Badrinath Temple
भारत में कई अद्भुत और विचित्र मंदिर है जिनकी अपनी – अपनी मान्यता है साथ ही आर्कटेक्चर के लिहाज से भी ये मंदिर काफी अद्भुत है वहीं अगर इन मंदिरों से जुड़े इतिहास की बात करें तो वो भी कम दिलचस्प नहीं है। भारत में हिंदु धर्म में चार धामों की यात्रा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।
माना जाता है कि चार धामों की यात्रा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है साथ ही जिंदगी में किए सभी पाप धुल जाते है। इन्हीं चार धामों में से एक बद्रीनाथ मंदिर भी है। जो हिंदू धर्म में भगवान विष्णु का बद्री रुप में अवतरित मंदिर माना जाता है।
बद्रीनाथ मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जहां हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। बद्रीनाथ मंदिर की एक खास बात ये भी है कि ये मंदिर साल में केवल अप्रैल से नवम्बर तक 6 महीने ही खुलता है इसके बाद अगले 6 महीनों के लिए इस मंदिर के कपाट पूरे विधि विद्न के साथ बंद कर दिए जाते है। ऐसा करने का एक मुख्य कारण ये है कि बद्रीनाथ में हर साल बहुत बर्फ पड़ती है जिसे ये मंदिर पूरी तरह बर्फ में ढक जाता है। जिसके बाद इसे गर्मी के महीने में ही खोला जाता है।
हालांकि आर्थिक मान्यता इसकी कुछ ओर ही है लेकिन क्या आप जानते है बद्रीनाथ मंदिर को कब और किसने बनवाया, और इस मंदिर से जुड़ी ऐसी कौन सी मान्यता है जिस वजह से यहां लाखों लोंगो हर साल दर्शन के लिए आते है।
चार धाम में से एक बद्रीनाथ मंदिर – Badrinath Temple, Badrinath
बद्रीनाथ मंदिर, उत्तराखंड चमोली जिले में और अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित भगवान विष्णु का एक धार्मिक स्थान है। बद्रीनाथ मंदिर समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। बद्रीनाथ धाम “चार धाम” में से एक है और वैष्णवों के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है।
बद्रीनाथ के मंदिर में स्थित बद्रीनारायण के रूप में विष्णु की काली पत्थर की प्रतिमा, 1 मी (3.3 फुट) लंबी है।
इस मूर्ति को विष्णु के स्वयं-प्रकट मूर्तियों में से माना जाता है। बद्रीनाथ धाम में यात्रा का मौसम हर साल अप्रैल से शुरू होता है और नवंबर के महीने में समाप्त होता है। बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व अपने पौराणिक वैभव और ऐतिहासिक मूल्य से जुड़ा हुआ है।
हमारे प्राचीन ग्रंथों में बताया हैं कि यह मंदिर शुरू में एक बौद्ध मठ था और आदी गुरु शंकराचार्य 8 वीं शताब्दी के आसपास इस जगह का यात्रा करने के बाद ही एक हिंदू मंदिर में बदल दिया था।
बद्रीनाथ मंदिर की कहानी – Badrinath Temple Story
बद्रीनाथ धाम के इतिहास से संबंधित अनेक पौराणिक कथा है। एक महान कथा के अनुसार भगवान विष्णु इस जगह पर कठोर तपस्या कर रहे थे।
धार्मिक कथाओं के अनुसार उत्तराखंड का पूरा क्षेत्र भगवान शिव के आधीन था लेकिन एक बार भगवान विष्णु अपनी तपस्या के लिए जगह की खोज कर रहे थे तब अलकनंदा नदी के किनारे का स्थान उन्हें बहुत पसंद आया। लेकिन वो भगवान शिव की जगह थी।
इसलिए भगवान विष्णु ने बाल रुप धारण कर रोना शुरु कर दिया। बालक की आवाज सुन भगवान शिव की पत्नी पार्वती बालक को चुप कराने बालक के पास आई। तब उन्होनें बालक से कहा कि उसे क्या चाहिए तो बालक ने अलकनंदा किनारे की जगह मांग ली।
मां पार्वती और भगवान शिव ने बालक को वो स्थान दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु अपने असल रुप में आ गए और वहां पर तप करने लगे। लेकिन तपस्या के दौरान भगवान विष्णु इतने ज्यादा लीन हो गए थे कि उन्हें ये भी ध्यान नहीं रहा कि उनके ऊपर बर्फ जमने लग गई है।
लेकिन ये सब देख भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ और वो एक बेर के पेड़ के रुप में भगवान विष्णु के पास खड़ी हो गई जिसे सारी बर्फ पेड़ पर गिरने लगी। तपस्या खत्म होने के बाद जब भगवान विष्णु ने देखा उनकी पत्नी ने सारी बर्फ खुद पर ले ली है तो उन्होनें उस स्थान को बद्रीनाथ धाम का नाम दिया।
द्वितीय भाग को दर्शन मंडप के नाम से जाना जाता है जिसमें पूजा समारोह किया जाता है।
तीसरा भाग सभा मंडप है, जो एक बाहरी हॉल है, जहां भक्त भगवान बद्रीनाथ के दर्शन करते हैं। भगवान बद्रीनाथ का दर्शन सुबह 6:30 बजे से उपलब्ध है।
वेदिक भजनों के साथ और घंटियों की आवाज घूमने के साथ मंदिर में स्वर्गीय वातावरण पैदा होता है। पास के ही तपेता कुंड में डुबकी के बाद तीर्थयात्री पूजा समारोह में शामिल हो सकते हैं।
सुबह की पूजा का क्रम ऐसा हैं – सबसे पहले महाआरती, अभिषेक, गीतापाठ और भागवत मार्ग, जबकि शाम पूजा गीता गोविंद और आरती की जाती हैं।
माता मूर्ति का मेला बद्रीनाथ मंदिर में मनाया जाने वाला सबसे प्रमुख त्योहार है।
बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास – Badrinath Mandir History
तथ्यों के अनुसार बद्रीनाथ का मंदिर 8वीं शताब्दी आदि शंकाराचार्य ने परमार राजा कनक के साथ मिलकर इस मंदिर को बनाया था इस मंदिर में स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर भी कहा जाता है कि उसे शँकाराचार्य ने अलकनंदा नदी से खोजा था और यहां स्थापित किया था।
और यही वजह कि बद्रीनाथ में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति को भगवान विष्णु के आठ स्वंय प्रकट हुई प्रतिमाओं में से एक माना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर में पंच बद्री यानी बद्रीनाथ के पांच रुपों को पूजा जाता है इसके अलावा इस मंदिर में माता लक्ष्मी और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा भी है ब्रदीनाथ मंदिर में तीर्थयात्री अप्रैल से नवम्बर तक आते है इसके बाद इस मंदिर को पूरे विधि विदान के साथ बंद किया जाता है।
कपाट बंद करने से पहले पूरे मंदिर को फूलों से सजाया जाता है और इसके बाद पूजारी शादी का कार्ड लेकर माता लक्ष्मी के मंदिर में जाता है और उसके बाद पूरे विधि विदान के साथ माता लक्ष्मी की प्रतिमा को भगवान विष्णु की प्रतिमा के साथ स्थापित किया जाता है माना जाता है कि भगवान विष्णु इन 6 महीनों में तपस्या में लीन रहते है जिसमें माता लक्ष्मी उनके साथ रहती है।
बद्रीनाथ जाने के रास्ते – How to reach Badrinath Temple
बद्रीनाथ जाने के तीन रास्ते है जिसमें से पहला रास्ता रानीखेत से गढ़वाल, दूसरा कोटद्वार होते हुए गढ़वाल, और तीसरा रास्ता हरिद्वार से होते हुए देवप्रयाग। आपको बता दें ये तीनो रास्ते कर्णप्रयाग में आकर मिलते है। लेकिन आपको ये जानना भी जरुरी है कि बद्रीनाथ जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है जो जोशीमठ के एसडीएम दारा बनाया जाता है।
ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि लाखों तीर्थयात्रियों के यहां आने के कारण रास्ते में बहुत ही ट्रैफिक जाम की समस्या उत्पन्न होती है जिसे बचने के लिए पुलिस इसका इस्तेमाल करती है और इसके जरिए ट्रैफिक कंट्रोल करती है।
बद्रीनाथ से पहलें विष्णुप्रयाग पड़ता है जहां पर गंगा के दो स्वरुप अलकनंदा और धौली गंगा नदी का संगम होता है। विष्णुप्रयाग से आगे गोविन्दघाट है जहां से एक रास्ता बद्रीनाथ और दूसरा घाँघरिया जाता है जहां हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा है।
बद्रीनाथ मंदिर में लोगों की अपनी एक अस्था है हालांकि इस मंदिर की वास्तुकला भी काफी आकर्षक है जो यहां आने वाले तीर्थयात्रियों के आकर्षण का केंद्र बनती है। इसलिए लोग चाहे यहां आस्था की भावना लेकर आए या इतिहास की खोज में, दोनों ही स्थितियों में उन्हें यहां बहुत कुछ समझने और देखने को मिलेगा।
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