Balaji Baji rao – बालाजी बाजीराव पेशवा जिन्हें नाना साहेब के नाम से जाना जाता था वह मराठा साम्राज्य के प्रसिद्ध पेशवा थे और साथ ही इतिहास में वे अपने बहुमुखी व्यक्तिव और समाज सुधारक कार्यो की वजह से भी जाने जाते है।
सैन्य उपलब्धियों के अलावा उन्होंने बहुत से तरीको से मराठा साम्राज्यों के ध्वज को देश के कोने-कोने में लहराने का भी काम किया है।
मराठा साम्राज्य के प्रभावशाली शासको में से एक नाना साहेब पेशवा – Balaji Baji rao History
बालाजी बाजीराव, बाजीराव प्रथम के ज्येष्ट पुत्र थे। जबकि बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य के नौवे पेशवा थे और बालाजी बाजीराव की माता का नाम काशीबाई था।
8 दिसम्बर 1721 को बालाजी बाजीराव का जन्म हुआ। उनका वास्तविक नाम नाना साहेब था। अपने जन्म से ही वे बहादुर और वीर थे और वे अपने पिता के ही नक्शेकदम पर चलना चाहते थे।
उनके छोटे भाई रघुनाथराव और उन्हें एक और भाई जगन्नाथराव भी था, जिसकी मृत्यु युवावस्था में ही हो चुकी थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन के बाद नाना साहेब सबसे प्रभावशाली शासको में से एक थे। उन्हें बालाजी बाजीराव के नाम से भी जाना जाता था। 1749 में जब छत्रपति शाहू की मृत्यु हुई, तब उन्हें मराठा साम्राज्य का पेशवा बनाया गया।
19 साल की अल्पायु में ही बालाजी बाजीराव के कंधो पर मराठा साम्राज्य का भार आ चूका था। बालाजी ने भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया। उनके शासनकाल में मराठा साम्राज्य पेशावर (वर्तमान पाकिस्तान) तक जा पंहुचा था। तक़रीबन 20 सालो तक नानासाहेब ने मराठा साम्राज्य पर शासन किया।
नाना साहेब एक महत्वाकांशी शासक थे और बहुमुखी व्यक्तित्व के धनि थे। 1741 में उनके चाचा चिमांजी की मृत्यु हो गयी और परिणामस्वरूप उत्तरी जिले से लौटकर उन्होंने कुछ साल पुणे के नागरिक प्रशासन को सुधारने में व्यतीत किए।
डेक्कन में 1741 से 1745 तक के समय को शांति काल के नाम से जाना जाता था। उन्होंने पुणे में जाकर कृषि को बढ़ावा दिया, गाँववालो को सुरक्षा प्रदान की और राज्य में विविध सुधार किए।
पुणे शहर के विकास में मराठा साम्राज्यों के शासको ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके साम्राज्य में उन्होंने पूना को एक विशालकाय शहर में परिवर्तित कर दिया था।
पुणे में उन्होंने मंदिर और विशालकाय पूलों का निर्माण कर समस्त शहर का रूप ही बदल दिया था। साथ ही पुणे के कात्रज में उन्होंने पानी के हौजो का भी निर्माण करवाया।
1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध तक उनके नेतृत्व में मराठा साम्राज्य अपने शीर्षबिंदु तक पहुच चूका था। लेकिन निर्णयात्मक युद्ध में मराठाओ की हार ने सम्पूर्ण देश पर शासन करने के सपने को चकना-चूर कर दिया था।
1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में बालाजी बाजीराव पेशवा ने अपने बेटे विश्वास राव को खो दिया और इसके कुछ समय बाद ही 23 जून 1761 में उनकी भी मृत्यु हो गयी।
उनकी मृत्यु के बाद उनका दूसरा पुत्र माधवराव पेशवा उत्तराधिकारी बना।
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