Bajirao Mastani story
Bajirao Mastani Story – बाजीराव मस्तानी की रोमांचक स्टोरी
पूरा नाम – बाजीराव बल्लाल (बालाजी ) भट्ट
जन्म – 18 अगस्त 1700
जन्मस्थान – कोकणस्थ प्रान्त
पिता – बालाजी विश्वनाथ
माता – राधाबाई बर्वे
पत्नीं – काशीबाई और मस्तानी
बाजीराव का जन्म ब्राह्मण परिवार में बालाजी विश्वनाथ के पुत्र के रूप में कोकणस्थ प्रान्त में हुआ था, जो छत्रपति शाहू के प्रथम पेशवा थे। २० वर्ष की आयु में उनके पिता की मृत्यु के पश्यात शाहू ने दुसरे अनुभवी और पुराने दावेदारों को छोड़कर बाजीराव को पेशवा के रूप में नियुक्त किया।
इस नियुक्ति से ये स्पष्ट हो गया था की शाहू को बाजीराव के बालपन में ही उनकी बुद्धिमत्ता का आभास हो गया था। इसलिए उन्होंने पेशवा पद के लिए बाजीराव की नियुक्ति की। बाजीराव सभी सिपाहीयो के बिच लोकप्रिय थे और आज भी उनका नाम आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
बाजीराव, वह थे जिन्होंने 41 या उस से भी ज्यादा लड़ाईयां लड़ी थी, और एक भी ना हारने की वजह से विख्यात थे। जनरल मोंटगोमेरी, ब्रिटिश जनरल और बाद में फील्ड मार्शल ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लिखीत रूप में यह स्वीकार भी किया था।
अपने पिता के ही मार्ग पर चलकर, मुघल सम्राटो को समझकर उनकी कमजोरियों को खोजकर उन्हें तोड़ने वाले बाजीराव पहले व्यक्ति थे। सैयद बन्धुओ की शाही दरबार में घुसपैठी या दखल-अंदाजी बंद करवाना भी उनके आक्रमण का एक प्रभावी निर्णय था।
बाद में ग्वालियर के रानोजी शिंदे का साम्राज्य, इंदोर के होल्कर(मल्हारराव), बारोदा के गायकवाड (पिलाजी), और धार के पवार (उदाज्जी) इन सभी का निर्माण बाजीराव द्वारा मराठा साम्राज्य के खंड के रूप में किया गया, क्यूकी वे मुघल साम्राज्य से प्रतीशोध लेकर उनका विनाश कर के उनकी “जागीरदारी” बनाना चाहते थे।
उन्होंने अपना स्तंभ सासवड से और मराठा साम्राज्य की प्रशासनिक राजधानी/पूँजी को 1728 में सातारा से पुणे ले गये। इसी प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने एक कसबे को शहर बनाने की भी नीव रखी। उनके प्रमुख, बापुजी श्रीपाट ने सातारा के कई धनवान परिवारों को पूना स्थापित होने के लिए मनाया, जो 18 पेठ में विभाजीत किया गया था।
1732 में महाराजा छत्रसाल की मृत्यु पश्यात, मराठा साम्राज्य मित्र साम्राज्य रूपी था, जबकि बाजीराव को छत्रसाल साम्राज्य का एक तिहाई भाग बुन्देलखण्ड में दिया गया।
एक उत्कृष्ट सेना का सेनापती होने की वजह से उनकी सेना और लोग उन्हें बहोत चाहते थे। वे कई बार हिंदु धर्म की रक्षा करने के लिए मुघलो से लड़े और उन्हें धुल भी चटाई, और हमेशा के लिए मुघलो को उत्तरी भारत पर ध्यान करने पूर्व ही मध्य और पश्चिमी भारत से दूर रखा। और इसी संकेत पर चलते हुए मराठाओ ने सिद्दी (मुघल नौसेनापति), मुघल, पुर्तगाल, निज़ाम, बंगाश इत्यादि को हराया।
देखा जाये तो शिवाजी महाराज के बाद बाजीराव ने ही मराठा साम्राज्य का सबसे बड़ा चित्र निकाला था। ब्रिटिश पॉवर 19 वी सदी में स्थापित होने से पूर्व तक मराठा साम्राज्य प्रभावशाली रूप से 18 वी सदी तक चलता रहा।
काशीबाई:
बाजीराव की शादी काशीबाई से हुई, और उन्हें दो जुड़वाँ बच्चे भी हुए। बाद में नानासाहेब को शाहू ने 1740 में नए पेशवा के रूप में नियुक्त किया। उनके दुसरे बेटे का नाम रघुनाथराव था।
मस्तानी की कहानी – Mastani Story in Hindi
मस्तानी पेशवा बाजीराव की दुसरी पत्नी थी, बाजीराव चौथे मराठा छत्रपति शाहूजी राजे भोसले के साम्राज्य में मराठाओ के सेनापति और प्रधान थे। ऐसा कहा जाता है की मस्तानी बहोत बहादुर और सुंदर महिला थी।
इतिहास में बहोत से प्रसिध्द व्यक्ति मस्तानी से जुड़े है, और उनसे जुडी बहोत सी कथाये भी है। मस्तानी बुदेलखंड के राजपूत नेता महाराजा छत्रसाल (1649-1731) की पुत्री थी, जो बुदेलखंड प्रान्त के संस्थापक थे। मस्तानी को जन्म उनकी, फारसी-मुस्लिम पत्नी रूह्यानिबाई ने दिया जो हैदराबाद के निज़ाम के दरबार में नर्तकी थी।
जब 1727-28 के समीप अल्लाहाबाद के मुगल साम्राज्य प्रमुख मोहम्मद खान बंगाश ने छत्रसाल साम्राज्य पर आक्रमण किया तब छत्रसाल ने एक गुप्त सन्देश भेजा जिसमे उन्होंने बाजीराव प्रथम से सहायता मांगी थी। जिससे उनकी सैन्य शक्ति बढ़ सके।
बाजीराव तुरंत महाराजा छत्रसाल की सहायता के लिए आगे बढे, और धन्यवाद् के स्वरुप छत्रसाल ने बाजीराव को उपहार स्वरुप अपनी बेटी मस्तानी दी और उनके साम्राज्य का एक तिहाई भाग भी दिया जिसमे झाँसी, सागर और कालपी का भी समावेश था। महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव और मस्तानी के विवाह उपलक्ष में हीरो की खदान भेट स्वरुप दी।
ऐसे कई सारे प्रसंग मस्तानी के जीवन से जुड़े है, छत्रसाल के दुसरे दृष्टिकोण से देखा जाये तो, वो हैदराबाद के निज़ाम की कन्या थी। छत्रसाल ने निज़ाम को 1698 में पराजित किया था, और निजाम की पत्नी ने बुन्देल और उनके बिच अच्छे सम्बन्ध स्थापित होने हेतु उनकी बेटी से विवाह करने की सलाह दी क्यूकी उस समय मध्य भारत में छत्रसाल साम्राज्य सबसे सशक्त और शक्तिशाली साम्राज्य था।
कहानी के तीसरे अध्याय के अनुसार, बाजीराव और छत्रसाल की मित्रता होने के पश्चात, मस्तानी ये छत्रसाल के दरबार की नर्तकी थी। बाजीराव, मस्तानी के प्रेम में पड़ने के बाद उनका मस्तानी से विवाह हुआ। जिसका बाजीराव उच्च दर्जे के ब्राह्मण होने की वजह से पुरे ब्राह्मण समुदाय एवं हिन्दुओ ने विरोध किया।
जहा बाजीराव ने स्वीकार किया था की मस्तानी यह छत्रसाल के फारसी-मुस्लिम पत्नी की बेटी थी। मस्तानी का वैध रूप से विवाह होने के बावजूद अक्सर उसे बाजीराव की रखैल या प्रेमिका कहा जाता था।
मस्तानी एक कुशल घुड़सवार थी, और साथ साथ भाला फेक और तलवारबाजी भी करती थी और एक बुद्धिमान नर्तकी एवम गायिका थी। मस्तानी ने हमेशा सैन्य अभियान में बाजीराव का साथ दिया। मस्तानी और बाजीराव की पहली पत्नी काशीबाई ने बाजिराव को एक-एक पुत्र दिया परन्तु काशीबाई का पुत्र जल्दी ही मारा गया और मस्तानी का पुत्र था जिसका नाम शमशेर बहादुर था।
बाजीराव ने शमशेर को बन्दा की जागीर प्रदान की। शमशेर (पेशवा) १७६१ के पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दली के खिलाफ मराठाओ की तरफ से लड़ा था और ये कहा जाता है की युद्ध के दौरान उसे वीरगति प्राप्त हुई।
बाजीराव काशीबाई और उनकी माता राधाबाई के मस्तानी के प्रति क्रोध को नज़रंदाज़ कर के अपनी अर्ध-मुस्लिम पत्नी मस्तानी को प्रेम करता गया।
राधाबाई की और से रहते हुए बाजीराव का भाई हमेशा मस्तानी को वनवास भेजने की नाकाम कोशिश करता रहता था। बाजिराओ का पुत्र बालाजी भी मस्तानी को उनके पिता को छोड़ने के लिए मजबूर करता था लेकिन मस्तानी इस सब से असहमत थी।
परन्तु बाजीराव बार बार इसे नज़रंदाज़ करते गये और इसीका फायदा उठाते हुए बालाजी ने मस्तानी को जब बाजीराव अपने सैन्य अभियान में व्यस्त थे तब कुछ समय के लिए उसे घर में ही कैद कर के रखा।
बाद में कुछ समय पच्छात मस्तानी बाजीराव के साथ पुणे के शनिवार वाडा के पास राजमहल में रहने लगी। महल के उत्तर पूर्व किनारों पर महल को “मस्तानी महल” और बाहरी द्वार को “मस्तानी दरवाज़ा” का नाम दिया गया।
बाजीराव के परिवार के मस्तानी के साथ दुर्व्यहार के कारण बाद में बाजीराव ने मस्तानी के लिए 1734 में कोथरुड में एक अलग निवास स्थान बनाया, जो शनिवार वाडा से कुछ ही दुरी पर था। यह स्थान आज भी कर्वे रोड पर “मृत्युंजय मंदिर” के नाम से जाना जाता है। जहा कोथरुड के महल के टुकड़े टुकड़े कर दिए गये थे वो आज भी राजा केलकर संग्रहालय के विशेष विभाग में देखा जा सकता है। परन्तु इस सम्बन्ध में मस्तानी से जुड़े कोई सरकारी कागज़ बाजीराव के साम्राज्य में दिखाई नहीं देते।
इतिहासकारों का ऐसा मान ना है की राजा केलकर संग्रहालय और वाई संग्रहालय में जो बाजीराव और मस्तानी की पेंटिंग्स लगी है वो प्रमाणिक या असली नहीं है।
मृत्यु:
28 अप्रैल 1740 में जब बाजीराव अपने खरगांव की जमीन का निरिक्षण कर रहे थे तब आकस्मिक बुखार के वजह से उनकी मृत्यु 39 वर्ष की आयु में हुई। तब काशीबाई, चिमाजी अप्पा, बालाजी (नानासाहेब) और मस्तानी भी खरगांव आये थे।
जहा 28 अप्रैल 1740 को नर्मदा नदी के किनारे रावेर खेड में उनके शरीर को अग्नि दी गयी। और इसके कुछ समय बाद ही पुणे के समीप पबल गाव में मस्तानी की मृत्यु हो गयी।
उनके लिए दिल्ली में (100000) सैन्य का रास्ता भी बनाया गया जिसका शिवीर खरगोन जिले में इंदोर के पास बना हुआ है। उनकी याद में एक शिव मंदिर भी बनाया गया जो उसी के निकट स्थित है।
मस्तानी मृत्यु का कारण:
पौराणिक कथाओ के अनुसार, बाजीराव के मृत्यु की खबर सुनते ही मस्तानी ने अपनी अंगूठी का ज़हर पीकर आत्महत्या कर ली थी। वही दुसरो का ऐसा मानना है की उसके पति के दाह संस्कार के वक़्त उसने बाजीराव की चिता पर छलांग लगाई थी। परन्तु इस प्रकार का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है जो मस्तानी की मृत्यु का असली कारण बता सके।
परन्तु यह अक्सर कहा जाता है की बाजीराव की 1740 में मृत्यु के पच्छात मस्तानी ज्यादा दिन तक नहीं जीवित रही।
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mastanine jahar piya tha kya anguthi ka hira nigala tha
Tum aadhi ho toh ham tufan hai
Tum tufan ho toh ham aag ka dariya
Ab gulami ki janjjre nhi sirf aajadi ka gulala hoga
Har har mahadev
Pyar to pyar he, per bajirao ne mastani ke pyar ko samman diya lekin kashibai ke sath kuch acha nahi kiya…………………. but wo pyar me tha ye bhi sahi he…isliya pyar or jung me sab jayaj he ……………. pyar sach me andha hota he use kuch nahi dikhta sahi / galat………… isliye pyar se door …………….
Realy a touching love storie of Bajirao ,Mastani ..I am really admirer to Bajirao , Mastani, & kahi bai The film bajirao mastani film by leela bhansali actor Ranbir sng , deepa Pandodker Priya ka copra have given it by there true acting to this storie is a Tribute to these great souls ..
Very very good ???? story of bajiraomastani it was a historical love ❤
Nice story.bajirao is a true lover.bajirao up salute