चित्तरंजन दास का जीवन परिचय

चित्तरंजन दास जो देशबंधु के नाम से प्रसिद्ध है। एक भारतीय राजनेता और ब्रिटिश शासन में बंगाल में ‘स्वराज पार्टी’ के संस्थापक नेता थे। जिन्होंने देश की आजादी के लिये अपना सारा जीवन अर्पण कर दिया। और आखरी सास तक अंग्रजी हुकूमत से लढे।

पश्चिम बंगाल के स्वतंत्रता सेनानियो मे चित्तरंजन दास का नाम बडे ही आदर और गौरव के साथ लिया जाता है। यह ना केवल उच्च-शिक्षित व्यक्तित्व थे बल्की, बल्की अग्रणी विचारक भी थे।

तत्कालीन भारत मे इनके द्वारा स्वाधीनता संग्राम के साथ अन्य सामाजिक तौर पर किये गए कार्य की बदौलत, देश को एक निडर नेतृत्व मिला था यह इतिहास के पन्नो से स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

चित्तरंजन दास का जीवन परिचय – Chittaranjan Das in Hindi

संक्षेप मे महत्वपूर्ण जानकारी 

संपूर्ण नाम (Name)चित्तरंजन भुवनमोहन दास
जन्म (Birthday)5 नवंबर 1870
जन्मस्थानकोलकता
पिता का नाम (Father Name)भुवनमोहन दास।
माता का नाम (Mother Name)निस्तारिणी देवी
शिक्षा इ.स. 1890 में प्रेसिडेन्सी कॉलेज कोलकता सें बी.ए, इ.स.1892 में लंडनसे बॅरिस्टर की उपाधी।
विवाह वासंतीदेवी के साथ (इ.स. 1897 में)
संतानो के नामचिरंजन दास (पुत्र), अपर्णा देवी और कल्याणी देवी(पुत्रियाँ)
मुख्य रूप से पहचान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिध्द वकील, कवी, राजनेता, पत्रकार।
मृत्यू (Death)१६ जून १९२५।

चित्तरंजन दास का संबंध ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) के बिक्रमपुर के, तेलिर्बघ (बैद्य-ब्राह्मण) के दास परिवार से था। वे भुबन मोहन दास के बेटे और ब्रह्म सामाजिक सुधारक दुर्गा मोहन दास के भांजे थे।

उनके भाई-बहनों में सतीश रंजन दास, सुधि रंजन दास, सरला रॉय और लेडी अबला बोस शामिल है। उनका सबसे बड़ा पोता सिद्धार्थ शंकर राय और उनकी पोती का नाम मंजुला बोस है।

इंग्लैंड में चित्तरंजन दास ने अपनी पढाई पूरी की और बैरिस्टर बने। उनका सामाजिक करियर 1909 में शुरू हुआ था जब उन्होंने पिछले वर्ष के अलिपोरे बम केस में औरोबिन्दो घोष के शामिल होने का विरोध कर उनकी रक्षा की थी।

बाद में अपने भाषण में औरोबिन्दो ने चित्तरंजन दास की तारीफ करते हुए कहा था की चित्तरंजन ने अपनी सेहत की परवाह किये बिना ही उनकी रक्षा की थी।

सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत जीवन का संक्षेप मे विवरण 

बंगाल में 1919-1922 के बीच हुए असहकार आन्दोलन के समय दास बंगाल के मुख्य नेताओ में से एक थे। उन्होंने ब्रिटिश कपड़ो का भी काफी विरोध किया। इसका विरोध करते हुए उन्हें खुद ही के यूरोपियन कपड़ो को जलाया और खादी कपडे पहनने लगे थे।

एक समय उनके कपडे पेरिस में सिले और धोए जाते थे और पेरिस में उन्होंने अपने कपड़ो की शिपिंग कलकत्ता में करने के लिये एक लांड्री भी स्थापित कर रखी थी। लेकिन जब दास स्वतंत्रता अभियान से जुड़ गए थे तब उन्होंने इन सारी सुख-सुविधाओ का त्याग किया था।

उन्होंने एक अखबार फॉरवर्ड भी निकाला और फिर बाद में उसका नाम बदलकर लिबर्टी टू फाइट दी ब्रिटिश राज रखा। जब कलकत्ता म्युनिसिपल कारपोरेशन की स्थापना की गयी थी तब दास ही पहले महापौर बने थे। उनका अहिंसा और क़ानूनी विधियों पर पूरा भरोसा था।

उन्हें भरोसा था की इन्ही के बल पर हम आज़ादी पा सकते है और हिन्दू-मुस्लिम में एकता भी ला सकते है। बाद में उन्होंने स्वराज पार्टी की भी स्थापना मोतीलाल नेहरु और युवा हुसैन शहीद सुहरावर्दी के साथ मिलकर 1923 में की थी। ताकि वे अपने विचारो को लोगो के सामने ला सके।

उनके विचारो और उनकी महानता को उनके शिष्य आगे ले गए और विशेषतः सुभास चन्द्र बोस उनके ही विचारो पर चलने लगे थे।

उनके देशप्रेमी विचारो को देखते हुए उन्हें देशबंधु की संज्ञा दी गयी थी। वे भारतीय समाज से पूरी तरह जुड़े हुए थे और कविताये भी लिखते थे और अपने असंख्य लेखो और निबंधो से उन्होंने लोगो को प्रेरित किया था।

उन्होंने बसंती देवी (1880-1974) से विवाह किया था और उनकी तीन संताने भी हुई अपर्णा देवी (1898-1972), चिरंजन दास (1899-1928) और कल्याणी देवी (1902-1983)।

चित्तरंजन दास के साथ बसंती देवी ने भी स्वतंत्रता अभियान में सहायता की थी। उनकी भाभी उर्मिला देवी असहकार आन्दोलन में 1921 में कोर्ट अरेस्ट होने वाली पहली महिला थी।

सभी के प्रति जोश और आकर्षण के बल पर बसंती देवी भी स्वतंत्रता अभियान का जाना माना चेहरा बन चुकी थी। नेताजी सुभास चन्द्र बोस उन्हें माँ कहकर बुलाते थे।

जीवन के अंतिम दिन और मृत्यू

1925 में लगातार ज्यादा काम करते रहने की वजह से चित्तरंजन दास की सेहत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी थी और इसीलिए उन्होंने कुछ समय के लिये अलग होने ला निर्णय लिया और दार्जिलिंग में पर्वतो पर बने अपने घर में रहने लगे, जहाँ महात्मा गांधी भी अक्सर उन्हें देखने के लिये आते थे।

16 जून 1925 को ज्यादा बुखार होने की वजह से ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनके शव को ट्रेन से कलकत्ता ले जाने की उस समायी विशेष व्यवस्था की गयी थी।

कलकत्ता में उनका अंतिम संस्कार गांधीजी ने किया था और वहाँ उन्होंने कहा था  की; 

“देशबंधु देश के महानतम देशप्रेमियो में से एक थे… उन्होंने आज़ाद भारत का सपना देखा था… और भारत की आज़ादी के लिये ही वे बोलते थे और कुछ भी उनकी जिंदगी में नही था…. उनका दिल भी हिन्दू और मुसलमान में कोई भेदभाव नही करता था और साथ ही मै गोरो को भी इसमें शामिल करना चाहूँगा, किसी भी इंसान के साथ वे भेदभाव नही करते थे।”

हजारो लोग उनकी अंतिम यात्रा में उपस्थित थे और कलकत्ता के कोराताला महासमसान में उन्हें अग्नि दी गयी थी। अंतिम यात्रा में उपस्थित हजारो लोगो को देखकर ही हम इस बात का अंदाज़ा लगा सकते है की कितने लोग उनका सम्मान करते होंगे, यहाँ तक की लोगो ने तो उन्हें “बंगाल का बेताज बादशाह’ की पदवी भी दे रखी थी।

उनकी मृत्यु के बाद विश्वकवि रबीन्द्रनाथ ठाकुर ने उनके प्रति असीम शोक और श्रद्धा प्रकट करते हुए लिखा था की –

“एनेछिले साथे करे मृत्युहीन प्रान।
मरने ताहाय तुमि करे गेले दान।।”

देशबंधु की उपाधि से माने जाने वाले चित्तरंजन दास भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रभावी नेता थे। चित्तरंजन दास स्वभाव से ईमानदार और विनम्र थे।

अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को उन्होंने त्याग दिया। वे एक यथार्थवादी नेता थे। देश के प्रति उनके अटूट प्रेम के कारण ही उन्हें देशबंधु कहा जाता था। वे अपने सिद्धांतो के पक्के, सच्चे राष्ट्रभक्त और मानवतावादी धर्म के पक्षधर थे। भारतवर्ष इतिहास में उनके योगदान को हमेशा याद रखेंगा।

चित्तरंजन दास के जीवन से जुडी क्रमगत घटनाए

  • इंग्लंड के पार्लमेंट में चित्तरंजन दास ने भारतीय प्रतिनिधी के लिये आयोजित चुनाव के लिये दादाभाई नौरोजी का प्रचार किया जिसमें दादाभाई जित गयें।
  • इ.स. 1894 में चित्तरंजन दास ने कोलकता उच्च न्यायलय में वकीली की।
  • इ.स. 1905 में चित्तरंजन दास स्वदेशी मंडलकी स्थापना की।
  • इ.स. 1909 में अलीपुर बॉम्बे मामले में अरविंद घोष की और से वे न्यायलय में लढे। इसलिये अरविंद घोष निर्दोष छूट पायें।
  • इ.स. 1914 में ‘नारायण’ नाम से’ बंगाली भाषा का साप्ताहिक उन्होंने शुरु किया।
  • इ.स. 1917 में बंगाल प्रांतीय राजकीय परिषद के अध्यक्ष थे।
  • इ.स. 1921 और इ.स. 1922 में अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस के अध्यक्ष रहे।
  • चित्तरंजन दास ने मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय के साथ स्वराज्य पक्ष की स्थापना की।
  • ‘फॉरवर्ड’ दैनिक में वो लेख लिखने लगे, उन्होने ही इसका प्रकाशन किया।
  • इ.स. 1924 में वे कोलकता महापालिका कें अध्यक्ष हुये।

विशेषता: खुद की सब संपत्ति उन्होंने मेडिकल कॉलेज और स्त्रियाओ के अस्पताल के लिये दी। इसलिए लोग उनको ‘देशबंधू’ इस नामसे पहचानने लगे।

FAQs

Q. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के किस स्वतंत्रता सेनानी का बचाव वकील के तौर पर चित्तरंजन दास जी ने किया था? (Which Indian freedom fighter was saved by chittaranjan das as a lawyer?)

जवाब: अरविंद घोष।

Q. किस वजह से चित्तरंजन दास जी ने वकालत के पेशे को छोड दिया था? (Why Chittaranjan Das had resigned from lawyer profession?)

जवाब: असहकार आंदोलन के समर्थन हेतू चित्तरंजन दास जी ने वकालत पेशे से त्यागपत्र दिया था।

Q. भारतीय इतिहास मे किस नाम से चित्तरंजन दास प्रसिद्ध है? (By which name Chittaranjan Das is famous in Indian history?)

जवाब: देशबंधु।

Q. चित्तरंजन दास जी ने कौनसे राजनीतिक पार्टी (पक्ष) की स्थापना की थी? (Which party was established by Chittaranjan Das?)

जवाब: ‘स्वराज पार्टी’।

Q. कौनसे समाचार पत्र की शुरुवात चित्तरंजन दास जी ने की थी? (Which newspaper was started by Chittaranjan Das?)

जवाब: ‘फॉरवर्ड’ जिसका बादमे नाम बदलकर ‘लिबर्टी टू फाईट विथ ब्रिटीश राज’ रखा गया था।

Q. ‘राष्ट्रीय वकील’ के रूप मे किस भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की प्रसिद्धी देशभर मे फैल गई थी? (Which Indian freedom fighter was famous in India as a ‘National Lawyer’?)

जवाब: चित्तरंजन दास।

Q. किसके सहयोग से चित्तरंजन दास जी ने ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना की थी? (With whose collaboration did Chittaranjan Das established ‘Swaraj Party’?)

जवाब: पंडित मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू और हुसैन सुहारावर्दी।

Q. बंगाली भाषा मे किस साप्ताहिक की शुरुवात चित्तरंजन दास जी ने की थी? (Which weekly newspaper was started by Chittaranjan Das?)

जवाब: ‘नारायण’।

Q.कौनसे वर्ष चित्तरंजन दास जी की मृत्यू हुई थी? (On which year Chittaranjan Das was died?)

जवाब: साल १९२५।

Q. कुल कितनी संताने चित्तरंजन दास जी को हुई थी? उनके नाम क्या थे? (How many children’s were to Chittaranjan Das? What was the name of that children’s?)

जवाब:  ३, चिरंजन दास (पुत्र) इसके अलावा कल्याणी देवी और अपर्णा देवी (पुत्रियाँ)।

4 thoughts on “चित्तरंजन दास का जीवन परिचय”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top