चाणक्य की जीवनी

आचार्य चाणक्य जो कि विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे एक महान दार्शनिक, अर्थशास्त्री और राजनेता थे उन्होंने भारतीय राजनीतिक ग्रंथ, ‘ द अर्थशास्त्र’ लिखा था। इस ग्रंथ में उन्होंने संपत्ति, अर्थशास्त्र और भौतिक सफलता के संबंध में उस समय तक के लगभग हर पहलू को भारत में लिखा था। राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विकास के लिए किए गए उनके महत्वपूर्ण योगदान की वजह से उन्हें इस क्षेत्र का विद्धान और अग्रणी माना जाता है।

आचार्य चाणक्य के महान विचारों को अगर अपने जीवन में उतार लिया जाए तो वाकई हमारा जीवन सफल हो सकता है। आचार्य चाणक्य ने अपनी बुद्धिमत्ता और कुशाग्र विचारों से कूटनीति और राजनीति की बेहद सरल व्याख्या की है । भारतवर्ष में चाणक्य को एक समाज का सेवक और विद्वान माना जाता हैं।

चाणक्य की नीतियों से कई विशाल साम्राज्य भी स्थापित किए गए हैं आइये जानते हैं महान विद्धान चाणक्य के जीवन के बारे में और उनकी महानता के बारे में और उनके जीव के संघर्षों के बारे में कि वे कैसे गरीबी को पार कर इतने प्रखर विद्धान बने इसके साथ ही उनके अनमोल विचारों के बारे में भी हम आपको नीचे विस्तार से बताएंगे।

चाणक्य का जीवन परिचय | Chanakya Biography in Hindi

Chanakya Biography in Hindi

नाम (Name)चाणक्य
जन्म (Birthday)350 ईसा पूर्व (अनुमानित स्पष्ट नहीं है)
मृत्यु की तिथि (Death)275 ईसा पूर्व, पाटलिपुत्र, (आधुनिक पटना में) भारत
शैक्षिक योग्यता (Education)समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, दर्शन, आदि का अध्ययन।
वैवाहिक स्थितिविवाहित
पिता (Father Name)ऋषि कानाक या चैनिन (जैन ग्रंथों के अनुसार)
माता (Mother Name) चनेश्वरी (जैन ग्रंथों के अनुसार)

जन्म –

भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो कठिन से कठिन स्थितियों में भी अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहते हैं।”

ऐसे महान विचारों के प्रणेता महापंडित चाणक्य के जन्म के बारे में कुछ भी स्पष्ट उल्लेख नहीं है, फिर भी उनका जन्म बौद्ध धर्म के मुताबिक 350 ईसा पूर्व में तक्षशिला के कुटिल नामक एक ब्राह्मण वंश में हुआ था। उन्हें भारत का ‘मैक्यावलीभी कहा जाता है।

आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य के जन्म के बारे में अलग-अलग मतभेद हैं। वहीं कुछ विद्धान उन्हें कुटिल वंश का मानते हैं इसलिए कहा जाता है कि कुटिल वंश में जन्म लेने की वजह से उन्हें कौटिल्य के नाम से जाना गया। जबकि कुछ विद्धानों की माने तो वे अपने उग्र और गूढ़ स्वभाव की वजह सेत ‘कौटिल्य’ के नाम से जाने गए।

जबकि कुछ विद्धानों की माने तो इस महान और यशस्वी विद्धान का जन्म नेपाल की तराई में हुआ था जबकि जैन धर्म के अनुसार उनकी जन्मस्थली मैसूर राज्य स्थित श्रवणबेलगोला को माना जाता है।

जन्म स्थान को लेकर ‘मुद्राराक्षस‘ के रचयिता के अनुसार उनके पिता को चमक कहा जाता था इसलिए पिता के नाम के आधार पर उन्हें चाणक्य कहा जाने लगा। 

चाणक्य का जन्म एक बेहद गरीब ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होनें अपने बचपन में काफी गरीबी देखी यहां तक की गरीबी की वजह से कभी-कभी तो चाणक्य को खाना भी नसीब नहीं होता था और उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता था।

चाणक्य बचपन से क्रोधी और जिद्दी स्वभाव के थे उनके उग्र स्वभाग के कारण ही उन्होनें नन्द वंश का विनाश करने का फैसला लिया था। आपको बता दें कि चाणक्य शुरू से ही साधारण जीवन यापन करने में यकीन करते थे।

उनके बारे में कहा जाता है कि महामंत्री का पद और राजसी ठाट होते हुए भी इन्होंने मोह माया का फ़ायदा कभी नहीं उठाया। चाणक्य को धन, यश, मोह का लोभ नहीं था। कौटिल्य ने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे थे उनके जीवन के संघर्षों और उनकी नेक विचारों ने उन्हें एक महान विद्धान बनाया था।

शिक्षा-दीक्षा –

महान विद्धान चाणक्य की शिक्षा-दीक्षा प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय में हुई थी। वे बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी और एक होनहार छात्र थे उनके पढ़ने में गहन रूचि थी। वहीं कुछ ग्रंथों के मुताबिक चाणक्य ने तक्षशिला में शिक्षा ग्रहण की थी।

आपको बता दें कि तक्षशिला  एक उत्तर-पश्चिमी प्राचीन भारत में शिक्षण का प्राचीन केंद्र था। ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए, चाणक्य को अर्थशास्त्र, राजनीति, युद्ध रणनीतियों, दवा, और ज्योतिष जैसे कई  विषयों की अच्छी और गहरी जानकारी थी। वे इन विषयों के विद्धान थे। 

यह भी माना जाता है कि वे ग्रीक और फारसी भी जानते थे। इसके अलावा उन्हें वेदों और साहित्य का अच्छा ज्ञान था। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वे तक्षशिला में राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बन गए उसके बाद वे  सम्राट चंद्रगुप्त के भरोसेमंद सहयोगी भी बन गए थे।

वे घटनाएं जिन्होनें चाणक्य का जीवन ही बदल दिया –

चाणक्य एक कुशल और महान चरित्र वाले व्यक्ति थे इसके साथ ही वे एक महान शिक्षक भी थे। अपने महान विचारों और महान नीतियों से वे काफी लोकप्रिय हो गए थे उनकी ख्याति सातवें आसमान पर थी लेकिन इस दौरान ऐसी दो घटनाएं घटी की आचार्य चाणक्य का पूरा जीवन ही बदल गया।

  • पहली घटना भारत पर सिकंदर का आक्रमण और तात्कालिक छोटे राज्यों की ह्रार।
  • दूसरी घटना – मगध के शासक द्वारा कौटिल्य का किया गया अपमान।

ऊपर लिखी गईं ये दो घटनाएं उनके जीवन की ऐसी घटनाएं हैं जिनकी वजह से कौटिल्य ने देश की एकता और अखंडता की रक्षा करने का संकल्प लिया और उन्होनें शिक्षक बनकर बच्चों के पढ़ाने के बजाय देश के शासकों को शिक्षित करने और उचित नीतियों को सिखाने का फैसला लिया और वे अपने दृढ़ संकल्प के साथ घर से निकल पड़े।

आपको बता दें कि जब भारत पर सिकन्दर ने आक्रमण किया था उस समय चाणक्य तक्षशिला में प्रिंसिपल थे। ये उस समय की बात है जब तक्षशिला और गान्धार के सम्राट आम्भि ने सिकन्दर से समझौता कर लिया था।

चाणक्य ने भारत की संस्कृति को बचाने के लिए सभी राजाओं से आग्रह किया लेकिन उस समय सिकन्दर से लड़ने कोई नहीं आया। जिसके बाद पुरु ने सिकन्दर से युद्ध किया लेकिन वे हार गए। 

उस समय मगध अच्छा खासा शक्तिशाली राज्य था और उसके पड़ोसी राज्यों की इस राज्य पर ही नजर थी। जिसको देखते हुए देशहित की रक्षा के लिए विष्णुगुप्त, मग्ध के तत्कालीन सम्राट धनानन्द से सिकंदर के प्रभाव को रोकने के लिए सहायता मांगने गए।

लेकिन भोग-विलास एवं शक्ति के घमंड में चूर धनानंद ने चाणक्य के इस प्रस्ताव ठुकरा दिया। और उनसे  कहा कि  –

पंडित हो और अपनी चोटी का ही ध्यान रखो; युद्ध करना राजा का काम है तुम पंडित हो सिर्फ पंडिताई करो।

तभी चाणक्य ने नंद साम्राज्य का विनाश करने की प्रतिज्ञा ली।

चाणक्य और चन्द्रगुप्त –

चाणक्य और चंद्रगुप्त का गहरा संबंध है। चाणक्य चंद्रगुप्त के सम्राज्य के महामंत्री थे और उन्होनें ही चंद्रगुप्त का सम्राज्य स्थापित करने में उनकी मद्द की थी।

दरअसल  नंद सम्राज्य के शासक द्धारा अपमान के बाद चाणक्य अपनी प्रतिज्ञा को सार्थक करने के निकल पड़े। इसके लिए उन्होनें चंद्रगुप्त को अपना शिष्य बनाया। चाणक्य उस समय चंद्रगुप्त की प्रतिभा को समझ गए थे इसलिए उन्होनें चंद्रगुप्त को नंद सम्राज्य के शासक से बदला लेने के लिए चुना।

जब चाणक्य की चंद्रगुप्त मौर्य से मुलाकात हुई तब चंद्रगुप्त महज 9 साल के थे। इसके बाद चाणक्य ने अपने विलक्षण ज्ञान से चंद्रगुप्त को अप्राविधिक विषयों और व्यावहारिक तथा प्राविधिक कलाओं की शिक्षा दी।

वहीं आपको बता दें कि चाणक्य ने चंद्रगुप्त को चुनने का फैसला इसलिए भी लिया क्योंकि उस समय कुछ मुख्य शासक जातियां ही थी जिसमे शाक्य, मौर्य का प्रभाव ज्यादा था। वहीं चन्द्रगुप्त उसी गण के प्रमुख का पुत्र था। जिसके बाद चाणक्य ने उसे अपना शिष्य बना लिया, और उनके साथ एक नए सम्राज्य की स्थापना की।

नंद सम्राज्य का पतन और मौर्य सम्राज्य की स्थापना: 

शक्तिशाली और घमंड में चूर नंद वंश का राजा धनानंद जो कि अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करता था और जिसने यशस्वी और महान दार्शनिक चाणक्य का अपमान किया था जिसके बाद चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ मिलकर अपनी नीतियों से नंद वंश के पतन किया था।

आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद सम्राज्य के पतन के मकसद को लेकर कुछ अन्य शक्तिशाली शासकों के साथ गठबंधन बनाए थे।

आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य विलक्षण प्रतिभा से भरे एक बेहद बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति थे। उन्होंनें अपनी चालाकी से कुछ मनोरंजक युद्ध रणनीतियों को तैयार किया और वे बाद में उन्होनें मगध क्षेत्र के पाटलिपुत्र में नंदा वंश का पतन किया और जीत हासिल की थी।

वहीं नंदा सम्राज्य के आखिरी शासक की हार के बाद नंदा सम्राज्य का पतन हो गया इसके बाद उन्होनें चंदगुप्त मौर्य के साथ मिलकर एक नए सम्राज्य मौर्य सम्राज्यकी स्थापना की। चंद्र गुप्त मौर्य के दरबार में उन्होनें राजनीतिक सलाहकार बनकर अपनी सेवाएं दी।

मौर्य सम्राज्य के विस्तार में अहम भूमिका:

चाणक्य के मार्गदर्शन से मौर्य सम्राज्य के सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य गंधरा में स्थित जो कि वर्तमान समय अफगानिस्तान में, अलेक्जेंडर द ग्रेट के जनरलों को हराने के लिए आगे बढ़े। बुद्धिमान और निर्मम, चाणक्य ने अपनी महान नीतियों से चंद्रगुप्त के मौर्य साम्राज्य को उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से बदलने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चाणक्य की नीतियों से मौर्य सम्राज्य का विस्तार पश्चिम में सिंधु नदी से, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तक किया गया बाद में मौर्य साम्राज्य ने पंजाब पर भी अपना नियंत्रण कर लिया था इस तरह मौर्य सम्राज्य का विस्तार पूरे भारत में किया गया।

अनेक विषयों के जानकार और महान विद्धान चाणक्य ने भारतीय राजनैतक ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ लिखा जिसमें भारत की उस समय तक की आर्थिक, राजनीतिक और समाजिक नीतियों की व्याख्या समेत अन्य महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी दी गई है।

ये ग्रंथ चाणक्य ने इसलिए लिखा था ताकि राज्य के शासकों को इस बात की जानकारी हो सके कि युद्ध, अकाल और महामारी के समय राज्य का प्रबंधन कैसे किया जाए।

जैन ग्रंथों में वर्णित एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, चाणक्य सम्राट चंद्रगुप्त के भोजन में जहर की छोटी खुराक को मिलाते थे जिससे मौर्य वंश के सम्राट की दुश्मनों द्वारा संभावित जहरीले प्रयासों के खिलाफ मजबूती बन सके और वे अपने प्राणों की रक्षा कर सकें।

वहीं इस बात की जानकारी सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को नहीं थी इसलिए उन्होनें अपना खाना अपनी गर्भवती रानी दुध्रा को खिला दीया। आपको बता दें कि उस समय रानी के गर्भ के आखिरी दिन चल रहे थे। वे कुछ दिन बाद ही बच्चे को जन्म देने के योग्य थी।

लेकिन रानी द्धारा खाए गए भोजन में जहर ने जैसे ही काम करना शुरु किया वैसे ही रानी बेहोश हो गई और थोडे़ समय बाद ही उनकी मौत हो गई। जब इस बात की जानकारी चाणक्य को हुई तो उन्होनें रानी के गर्भ में पल रहे नवजात बच्चे को बचाने के लिए अपनी बुद्धिमान नीति का इस्तेमाल कर अपना पेट खोल दिया और बच्चे को निकाला।

इस बच्चे का नाम बिंदुसारा रखा गया जिसे बड़ा होने पर मौर्य सम्राज्य का उत्तराधिकारी भी बनाया गया। वहीं चाणक्य ने कुछ सालों बाद बिंदुसारा के राजनैतिक सलाहकार के रूप में भी काम किया।

मृत्यु –

275 ईसा पूर्व में चाणक्य की मृत्यु हो गई। चाणक्य की मौत भी उनके जन्म की तरह कई रहस्यों से घिरी हुई है। ये तो स्पष्ट है कि महान दार्शनिक और विद्धान में अपना लंबा जीवन व्यतीत किया था लेकिन इस बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है कि उनकी मौत आखिर कैसे हुई।

एक पौराणिक कथा के मुताबिक वे जंगल में खाना-पीना त्याग कर अपना शरीर त्याग दिया था।

जबकि अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिंदुसारा के शासनकाल के दौरान राजनीतिक षड्यंत्र की वजह से महानी विद्धान चाणक्य की मौत हो गई थी।

सम्मान

विलक्षण प्रतिभा से धनी चाणक्य के सम्मान नई दिेल्ली में राजनयिक एन्क्लेव का नाम चाणक्य के नाम पर चाणक्यपुरी रखा गया है। इसके अलावा भी कई अन्य जगहों और संस्थानों के नाम भी चाणक्य के नाम पर रखे गए हैं। चाणक्य कई टेलीविजन सीरीज और किताबों के भी विषय है।

एक विकसित राज्य के लिए अवधारणा:

महान दार्शनिक और विद्धान चाणक्य ने कुशल राज्य की स्थापना करने के लिए अपने विचार व्यक्त किए थे उनकी अवधारणा के मुताबिक एक कुशल राज्य के लिए  राजा और प्रजा के बीच पिता और पुत्र जैसा सम्बन्ध होना चाहिए

कौटिल्य के राज्य की नीति में यह कहा है कि,  राज्य का निर्माण तब हुआ जब ” मत्स्य न्याय ” के कानून से तंग आकर लोगो ने मनु को अपना राजा चुना और अपनी खेती का 6वां भाग और अपने आभूषण का 10वां भाग राजा को देने को कहा। राजा इसके बदले में प्रजा की रक्षा और समाज कल्याण का उतरदायित्व संभालता था।

चाणक्य के राज्य के शासक को लेकर विचार:

विलक्षण प्रतिभा के धनी और महान विद्धान चाणक्य, अपने महान विचारों और ज्ञान के बल पर पर कहत थे कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख होना चाहिए और प्रजा के हित में ही राजा का हित निहित होना चाहिए।

इसके लिए राज्य के शासक को इसके लिए पहले ही शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि वो एक अच्छे राज्य का निर्माण करने योग्य बन सके और राज्य का विकास कर सके।

चाणक्य के मुताबिक एक अच्छे शासक बनने की प्रक्रिया मुंडन संस्कार से शुरू कीजानी चाहिए और सबसे पहले राज्य के शासक को  वर्णमाला और अंकमाल का अभ्यास कराना चाहिए वहीं जब शासक को इसकी समझ हो जाए तब उसे दंडनीति का ज्ञान कराया जाना चाहिए। तभी वह एक कुशल शासक बन सकता है। चाणक्य ने अपनी इन्हीं नीतियों से  चंद्र गुप्त मौर्य को बाल्यकाल से ही एक अच्छे शासक के रुप में शिक्षित किया था।

वहीं चाणक्य से शिक्षा लेकर और उनके कुशल मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त ने सिकंदर को पराजित ही नही किया बल्कि अपने कार्यकौशल और बौद्धिक कौशल से एक अच्छे शासक बने और चंद्रगुप्त के मौर्य सम्राज्य का वर्णन इतिहास के पन्नो पर भी अंकित किया गया है ।

 चाणक्य नीति के मुताबिक एक कुशल शासक के गुण:

  • चाणक्य नीति के मुताबिक राज्य का शासक कुलीन होना चाहिए तभी वह एक अच्छे राज्य का निर्माण करने में सक्षम हो सकेगा। अच्छे शासक के बिना अच्छे राज्य का निर्माण नहीं हो सकता है।
  • किसी भी राज्य के शासक का शारीरिक रूप से ठीक होना बेहद जरूरी है क्योंकि अगर राजा स्वस्थ होगा तभी वे अपनी प्रजा का अच्छे से ध्यान रख सकेगा।
  • चाणक्य नीति के मुताबिक एक राज्य के शासक को हमेशा अपने प्रजा के हितों का ध्यान रखना चाहिए और उसके लिये लड़ना चाहिए।
  • चाणक्य के मुताबिक एक राज्य के शासक को काम, क्रोध लोभ, मोह और माया से दूर रहना चाहिए।
  • राज्य के शासक को निडर राज्य का रक्षक और बलवान होना चाहिए।

राज्य को लेकर कथन

“जिस प्रकार दीमक लगी हुई लकड़ी जल्दी नष्ट हो जाती है और उस प्रकार राज्य के शासक के अशिक्षित होने पर राज्य का कल्याण नहीं कर सकता”

चाणक्य नीति के मुताबिक राज्य के 7 सूत्र:

चाणक्य ने राज्य को 4 हिस्सों में बांटा हैं जो कि निम्नलिखित हैं –

  1. भूमि
  2. जनसंख्या
  3. सरकार
  4. संप्रभुता

चाणक्य ने राज्य के तत्वों की तुलना मानव शरीर से की है:

  1. राजा: राजा, राज्य का प्रथम नागरिक होता हैं और उसको कुलीन, बुद्दिमान, बलवान और युद्ध – कला में आगे होना चाहिए. ताकि एक अच्छे राज्य का निर्माण हो सके और राज्य की प्रजा का विकास हो सके।
  2. मंत्री: मंत्री शासक की आंख होते है जैसे आंख के बिना मनुष्य के शरीर का होना बेकार है वैसे ही चाणक्य ने अपनी नीति द्धारा राज्य में मंत्री के महत्व को समझाया इसके साथ ही राज्य का मंत्री ईमानदार, चरित्रवान होना चाहिए।

“एक पहिए की गाड़ी की भांति राजकाज भी बिना सहायता से नही चलाया जा सकता इसलिए राज्य के हित में सुयोग्य अमात्यो की नियुक्ति करके उनके परामर्श का पालन होना चाहिए।”

  1. जनपद: चाणक्य ने अपने विद्धन्त नीतियों से जनपद को मानव शरीर का तीसरा अंग बताया और कहा कि जनपद राज्य की जांघ और पैर होते है और जिस पर राज्य का अस्तित्व टिका रहता हैं।

जैसे जांघ पर पैर के बिना मानव शरीर का संरचना बेकार है वैसे ही जनपद के बिना राज्य का निर्माण अधूरा है इसलिए एक शासक को राज्य के जनपद के विकास  पर उचित ध्यान देना चाहिए। वहीं कौटिल्य के मुताबिक एक जनपद की स्थापना ऐसी होनी चाहिए, जहां यथेष्ठ अन्न की पैदावार हो। और मेहनती किसान हो जिससे अच्छी फसल की पैदावार हो और अच्छे और शुद्ध स्वभाव वाले लोग हों।

  1. दुर्ग (किला): हर राज्य में ऐतिहासिक किले का निर्माण किया जाता है जिससे किसी भी राज्य की पहचान होती है। महान दार्शनिक और बुद्धिमान चाणक्य ने किले को राज्य की बांहे बताया है जिसका काम राज्य की रक्षा के लिए होता है और जो युद्ध के समय राज्य को बचाने में उसकी मद्द करता है।

चाणक्य ने इसमे जल, पहाड़, जंगल और मरुस्थल आदि को शामिल किया हैं। इसके साथ ही चाणक्य ने चार प्रकार के दुर्ग की व्याख्या की है। जो कि इस प्रकार है –

  • औदिक दुर्गइस दुर्ग के चारों ओर पानी भरा होता है।
  • पार्वत दुर्ग – इसके चारों ओर पर्वत या चट्टानें होती हैं।
  • धान्वन दुर्ग – इसके चारों ओर ऊसर भूमि होती हैं जहां न जल न घास होती है।
  • वन दुर्ग – इनके चारो ओर वन एवं दलदल पाए जाते हैं।
  1. राजकोष: बुद्धिजीवी चाणक्य ने राजकोष को राज्य के शासक के मुख के समान बताया क्योंकि कोष यानि की पूंजी जिसके बिना किसी राज्य की कल्पना भी नहीं की जाती है। इसके साथ ही राज्य को चलाने के लिए और दूसरे देश से युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं से बाहर निकलने के लिए कोष की जरूरत होती है। कौटिल्य ने इसकी महत्ता को स्वीकारते हुए कहा कि-

धर्म, अर्थ और काम इन तीनों में से अर्थ सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है या यूं कहा जाए कि अर्थ दोनों का आधार स्तंभ है।

  1. सेना: कई विषयों के जानकार और महान बुद्धिमान चाणक्य ने सेना को राज्य का सिर बताया है और कहा कि राज्य की रक्षा में बल और सेना का अहम रोल होता है.
  2. मित्र: राज्य की मानव शरीर से तुलना करते हुए चाणक्य ने दोस्त और मित्रों के राज्य के कान बताया है और कहा कि जब राज्य किसी के खिलाफ युद्ध करता है तो उस समय दोस्त ही मद्द करते हैं। इसके साथ ही कौटिल्य ने राज्य के विकास के लिए भी मित्रों की महत्वता की व्याख्या की है। कौटिल्य के मुताबिक मित्र ऐसा होना चाहिए जो वंश परंपरागत हो, उत्साह आदी शक्तियों​ से युक्त तथा जो समय पर सहायता कर सके।

चाणक्य नीति के मुताबिक राज्य के काम:

महान दार्शनिक, समाजसेवी, अर्थशास्त्र और राजनीतिक शास्त्र  के विद्धान ने राज्य को सामाजिक जीवन में सर्वश्रेष्ठ माना हैं। चाणक्य के मुताबिक राज्य का काम केवल शांति और सुरक्षा तक ही सीमित नहीं है बल्कि राज्य के विकास में भी ध्यान देना चाहिए। 

चाणक्य के मुताबिक किसी भी राज्य में सुरक्षा सम्बन्धी काम, स्वधर्म का पालन, सामाजिक काम समेत जनकल्याण के लिए काम होते रहना चाहिए ताकि एक विकसित राज्य का निर्माण हो सके और इसका फायदा वहां की जनता को मिल सके।

कौटिल्य ने कहा है कि –

बल ही सत्ता और अधिकार है. इन साधनों के द्वारा साध्य ही प्रसन्नता है

विष्णुगुप्त की विदेश नीति:

विष्णुगुप्त कहलाए जाने वाले चाणक्य की विदेश नीति नीचे दी गई हैं जो कि इस प्रकार हैं –

  1. संधि: महान विद्धान चाणक्य ने अपनी विदेश नीति में संधि को महत्वपूर्ण जगह दी है उन्होनें संधि कर शत्रु को कमजोर बनाने की बात कही है।

चाणक्य के मुताबिक राज्य और देश में शांति के लिये दूसरे देश के राजा या शासक के साथ संधि की जाती है जो ज्यादा शक्तिशाली हो. जिसका मतलब शत्रु को कमजोर बनाना हैं।

  1. विग्रह : आचार्य चाणक्य ने अपनी विदेश नीति में कहा है कि विग्रह का मतलब शत्रु के खिलाफ रणनीति बनाना है।
  2. यान : आचार्य चाणक्य ने अपनी विदेश नीति में युद्ध घोषणा किए बिना युद्ध की तैयारी करना भी शामिल किया है।
  3. आसन : चाणक्य ने अपनी विदेश नीति में तटस्थता की नीति का पालन करने को भी शामिल किया है।
  4. आत्मरक्षा: चाणक्य की विदेश नीति के मुताबिक किसी राज्य का राजा अपनी आत्मरक्षा के लिए किसी दूसरे राजा से मदद मांग सकता है।
  5. दौदिभाव: एक राजा से शांति की संधि करके अन्य के साथ युद्ध करने की नीति करना.

अनमोल विचार

  1. ऋण, शत्रु और रोग को कभी छोटा नही समझना चाहिए और हो सके तो इन्हें हमेसा समाप्त ही रखना चाहिए।
  2. आलसी मनुष्य का न तो वतर्मान का पता होता है न भविष्य का ठिकाना। – चाणक्य
  3. भाग्य भी उन्ही का साथ देता है जो कठिन से कठिन स्थितियों में भी अपने लक्ष्य के प्रति अडिग रहते है।
  4. नसीब के सहारे चलना अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर है और ऐसे लोगो को बर्बाद होने में वक्त भी नही लगता है।
  5. जो मेहनती है वे कभी गरीब नही हो सकते है और जो लोग भगवान को हमेसा याद रखते है। उनसे कोई पाप नही हो सकता है क्यूकी दिमाग से जागा हुआ व्यक्ति हमेसा निडर होता है।
  6. अच्छे आचरण से दुखो से मुक्ति मिलती है विवेक से अज्ञानता को मिटाया जा सकता है और जानकारी से भय को दूर किया जा सकता है।
  7. संकट के समय हमेसा बुद्धि की ही परीक्षा होती है और बुद्धि ही हमारे काम आती है।
  8. अन्न के अलावा किसी भी धन का कोई मोल नही है और भूख से बड़ी कोई शत्रु भी नही है।
  9. विद्या ही निर्धन का धन होता है और यह ऐसा धन है जिसे कभी चुराया नही जा सकता है और इसे बाटने पर हमेसा बढ़ता ही है।
  10. किसी भी कार्य को करने से पहले खुद से ये 3 प्रश्न जरुर पूछे – 1 मै यह क्यों कर रहा हु, 2 –इसका क्या परिणाम होगा 3- क्या मै इसमें सफल हो जाऊंगा. अगर सोचने पर आपके प्रश्नों के उत्तर मिल जाए तो समझिये आप सही दिशा में जा रहे है।
  11. फूलो की सुगंध हवा से केवल उसी दिशा में महकती है जिस दिशा में हवा चल रही होती है, जबकि इन्सान के अच्छे गुणों की महक चारो दिशाओ में फैलती है।
  12. उस स्थान पर एक पल भी नही ठहरना चाहिए जहा आपकी इज्जत न हो, जहा आप अपनी जीविका नही चला सकते है जहा आपका कोई दोस्त नही हो और ऐसे जगह जहा ज्ञान की तनिक भी बाते न हो।
  13. जो व्यक्ति श्रेष्ट होता है वो सबको ही अपने समान मानता है।
  14. शिक्षा ही हमारा सबसे परम मित्र है शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है।
  15. दुसरे व्यक्ति के धन का लालच करना नाश का कारण बनता है।
  16. व्यक्ति हमेशा हमे गुणों से ऊचा होता है ऊचे स्थान पर बैठने से कोई व्यक्ति ऊचा नही हो जाता है।
  17. हमेसा खुश रहना दुश्मनों के दुखो का कारण बनता है और खुद का खुश रहना उनके लिए सबसे सजा है।
  18. अपने गहरे राज किसी से प्रकट नही करना चाहिए क्यूकी वक्त आने पर हमारे यही राज वे दुसरे के सामने खोल सकते है।
  19. एक पिता के रूप में बच्चो को हमेसा अच्छे और बुरे की सीख जरुर देनी चाहिए क्यूकी हर तरह से समझदार व्यक्ति ही समाज में सम्मानित होता है।
  20. बुद्धिमान व्यक्ति यदि किसी मुर्ख व्यक्ति को समझाने का प्रयास कर रहा है इसका मतलब है वह खुद अपने लिए परेशानी बनने की तैयारी कर रहा है।

महान दार्शनिक और विलक्षण प्रतिभा के धनी आचार्य चाणक्य एक प्रखर विद्धान, दूरदर्शी तथा दृढसंकल्पी, अर्थशास्त्र, राजनीति के ज्ञाता और  भारतीय इतिहास के प्रखर कुटनीतिज्ञ माने जाते है, महान मौर्य वंश की स्थापना का वास्तविक श्रेय कूटनीतिज्ञ चाणक्य को ही जाता है।

चाणक्य का नाम राजनीती, राष्ट्रभक्ति एवं जन कार्यों के लिए इतिहास में हमेशा अमर रहेगा,  चाणक्य भारत के इतिहास के एक अत्यन्त सबल और अदभुत व्यक्तित्व हैं। 

79 thoughts on “चाणक्य की जीवनी”

  1. Chankya ke barabar ka koi bhi ensan abhi paida nahi hua hai air n sayad phir kabhi hoga unke bare men Jo ap ne jankari do achha hai Lenin puri nahi hai bhagwan ko hamne dekha nahi Lekin Jo chankya gee ko dekhe honge sayad bhagwan hi honge hame dukh es bat José name pujna chahiye use hum use him bhul chuke hain kaun as dharti pe hai Jo apni Sikh chain chorkar desh hit manaw Kalgan me lava de ek khas bat agar unki janm bhumi bhart me kahi dusari jagah ki hoti to pakka tha Gandhi gee she uppar hote es mahan atma ko bhi aaj ke rajnneta bihari hone ka thappa lava deye bahut sarm ki bat hai jay, chankya guru ,jay .magadh ,jay.Bihar dhanya hamari dharti

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