चंद्रगिरी किला – Chandragiri Fort
जब कोई भी किला बनाया जाता है तो उसके भी पीछे कुछ ना कुछ इतिहास या कुछ रोचक कहानी छिपी होती है चंद्रगिरी किले के पीछे भी कुछ ऐसा ही दिलचस्प इतिहास छुपा हुआ है।
आन्ध्र प्रदेश के चंद्रगिरी किले का इतिहास – Chandragiri Fort History
चंद्रगिरी नाम का एक छोटासा गाव आन्ध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में आता है। इस छोटेसे गाव में सन 1000 में यादवराय ने एक किले का निर्माण करवाया था।
तीन शतको तक चंद्रगिरी यादव नायडू के नियंत्रण में था और सन 1367 में विजयनगर के कब्जे में चला गया। जब सलुव नरसिम्हा रायलू शासन आया तब चंद्रगिरी का महत्व अधिक बढ़ गया था।
विजयनगर साम्राज्य के महान राजा कृष्णदेवराय सबको पता है मगर उनके जीवन की कुछ घटनाये सभी को पता नहीं। एक ऐसी ही घटना जिसका सीधा सम्बन्ध इस चंद्रगिरी किला और राजा कृष्णदेवराय के बिच में है। बात तक की है जब राजा कृष्णदेवराय छोटे थे तो वो बड़े होने तक इसी चंद्रगिरी किले में ही रहते थे और उनके जिंदगी से जुडी एक ओर घटना इसी किले में घटी।
उनकी होनेवाली पत्नी से भी इसी किले में उनकी पहली बार मुलाकात हुई थी। वो दोनों पहली बार इसी किले में मिले थे।
विजयनगर साम्राज्य की चंद्रगिरी चौथी राजधानी थी और जब सुलतान ने पेनुकोंदा पे हमला कर दिया तो कृष्णदेवराय ने चंद्रगिरी को राजधानी बनाया था।
सन 1646 में चंद्रगिरी का किला गोलकोंडा के नियंत्रण में चला गया और बाद में मैसूर ने इसपर कब्ज़ा कर लिया।
सन 1792 से मगर इस किले पर किसी ने ध्यान नही दिया और धीरे धीरे सब लोग इस किले को भूलने लगे। चंद्रगिरी किला अब एक बडेसे पुरातात्विक संग्रहालय का रूप ले चूका है।
चंद्रगिरी किले की वास्तुकला – Architecture of Chandragiri Fort
यह किला पूरी तरह से विजयनगर की सुन्दर वास्तुकला में बनाया हुआ है। इस किले के बड़े बड़े और उचे उचे स्तम्भ हिन्दू वास्तुकला की याद दिलाते है। इस किले को बनाने में पत्थर, इट, चुना का इस्तेमाल किया गया लेकिन इसे बनाते वक्त किसी भी लकड़ी को इस्तेमाल में नहीं लाया गया।
तिरुपति में बनाये हुए इस 11 वी शताब्दी के चंद्रगिरी किले को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते है। यह किला यहाँ का आकर्षण का सबसे मुख्य स्थान है।
यह किला पूरी तरह से घने जंगल में होने के कारण ओर भी सुन्दर दीखता है साथ ही यहापर कोई भी ट्रेकिंग कर सकता है। यह किला पूर्व घाटी में थे स्थित है। इस किले की सबसे खास बात यह है की इस किले में राजा महल बनवाया गया है जो की अब पुरातात्विक संग्रहालय का हिस्सा बन चूका है।
इस किले के चारो तरफ़ से भगवान विष्णु और भगवान शिव के 800 से भी अधिक मंदिर है मगर अब सब मंदिरे पूरी तरह से तहस नहस हो चुके है। लेकिन आज भी राजा महल और राणी महल के कुछ अवशेष यहापर देखने को मिलते है। इस किले के नजदीक में ही स्वर्णमुखी नदी है और इस नदी का उद्गम यही से शुरू होता है।
चंद्रगिरी किले तक कैसे पहुचे ? – How to reach Chandragiri Fort?
रास्ते से: सभी तरह के वाहनों से किले तक आने के लिए रास्तो से बड़ी आसानी से पंहुचा जा सकता है। तिरुपति से राज्य मार्ग और राष्टीय मार्ग से पंहुचा जा सकता है। निजी वाहन और एपीएसआरटीसी की कई सारी बसेस से भी इस किले तक पंहुचा जा सकता है।
रेलगाड़ी से: देश के सभी शहरों से यहापर आने के लिए रेल की सुविधा की गयी है। तिरुपति रेलवे स्टेशन यहाँ से सबसे नजदीक में है और केवल 17 किमी की दुरी पर है।
हवाई जहाज से: तिरुपति हवाई अड्डे से आप इस किले पर काफी आसानी से पहुच सकते है। यह किला हवाई अड्डे से केवल 22 किमी की दुरी पर है। यहाँ पर आने के लिए बसेस की भी सुविधा है।
आंध्रप्रदेश के छोटेसे गाव का यह किला दिखने में काफी मनमोहक है। इस किले को देखने के लिए पर्यटक काफी दूर दूर से आते है।इस किले से जुडी एक सबसे खास बात यह है की इसके चारो तरफ़ कई सारे मंदिर है। लेकिन इन मंदिरों की संख्या कुछ कम नहीं।
अगर कोई इन मंदिरों की गिनती शुरू कर दे तो पूरा दिन भी कम पड़ जायेगा लेकिन मंदिर की गिनती ख़तम नहीं होती। इनमेसे अधिकतर मंदिर अब अवशेष बन चुके है।
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