भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और शहीद-ए-आजम के रूप में विख्यात भगत सिंह ने महज 23 साल की उम्र में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी। भगत सिंह नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले सच्चे देश भक्त थे। इन्होंने हर भारतीय के दिल में देश प्रेम की भावना विकसित की।
गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए भगत सिंह द्धारा किए गए त्याग और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
शहीद-ए-आजम भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी थे, जो देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसे के फंदे पर चढ़ गए थे। भगत सिंह की शहादत उस समय हुई थी, जब देश को क्रान्ति के सुनामी की सख्त जरूरत थी और वहीं यही सुनामी अंग्रेजों के शासन के तबाही का कारण बनी उनकी शहादत से ना केवल देश के युवाओं में बल्कि बच्चे-बच्चे में अंग्रेजों के खिलाफ रोष भर गया था।
यही नहीं भारत की आजादी के समय भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश की रक्षा की लिए आगे आने के लिए प्रेरित करते थे। महान क्रांतिकारी भगत सिंह का अल्प जीवन भी वाकई प्रेरणा देने वाला है, जिन्होंने अपने बेहद कम समय के ही जीवनकाल में अटूट संघर्ष देखा था।
आज हम अपने इस लेख में इस महान क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन के बारे में बताएंगे जिनका नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अमर है। उनके नाम से ही अंग्रेज डर जाते थे और उनकी पैरों तले जमीन खिसक जाती थी। जिनका कहना था कि –
लिख रहा हूं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा।
मेरे लहू का एक एक कतरा इन्कलाब लाएगा।।
भगतसिंग की जीवनी – Bhagat Singh Biography in Hindi
नाम (Name) | सरदार भगत सिंह |
जन्म (Birthday) | 27 सितम्बर 1907 |
जन्मस्थान (Birthplace) | बंगा, जरंवाला तहसील, पंजाब, ब्रिटिश भारत, (अब पकिस्तान में) |
माता (Mother Name) | विद्यावती कौर |
पिता (Father Name) | सरदार किशन सिंह सिन्धु |
मृत्यु (Death) | 23 मार्च 1931, लाहौर |
विवाह (Wife Name) | विवाह नही किया। |
महान क्रांतिकारी भगत सिंह का प्रेरक वाक्य;
“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है”
जन्म, परिवार और प्रारंभिक जीवन –
महान क्रांतिकारी और सच्चे देश भक्त भगत सिंह पंजाब के जंरवाला तहसील के एक छोटे से गांव बंगा में 27 सितंबर 1907 को जन्मे थे। वह सिख परिवार से तालोक्कात रखते थे। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था।
आपको बता दें कि जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ था, उस समय इनके पिता किशन सिंह जी जेल में थे। भगतसिंह बचपन से भी आक्रमक स्वभाव के थे। बचपन में वे अनोखे खेल खेला करते थे। जब वह 5 साल के थे तो अपने साथियों को दो अलग-अलग ग्रुप में बांट देते थे और फिर आपस में एक-दूसरे पर आक्रमण कर युद्ध का अभ्यास करते थे।
वहीं भगतसिंह के हर काम में उनके वीर, धीर और निर्भीक होने का प्रमाण मिलता है। भगत सिंह अपने बचपन से ही हर किसी को अपनी तरफ आर्कषित कर लेते थे।
वहीं एक बार जब भगत सिंह अपने पिता के मित्र से मिले तो वे भी इनसे अत्याधित प्रभावित हुए और प्रभावित होकर सरदार किशन सिंह से बोले कि यह बालक संसार में अपना नाम रोशन करेगा और देशभक्तों में इसका नाम अमर रहेगा। और आगे चलकर यही हुआ।
आपको बता दें कि भगत सिंह ने बचपन से ही अपने परिवार में देश भक्ति की भावना देखी थी। अर्थात उनका बचपन क्रांतिकारियों के बीच बीता था, इसलिए बचपन से ही भगत सिंह के अंदर देश प्रेमी का बीज बो दिया था। भगत सिंह के बारे में यह भी कहा जाता है उनके खून में ही देश भक्ति की भावना थी।
Family Tree
शहीद भगत सिंह के परिवार ने भी भारत की आजादी की लड़ाई के लिए कई बड़ी कुर्बानियां दी है। भगत सिंह के चाचा का नाम सरदार अजीत सिंह था जो कि एक जाने-माने क्रांतिकारी थे, जिनसे अंग्रेज भी डरते थे। दरअसल उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था।
भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह ने अंग्रेजी हुकुमत से खिलाफत की थी, जिससे वे अंग्रेजी सरकार की आंख की किरकिरी बन गए थे। इसीलिए सरकार उनको किसी भी तरह से खत्म करना चाहती थी।
लेकिन अंग्रेजी सरकार की इस चाल को अजीत सिंह ने भाप लिया था और वह देश छोड़कर इरान चले गए और वह वहां से भी अपने देश की आजादी के लिए लड़ते रहे।
इन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन भी बनाई थी। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा शामिल थे। अपने चाचा अजीत सिंह का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा था और उन्हीं से उनके अंदर देशप्रेम की भावना जागृत हुई थी।
हम आपको यह भी बता दें कि भगत सिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम ‘भागो वाला’ रखा था। जिसका मतलब होता है ‘अच्छे भाग्य वाला’। बाद में उन्हें ‘भगतसिंह’ कहा जाने लगा।
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह पर करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय का भी काफी प्रभाव पड़ा था। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगतसिंह के मन पर गहरा प्रभाव डाला था।
इस हत्याकांड में कई बेकसूर भारतीय मारे गए थे और कई लोगों ने अपना परिवार खो दिया था जिसे देख भगत सिंह के मन में अंग्रेजी शासकों के खिलाफ भारी रोष पैदा हो गया था और उसी वक्त से वह भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाने के बारे में सोचने लगे थे।
पढ़ाई-लिखाई –
देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह जी के पिता ने सरदार किशन सिंह सिंधु ने शुरुआत में अपने बेटे का दाखिला दयानन्द एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करवाया था। आपको बता दें कि भगत सिंह बचपन से ही बेहद बुद्धिमान और कुशाग्र बुद्धि के थे।
उन्होंने अपनी 9वीं तक की परीक्षा डी.ए.वी. स्कूल से पास की है। इसके बाद साल 1923 में उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। वहीं इसके बाद उन्होनें अपनी आगे की ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए लाहौर के नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया था।
उसी दौरान उनके परिवार वाले उनकी शादी की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन शहीद-ए-आजम ने अपनी शादी के प्रस्ताव को यह कर ठुकरा दिया था कि यदि “मैं आजादी से पहले विवाह करूँगा, तो मौत मेरी दुल्हन होगी” वहीं इसके बाद उनके माता – पिता ने उनपर शादी करने के लिए दबाव डालना बंद कर दिया था।
और फिर, वे इसके बाद लाहौर से वापस कानपुर आ गए थे। उस दौरान जलियाँ वाला बाग़ हत्या कांड से भगत सिंह को गहरा सदमा पहुंचा था और इसके बाद उनके मन में अंग्रेजों द्धारा किये गए आत्याचार के खिलाफ विद्राह ने जन्म ले लिया था।
इसके बाद भगत सिंह पर देश की आजादी का जूनून इस कदर सवार हो गया था कि उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाये गए असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और अपना भरपूर योगदान दिया था।
भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे, और गांधी जी के कहने पर ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे।
लेकिन बाद में “चौरी – चौरा काण्ड” (Chauri Chaura incident) में क्रांतिकरियों द्वारा पुलिस चौकी में आग लगा देने की वजह से और अन्य हिंसात्मक गतिविधियों की वजह से गांधी जी ने इस आन्दोलन को वापस ले लिया क्योंकि गांधी जी शांति से आजादी की लड़ाई लड़ना चाहते थे।
वहीं आन्दोलन वापस लेने की वजह से भगत सिंह काफी दुखी हो गए थे और उन्होंने महात्मा गांधी की अहिंसावादी बातों को छोड़ कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने कर ली थी।
सुखदेव से मुलाकात –
सरदार भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कॉलेज से B.A. की पढ़ाई कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात सुखदेव, भगवती चरन समेत अन्य कई लोगों से हुई। और फिर उनकी सुखदेव से गहरी दोस्ती हो गई।
और उस समय आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर थी। वहीं देशप्रमी भगत सिंह भी बाद में पूरी तरह इस लड़ाई में कूद पड़े थे और देश की स्वतंत्रता के लिए खुद का जीवन समर्पित कर दिया था।
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और क्रांतिकारी गतिविधियां –
सच्चे देश भक्त सरदार भगत सिंह के मन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की भावना तो तभी से भड़क उठी थी जब से जलियांवाला हत्याकांड, में कई बेकसूर भारतीयों की मौत हो गई थी।
आपको बता दें कि यह वह दौर था जब अंग्रेज शासकों का भारतीयों के खिलाफ अत्याचार बढ़ रहा था और देश की हालत बेहद बुरी हो गई थी और यही वह समय भी था जब हर कोई गुलाम भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद करवाना चाहता था।
यह सब देखकर भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खुद को स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह समर्पित कर दिया।
देश की आजादी के लिए भगत सिंह देश के सभी युवाओं को जागरूक करना चाहते थे और इस लड़ाई के लिए उनके अंदर जोश भरना चाहते थे, लेकिन हर युवा तक सन्देश पहुंचाने के लिए उन्हें किसी माध्यम की जरूरत थी।
इसके लिए भगत सिंह ने लाहौर में “कीर्ति किसान पार्टी” (KIRTI KISAN PARTY) ज्वाइन कर ली और वे अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए किसान कीर्ति पार्टी द्दारा प्रकाशित मैगजीन के लिए काम करने लगे।
शुरुआत में भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रामक लेख लिखे और पंपलेट छपवाए और ज्यादा से ज्यादा लोगों को बांटे जिससे वह अंग्रेज सरकार की भी नजरों में चढ़ गए थे।
कीर्ति मैग्जीन के माध्यम से भगत सिंह अपना संदेश तमाम युवाओं तक पहुंचाने लगे, वहीं इसी का युवाओं पर इतना प्रभाव हुआ कि कई युवा भारतीयों ने स्वतंत्रता की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
आपको बता दें कि भगत सिंह एक बहुत अच्छे लेखक भी थे और मैगजीन के अलावा वह पंजाबी उर्दू पेपर के लिए भी लेख लिखा करते थे।
भारत को स्वतंत्रता दिलवाने का उद्देश्य लिए सरदार भगत सिंह ने 1925 में यूरोपियन नेशनलिस्ट मूवमेंट के दौरान “नौजवान भारत सभा” (Naujawan Bharat Sabha) पार्टी का गठन किया, इसके वह सेक्रेटरी थे।
HSRA पार्टी का गठऩ –
उस समय देश में हिंसात्मक घटनाएं जन्म ले रही थी और अंग्रेजों का अत्याचार भारतीयों के खिलाफ बढ़ रहा था। उसी दौरान काकोरी कांड में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” के राम प्रसाद बिस्मिल समेत 4 क्रांतिकारियों को फांसी और अन्य 16 को जेल की सजा सुना दी गई जिसका भगत सिंह पर गहरा सदमा पहुंचा था।
इसके बाद वे इतने ज्यादा बेचैन हो गए थे कि उन्होंने चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर दोनों पार्टियों के विलय की योजना बनाई थी।
इसके बाद सितंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज़ शाह कोटला मैदान में एक गुप्त बैठक हुई। जिसमें भगत सिंह की नौजवान भारत सभा के सभी सदस्यों का विलय “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एस्सोसिएशन” में किया गया।
और काफी विचार-विमर्श के करने के बाद सभी की सहमति से पार्टी का नया नाम “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन – Hindustan Socialist Republican Association (HSRA)” रखा गया। आपको बता दें कि “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)” एक मौलिक पार्टी थी जिसमें भारत की आजादी के महानायक लाला लाजपत राय भी थे।
साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय की मौत का बदला –
30 अक्टूबर साल 1928 में ब्रिटिश सरकार द्धारा साइमन कमीशन के भारत आने पर इसके बहिष्कार के लिये देश में कई जगह प्रदर्शन हुए। दरअसल साइमन कमीशन भारत में संविधान की चर्चा करने के लिए बनाया गया एक कमीशन था, जिसके पैनल में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया गया।
जिसके चलते इसका विरोध किया जा रहा था। वहीं इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाले भारतीयों पर अंग्रेजी सरकार ने लाठी चार्ज करवा दिया था और इसी लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत राय जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनकी मौत हो गई।
जिसके बाद भगत सिंह का अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया क्योंकि भगत सिंह लाला लाजपत राय जी से बहुत प्रभावित थे और इसके बाद उन्होंने और उनकी पार्टी ने भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय जी के मौत का बदला लेने का ठान लिया था।
इसके बाद भगत सिंह जी ने लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए अपने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जेपी सांडर्स को मारने की गुप्त योजना बनाई लेकिन यह योजना ठीक तरीके से अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।
दरअसल भगत सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर भूल से सांडर्स की जगह पुलिस अधिकारी स्कॉट को मार दिया। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उनको ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया।
और फिर वह खुद को बचाने के लिए लाहौर से भाग निकले, लेकिन उन्होंने खुद को बचाने के लिए बाल और दाढ़ी कटवा दी, जो कि उनके सामाजिक, धार्मिकता के खिलाफ थी। लेकिन भगत सिंह का मकसद देश को आजाद करवाना था।
सबक सिखाने के लिए ब्रिटिश सरकार की असेम्बली पर किया हमला –
भारत की आजादी के महानायक भगत सिंह कार्ल मार्क्स के सिद्धान्तों से अत्याधिक प्रभावित थे और वे समाजवाद के पक्के पोषक भी थे। इसीलिए वो पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों पर हो रहे शोषण की नीति के खिलाफ थे।
वहीं उसी दौरान अंग्रेजी हुकूमत और उनके नुमाईन्दों द्वारा मजदूरों पर अत्याचार करना बढ़ता जा रहा था। वहीं उनकी पार्टी मजदूरों के लिए बनी इन नीतियों के खिलाफ थी और मजदूर विरोधी ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का मुख्य मकसद था।
उसी दौरान यह सभी चाहते थे कि अंग्रेजी शासन को इस बात का पता चलना चाहिए कि हिन्दुस्तान की जनता के दिल में अंग्रेजों के बढ़ रहे अत्याचार और उनकी नीतियों के खिलाफ भारी रोष है। वहीं ऐसा करने के लिए उनकी पार्टी ने दिल्ली की केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेंकने का प्लान बनाया।
वहीं इस दौरान चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ये सब मिल चुके थे लेकिन भगत सिंह इस काम को बिना किसी खून-खराबे के अंग्रेजों तक अपनी आवाज़ पहुंचाना चाहते थे।
इसलिए उन्होंने बड़ा धमाका करने के बारे में सोचा क्योंकि भगत सिंह कहते थे कि अंग्रेज बहरे हो गए हैं और उन्हें ऊंचा सुनाई देता है, जिसके लिए बड़ा धमाका करना जरूरी है।
वहीं उन्होंने सिर्फ अंग्रेजों के कान तक अपनी आवाज करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया कि वे लोग ब्रिटिश सरकार की क्रेन्द्रीय असेम्बली पर हमला कर देंगे।
हालांकि, शुरुआत में भारत के वीर सपूत सरदार भगत सिंह के इस विचार से उनकी पार्टी के अन्य लोग सहमत नहीं थे, लेकिन बाद में सबकी सहमति से भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर 1929 को अंग्रेज सरकार की केन्द्रीय असेम्बली हॉल में बम फेंका, आपको बता दें कि यह बम खाली जगह पर फेंका गया था जहां कोई भी शख्स मौजूद नहीं था। वहीं बम फेंकते ही तेज आवाज के साथ पूरा हॉल धुएं से भर गया।
अपने फैसले के मुताबिक भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद अपनी जगह से भागे नहीं बल्कि वहां खड़े होकर उन्होंने इंकलाब-जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद-मुर्दाबाद!” का नारा लगाया और अपने साथ लाये हुए पर्चे हवा में उछाल दिए।
बहरी हो गयी ब्रिटिश सरकार तक उसकी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने के मकसद से भगत सिंह ने यह कदम उठाया था। वहीं इस कदम के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों को पुलिस ने ग़िरफ़्तार कर लिया था।
वहीं सजा का ऐलान होने के तुरंत बाद ब्रिटिश पुलिस ने लाहौर में HSRA की बम की फैक्ट्रियों पर छापे मारने शुरु कर दिए थे जिसके बाद उस समय देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे बहुत से क्रांतिकारियों को उसमें पकड़ा गया था।
जिनमें हंसराज वोहरा,जय गोपाल और फणीन्द्र नाथ घोष प्रमुख थे। इसके अलावा 21 अन्य क्रांतिकारियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
जिनमें से सुखदेव जतिंद्र नाथ दास और राजगुरु भी शामिल थे। इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि लाहौर कांस्पीरेसी केस,असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट सांडर्स के मर्डर की योजना और बम बनाने के जुर्म में भी भगत सिंह की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया था।
शहीद भगत सिंह और उनके साथियों की कारावास में भूख हड़ताल:
भगत सिंह ब्रिटिश सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ थे और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने से वे कभी पीछे नहीं होने वाले भारत के वीर योद्धाओं में एक थे।
यही वजह है कि जब वह जेल की सजा काट रहे थे तो उन्होंने जेल में अंग्रेजी कैदियों और भारतीय कैदियों के बीच होने वाले भेद-भाव और उनके साथ हो रहे बुरे व्य्वहार और अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी।
और इसके साथ ही जेल में कैदियों के लिए उचित सुविधाएं देने के मांग की थी। इसके लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने जेल में 64 दिनों की भूख हड़ताल कर दी।
वहीं उस भूख हड़ताल की वजह से जेल में उनके एक साथी जतीन्द्रनाथ ने अपने प्राण त्याग दिए, जिससे आम लोगों में क्रूर ब्रिटिश शासकों के खिलाफ और भी ज्यादा रोष भर गया।
इसके अलावा उन्हें और उनके अन्य साथियों को जेल में रहते हुए कई यातनाओं से गुजरना पड़ा था लेकिन देश की रक्षा के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह के फौलादी इरादों के सामने क्रूर ब्रिटिश सरकार भी कुछ नहीं कर सकी।
देश की आजादी के लिए इस युवा क्रांतिकारी ने अपना पूरा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था, और इस दौरान भगत सिंह के फौलादी इरादे और भी ज्यादा मजबूत हो गए थे। वह गुलाम भारत को आजाद करवाने के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे।
जिससे वह अंग्रेजी सरकार की आंखों में खटकने लगे थे और भगत सिंह को इसी वजह से अपने देश प्रेम की कीमत भी चुकानी पड़ी थी। उन्हें करीब 2 साल जेल में बिताने पड़े थे।
असेम्बली की घटना के बाद करना पड़ा आलोचनाओं का सामना:
ब्रिटिश सरकार की केन्द्रीय असेम्बली में बन बिस्फोट करने की घटना के बाद राजनीतिक क्षेत्र में भगत सिंह को काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। लेकिन भगत सिंह एक सच्चे देश भक्त की तरह अपने देश को आजाद करवाने की लड़ाई करते रहे।
आपको बता दें कि भगत सिंह ने इस घटना के आलोचकों को जवाब देते हुए कहा था कि आक्रामक रूप से लागू होने पर बल “हिंसा’ है और नैतिक रूप से अन्यायपूर्ण है, लेकिन जब इसका इस्तेमाल किसी वैध कारण से किया जाता है, तो इसका नैतिक औचित्य खुद व खुद विकसित हो जाता है।
इसके बाद इस केस की सुनवाई हुई थी। जिसमें भगत सिंह ने अपने केस की पैरवी खुद ही की थी जबकि उनके साथ बटुकेश्वर दत्त का केस अफसर अली ने लड़ा था।
फांसी –
पूरी कानूनी कार्यवाही बेहद धीमी गति से हो रही थी, जिसको देखते हुए 1 मई 1930 को वायसराय लॉर्ड इरविन ने निर्देश दिया था। जिससे जस्टिस जे. कोल्डस्ट्रीम, जस्टिस आगा हैदर और जस्टिस जीसी हिल्टन समेत एक खास ट्रिब्यूनल स्थापित किया गया था।
ट्रिब्यूनल को बिना दोषी की उपस्थिति के भी आगे बढ़ने का अधिकार था, वहीं ये पूरा मामला एक तरफा परीक्षण था जो कि शायद ही कोई सामान्य कानूनी अधिकार दिशानिर्देशों का पालन करता था।
वहीं ट्राइब्यूनल ने 7 अक्टूबर 1930 को अपने 300 पेज का फैसला सौंपा। जिसमें कोर्ट ने यह फैसला सुनाया था कि अंग्रेज सरकार के पुलिस अधिकारी सांडर्स हत्या के मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को दोषी पाया गया है।
जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जिसके बाद भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।
वहीं 7 अक्टूबर 1930 को अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भारतीय दंड संहिता की धारा 129, 302 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 और 6एफ के तहत फांसी की सजा सुनायी गई। वहीं इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी पर लटकाने का दिन 24 मार्च 1931 को तय किया गया।
वहीं उस समय पूरे देश में भगत सिंह की रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे जिसके चलते अंग्रेज सरकार को डर था कि इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की सजा से कहीं बवाल न हो जाए और फैसला बदल न जाए।
इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें एक दिन पहले 23 मार्च 1931 की शाम को करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दे दी।
आपको बता दें कि भगत सिंह फाँसी पर जाने से पहले लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आखरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने लेनिन की जीवनी को पूरा करने का समय मांगा और जब जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है।
तब उन्होंने कहा था- “जरा ठहरिये! “पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले”। और फिर चंद समय बाद ही उन्होंने अपनी किताब बंद कर हवा में उछाल दी और बोले, ठीके है, अब चलो।
इसके साथ ही भगत सिंह ने फांसी दिए जाने के कुछ समय पहले ही जेल के एक मुस्लिम सफ़ाई कर्मचारी बेबे से अनुरोध किया था कि वो उनके लिए फांसी दिए जाने से एक दिन पहले शाम को अपने घर से खाना ले आए लेकिन भगत सिंह की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी क्योंकि उन्हें 12 घंटे पहले ही फांसी देने का फैसला ले लिया गया था और सफाई कर्मचारी बेबे जेल के गेट के अंदर भी नहीं घुस पाया था।
इसके साथ ही भगत सिंह ने अपना आखिरी संदेश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद और इंकलाब जिंदाबाद दिया।
तीनों क्रांतिकारियों ने गाए आज़ादी का गीत –
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु तीनों क्रांतिकारियों को फांसी की तैयारी के लिए उनकी कोठरियों से बाहर निकाला गया। जिसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने अपने हाथ जोड़े और अपना प्रिय आज़ादी गीत गाने लगे-
कभी वो दिन भी आएगा
कि जब आज़ाद हम होंगें
ये अपनी ही ज़मीं होगी
ये अपना आसमाँ होगा।।
फिर इन तीनों का एक-एक करके वज़न लिया गया। जिसमें सब के वज़न बढ़ गए थे। इसलिए कि वे अपने अंतिम दिनों में काफी खुश थे, क्योंकि वे अपने देश के लिए कुर्बान होने जा रहे थे लेकिन जब इन्हें फांसी देने का ऐलान किया गया तो जेल के अन्य कैदी रो रहे थे।
वहीं फांसी दिए जाने से पहले भगत सिंह को उनके साथियों को उनका आखिरी स्नान करने के लिए कहा गया और फिर उनको काले कपड़े पहनाए गए। लेकिन उनके चेहरे खुले रहने दिए गए।
इस तरह तीनों क्रांतिकारियों ने देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन की कुर्बानी दे दी। वहीं शहीदों की फांसी देने के बाद अंग्रेजों द्धारा तीनों शहीदों के शवों को अंतिम संस्कार के लिए सतलुज नदी के किनारे चुपचाप तरीके से ले जाया गया।
और फिर इन तीनों क्रांतिकारी के शवों कों नदी के किनारे जलाया जाने लगा। जिसके बाद वहां गांव वालों की काफी भीड़ इकट्ठी होगी। जिसे देख अंग्रेज जलते हुए शवों को नदी में फेंक कर भाग खड़े हुए।
जिसके बाद गांव के लोगों ने ही विधिवित तरीके से तीनों शहीदों के शवों का अंतिम संस्कार किया और उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना की। महान क्रांतिकारी के शब्दों को कभी नहीं भुलाया जा सकता है ” खुश रहो, हम तो सफर करते हैं ….
भगत सिंह की फांसी और गांधी जी का विरोध:
आपको बता दें कि देश के लिए मर मिटने वाले शहीद भगत सिंह को फांसी दिए जाने पर लोगों ने अंग्रेजों के साथ-साथ भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दोषी ठहराया। यही नहीं गांधी जी जब लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने जा रहे थे।
तब इससे क्रोधित हुए लोगों ने काले झंडों के साथ गांधी जी का स्वागत किया और कई जगह तो गांधी जी पर हमला तक किया गया।
दरअसल, गांधी जी का ब्रितानी सरकार के साथ समझौता हुआ था। इस समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात कही गई लेकिन राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह को माफ़ी नहीं मिल पाई।
और फिर इसके बाद लोगों ने गांधी जी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना शुरु कर दिया और यह सवाल उठाया कि जिस समय भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके दूसरे साथियों को सजा दी जा रही है उस समय ब्रितानी सरकार के साथ समझौता कैसे किया जा सकते हैं।
वहीं गांधी जी और इरविन के इस समझौता का कांग्रेस के अंदर स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस समेत कई लोगों ने जमकर विरोध किया। क्योंकि उन लोगों का मानना था कि अगर अंग्रेज सरकार भगत सिंह की फांसी की सजा को माफ नहीं कर रही थी तो समझौता करने की कोई जरूरत नहीं थी। हालांकि, कांग्रेस वर्किंग कमेटी पूरी तरह से गांधी जी के इस फैसले के समर्थन में थी।
इस तरह से लोगों के विरोध के बाद गांधी जी ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रयाएं दी है और कहा है कि ‘अंग्रेजी सरकार गंभीर रूप से उकसा रही है। लेकिन समझौते की शर्तों में फांसी रोकना शामिल नहीं था। इसलिए इससे पीछे हटना ठीक नहीं है।
इसके अलावा गांधी जी ने अपनी किताब ‘स्वराज’ में इस बात का भी उल्लेख किया है कि”मौत की सज़ा नहीं दी जानी चाहिए”
इसके अलावा गांधी जी ने भगत सिंह की बहादुरी को मानते हुए उन्होंने उनके मार्ग का साफ शब्दों में विरोध किया और गैर कानूनी बताते हुए यह भी कहा था कि “भगत सिंह और उनके साथियों के साथ बात करने का मौका मि ला होता तो मैं उनसे कहता कि उनका चुना हुआ रास्ता ग़लत और असफल है।
ईश्वर को साक्षी रखकर मैं ये सत्य ज़ाहिर करना चाहता हूं कि हिंसा के मार्ग पर चलकर स्वराज नहीं मिल सकता सिर्फ मुश्किलें मिल सकती हैं।
वहीं यह भी कहा जाता है कि जब गांधी जी ने भगत सिंह की फांसी की सजा को बचाने के लिए ब्रिटिश सरकरा को चिट्ठी लिखी थी जब तक बहुत देर हो चुकी थी वहीं दूसरी तरफ भगत सिंह नहीं चाहते थे कि उनकी फांसी की सजा माफ की जाए क्योंकि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी का मानना था कि “उनकी शहादत से भारतीय जनता और उद्विग्न हो जाएगी जो कि स्वतंत्रता के लिए जरूरी है।
और ऐसा उनके जिन्दा रहने से शायद ही हो पाये” इसी वजह से उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफ़ीनामा लिखने से साफ मना कर दिया था।
गांधीजी उनकी सज़ा माफ़ नहीं करा सके, इसे लेकर गांधीजी से भगत सिंह की नाराजगी से जुड़े साक्ष्य नहीं मिले हैं।
भगत सिंह, भारत के एकमात्र ऐसे युवा क्रांतिकारी थे जिन्होंने देश के हर युवा में देश को गुलामी की बेडि़यों से आजाद करने का जुनून भर दिया था और अपने फौलाद इरादों से उनको प्रेरित किया था।
वे देशभक्ति और कुर्बानी की वो मिसाल थे जिनके बहादुर व्यक्तित्व को उनके द्धारा लिखे गए लेखों से ठीक तरह से समझा जा सकता है।
क़िताबें –
आपको बता दें कि भगत सिंह ने साल 1930 में लाहौर के सेंद्रल जेल में एक लेख लिखा था – ”मै नास्तिक क्यों हूं ?”(Why I am an Atheist?) । उनके इस लेख में व्यक्तित्व की झलक साफ देखी जा सकती है।
भारत के नौजवानों को प्रेरणा देने के लिए जेल में रहते हुए भी भगत सिंह कई लेख लिखते रहे और अपने लेखों के माध्यम से अपने क्रान्तिकारी विचार व्यक्त करते रहे।
जिससे हर भारतीय नौजवान में न सिर्फ अपनी देश प्रति सम्मान की भावना पैदा हुई बल्कि आजाद भारत में रहने की भी अलख जगी जो कि वाकई प्रेरणादायी है।
धरोहर –
भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के सम्मान में देश की कई धरोहर का नाम उनके नाम पर रखा गया। जिससे उन्हें युगों-युगों तक याद किया जा सकेगा।
आपको बता दें कि पंजाब में शहीद भगत सिंह के जिले के खटकार कालन में इनके नाम पर सरदार भगत सिंह म्यूजियम हैं। जहां पर इनकी यादों को संजो कर रखा गया है।
जिनमें कुछ आधी जली हुई हड्डियाँ, भगत सिंह की हस्ताक्षरित भगवद गीता, लाहौर षड्यंत्र के जजमेंट की पहली कॉपी जैसी कुछ अविस्मरणीय धरोहर संरक्षित की गयी हैं।
यही नहीं भगत सिंह के लिखे पत्र, कविताएं और लेख देश के लिए वो अमूल्य धरोहर हैं जो हर पल देशप्रेमियों को प्रेरित करती हैं।
फ़िल्में –
इसके अलावा भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह पर कुछ फ़िल्में भी बनाई गयी हैं। जैसे – शहीद (1965) और दी लिजेंड ऑफ़ भगत सिंह (2002)। वहीं “मोहे रंग दे बसंती चोला” और “सरफरोशी की तम्मना” भगत सिंह से जुड़े वो गाने हैं जो हर भारतीय में देशभक्ति की भावना पैदा करते हैं।
इसके अलावा भी उन पर बहुत सी किताबें और लेख भी लिखें जा चुके हैं।
भारत के महान क्रांतिकारी भगत सिंह के देश के लिए किए गए त्याग और बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी की वीरगाथा भारत देश को गौरान्वित करती है और देश का सिर गर्व से ऊंचा करती है।
उनकी बलिदान की कहानी इतिहास के पन्नों पर अमर है और लाखों नौजवान उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानते हैं। भारत के महान क्रांतिकारी और सच्चे देशभक्त को ज्ञानी पंडित की टीम शत-शत नमन करती है।
एक नजर में –
- 1924 में भगतसिंग / Bhagat Singh कानपूर गये। वह पहलीबार अखबार बेचकर उन्हें अपना घर चलाना पडा। बाद में एक क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी इनके संपर्क में वो आये। उनके ‘प्रताप’ अखबार के कार्यालय में भगतसिंग को जगा मिली।
- 1925 में भगतसिंग / Bhagat Singh और उनके साथी दोस्तों ने नवजवान भारत सभा की स्थापना की।
- दशहरे को निकाली झाकी ने कुछ बदमाश लोगोने बॉम्ब डाला था। इस के कारण कुछ लोगोकी मौत हुयी। इस के पीछे क्रांतिकारीयोका हात होंगा, ऐसा पुलिस को शक था। उसके लिये भगतसिंग को पड़कर उनको जेल भेजा गया पर न्यायालय से वो बेकसूर छुट कर आये।
- ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएन’ इस क्रांतिकारी संघटने के भगतसिंग सक्रीय कार्यकर्ता हुये।
- ‘किर्ती’ और ‘अकाली’ नाम के अखबारों के लिये भगतसिंग लेख लिखने लगे।
- समाजवादी विचारों से प्रभावित हुये युवकोंने देशव्यापी क्रांतिकारी संघटना खडी करने का निर्णय लिया। चंद्रशेखर आझाद, भगतसिंग, सुखदेव आदी। युवक इस मुख्य थे। ये सभी क्रांतिकारी धर्मनिरपेक्ष विचारों के थे।
- 1928 में दिल्ली के फिरोजशहा कोटला मैदान पर हुयी बैठक में इन युवकोने ‘हिन्दुस्थान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन’ इस संघटने की स्थापना की भारत को ब्रिटीशो के शोषण से आझाद करना ये उस संघटना का उददेश था।
उसके साथ ही किसान – कामगार का शोषण करने वाली अन्यायी सामाजिक – आर्थिक व्यवस्था को भी बदलना था। संघटने के नाम में ‘सोशॅलिस्ट’ इस शब्द का अंतर्भाव करने की सुचना भगतसिंग ने रखी और वो सभी ने मंजूर की।
शस्त्र इकठ्ठा करना और कार्यक्रमों की प्रवर्तन करना ये कम इस स्वतंत्र विभाग के तरफ सौपी गयी। इस विभाग का नाम ‘हिंदुस्तान सोशॅलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ था और उसके मुख्य थे चंद्रशेखर आझाद।
8) 1927 में भारत में कुछ सुधारना देने के उद्दश से ब्रिटिश सरकार ने ‘सायमन कमीशन’ की नियुक्ति की पर सायमन कमीशन में सातो सदस्य ये अंग्रेज थे। उसमे एक भी भारतीय नही था। इसलिये भारतीय रास्ट्रीय कॉग्रेस ने सायमन कमीशन पर ‘बहिष्कार’ डालने का निर्णय लिया।
उसके अनुसार जब सायमन कमीशन लाहोर आया तब पंजाब केसरी लाला लजपतराय इनके नेतृत्त्व में निषेध के लिये बड़ा मोर्चा निकाला था। पुलिस के निर्दयता से किये हुये लाठीचार्ज में लाला लजपत राय घायल हुये और दो सप्ताह बाद अस्पताल में उनकी मौत हुयी।
9) लालाजि के मौत के बाद देश में सभी तरफ लोग क्रोधित हुये। ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन असोसिएशन ने तो लालाजी की हत्या का बदला लेने का निर्णय लिया। लालाजी के मौत के जिम्मेदार स्कॉट इस अधिकारी को मरने की योजना बनायीं गयी। इस काम के लिए भगतसिंग, चंद्रशेखर आझाद, राजगुरु, जयगोपाल इनको चुना गया।
उन्होंने 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट को मरने की तैयारी की लेकिन इस प्रयास में स्कॉट के अलावा सँडर्स ये दूसरा अंग्रेज अधिकारी मारा गया। इस घटना के बाद भगतसिंग भेष बदलके कोलकता को गये। उस जगह उनकी जतिंद्रनाथ दास से पहचान हुई उनको बॉम्ब बनाने की कला आती थी। भगतसिंग और जतिंद्रनाथ इन्होंने बम बनाने की फैक्टरी आग्रा में शुरु किया।
10) उसके बाद भगतसिंग और उनके सहयोगी इनके उपर सरकार ने अलग – अलग आरोप लगाये। पहला आरोप उनके उपर कानून बोर्ड के हॉल में बम डालने का था। इस आरोप में भगतसिंग और बटुकेश्वर दत्त इन दोनों को आजन्म कारावास की सजा हुयी। लेकिन सँडर्स के खून के आरोप में भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन्हें दोषी करार करके फासी की सजा सुनाई गयी।
11) 23 मार्च 1931 को भगतसिंग, सुखदेव और राजगुरु इन तीनो को महान क्रांतिकारीयोको फासी दी गयी। ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘भारत माता की जय’ की घोषणा देते हुये उन्होंने हसते-हसते मौत को गले लगाया।
कथन/विचार –
- “सीने पर जो जख्म हैं, सब फूलो के गुच्छे हैं। हमें पागल ही रहने डॉ हम पागल ही अच्छे हैं।”
- “मैं एक मानव हू और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता हैं उससे मुझे मतलब हैं।”
- “जिंदगी अपने दम पर जी जाती हैं, दूसरो के कंधो पर तो जनाजे निकलते हैं।”
- “मै यह मानता हु के मै महत्वाकांक्षी, आशावादी एवं जिवन के प्रति उत्साही हु, लेकिन आवश्यकता के अनुसार मै इस सबका परित्याग भी कर सकता हु और वही सच्चा त्याग होगा।”
- “प्रेमी, पागल और कवी एक ही थाली के चट्टे बट्टे होते है, मतलब के एक सामान होते है।”
- “व्यक्तियों को कुचल कर उनको विचारो को नहीं मार सकते है।”
- “निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण होते है।”
- “क्या तुम्हे पता है की दुनिया में सबसे बड़ा पाप गरीब होना है?गरीबी एक अभिशाप है यह एक सजा है।”
- “सारे जहा से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा।”
कार्य –
यह तिनो भी युवा क्रांतिकारी थे जिनकी सोच तत्कालीन गाँधीवादी विचारधारा से थोडा अलग थी।इन नौजवानों का स्पष्ट रूप से मानना था के केवल अहिंसा के मार्ग से आजादी मिलना होता तो ये बहुत पहले हो चूका होता। अंग्रेजो की गुलामी भरे एवं लुट के शासन के विरुध्द तत्कालीन समाज में क्रांतिकारी प्रवाह भी मौजूद था जिसके ये तिन युवा काफी सक्रीय कार्यकर्ता थे।
बात करे सशस्त्र क्रांतिकारी मुहीम की तो सेंट्रल असेम्बली में बम फेकना हो या, सौन्डर्स की हत्या की इन तिनो का खासा सहयोग रहा।जेल में भारतीय कैदियों को दिये जाने वाले अमानवीय वर्तन के खिलाफ अन्नत्याग कर किये गए भगत सिंह के आन्दोलन ने उस समय की अंग्रेज शासन व्यवस्था को हिला दिया। अंत में उनकी मांग ब्रिटिश सरकार को माननी भी पड़ी।
पंजाब के प्रखर स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय के साथ शुरुवाती दिनों में इन युवाओ ने आन्दोलन में भी हिस्सा लिया।जहा सायमन कमीशन के खिलाफ आन्दोलन में ब्रिटिश पुलिसों द्वारा किये गए लाठीचार्ज से बुजुर्ग लाला लाजपतराय की मौत हुई थी। इस घटना ने इन युवाओ के मन पर गहरा आघात किया था। वही से शांति से आंदोलन के मार्ग से कुछ भी हासिल नहीं होता ऐसे सोच से इन युवाओ ने अंग्रेजो के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के मार्ग को चुना।
“हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी” जिसके ये तिनो और अन्य युवा क्रांतिकारी कार्यकर्ता थे, उसका नाम बदलकर “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएशन” ऐसा रखा गया।
लगभग बहुत से मुहीम में सुखदेव,राजगुरु और भगत सिंह का साथमे सहयोग रहा और इन तिनो देशभक्त क्रांतिकारियों को एक ही दिन २३ मार्च १९३१ को साथमे फांसी की सजा दी गई।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान –
पर साथ ही गांधीजी ने चौरीचौरा घटना की वजह से असहयोग आंदोलन रोक दिया था, ये बात भगत सिंह को बिलकुल रास नहीं आई थी। महाविद्यालय के दिनों से युवाओ को संघटित कर देश प्रेम और एकता का भाव उनमे जगाने के प्रयास भगत सिंह द्वारा होते थे।
इसी परिवेश में उनकी मुलाकात सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों से होना एवं बादमे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ना इन सभी चिजो ने भगत सिंह को भारतीय क्रांतिकारी इतिहास के पटल पर अलग ही स्थान दिलाया।
शुरूमें सत्याग्रह एवं शांतता पूर्ण आन्दोलन को समर्थन देने वाले इस युवा क्रांतिकारी का मन तब और क्षुब्ध हुआ जब अंग्रेजो द्वारा किये गए अमानवीय लाठीचार्ज में बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय की मृत्यु हुई।
इस घटना ने भगत सिंह के मनमे बसे चिंगारी को हवा देने का काम किया जिसका नतीजा ये हुआ की सौन्डर्स की हत्या को अंजाम दिया गया।
भगत सिंह जात,धर्म,पंथ एवं सामाजिक विषमता से उठकर अलग समाज व्यवस्था निर्माण के पक्ष में थे।उनका मकसद केवल अंगेजो से आजादी हासिल करने तक सिमित नहीं था,बल्कि जात धर्म और आर्थिक विषमता को दूर कर सर्व समावेशक समाज के निर्माण के वे पक्ष में थे।
उस समय क्रांतिकारियों के बारे में लोगो के मन में अनेक संभ्रम थे एवं बहुत से लोगो को ये मार्ग ठिक से समझ में नही आता था।
इसीलिए क्रांतिकारियों का सही मकसद आम जनता तक पहुचाने एवं लोगो को क्रांति का महत्व समझाने हेतु सेंट्रल असेम्बली में बम विस्फोट किये गए। यहाँ भगत सिंह लोगो को सन्देश देना चाहते थे के हम इंसानी जान की कदर करते है,इसलिए बम विस्फोट किसी को क्षति पहुचाने के हेतू से नहीं किया गया था।
भगत सिंह का कहना था , “हमारा मकसद केवल अंग्रेज मुक्त भारत है जिसे हासिल करने हेतु क्रांति का पथ हमने चुना है,क्योंकि अंग्रेज सरकार बहरी है और बहरो को सुनाने हेतु ऊचे धमाकेदार आवाज की जरूरत होती है।”
भारतीय कैदियों को जेल में अत्यंत बुरी तरह की से रखा जाता था एवं उनसे निचले स्तर का बरताव होना उस समय आम सी बात थी।ना ही इन कैदियों को स्वच्छ कपडे पहनने को दिये जाते थे और नाही भोजन स्वच्छ और सही मिलता था।
इसी के विरोध में भगत सिंह ने उनके जेल के दिनों में अन्नत्याग कर आन्दोलन किया जिससे उन्हें काफी कष्ट और दुःख का सामना करना पड़ा।पर अनेक दिनों तक भूका रहने के बावजूद भी वो उनके मकसद से नहीं हटे थे अंततः अंग्रेज सरकार को उनकी मांगो को मानना पड़ा।
जो के एक सामाजिक सुधार ही माना जाना चाहिए, क्योंकि अमानवीय बरताव को न्याय मिल चूका था वो भी केवल और केवल भगत सिंह द्वारा किये गए के कठिन प्रयासों से।
भगत सिंह के मृत्यु के बाद भी भारतीय समाज में वो क्रांति का सैलाब आया के साल १९४७ आने तक अंग्रेजो को अनेक जन असंतोष का सामना करना पड़ा और इसका नतीजा तख्ता पलट के रूप में हुआ।
भगत सिंह तो गए थे पर उनके द्वारा तैयार किये गये क्रांति के पथ पर बहुत सारे युवा आगे चलकर अग्रेसर हुए, और क्रांतिकारी भूमिका एवं विचारो का लोहा सरकार और अन्य विचारधाराओ को पता चला तथा मानना पड़ा।
भारतीय इतिहास में भगत सिंह जैसे व्यक्ती विरले ही हुए है, जो एक प्रखर देशभक्त तो थे पर उच्च विचार, मानवीय मूल्यों और आदर्शो के धनि भी थे।
ये वो व्यक्ती थे जो फांसी पर भी हसते हसते झूल गए क्योंकि इनकी जिन्दगी और मौत केवल आजादी के ही इर्द गिर्द सिमित थी और दूसरा खयाल शायद ही इन्होने जिवन में किया हो।
भारत माता के सुपुत्र एवं सर्वोच्च बलिदानी महान क्रांतिकारक भगत सिंह जी को ज्ञानी पंडित की पूरी टीम के तरफ से कोटि कोटि नमन एवं आभार के साथ भावपूर्ण श्रद्धांजली।
FAQs
जवाब: भगत सिंह किशन सिंह संधू।
जवाब: २३ साल।
जवाब: नही।
जवाब: २७ सितम्बर १९०७।
जवाब: २३ मार्च १९३१।
जवाब: मै नास्तिक क्यों हु यानि के व्हाय आय एम् अन अथेइस्ट।
जवाब: हा, जैसे के द लिजंड ऑफ़ भगत सिंह, शहीद २३ मार्च १९३१ और अमर शहीद भगत सिंह इत्यादि।
जवाब: कुलतार सिंह, रणबीर सिंह, जगत सिंह, राजिंदर सिंह और कुलबीर सिंह।
जवाब: बीबी प्रकाश कौर, बीबी अमन कौर, बीबी शकुंतला कौर।
जवाब: साल १९७५ में।
I love bhagat singh and my fabourate country patriet Shaheed Bhagat Singh And hearts Happy
……………..JAI HIND………………
bhagat sing ko fasi lagi thi 23 march 1931 ko
to ham AVBP ke sadasy aaj unki vissal raily nikalenge ..
Deepak jangid sir,
ham apake is kaam ki sarahana karate hai, ayase karykramo ke ayojan se hi, aaj ki naayi pidhi ko itihas ki janakari milati hai or unko bhagat sing jaise mahan kratikari vo ke tyag or balidan ke bare me pata chalata hai.
Apaka Bahut Dhanyavad.
bhagat singh sardar kartar singh sarabha k anauai the nake dayanana sarasawati k
Narayan Singh Tomar Sir,
Kripaya puri information bheje ham jarur krantikari Bhagat Singh ke lekh ko update karenge.
Apaka Bahut Dhanywad.
no sir koi doubt nahi balki apka dil se thanking you krta hu ki apne itni sari jankari di sir main b apne desh ke liye sab kuch krunga kya hua agar mein army mein nahi hu ja govt ki nokri nahi krta lekin desh jai sab kuch nahi dekhta sir main chandigarh mein office boy ka work krta hu main jammu se hu main apne desh ke liye sab kuch krunga desh ke dushman koi door ke nahi hai balki bahut sare aise log hai jo desh ke sath gardari krte hai aise logo ko toh goli mar deni chahiye jo in logo ko seema par karbate hai hai ek sayari bolna chahta hu ? mili thi zindagi kisi ke kam anne ke liye par baqat beet rha hai kagaj ke tukde kamane ke liye kya kreoge itna paisa kamakar na kafan mein jeb hai na kabar mein Almari or jai mout ke fariste toh rishbat be nahi lete thanking you
Sahil kumar ji,
Thansk for comment, apake irade bahut nek hai, sachmuch aaj bharat me apake soch jaisi soch ki jarurat hai, tabhi Shahid Bhagat Singh ka maksad pura honga or yahi hamari unke liye shradhanjali hongi…
I like history