Khanwa Ka Yudh
खानवा का ऐतिहासिक युद्ध उस समय उत्तरी भारत के शक्तिशाली राजपूत शासक राणा सांगा और मुगल वंश के संस्थापक बाबर के बीच राजस्थान के भरतपुर जिले के पास ‘खानवा’ नामक जगह पर गंभीरी नदी के किनारे लड़ा गया, जो कि फतेहपुर सीकरी से कुछ मीलों की दूरी पर स्थित है।
पानीपत की ऐतिहासिक लड़ाई लड़ने के बाद मुगल बादशाह बाबर द्धारा खानवा का युद्ध भारत में लड़े गए सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक था। इस युद्ध में भी बाबर ने पानीपत के युद्ध की तरह की चक्रव्यूह रचकर सबसे शक्तिशाली मेवाड़ नरेश राणा सांगा को बलपूर्वक परास्त कर दिया था।
वहीं इस युद्ध में राणा सांगा की हार के बाद राजपूतों का भारत में हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने का सपना चकनाचूर हो गया था और राजपूतों की शक्ति बहुत कमजोर पड़ गई थी, तो वहीं दूसरी तरफ मुगल बादशाह बाबर द्धारा एक बहादुर और प्रबल शासक राणा सांगा को हराने के बाद उसकी शक्ति और भी अधिक मजबूत हो गई थी, एवं मुगल वंश को इसके बाद काफी मजबूती मिल गई थी और भारत में मुगल साम्राज्य का विस्तार करना बेहद आसान हो गया था।
वहीं खानवा का यह ऐतिहासिक युद्द होने के पीछे इतिहासकारों द्धारा कई तर्क दिए जाते हैं, आइए जानते हैं इतिहास की इस महत्वपूर्ण खानवा की लड़ाई के बारे में –
खानवा का युद्द – Khanwa Ka Yudh
खानवा के युद्ध का सारांश एक नजर में – Khanwa War Summary
खानवा का युद्ध कब हुआ | 17 मार्च, 1527 ईसवी में। |
खानवा का युद्ध कहां लड़ा गया | राजस्थान में भरतपुर के पास और फतेहपुर सीकरी से कुछ मीलों की दूपी पर स्थित “खानवा” नामक जगह पर हुआ। |
खानवा का युद्ध किन-किन के बीच लड़ा गया | राजपूत शासक राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच लड़ा गया। |
आखिर क्यों हुआ खानवा का युद्ध? – Battle of Khanwa History in Hindi
सत्तासीन होने के लालच में इतिहास में कई युद्ध हुए हैं उन्हीं युद्धों में से एक है खानवा का प्रसिद्ध युद्ध, जो कि शक्तिशाली राजपूत शासक राणा सांगा और मुगल सम्राट बाबर के बीच लड़ा गया था।
दरअसल, उस समय राजपूत नरेश राणा शासक दिल्ली में लोदी वंश का खात्मा कर खुद दिल्ली में अपना कब्जा जमाना चाहता था, वहीं लोदी वंश का खात्मा करने के लिए राणा सांगा और दौलत खान लोदी ने बाबर को भारत में आने का न्योता यह सोचकर दिया था कि, अन्य मुस्लिम शासकों की तरह बाबर भी भारत में लूटपाट मचा कर वापस चला जाएगा, और वे दिल्ली के राजसिंहासन पर बैठ सकेंगे।
लेकिन बाद में जब बाबर ने भारत में ही राज करने का फैसला लिया और वापस नहीं लौटा तब राजपूत नरेश राणा सांगा और बाबर के बीच भयंकर संघर्ष छिड़ गया जो कि बाद में खानवा के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वहीं खानवा के युद्ध होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
खानव युद्ध के प्रमुख कारण – Causes of Battle of Khanwa
- अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे राणा सांगा, लेकिन बाबर से था डर:
इतिहासकारों की माने तो उत्तरी भारत के सबसे शक्तिशाली शासकों में एक माने जाने वाले राणा सांगा जिन्होंने अपने राज्य की सीमा आगरा तक बढ़ा ली थी। राणा सांगा, भारत में लोदी वंश का जड़ से खात्मा करना अर्थात अफगानों का राज खत्म करना चाहता था। लेकिन उसे मुगल बादशाह बाबर से यह खतरा था कि वह कहीं लोदी वंश का अंत कर कहीं खुद का राज्य स्थापित नहीं कर ले।
- बाबर से वादा कर मुकरे राणा सांगा:
सन् 1526 में पानीपत की लड़ाई से पहले मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत शासक राणा सांगा ने मुगल सम्राट बाबर से यह वादा किया था कि लोदी वंश का खात्मा करने के लिए जिस समय बाबर दिल्ली में आक्रमण करेगा, उसी समय राणा सांगा भी लोदी का ध्यान भटकाने के लिए आगरा में आक्रमण कर देंगे।
वहीं जब इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच पानीपत की लड़ाई में बाबर ने दिल्ली पर हमला किया। उस समय राणा सांगा ने अपने वादे के विपरीत हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे और इब्राहिम लोदी के खिलाफ बाबर के सैन्य अभियान में कोई मद्द नहीं की। जिससे बाबर गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने मेवाड़ के शासक से इसका बदला लेने के लिए युद्ध करने का फैसला लिया, जो कि बाद में खानवा के युद्ध के रुप में भारतीय इतिहास में मशहूर हुआ।
- मुगल सम्राट बाबर को दिल्ली का बादशाह नहीं मानते थे राणा सांगा:
पानीपत की लड़ाई में मुगल बादशाह बाबर की जीत के बाद जब उसे दिल्ली और आगरा का शासक बनाया गया था, तब उस समय के सबसे शक्तिशाली शासकों में एक राणा सांगा ने उसे दिल्ली का बादशाह मानने से इंकार कर दिया क्योंकि वह खुद दिल्ली की बादशाहत चाहता था और यह भी खानवा के युद्ध लड़ने की एक प्रमुख वजह बनी।
- राणा सांगा का हिन्दू राज्य की स्थापना करने का सपना:
खानवा का ऐतिहासिक युद्ध होने को लेकर कुछ इतिहासकारों का मानना था कि राजपूत शासक राणा सांगा और मुगल सम्राट बाबर दोनों ही दिल्ली की तल्ख पर अपना-अपना प्रभुत्व जमाना चाहते थे और दोनों ही सम्राटों की महत्वकांक्षी योजनाओं की वजह से खानवा का युद्ध छिड़ गया।
दरअसल, बाबर अफगानों की सत्ता को कुचल कर संपूर्ण भारत को रौंदना चाहता था और खुद सत्तासीन होना चाहता था, जबिक राणा सांगा अफगानों की सत्ता को समाप्त कर हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहते थे, जिसकी वजह से दोनों शासकों के बीच भयानक संघर्ष छिड़ गया था, लेकिन इस युद्ध में राजपूत शासक का यह सपना पूरा नहीं हो सका।
- बाबर के भारत से वापस नहीं लौटने पर क्रोधित सांगा ने लिया युद्ध का फैसला:
खानवा के युद्ध होने को लेकर कुछ इतिहासकारों के अनुसार, मेवाड़ के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली शासक राणा सांगा यह सोचते थे कि दिल्ली से लोदी वंश का खात्मा कर मुगल सम्राट बाबर भी अन्य मुस्लिम शासकों की तरह भारत में कुछ लूटपाट कर वापस समरकंद लौट जाएगा और वह दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठकर अपना शासन कर सकेगा।
लेकिन ऐसा नहीं हो सका, मुगल सम्राट बाबर ने इब्राहिम लोदी को पानीपत की लड़ाई में हरा दिया और वह खुद दिल्ली के सिंहासन पर बैठ गया। वहीं भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना को देखकर राणा सांगा क्रोधित हो उठा, क्योंकि वह उस समय उत्तरी भारत का सबसे ताकतवर और कुशल सेनापति था, जिसने अपने राज्य का काफी विस्तार कर लिया था।
इसलिए मुगलों द्धारा दिल्ली में आधिपत्य स्थापित करने को वह खुद का अपमान समझने लगा और फिर बाद में उसने मुगल सम्राट बाबर के खिलाफ खानवा नामक जगह पर विद्रोह कर दिया।
- बाबर के बढ़ते वर्चस्व की वजह से सांगा ने लिया युद्ध करने का फैसला:
मुगल सम्राट बाबर के सिन्धु-नदी घाटी में बढ़ रहे वर्चस्व की वजह से शक्तिशाली राजपूत शासक सांगा के मन में उसकी शक्ति को कम करने का खतरा पैदा कर दिया।
इसके साथ ही मुगल बादशाह बाबर द्धारा उत्तरी भारत के आगरा, बयाना, कालपी, और धौलपुर समेत कुछ क्षेत्रों में अपना कब्जा करने से सांगा और भी ज्यादा क्रोधित हो उठा, क्योंकि वह इन क्षेत्रों को अपने साम्राज्य के अंदर समझता था और इन पर अपना शासन चलाना चाहता था।
- खानवा के युद्ध की शुरुआत:
इस तरह राणा सांगा और मुगल सम्राट बाबर दोनों ही अपना-अपना स्वार्थ के चलते भारत में कब्जा जमाना चाहते थे, जिसकी वजह से 17 मार्च, साल 1527 ईसवी में दोनों के बीच आगरा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर फतेहपुर सीकरी के पास खानवा नामक जगह पर दोनों की सेनाएं आमने-सामने हो गईं। वहीं इस युद्ध में राजपूत शासक राणा सांगा को इब्राहिम लोदी का भाई महमूद लोदी, मारवाड़, ग्वालियर, हसन खां मेवाती, अजमेर, बसीन चंदेरी का साथ मिल गया था।
- सांगा की शक्ति के सामने जब हताश हुए बाबर के सैनिक:
स्पष्ट है कि उस समय उत्तरी भारत में दिल्ली के बाद सबसे शक्तिशाली शासकों में राणा सांगा की गिनती होती थी, वहीं ऐसे में जब राणा सांगा को महमूद लोदी समेत कई और शासकों का साथ मिल गया था तो उसकी एक मजबूत और विशाल सेना बन गई। वहीं सांगा के संयुक्त मोर्च की खबर से बाबर के सैनिकों का हौसला डगमगा गया।
जिसके बाद बाबर ने अपने सैनिकों के हौसला अफजाई के लिए जोशीला भाषण दिया और मुस्लिमों से राज्य के द्धारा व्यापार पर लगाया जाने वाला “तमगा कर” न लेने की घोषणा की और अपने राज्य में पूरी तरह से शराब बंदी कर दी एवं खुद भी शराब को कभी हाथ नहीं लगाने का प्रण लिया और फिर पानीपत के युद्ध की लड़ाई की तरह अपने सैनिकों के साथ राणा सांगा के खिलाफ मजबूत रणनीति तैयार की।
- खानवा के युद्ध में मुगलों की जीत – Battle of Khanwa Winner
राणा सांगा ने जहां खानवा के युद्ध से पहले ही अपनी सेना मजबूत कर ली थी, वहीं बाबर की सेना में सैनिकों की संख्या कम थी, लेकिन उसके पास आधुनिक तोपों की मुख्य ताकत थी।
वहीं 17 मार्च, 1527 ईसवी में जब दोनों की सेनाएं आपस में टकराई तो शुरुआत में तो राजपूतों ने बड़ी बहादुरी और वीरता से लड़ाई की, लेकिन फिर जब मुगल शासक बाबर ने अपनी आधुनिक तोपखानों से गोला-बारूद बरसाएं, तब सांगा की सैन्य शक्ति कमजोर पड़ने लगी और राणा सांगा बुरी तरह घायल हो गए।
लेकिन घायल होने के बाबजूद भी राणा सांगा और उनके सैनिक मुगलों के साथ युद्ध लड़ते रहे, हालांकि, बाद में राजपूतों को इस युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और मुगलों की जीत हुई। युद्ध के बाद राणा सांगा युद्ध भूमि से भाग निकले ताकि वह दोबारा मुगल सम्राट बाबर से युद्ध कर सके, लेकिन थोड़े दिनों के बाद राणा सांगा को उसके ही किसी सामंत द्धारा जहर देकर मार दिया गया। जबकि खानवा के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद मुगल शासक बाबर ने “गाजी” की उपाधि धारण कर ली थी।
खानवा के युद्द के निर्णायक परिणाम – Result of Battle of Khanwa
खानवा के युद्ध में बाबर की विजय के बाद भारत में मुगलों की शक्ति और अधिक बढ़ गई, जिससे मुगल वंश का भारत में विस्तार होता चला गया और इसकी नींव मजबूत हो गई।
खानवा के युद्द के बाद मुगलों का मुख्य केन्द्र आगरा-दिल्ली बन गया और फिर कई सालों तक हिन्दुस्तान में मुगलों ने राज किया।
राजपूत शासक राणा सांगा की हार के बाद राजपूतों की शक्ति कमजोर पड़ गई और भारत में राजपूतों का प्रभाव लगभव खत्म हो गया। खानवा के युद्ध में हार के बाद राजपूतों का हिन्दू राज्य स्थापित करने का सपना टूट गया।
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