कुंभश्याम मंदिर –
भारत के इस सबसे विशाल किले के दक्षिण भाग में मीराबाई को समर्पित कुंभश्याम मंदिर बना हुआ है।
चित्तौड़गढ़ किले का शानदार लाइट एवं साउंड शो:
राजपूतों की गौरव गाथा की याद दिलाता भारत के इस विशाल दुर्ग के अंदर राजस्थान पर्यटन विभाग द्धारा साउंड और लाइट शो भी शुरु किया गया। वहीं इस शो को देखने दूर-दूर से सैलानी आते हैं।
इस अनोखे साउंड एवं लाइट शो के माध्यम से सैलानियों को इस विशाल चित्तौड़गढ़ दुर्ग के इतिहास के बारे में बताया जाता है। वहीं चित्तौड़गढ़ किले में होने वाला यह शो पर्यटकों का ध्यान अपनी तरफ आर्कषित करता है।
चित्तौड़गढ़ किले के बारे में रोचक तथ्य – Chittorgarh Fort Haunted
- चित्तौड़गढ़ किला भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है, जिसे यूनेस्को द्धारा वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल किया गया है।
- सातवीं शताब्दी में मौर्य शासकों द्धारा निर्मित इस विशाल किले का निर्माण मौर्य शासक चित्रांगदा मोरी के नाम पर चित्तौड़गढ़ पड़ा। वहीं एक प्राचीन समय में इस किले को मेवाड़ की राजधानी माना जाता था।
- चित्तौड़गढ़ के इस विशाल और आर्कषक किले का इस्तेमाल 8वीं से 16वीं सदी तक राजस्थान के मेवाड़ पर शासन करने वाले सिसोदिया एवं गहलोत राजवंशों ने अपने निवासस्थान के रुप में किया था।
- 1568 ईसवीं में भारत के इस सबसे बड़े किले पर मुगल सम्राट अकबर ने अपना कब्जा जमाया था।
- करीब 700 एकड़ के क्षेत्रफल में फैले हुए विशालकाय किले के निर्माण को लेकर एक किवंदती यह भी है कि, इस किले का निर्माण हजारों साल पहले द्धापर युग में पांडवों के सबसे शक्तिशाली भाई राजकुमार भीम ने अपने ताकत का इस्तेमाल कर एक ही रात में किया था।
- चित्तौड़गढ़ के इस विशाल दुर्ग के परिसर में करीब 65 ऐतिहासिक एवं बेहद शानदार संरचनाएं बनी हुई हैं। जिसमें आर्कषक महल, विशाल मंदिर, सुंदर सरोवर आदि बनाए गए हैं।
- इस किले में 7 विशाल और ऊंचे प्रवेश द्धार इस तरह बनाए गए हैं कि, दुश्मनों द्धारा हाथी और ऊंट पर ख़ड़े होने पर भी इस किले के अंदर नहीं देखा जा सकता था।
- चित्तौड़गढ़ के इस विशालकाय किले के अंदर करीब 84 बेहद आर्कषक जल निकाय शामिल थे, जिनमें से वर्तमान में सिर्फ 22 ही बचे हैं।
- इस विशाल किले के अंदर कई प्रसिद्ध मंदिर, सुंदर महल एवं जलाशयों के अलावा दो प्राचीन स्तंभ कीर्ति स्तंभ और विजय स्तंभ भी बने हुए हैं, जो कि न सिर्फ इस किले के आर्कषण को बढ़ाते हैं, बल्कि राजपूतों के गौरवशाली इतिहास को दर्शाते हैं।
- चित्तौड़गढ़ किले के अंदर प्रचीन समय में करीब 1 लाख से भी ज्यादा लोग रहते थे।
- 180 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित भारत के इस विशालकाय दुर्ग में राजस्थान में लगने वाले राजपूतों के सबसे बड़े ”जौहर मेले” का भी आयोजन किया जाता है।
- इस किले की भव्यता और आर्कषण को देखकर साल 2013 में इस विशाल किले को यूनेस्कों द्धारा विश्व विरासत की लिस्ट में शामिल किया गया था।
- राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले की अरावली पहाड़ी पर स्थित यह विशालकाय किला महिलाओं का प्रमुख जौहर स्थल भी माना जाता था।
जौहर प्रथा, एक प्रकार की सती प्रथा की तरह ही थी, लेकिन इस प्रथा का इस्तेमाल तब किया जाता था,जब कोई सम्राट किसी युद्ध में दुश्मनों से हार जाता था, तब सम्राटों की पत्नियां एवं दासियां विरोधी राजाओं से खुद को बचाने कि लिए एवं अपने, सम्मान, मर्यादा और स्वाभिमान को रखने के लिए खुद को जौहर कुंड की अग्नि में न्योछावर कर देती थी।
- चित्तौड़गढ़ के किले को विहंगम दृश्य से देखा जाए तो यह मछली का आकार का प्रतीत होता है।
- इस विशालकाय किले को चित्तौर, चित्तौरगढ़, और चितोड़गढ़ समेत अन्य नामों से भी जाना जाता है।
- भारत का यह सबसे बड़ा किला राजपूत शासकों के अदम्य साहस, स्वाभिमान, शौर्य, त्याग एवं बलिदान का प्रतीक है।
- राजस्थान का गौरव माने जाने वाला यह किला अपनी अनूठी वास्तुकला, अद्भुत बनावट, भव्यता एवं इस किले के परिसर में बने कई आर्कषक पर्यटक स्थलों जैसे कि महल, स्तंभ, जलाशय,मंदिर एवं अरावली की चोटी के अद्भुत नजारा के लिए पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस किले को देखने देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक आते हैं।
चित्तौड़गढ़़ किले तक ऐसे पहुंचे – How to reach Chittorgarh Fort
राजस्थान के इस ऐतिहासिक दुर्ग चित्तौड़गढ़ किले को देखने के लिए पर्यटक सड़क, वायु, रेल तीनों मार्गों द्धारा पहुंच सकते हैं। जो पर्यटक हवाई मार्ग से इस दुर्ग को देखना चाहते हैं, उनके लिए सबसे पास उदयपुर एयरपोर्ट है, जो कि चित्तौड़गढ़ से करीब 70 किमी की दूरी पर स्थित है।
उदयपुर एयरपोर्ट देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। एयरपोर्ट से टैक्सी, कैब या फिर बस की सहायता से इस किले तक पहुंचा जा सकता है। वहीं अगर पर्यटक ट्रेन से चित्तौड़गढ़ पहुंचते हैं तो चित्तौड़गढ़ एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जो कि देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
इसके साथ ही चित्तौड़गढ़ जिला, राजस्थान के प्रमुख शहरों एवं पड़ोसी राज्यों से सड़क मार्ग से भी अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां से अच्छी बस सुविधा भी उपलब्ध है। आपको बता दें कि दिल्ली से चित्तौड़गढ़ की दूरी करीब 566 किलोमीटर है। यहां से सड़क मार्ग से करीब 10 घंटे लगते हैं।
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chhitorgarh kile main aam aadmi ghume skte hai kya
rajasthan ki bhumi bahut pavitrahai or veero ki bhi bhumi hai yahan darshniye sathal ,,,logo ki language mujhe bahut pasand hai
kya hum vahan ghume skte hai
Bilkul aap gum skte ho
बिलकुल घूम सकते हो। सारा किला देख सकते हो।
Yes Sir aap chittaurgarh FORT tour Kar skte he… I am from chittaurgarh me Bhi tour krwata hu SIR g auto se chittaurgarh FORT sight seen Most welcome…
chhitodgarh ka killa bahut history ke liye maana jaata hai isme main point rani padmavti ka hai me is kille me 4 bar jaaa chuka hu fir bhi vahaa jaane ka bahut mn karta hai mujhe garv hai ki mujhe rajasthan jaise state me janam huaa hai
Kile ke bare men achhi jankari di.
Plz kuchh jankari me Sudhar kare
1. Chittod Kay dusra shaka 1534 men hua the.
2. Vijay stmbh Kay nirman 1448-1458 had.
Thanks Viram singh sir, Now Chittorgarh Fort History post updated.
Chittor fort me khun se bahta huaa pada aaya niche tak jhis jagah ka nam padal pol rkha gaya
I like historical buildings and forts,
This is great history of Sisodiya times.
Jai Maharana pratap.